शकुनि

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शकुनि
हिंदू पौराणिक कथाओं के पात्र
नाम:शकुनि
संदर्भ ग्रंथ:महाभारत
जन्म स्थल:गांधार(आधुनिक, अफ़गानिस्तान )
व्यवसाय:गांधार का राजा और चौसर का माहिर खिलाड़ी।
मुख्य शस्त्र:परशु
राजवंश:गांधार
माता-पिता:सुबल (पिता) सुधर्मा (माता)
भाई-बहन:गांधारी (बहन)
जीवनसाथी:अर्शी
संतान:उलूकवृकासुरवृप्रचिट्टी (पुत्र)

शकुनि या शकुनी गंधार साम्राज्य का राजा था। यह स्थान आज के अफ़्ग़ानिस्तान में है। वह हस्तिनापुर महाराज और कौरवों के पिता धृतराष्ट्र का साला था और कौरवों का मामा। दुर्योधन की कुटिल नीतियों के पीछे शकुनि का हाथ माना जाता है और वह कुरुक्षेत्र के युद्ध के लिए दोषियों में प्रमुख माना जाता है। उसने कई बार पाण्डवों के साथ छल किया और अपने भांजे दुर्योधन को पाण्डवों के प्रति कुटिल चालें चलने के लिए उकसाया। उलूक ,वृकासुरवृप्रचिट्टी शकुनि तथा आरशी के पुत्र थे।

शकुनी एक कुशल रथी भी था जो युद्ध कलाओं में पारंगत था।

जन्म[संपादित करें]

शकुनि का जन्म गंधार के सम्राट ुबल तथा साम्राज्ञी सुदर्मा के यहाँ हुआ था। शकुनि की बहन गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ था। शकुनि की कुरुवंश के प्रति घृणा का कारण यह था, की हस्तिनापुर के सेनापति भीष्म एक बार धृतराष्ट्र के लिए गांधारी का हाथ माँगने गंधार गए। तब गांधारी के पिता सुबल ने ये बात स्वीकार कर ली, लेकिन उस समय उन्हें ये पता नहीं था की धृतराष्ट्र जन्मांध है। इसका शकुनि ने भी विरोध किया, लेकिन गांधारी अब तक धृतराष्ट्र को अपना पति मान चुकी थी। इसलिए शकुनि ने उस दिन ये प्रण लिया की वह समूचे कुरुवंश के सर्वनाश का कारण बनेगा।[1][संपादित करें]

***प्रारंभिक जीवन और परिवार***[संपादित करें]

महाभारत के अनुसार, शकुनि द्वापर युग का अवतार था, जो हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में तीसरा युग था। वह गांधार (भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में, इसकी राजधानी तक्षशिला जो आधुनिक शहर इस्लामाबाद के आसपास है) के राजा सुबाला का पुत्र था। शकुनि की गांधारी नाम की एक बहन और कई भाई थे जिनमें अचला और वृषक सबसे प्रमुख थे।[3][5] उलूक उनका पुत्र था और उसने कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान दूत के रूप में कार्य किया था। [6] महाकाव्य के अश्वमेधिक पर्व में शकुनि के वंशज का उल्लेख है जिन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद गांधार पर शासन किया था। [5][संपादित करें]

महाभारत के आदिपर्व में कहा गया है कि कुरु साम्राज्य के तत्कालीन संरक्षक भीष्म ने गांधार की राजकुमारी गांधारी का विवाह विचित्रवीर्य के बड़े पुत्र धृतराष्ट्र से करने के लिए किया था, जो जन्म से अंधा था। धृतराष्ट्र के अंधेपन के कारण सुबाला शुरू में अनिच्छुक थे, लेकिन बाद में कुरु शाही परिवार की उच्च प्रतिष्ठा पर विचार करने के बाद सहमत हो गए। [7] शकुनि अपनी बहन के साथ कौरवों की राजधानी हस्तिनापुर गया। विवाह के बाद शकुनि गांधार लौट आया,[3][8]चौसर का खेल[संपादित करें]

हस्तिनापुर राज्य को दो बराबर टुकडो़ में बाँटकर एक भाग, जो की पुर्णतः बंजर था, पाण्डवों को दे दिया गया, जिसे उन्होनें अपने अथक प्रयासों से इंद्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली) नामक सुंदर नगरी में परिवर्तित कर दिया। शीघ्र ही वहाँ की भव्यता कि चर्चाएँ दूर्-दूर तक होने लगीं। युधिष्ठिर द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ के अवसर पर, दुर्योधन को भी उस भव्य नगरी में जाने का अवसर मिला। वह राजमहल की भव्यता देख रहा था, कि एक स्थान पर उसने पानी की तल वाली सजावट को ठोस भूमि समझ लिया और पानी मे गिर गया और अर्जुन,नकुल,सहदेव,भीम उसे देखकर हँसने लगे इस घटना के समय युधिष्ठिर और द्रौपदी उपस्थित नहीं थे। इसे दुर्योधन ने अपना अपमान समझा और वह हस्तिनापुर लौट आया। द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का मज़ाक उड़ाना पूर्णतः असत्य बात है|सभापर्व में भी इसका उल्लेख है|

