वार्ता:बायोम

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भारी और पाठ वाले शब्द[संपादित करें]

भाग १[संपादित करें]

इस लेख में कुछ परिवर्तन किये गए जिस से अब यह पाठ्यपुस्तक की तरह लगने लगा था। यह वि:पाठ्यपुस्तकनहीं और वि:भारीशब्दनहीं नीतियों का उल्लंघन है, इसलिए में इसे वापस बदल रहा हूँ। साथ ही एक मूल्यवान स्रोत भी डाला गया था, और मैं उसे सुरक्षित रख रहा हूँ। इसपर बातचीत के लिए मैं तैयार हूँ। वह बदलाव जिसे मैं पलटने जा रहा हूँ इस प्रकार था -

  • मूल - बायोम (biome) धरती या समुद्र के किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों (विशेषकर पौधों और वृक्षों) की समानता हो।
  • बदला हुआ - बायोम या जीवोम(biome) समान पर्यावरणीय दशाओं वाले क्षेत्रों में भौतिक पर्यावरण (स्थल, जल, वायु, मृदा आदि) के साथ उसमें पाये जाने वाले समस्त पादप एवं जन्तु समुदाय के सम्यक अध्ययन के क्षेत्र को कहते हैं। सामान्यतः जीवोम ऐसा परिवेश माना जाता है जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों (विशेषकर पौधों और वृक्षों) की समानता हो।
  • नया रूप - बायोम (biome) या जीवोम धरती या समुद्र के किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों (विशेषकर पौधों और वृक्षों) की समानता हो।

धन्यवाद। --Hunnjazal (वार्ता) 19:49, 4 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

  • नीतियाँ बिल्कुल सही हैं। पाठ्यपुस्तक की भाषा या भारी शब्द तब तक वर्जित होने चाहिए जब तक कि उनसे विषय की स्पष्टता और उसके अर्थ निष्पादन में बाधा पहुँचती हो। ज्ञानकोष की भाषा में एक अनुशासन भी अपेक्षित है ताकि वो किसी का व्यक्तिगत नोट्स भी न लगे। जहाँ तक मेरे संपादन की बात है तो मैंने कोई भी भारी शब्द प्रयुक्त नहीं किया है। मैंने सन्दर्भ संलग्ल किया था इसलिए संबंधित पाठ का विस्तार भी किया। भारी शब्दों की परिभाषा भी कम भारी नहीं है। मेरे द्वारा बनाए अधिकांश लेखों की भाषा इसी श्रेणी में आ जाएगी। ऐसे ऋणात्मक संपादनों से बेहतर होगा कि विषय का थोड़ा विस्तार किया जाय। मैंने अपना कार्य किया है। आप भी स्वतंत्र हैं। धन्यवाद -- अजीत कुमार तिवारी वार्ता 06:38, 5 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

तिवारी जी, अगर ऐसी भाषा लिखनी है तो संस्कृत विकिपीडिया की ओर दृष्टि डालिए (यह बिलकुल सच्चे मन और साफ़ नियत से सुझाव है, किसी प्रकार का मज़ाक नहीं)। उसमें ७,७०० से भी कम लेख हैं और वहाँ आपका योगदान बहुत लाभदायक होगा। हिन्दी में 'पादप', 'पर्यावरणीय दशाओं', 'मृदा' 'जन्तु समुदाय', 'सम्यक' और 'परिवेश' जैसे शब्द दैनिक जीवन में प्रयोग नहीं या बहुत कम होते हैं। इनका लेखों में भी हिचककर प्रयोग करना चाहिए। बात अनुशासन की है ही नहीं, क्योंकि इस से कहीं ज़्यादा सरल भाषा फिर भी अनुशासित ही होगी। एक आसान सी कसौटी है। कोई शब्द लिखते हुए उसके आगे "माँ, मैं ...." लगाकर कोई वाक्य बनाइये और ऐसे सोचिये कि आप उन्ही से कुछ कह रहे हैं। अगर वह अटपटा या पढ़ाकू लगे तो उस शब्द के प्रयोग से परहेज़ करें। 'मातृभाषा' शब्द का भी कुछ ऐसा ही मतलब है :-) --Hunnjazal (वार्ता) 08:58, 5 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

