शक्ति इंजीनियरी

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विद्युत उत्पादन करने वाली विद्युत जनित्र को घुमाने के लिये प्रयुक्त वाष्प टरबाइन

शक्ति इंजीनियरी (Power engineering) इंजीनियरी की वह उपक्षेत्र है जो विद्युत शक्ति के उत्पादन (जनन /generation), पारेषण (transmission), वितरण (distribution), उपभोग (utilization) तथा इनमें प्रयुक्त जनित्रों, ट्रांसफार्मरों, पारेषण लाइनों एवं मोतरों से सम्बन्ध रखता है। इस विधा को विद्युत प्रणाली इंजीनियरी (power systems engineering) भी कहते हैं।

इतिहास[संपादित करें]

  • १८३१ - माइकल फैराडे ने प्रेरण के नियम की खोज की।
  • १८८१ - दो अंग्रेज तकनीशियनों ने इंग्लैण्ड में प्रथम विद्युत उत्पादन संयंत्र बनाया जो जल-चक्र (वाटर ह्वील) से चलता था।
  • १८८२ - न्यूयॉर्क के पर्ल स्ट्रीट में एडिसन की 'एडिसन पॉवर क्म्पनी' ने वाष्प से चलने वाला विश्व का पहला शक्ति-संयंत्र (पॉवर प्लान्ट) विकसित किया। इसमें डीसी वोल्टेज का उत्पादन होता था।
  • १८८२ - लन्दन में ही लुसिन गौलार्ड और जॉन डिक्सन गिब्ब्स ने शक्ति-प्रणाली में उपयोग किये जाने योग्य प्रथम ट्रांसफार्मर का प्रदर्शन किया।
  • १८८७-८८ : निकोला टेस्ला ने शक्ति-प्रणाली से सम्बन्धित बहुत से पेटेन्ट फाइल किये।
  • १८९० तक यूरोप और अमेरिका में हजारों शक्ति-संयन्त्र लग चुके थे जिनमें कुछ एसी और कुछ डीसी उत्पन्न करते थे।

शक्ति प्रणाली के अवयव[संपादित करें]

आधुनिक शक्ति प्रणाली के मुख्यत: चार भाग होते हैं -

  • जनन (जनरेशन)
  • पारेषण (ट्रांसमिशन)
  • वितरण (डिस्ट्रिब्यूशन)
  • उपभोग (युटिलाइजेशन)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]