अपने भांजे की यह मानसिक स्थिति भाँपकर, शकुनि ने मन में पाण्डवों का राजपाट छिनने का कुटिल विचार आया। उसने पाण्डवों को चौसर के खेल के लिए आमंत्रित किया और अपनी कुटिल बुद्धि के प्रयोग से युधिष्ठिर को पहले तो छोटे-छोटे दाव लगाने के लिए कहा। जब युधिष्ठिर खेल छोड़ने का मन बनाता तो शकुनि द्वारा कुछ ना कुछ कहकर युधिष्ठिर से कोई ना कोई दाव लगवा लेता। इस प्रकार महाराज युधिष्ठिर एक-एक कर अपनी सभी वस्तुओं को दाव पर लगा कर हारते रहे और अंत में उन्होनें अपने भाईयों और अपनी पत्नी को भी दाव पर लगा दिया और उन्हें भी हार गए और इस प्रकार द्रौपदी का अपमान करके दुर्योधन ने अपना प्रतिशोध ले लिया और उसी दिन महाभारत के युद्ध की नींव पडी़।

श्लोक 8)।[संपादित करें]

अर्जुन के विरुद्ध उसकी मायावी चालों का उपयोग लचीलेपन के साथ किया गया क्योंकि अर्जुन ने सफलतापूर्वक उनका मुकाबला किया, जिससे शकुनि को युद्ध के मैदान से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा (द्रोण पर्व, अध्याय 30, श्लोक 15)। शकुनि ने अभिमन्यु, नकुल, सहदेव और सात्यकि के साथ भी युद्ध किया। बाद में, भीम के हमले के कारण सात महारथियों और शकुनि के पांच भाइयों की मृत्यु हो गई (द्रोण पर्व, अध्याय 157, श्लोक 22)। जैसे-जैसे युद्ध कर्ण पर्व में आगे बढ़ा, शकुनि ने श्रुतसेन को हरा दिया, लेकिन बाद की लड़ाइयों में सात्यकि और भीम की शक्ति के सामने हार मान ली (कर्ण पर्व, अध्याय 25, श्लोक 40; कर्ण पर्व, अध्याय 61, श्लोक 48; कर्ण पर्व, अध्याय 77, श्लोक) 66). शल्य पर्व में, शकुनि पांडवों की घुड़सवार सेना से घायल हो गया था (शल्य पर्व, अध्याय 23, श्लोक 41)। [3][संपादित करें]

युद्ध के 18वें दिन पांडवों ने शकुनि, उलूक और उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया। जैसे ही दुर्योधन और उसके अन्य भाई अपने चाचा की रक्षा के लिए दौड़े, भीम ने आगे आकर शेष कौरवों से युद्ध किया और उनमें से कई (दुर्योधन को छोड़कर) को मार डाला। इस बीच, नकुल ने कई प्रमुख गांधार योद्धाओं और उलूक के अंगरक्षकों को मार डाला। सहदेव ने शकुनि और उलूक से युद्ध किया और कुछ ही समय बाद उलूक को मार डाला। शकुनि ने क्रोधित होकर सहदेव पर आक्रमण कर दिया। उसने उसका रथ और धनुष तोड़ दिया, लेकिन सहदेव दूसरे रथ पर चढ़ गया और शकुनि से जमकर युद्ध किया। कई हमलों और निपटने के बाद, वे दोनों द्वंद्वयुद्ध में चीजों को निपटाने के लिए अपने रथों से नीचे उतरे। तब सहदेव ने अपनी कुल्हाड़ी शकुनि की छाती में घोंप दी और उसे मार डाला[संपादित करें]

उसे। [3]कुरुक्षेत्र का युद्ध[संपादित करें]

कुरुक्षेत्र के युद्ध में शकुनि का वध सहदेव के द्वारा १८ वें[2] दिन के युद्ध में किया गया। उसके सभी भाइयों का वध इरवन और अर्जुन के द्वारा किया गया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "महाभारत के वो 10 पात्र जिन्हें जानते हैं बहुत कम लोग!". दैनिक भास्कर. २७ दिसम्बर २०१३. मूल से 28 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 दिसंबर 2013.
  2. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 20 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2018.

बाहरी सम्पर्क[संपादित करें]