हुन्जाज जी, 'सरल भाषा' पर पहले भी आपसे खूब चर्चा हुई है। लेकिन लगता है कि आपको अब भी गलत धारणा के शिकार हैं। किसी विषय पर लिखते समय माँ या पिताजी की याद करने के बजाय यह याद किया जाना चाहिये कि अधिकांशतः यह किन लोगों के लिये है (किसान के लिये, माध्यमिक कक्षा के विद्यार्थियों के लिये, या शोधार्थियों के लिये)। इसके अलावा, जैसा तिवारी जी ने कहा है, भाषा का स्वरूप (और शब्दावली) विषय से भी निर्धारित होता है; उनके 'अनुशासन' का मैं यही अर्थ समझ रहा हूँ। 'आपेक्षिकता सिद्धान्त' पर लेख लिखते समय यह सोचना कि भाषा ऐसी हो कि भेड़ चराने वाला या मदरसे का पाँचवीं का छात्र भी समझ ले, व्यर्थ है। -- अनुनाद सिंहवार्ता 13:54, 5 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

इस वाक्य के औचित्य पर ध्यान दीजिए-"हिन्दी विकिपीडिया पर लेख रोज़मर्रा की सामान्य हिन्दी अर्थात खड़ीबोली (हिन्दुस्तानी अथवा हिन्दी-उर्दू) में लिखे जाने चाहिये। हालाँकि तकनीकी तथा विशेष शब्दावली हेतु शुद्ध संस्कृतिनष्ठ हिन्दी के ही प्रयोग की संस्तुति की जाती है।" 'अर्थात: तकनीकी तथा विशेष शब्दावलियों में शुद्ध संस्कृतिनष्ठ हिन्दी ज़रूर प्रयोग होती है, लेकिन हिन्दी विकिपीडिया पर लेख रोज़मर्रा की सामान्य हिन्दी का प्रयोग करें।' अर्थात के बाद आपने जो कुछ भी लिखा है उसका अर्थ आप ही बेहतर समझते होंगे क्योंकि मूल नियमावली में यह पाठ अभी तक नहीं दिख रहा है। फिर भी आपने अच्छी कोशिश की। हन्नजज़ाल जी, मज़ाक तो आप कर ही नहीं सकते क्योंकि यह विकिनियमों के विरुद्ध है और नीयत पर आपकी मैंने कोई संदेह नहीं जताया है। सुझाव के लिए धन्यवाद। -- अजीत कुमार तिवारी वार्ता 11:10, 5 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

