वार्ता:भारतीय जनसंघ

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अखिल भारतीय जनसंघ[संपादित करें]

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अखिल भारतीय जनसंघ यह भारत का एक राजनैतिक दल है।

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दीपक या दीया - भारतीय जनसंघ का चुनावचिह्न था।

भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी अखिल भारतीय जनसंघ मूल श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा १९५१(1951) में निर्मित भारतीय जनसंघ है।

अखिल भारतीय जनसंघ भारत का एक पुराना राजनैतिक दल है । इस दल का आरम्भ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गयी थी। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। इसने 1952 के संसदीय चुनाव में ३ सीटें प्राप्त की थी जिसमे डाक्टर मुखर्जी स्वयं भी शामिल थे। कश्मीर आंदोलन के विरोध के बावजूद १९५२ में पहले लोकसभा चुनावों में जनसंघ को लोकसभा में तीन सीटें प्राप्त हुई। वो १९६७ तक संसद में अल्पमत में रहे। इस समय तक पार्टी कार्यसूची के मुख्य विषय सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाना और जम्मू एवं कश्मीर के लिए दिया विशेष दर्जा खत्म करना थे।

१९६७ में देशभर के विधानसभा चुनावों में पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और समाजवादियों सहित अन्य पार्टियों के साथ मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न हिन्दी भाषी राज्यों में गठबंधन सरकार बनाने में सफल रही। इससे बाद जनसंघ ने पहली बार राजनीतिक कार्यालय चिह्नित किया, यद्यपि यह गठबंधन में था। राजनीतिक गठबंधन के गुणधर्मों के कारण संघ के अधिक कट्टरपंथी कार्यसूची को ठण्डे बस्ते में डालना पड़ा।


अखिल भारतीय जनसंघ http://Www.akhilbhartiyajansangha.org दल अध्यक्ष आचार्य भारत भूषण पाण्डेय (राष्ट्रीय)

महासचिव राकेश कौल गोरखा

गठन 21अक्टूबर 1951

वर्तमान मुख्यालय B-8 बरेजा सदन मार्केट नजदीक सिब्बल सिनेमा मथुरा रोड बदरपुर, नई दिल्ली - 110044

विचारधारा हिन्दू राष्ट्र राष्ट्रवाद आर्थिक उदारीकरण अखंड मानवतावाद

रंग भगवा

युवा शाखा अखिल भारतीय जनसंघ युवा मोर्चा

महिला शाखा अखिल भारतीय जनसंघ महिला मोर्चा

किसान शाखा अखिल भारतीय जनसंघ किसान मोर्चा जालस्थल [1]

भारत की राजनीति राजनैतिक दलचुनाव


जनता पार्टी (१९७७-८०)संपादित करें मुख्य लेख: जनता पार्टी

१९७५ में प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। जनसंघ ने इसके विरूद्ध व्यापक विरोध आरम्भ कर दिया जिससे देशभर में इसके हज़ारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। १९७७ में आपातकाल ख़त्म हुआ और इसके बाद आम चुनाव हुये। इस चुनाव में जनसंघ का भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओ) और समाजवादी पार्टी के साथ विलय करके जनता पार्टी का निर्माण किया गया और इसका प्रमुख उद्देश्य चुनावों में इंदिरा गांधी को हराना था।

१९७७ के आम चुनाव में जनता पार्टी को विशाल सफलता मिली और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। उपाध्याय के 1979 में निधन के बाद जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी बाजपेयी बने थे अतः उन्हें इस सरकार में विदेश मंत्रालय कार्यभार मिला। हालाँकि, विभिन्न दलों में शक्ति साझा करने को लेकर विवाद बढ़ने लगे और ढ़ाई वर्ष बाद देसाई को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। गठबंधन के एक कार्यकाल के बाद १९८० में आम चुनाव करवाये गये।