अनुनाद जी, क्षमा कीजियेगा लेकिन मेरे दृष्टिकोण से (और विकिनितियों के दृष्टिकोण से भी) ज़बरदस्ती किसी वाक्य में भारी-भरकम या अप्रचलित शब्द ठूसना ग़लत है। यह भाषा की शुद्धि/अशुद्धि का भी सवाल नहीं है। प्रशन बहुत सीधा है - यहाँ पाठशाला की पाठ्य-भाषा में शिक्षा दी जा रही है या सरल भाषा में ज्ञानकोष बनाया जा रहा है। विकिपीडिया नीति यह बिलकुल स्पष्ट करती है कि यहाँ तकनीकी, पाठ्य और भारी भाषा का प्रयोग न हो। यह ग़लत है। मैं आपसे आदरपूर्वक कहूँगा कि इस विषय में आप स्वयं ग़लत समझ का शिकार हैं। और हाँ, यह किसानों, माँओ, सभी को समझ आणि चाहिए। किसान क्या इंसान नहीं हैं? मैंने संस्कृत का सुझाव इसलिए दिया था क्योंकि अगर तिवारी जी के लिए किसी भी कारणवश ऐसे शब्द का प्रयोग प्राकृतिक या पसंद हो जो संस्कृत में प्रचलित हैं लेकिन हिन्दी में केवल पाठ्यपुस्तकों में ही मिलते हैं तो उन्हें वहाँ योगदान करना चाहिए। विकिपीडिया की भाषा जितना हो सके आम भाषा के पास होनी चाहिए।
हुन्जाल जी, 'आम भाषा' की 'आम भाषा' में परिभाषा दीजिये। इसके बाद बताइये कि इस परिभाषा पर कहाँ तक अमल हो रहा है। यह भी बताइये कि विकिपिडिया पर सभी भाषाओं में इतने सारे 'डिफरेंशियल इक्वेशन' , इतने सारे रासायनिक समीकरण, इतने सारे जटिल ग्राफ पड़े हैं वह किस किसान के लिये हैं। उनको आप द्वारा परिभाषित 'आम भाषा' में क्यों नहीं लिखा गया है? अंग्रेजी विकि पर 'Special relativity' पर जो लेख है वह इंग्लैण्ड के कितने किसानों को समझ में आयेगा और क्या वह किसानों के लिये लिखा गया है? मेरा विचार है कि कोई अपने प्रिय नगर इस्लामाबाद के बारे में लेख लिखे तब तक तो शायद यह 'आम भाषा' वाली कसौटी काम कर सकती है किन्तु 'जटिल विषयों' के लिये उनके अनुरूप भाषा और शब्दावली ही नहीं, अन्य उपकरण (जैसे फलन, समीकरण, ग्राफ, ड्राइंग आदि) अपरिहार्य हैं। इसके अलावा मेरा यह भी मानना है कि किसी विषय को 'सबको' समझाया ही नहीं जा सकता। कुछ चुने हुए समूह ही उसे समझ सकते हैं और वह विषय उनको ही ध्यान में रखकर लिखा भी जाना चाहिये।-- अनुनाद सिंहवार्ता 04:32, 6 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
अनुनाद जी, आपने जो ऊपर लिखा है, इसपर ध्यान दें। इसका अधिकाँश हिस्सा बिलकुल आम भाषा में लिखा है। मैंने यह हिन्दी विकिपीडिया पर बहुत देखा है - जब तक सदस्य आपस में बात कर रहें हो, बिलकुल ठीक भाषा का प्रयोग करेंगे लेकिन लेख बनाने लगेंगे तो पता नहीं क्यों कठिन भाषा प्रयोग करने के लिए स्वयं को मजबूर करते हैं। आपकी अंग्रेज़ी विकिपीडिया वाली बात मुझे समझ नहीं आई। अंग्रेज़ी विकिपीडिया के बहुत से लेख नीतिसंगंत नहीं हैं - उन्हें बदलने की आवश्यकता है। यह तो ऐसी बात हुई के जापानी विकिपीडिया में कोई हिन्दी विकिपीडिया के किसी ऐसे लेख को देखे जो पूरा अंग्रेज़ी में है (जो कि कुछ सदस्य न जाने क्यों करते हैं) और बोले "जापानी विकिसथियों, जापानी विकिपीडिया में भी लेख अंग्रेज़ी में होने चाहिए, क्योंकि देखो, हिन्दी विकिपीडिया वाले लेख अंग्रेज़ी में लिख रहें हैं।" यह तो कोई तुक ही न बनी अनुनाद जी! चीन में किसी ने किसी का ख़ून​ किया और उसे सज़ा न हुई, तो इसका न यह मतलब है कि चीन में हत्या करना अपराध नहीं है और न यह कि अब भारत में जिसका मर्ज़ी क़त्ल करो। इस्लामाबाद वाली बात भी मैं नहीं समझा। यह आपका प्रिय शहर है?! लेकिन इसका हमारी यहाँ की चर्चा से क्या लेना-देना? --Hunnjazal (वार्ता) 19:01, 6 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
हुञ्जाल जी, खूब उत्तर दिया आपने। सहसा ज्ञानी से अज्ञानी बन गये। कुछ समझ में नहीं आ रहा। अब मैं आपको अंग्रेजी विकि वाली बात समझाता हूँ। अंग्रेजी में बहुत से लेख अनीतिसंगत होंगे किन्तु मैं नाम सहित एक लेख की बात कर रहा था ताकि आप आसानी से समझ सकें। कृपया यह बताएँ कि उस लेख में दिये हुए समीकरण, फलन, भारी-भरकम भाषा जरूरी हैं या नहीं। उसे इंग्लैण्ड के कितने किसान समझ सकते हैं (आपके अनुसार हर लेख किसान को भी समझ में आना चाहिये)। अब इस्लामाबाद वाली बात का खुलासा करता हूँ। जब कोई किसी गाँव या नगर पर लेख बनायेगा तो उसे बहुत कम शब्दों की आवश्यकता होगी और वह किसान को समझ में आने वाली भाषा में भी लिखा जा सकता है किन्तु गलियों, मीनारों और मैदानों के अलावा भी 'ज्ञान' है जिसे किसान वाली 'आम भाषा' में नहीं व्यक्त किया जा सकता। अब 'आम भाषा' की परिभाषा पर आते हैं। आपने लिखा है कि मेरी उपर लिखी भाषा 'आम भाषा' है। यह परिभाषा नहीं हुई। ऐसा क्यों चाहते हैं कि लोग जरूरत पड़ने पर आपसे प्रमाणपत्र लेने आएँ कि अमुक लेख आम भाषा में है या नहीं। यदि आप 'आम भाषा' की असंदिग्ध परिभाषा 'आम भाषा' में दे देंगे तो आपको बार-बार प्रमाणपत्र देने के महत कार्य से छुटकारा मिल सकता है। -- अनुनाद सिंहवार्ता 06:46, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
जी नहीं, उस में भारी-भरकम भाषा ज़रूरी नहीं है। मैंने स्वयं सामान्य सापेक्षता के लेख का एक बड़ा भाग लिखा है। अगर इतने और लेख लिखने को न होते तो मैं उसे ज़रूर विस्तृत करता (और शायद करूँ भी)। अंग्रेज़ी में एक कहावत है "only make things complex when someone is trying to do complex things" - सापेक्षता पर तो कोई भी खोज कर सकता है। कोई किसान भला क्यों न करे? और अगर तकनीकी शब्दों का प्रयोग है तो वे लेख में संक्षिप्त समझा कर आगे बढ़ाने चाहिए। और किसान को केवल समझ ही नहीं आना चाहिए - अगर वह चाहे तो उसे लेख को सम्पादित भी करना चाहिए। विकिपीडिया विशेषज्ञों के लिए नहीं बना बल्कि सबके समझने के लिए बना है। आम भाषा का अर्थ है उन शब्दों का प्रयोग जो ज़रुरत से अधिक तकनीकी या भारी न हो। जिसमें अगर आप किसी को स्वयं समझा रहें हों, समझाएँ। जो आम आदमी की समझ में आये। जिस लेख को पढ़कर आपकी माँ समझ सके। यह प्रमाणपत्र की बात भी मुझे समझ नहीं आई और बेतुकी सी लगी। मैंने कोई प्रमाणपत्र नहीं माँगा लेकिन अगर किसी लेख की भाषा मुझे आवश्यकता से अधिक उलझी या भरी लगेगी मैं उसे सरल बनाऊँगा ही। "भौतिक पर्यावरण (स्थल, जल, वायु, मृदा आदि) के साथ उसमें पाये जाने वाले समस्त पादप एवं जन्तु समुदाय के सम्यक अध्ययन के क्षेत्र" - कक्षा से बाहर ऐसे कौन बात करता है? और ऐसे बात करने की ज़रुरत क्या है? वि:भारीशब्दनहीं, जो हर भाषा की विकिपीडिया में एक-सामान है, इसे वर्जित करती है। --Hunnjazal (वार्ता) 08:03, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
हुञ्जाल जी, मैने आपके इस संदेश का उत्तर तुरन्त दिया था किन्तु उसी समय तिवारी जी के द्वारा भी संशोधन किया गया था और उस अन्तर्विरोध में मेरा इस संदेश का उत्तर गायब हो गया। उसे पुनः लिख रहा हूँ।
हुञ्जाल जी, आपके इस उत्तर में कम से कम दो तार्किक त्रुटियाँ हैं। आप अब भी मूल प्रश्न का उत्तर देने से भाग रहे हैं। आपने सामान्य सापेक्षता के लेख का अधिकांश भाग लिखा होगा। किन्तु सामान्य सापेक्षता पर अभी बहुत कुछ लिखना बाकी है। इस लेख में आपका लिखा हुआ एक किसान को शायद समझ में आ जाय किन्तु वह इस विषय के सम्पूर्ण ज्ञान का कितना प्रतिशत है? ५% या १०%? यदि सब कुछ लिखना पड़े (जैसा कि कुछ बड़ी विकियों में है) तो किसान भाई को कैसे समझाएंगे? क्या इन विकियों में समीकरण, ग्राफ, जटिल फलन उनको समझ में आयेंगे। यदि आयेंगे तो वे 'किसान' नहीं हैं। आप उनको जबरजस्ती 'किसान' कहे जा रहे हैं (किसान की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं)। आप आगे लिखते हैं- "और किसान को केवल समझ ही नहीं आना चाहिए - अगर वह चाहे तो उसे लेख को सम्पादित भी करना चाहिए।" यह नितान्त सैद्धान्तिक तथा अत्यन्त अव्यावहारिक है। बहुत सारे लेखों पर विशेषज्ञों का आह्वान किया जाता है। आपके विचार से किसानों का आह्वान करना चाहिये; माओं का आह्वान करना चाहिये। आपने जो अंग्रेजी कहावत लिखी है वह अप्रासंगिक और अप्रभावी है। आप इसका उत्तर क्यों नहीं देते कि इस लेख को कितने प्रतिशत किसान पढ़ने आयेंगे और कितने प्रतिशत उच्च कक्षाओं के विद्यार्थी? आपका कहना कि "सापेक्षता पर तो कोई भी खोज कर सकता है। कोई किसान भला क्यों न करे?" वैसा ही सामान्यीकरण है जैसे कोई कह दे कि 'ब्रह्माण्ड अनन्त है।' और उसके बाद कहे कि इस ज्ञान के बाद मेरे लिये क्या शेष रहा। सिद्धान्ततः सापेक्षता पर किसान भी खोज कर सकता है। यह बिल्कुल सम्भव है और हुआ भी है। किन्तु यह किसान 'किसान' नहीं 'महाकिसान' जो बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के कान काट रहा है। ऐसे लोग करोड़ों-अरबों में एक होते हैं। विकिपिडिया इनको ध्यान में लेकर नहीं लिखा जा सकता। मेरे कहने का सार यह है कि 'सामान्य किसान', 'सामान्य माँओं' आदि के लिये विकि के सारे लेख लिखने लगेंगे तो विकि से 'पार्शियल डिफरेंशियल समीकरण', बेसल फलन, लाप्लास ट्रांस्फॉर्मेशन, जटिल ग्राफ, सारे रासायनिक समीकरण और ऐसी ही लाखों चीजें हटानी पड़ेंगी।-- अनुनाद सिंहवार्ता 12:26, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