(१९८० से अबतक)संपादित करें

अखिल भारतीयजनसंघ की स्थापना और आरम्भिक कालसंपादित करें अखिल भारतीय जनसंघ पार्टी 1980 में जनता पार्टी के विघटन के बाद नवनिर्मित पार्टियों में से एक थी। यद्यपि तकनीकी रूप से यह जनसंघ का ही दूसरा रूप है , इसके अधिकतर कार्यकर्ता इसके पूर्ववर्ती थे और प्रो.बलराज मधोक को इसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल (1975-1976) के बाद जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय कर के एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। आपातकाल से पहले बिहार विधानसभा के भारतीय जनसंघ के विधायक दल के नेता लालमुनि चौबे ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बिहार विधानसभा से अपना त्यागपत्र दे दिया। जनता पार्टी 1980 में टूट गयी और जनसंघ की विचारधारा के नेताओं नें भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। इसके पश्चात प्रोफेसर बलराज मधोक ने भारतीय जनसंघ का नाम अखिल भारतीय जनसंघ करके चुनाव आयोग में रजिस्टर कराया और भारतीय राजनीति में अखिल भारतीय जनसंघ के नाम से संसदीय चुनाव प्रणाली में भाग लिया।

'अखिल भारतीय जनसंघ' के संस्थापक प्रो.बलराज मधोक ने देश में प्रखर राष्ट्रवादी और हिन्दुत्ववादी राजनीति की नींव रखी। भारतीय जनसंघ के साथ ही उन्होंने 1951 में आरएसएस की स्टूडेंट ब्रांच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की। इसके साथ ही उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ और इस दौरान लंबे समय तक लखनऊ उनकी राजनीतिक कर्मभूमि रहा। जनसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने लखनऊ में पहली राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक रखी। उसके बाद जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर उन्होंने 1989 में यहीं से चुनाव भी लड़ा। लखनऊ में उनके साथ काम करने वाले ऐसे ही कुछ नेताओं और बुद्धिजीवियों को उनकी बेवाकी और स्पष्ट राजनीतिक सोच के संस्मरण अब भी याद हैं।

लखनऊ से 1989 में मिली हार

भारतीय जनसंघ के संस्थापक प्रो.मधोक के लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी से राजनीतिक मतभेद रहे। आडवाणी जब राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो 1973 में उन्हें भारतीय जनसंघ से निकाल दिया गया। बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी तो उसमें शामिल हुए, हालांकि उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने 'अखिल भारतीय जनसंघ' पार्टी बनाई लेकिन वह सफलता नहीं हो सकी। उसके बाद बीजेपी ने 1989 में जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। लखनऊ से जनता दल के मांधाता सिंह को संयुक्त प्रत्याशी बनाया गया। मधोक मांधाता सिंह के खिलाफ निर्दलीय लड़े। उन्हें हिंदूवादियों का समर्थन मिला और माना जा रहा था कि वह जीत जाएंगे। इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने एक लाइन का बयान दिया-'मधोक हमारे प्रत्याशी नहीं हैं।' और पूरा चुनावी रुख पलट गया, मधोक हार गए।

आखिरी समय तक रहा मेरा जुड़ाव :लाल जी टंडन

पूर्व सांसद लालजी टंडन बताते हैं कि जनसंघ की स्थापना के समय से आखिरी समय तक मेरा उनसे जुड़ाव रहा। वह जीवन भर मूल्यों पर आधारित राजनीति करते रहे। वह जब भी लखनऊ आते, मेरी मुलाकात होती थी। उनकी अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यसमिति यहां चौक स्थित धर्मशाला में हुई। तब मैं उनके काफी करीब रहा। कश्मीर को बचाने में उनका खासा योगदान है। मैं अटलजी और मधोकजी के बीच कुछ दूरियां रहीं लेकिन मैं दोनों के काफी करीब रहा। एक बार यह स्थिति आ गई कि उन्हें जनसंघ से अलग होना पड़ा लेकिन उसके बाद भी वह लिखकर अपने राष्ट्रवादी विचार रखते रहे। जिन विषयों पर आज के नेता संकोच करते हैं, उन पर भी उन्होंने प्रखर विचार रखे। वह राजनीतिक तौर पर भले ही अलग रहे हों लेकिन वह कभी मूल विचारधारा से नहीं हटे।