अनुनाद जी, कोई बात नहीं, मेरे साथ भी ऐसा होता रहता है। आपका उत्तर पढ़कर मैं क्षमा-याचना के साथ कहूँगा कि इन कथनों से कुछ-कुछ संभ्रांतवर्गवाद झलकता है। किसान, चपरासी, बस-चालाक, डाकिया, गृहणी, कोई भी हो - सभी विकिपीडिया सम्पादित कर सकते हैं और विकिपीडिया सब के लिए बना है। आप इसको एक पाठ्यपुस्तक बनाने की चेष्टा में लगे हैं लेकिन हर भाषा में यह विकिनीति है कि विकिपीडिया पाठ्यपुस्तक नहीं है और उसे पाठ की तरह लिखा हुआ नहीं होना चाहिए। अगर विद्यार्थियों के लिए ही लिखना चाहते हैं तो उसके लिए विकीवर्सिटी बना है। वहाँ ज़रूर लिखिए, लेकिन विकिपीडिया पर आम भाषा में सभी के लिए लेख होने चाहिए। इसपर स्पष्ट नीतियाँ हैं जो कोई भी संदेह की जगह नहीं छोड़तीं, जैसे कि Wikipedia:Make technical articles understandable (अनुवाद की आवश्यकता है) - "Articles in Wikipedia should be understandable to the widest possible audience. For most articles, this means understandable to a general audience. Every reasonable attempt should be made to ensure that material is presented in the most widely understandable manner possible. If an article is written in a highly technical manner, but the material permits a more understandable explanation, then editors are strongly encouraged to rewrite it." हाँ, कोई महान पेचीदगी वाला लेख हो तो उसमें पूरा पढ़ने में समय लग सकता है लेकिन सार तो बहुत ही सरल होना चाहिए। सापेक्षता तो बिलकुल इस दाएरे में आता है। अगर आप गणित लेकर चिंतित हैं तो सुनिए - "When possible, even for experts it can be helpful to explain in English why the formula has certain features or is written a certain way. Explaining the "meaning" of a formula helps readers follow along." और बिना आवश्यकता के तकनीकी शब्दों के प्रयोग पर तो वैसे ही पाबंदी है - "Use jargon and acronyms judiciously. Explain technical terms and expand acronyms when they are first used. In addition, you might consider using them sparingly thereafter, or not at all. Especially if there are many new terms being introduced all at once, substituting a more familiar English word might help reduce confusion (as long as accuracy is not sacrificed)." और भाषा बातचीत वाली होनी चाहिए - "Use language similar to what you would use in a conversation. Many people use more technical language when writing articles and speaking at conferences, but try to use more understandable prose in conversation." ठीक यही मैंने आपसी भी कहा था - (१) ऐसा समझिये की आपकी माताश्री पढ़ रहीं हैं - उन्हें बहुत कुछ समझ आना चाहिए (२) ऐसा लिखिए कि आप वार्ता कर रहे हैं। --Hunnjazal (वार्ता) 13:58, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

बार-बार आप 'प्राइमरी के मास्टर' ली मुद्रा में क्यों आ जाते हैं। उपर आपने जो कुछ भी लिखा है उसमें मेरे असंदिग्ध प्रश्नों का उत्तर नहीं है। प्रश्नों के सीधे उत्तर देने के बजाय आपने चुन-चुनकर प्रसंगच्युत सामग्री उद्धृत करके गलत अर्थ निकालने/निकलवाने की कोशिश की है। लेकिन मैं रट्टू नहीं हूँ। उस अंग्रेजी लेख को समग्र रूप में पढ़ने और समझने पर मेरी ही बात को समर्थन मिल रहा है।
उत्तर देने के बजाय आप किसी को 'संस्कृत विकि' पर जाने की सलाह देते हैं तो किसी को विकिविश्वविद्यालय पर। मैं भी आपको सलाह दे सकता था कि आप अपनी 'नुक्ताप्रीति' को उर्दू या फारसी विकि पर जाकर पूरा करें। भारत की ९९% जनता को नुक्तों की न समझ है न आवश्यकता। अब आइये मुद्दों पर। आपने उद्धृत किया है : ""Articles in Wikipedia should be understandable to the widest possible audience. For most articles, this means understandable to a general audience." इसमें 'वाइडेस्ट पॉसिबल आडिएंस' और 'जनरल आडिएंस' का क्या अर्थ है? मैं रट्टू नहीं हूँ। आपने इसका अर्थ 'माँओं' से समझ लिया और मैं इनका अर्थ उन लोगों से लगाता हूँ जिनके कार्यक्षेत्र (field) से सम्बन्धित वह लेख है। आप फिर उद्धृत करते हैं - "When possible, even for experts it can be helpful to explain in English why the formula has certain features or is written a certain way. Explaining the "meaning" of a formula helps readers follow along." क्या नई बात कह दी? भौतिकी, इंजीनियरी, गणित में यह प्रथा ही है कि समीकरण, सूत्र आदि में निहित अर्थ को ग्राफों से समझाया जाय एवं कुछ विशेष स्थितियों (special case) में उससे क्या निष्कर्ष निकलता है, बताया जाय। यह नीति न नयी है और न केवल विकि की नीति है, यह पाठ्यपुस्तकों में भी अपनायी जाती है। इस पर भी ध्यान दीजिये कि यह 'ह्वेन् पॉसिबल' से शुरू हो रहा है और कहीं नहीं लिखा है कि सूत्र, समीकरण, फलन, जटिल ग्राफ आदि से बचना अत्यावश्यक है क्योंकि ये 'माँओं' को समझ में नहीं आयेंगे। आपका सापेक्षिकता वाले लेख पर अधिक जोर मत दीजिये। उसकी 'उत्कृष्टता' पर एक अलग बहस हो सकती है। और आपके अन्तिम उद्धरण में तो आप मनमानी अर्थ निकाले जा रहे हैं। 'कन्वर्शेशन' से अर्थ 'माँ से बातचीत' के अलावा भी होती है। दो वैज्ञानिक, दो शोधार्थी, दो विद्यार्थी भी वार्तालाप करते हैं।
आपने शुरू में कहा था कि आप बातचीत के लिये तैयार हैं किन्तु अब आप सीधे उत्तर देने के स्थान अपर भागने और गलत सन्दर्भ में उद्धृत करने की नीति (लिख दो, कौन इतना सारा कचरा पढ़ने जायेगा!) अपनायी है। अतः मुझे अब लगने लगा है कि आपसे इस विषय पर चर्चा से कोई लाभ नहीं निकेगा। -- अनुनाद सिंहवार्ता 04:53, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