मेरे आग्रह के बाद लिखे संस्मरण :आनंद मिश्र अभय

राष्ट्रधर्म के संपादक आनंद मिश्र अभय बताते हैं कि मधोक जी से मेरा संपर्क 1997 में हुआ जब मकर संक्रांति पर 'सनातन भारत' विशेषांक निकाला। राष्ट्रधर्म में उनका लेख छापा तो उनके करीबी महेश चंद्र भगत ने सराहा। भगत जी ने ही मेरे बारे में उनको बताया। मधोक जी जब लखनऊ आए तो मुझे मिलने बुलाया और प्रेस कॉन्फ्रेंस में साथ ही बैठा लिया। इसी दौरान वह बोल गए कि अटल जी अब तक के सबसे खराब प्रधानमंत्री हैं। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में उनसे बेहतर नेता और कौन है? इस पर उन्होंने कहा कि यह बीजेपी का सिरदर्द है। मैंने कहा, यह बीजेपी का सिरदर्द है तो आप क्यों इसे अपना बना रहे हैं? ... और प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म हो गई। यह उनकी सहजता ही थी कि इसके बाद भी उन्होंने बुरा नहीं माना। बाद में मैंने उनसे कहा कि आपने इतिहास पढ़ा है, पढ़ रहे हैं, गढ़ रहे हैं और इतिहास को जी रहे हैं। क्यों नहीं आप संस्मरण लिखते। उसके बाद ही उन्होंने संस्मरणों पर आधारित पुस्तक लिखी। कश्मीर समस्या के समाधान पर उन्होंने एक लेख भी भेजा जो उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा के विपरीत था। मैंने वह लेख छापा नहीं और उनसे आग्रह किया कि इसे कहीं और भी न भेजें। इससे आपकी छवि धूमिल होगी। मेरी यह बात उन्होंने मानी भी और अपनी विचारधारा के अनुसार ही लिखते रहे।

बलराज मधोक(1920-2016)

जन्म 25 फरवरी, 1920 को स्कार्दू बाल्तिस्तान (अब पाकिस्तान) में हुआ था।

लाहौर में पढ़ाई के दौरान आरएसएस के संपर्क में आए।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की नींव 1951 में रखी।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर संघ परिवार की पॉलिटिकल पार्टी 'भारतीय जनसंघ' बनाई।

1966-67 में जनसंघ के प्रेजिडेंट रहे

पार्टी ने उनकी अध्यक्षता में 1967 का लोकसभा चुनाव लड़ा। जनसंघ को इसमें अपनी सबसे बड़ी कामयाबी मिली और पार्टी ने 35 सीटें जीतीं।

मधोक को इमरजेंसी के दौरान 18 महीने जेल में भी रहना पड़ा।

प्रोफेसर बलराज मधोक जी ने 2016 तक अखिल भारतीय जनसंघ का नेतृत्व किया । उनके निधन के पश्चात 2017 से अखिल भारतीय जनसंघ का नेतृत्व डॉक्टर आचार्य भारतभूषण पांण्डेय जी कर रहे हैं वर्तमान में डॉक्टर आचार्य भारतभूषण पाण्डेय जी अखिल भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

लोकसभा चुनावों में उत्तरोत्तर सफलता 1952 में 3.1 प्रतिशत वोट 3 सीट, 1957 में 5.9 प्रतिशत वोट 4 सीट, 1962 में 6.4 प्रतिशत वोट और 14 सीट, तथा 1967 में 9.4 प्रतिशत वोट 35 सीट हासिल की। 1971 में 7.37 प्रतिशत वोट 22 सीट हासिल की। जनसंघ के अध्यक्ष

बाहरी कड़ियाँ

'जनसंघ पर खड़ी है भारतीय जनता पार्टी की नींव'

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(देशकुमार कौशिक (वार्ता) 23:25, 4 दिसम्बर 2019 (UTC)) संवाद देशकुमार कौशिक (वार्ता) 23:20, 4 दिसम्बर 2019 (UTC)[उत्तर दें]

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Akhil Bhartiya Jana Sangh देशकुमार कौशिक (वार्ता) 23:41, 4 दिसम्बर 2019 (UTC)[उत्तर दें]