अनुनाद जी, जो नीति मैंने आपको दिखाई उसका अर्थ बिलकुल स्पष्ट है। और ऐसी कई नीतियाँ हैं। लेखों को आम बातचीत की भाषा में लिखना है। तुलसी के ज़माने में उनके क्षेत्र में अवधी बातचीत की भाषा थी और उन्होंने अवधी में लिखा। अवश्य तब संस्कृत बोलने वाले पंडित भी होंगे जो संस्कृत में तर्क-वितर्क कर सकें। इस से संस्कृत उस काल की वार्तालाप की भाषा नहीं बन जाती। नुक्तों की तो बात ही नहीं थी इसलिए यह बिलकुल एक स्पष्ट विषयांतर करने की चेष्टा लगती है। और आप ग़लत कह रहें हैं। क्या आप वास्तव में कभी नुक्ते नहीं लगते? क्या पेड़ को पेड और सड़क को सडक लिखते हैं? ड़ संस्कृत की ध्वनि नहीं है तो फिर उसका प्रयोग क्यों करते हैं? आपने कहा कि 'भारत की ९९% जनता को नुक्तों की न समझ है न आवश्यकता'। मैं आपकी बात नहीं स्वीकारता - कृपया प्रमाणित स्रोतों का सन्दर्भ दीजिये वरना यह एक बेबुनियाद दावा लगता है। और वास्तव में नुक्ते वाले ख़ की ध्वनि वैदिक संस्कृत में बिलकुल आती है। ख़ की ध्वनि भारतीय संस्कृति में ड़ से अधिक संस्कृतनिष्ठ और प्राचीन है। वैसे भी हिंदी विकिपीडिया पर नीति है कि नुक्ते ठीक करने या हटाने के लिए सम्पादन नहीं करना चाहिए। आपको मतभेद स्वीकार कर आगे चलना होगा। मैं दूसरों के लेखों में नुक्तों पर ज़ोर नहीं देता। अंकों को लेकर भी विवाद है - मैंने नागरी अंक पूर्णतः अपनाए हैं लेकिन दूसरों पर उन्हें अपनाने का ज़ोर नहीं देता। इनपर सम्मति नहीं है। लेकिन भाषा के साधारणपन, निष्पक्षता और उल्लेखनीयता पर सम्मति इतनी गहरी, सर्वभाषीय और सर्वव्यापी है कि इनके लिए ग्लोबल मोडरेटर भी हिंदी विकी में हस्तक्षेप करेंगे। आपने पूछा कि 'जनरल आडिएंस' क्या है तो नीति में यह स्पष्ट किया गया है - 'The general reader has no advanced education in the topic's field, is largely unfamiliar with the topic itself, and may even be unsure what the topic is before reading'। न जाने आपको माताओं से क्या बैर है :-) अब पाठ वाली भाषा को मैं पाठ वाली भाषा न बोलूं तो क्या बोलूं? रट्टू हो या लट्टू हो। अगर आप पाठ्यपुस्तक वाली भाषा में लिखेंगे तो विकीवर्सिटी ही सही है, विकिपीडिया नहीं। परिभाषा ज़रूर दें, कौन मना करता है - लेकिन नीतियों के अनुसार (यानि सरल भाषा में)। हाँ, लेख में केवल परिभाषाओं की पतली सूची ही बनाना वर्जित है। विक्शनरी में आप संस्कृतनिष्ठ भाषा में शब्दावलियाँ जी खोल कर बनाएँ। आप अगर बहस छोड़ना चाहें, तो किसी भी कारण से ज़रूर छोड़ें - चाहे वह मुझ से बात करके थक जाना हो या रविवार को मौन व्रत रखना हो। बात करने या न करने को सभी स्वतन्त्र हैं। ख़ुश रहें। --Hunnjazal (वार्ता) 06:38, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

हञ्जाल जी, ध्यान से पढ़िए। मैने कभी नहीं कहा कि नुक्ता मत लगाइये। मैने बस इतना कहा कि मैं भी यह सलाह दे सकता था (और इसी पर आप पिनक गये।) । वैसे बिन्दु तो कई रूपों में देवनागरी में थी और है (जैसे, अनुस्वार) किन्तु मैं किन नुक्तों की बात कर रहा था, आपका अच्छी तरह पता होगा। इन नुक्तों का आरम्भ से ही विरोध होता चला आया है। यह विषयान्तर नहीं है भाषा की कठिनता से इसका सम्बन्ध है। आप स्वयं हिन्दी का फारसीकरण करके उसे कठिन बनाएँ और दूसरों को संस्कृत से व्युत्पन्न शब्दावली से परहेज करने का उपदेश दें, यह ठीक नहीं है। यह तो वैसे ही हो गया कि दाढ़ी रखना तो ठीक है किन्तु मूँछ रख्नना पिछड़ापन है।
आपने फिर गलत सन्दर्भ में लिखी सामग्री को उठाकर चिपका दिया है। क्या आपने यह पढ़ा ? " While it is possible that a member of any audience group may stumble upon an article and decide to read it (by clicking on Special:Random, for example), some subjects naturally attract a more limited audience. In general, a topic that requires many years of specialist education or training prior to being studied or discussed is likely to have a limited audience. For example, a topic in advanced mathematics, specialist law or industrial engineering may contain material that only knowledgeable readers can appreciate or even understand. Be aware, however, that many subjects, though studied at an academically advanced level, are of interest to a wider audience. For example, the sun is of interest to more than just astronomers and diseases to more than just physicians." यह मेरी ही बात को तो कह रहा है कि कुछ लेख कुछ विशेष लोगों के लिये बनते हैं। और आप कह रहें हैं कि उसे सभी माँओं के लिये बनाओ ( वैसे सभी माँएं एक ही श्रेणी में नहीं आतीं)। 'विकिपिडिया शब्दकोश नहीं है' इसका बार-बार उल्लेख क्यों कर रहे हैं। इस वाक्य का आप बिलकुल गलत अर्थ समझे हैं और दूसरों को वही गलत अर्थ रटाने पर तुले हुए हैं। -- अनुनाद सिंहवार्ता 08:19, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

आपने कहा कि "यह तो वैसे ही हो गया कि दाढ़ी रखना तो ठीक है किन्तु मूँछ रख्नना पिछड़ापन है।" क्या यह आपको अपने मतानुसार सरल बनाने के लिए ऐसे नहीं लिखना चाहिए था - "यह तो वैसे ही हो गया कि दाढी रखना तो ठीक है किन्तु मूछ रखना पिछडापन है" :-) आप अगर सभी नुक्ते उड़ाने का प्रस्ताव रख रहें हैं, तो मैं तैयार हूँ। चलिए, चौपाल पर प्रस्ताव रखते हैं - आप पहल कीजिये। कहिये, मंज़ूर? :-) यह बात नागरी की प्रथा और ध्वनात्मकता की है। ख़, क़ और ग़ पर नुक्ते लगाने की प्रथा नागरी में बहुत पुरानी है और मिश्रित है - हिंदी का अख़बार उठाकर देख लें, कोई 'सुर्खियाँ' लिखता है तो कोई 'सुर्ख़ियाँ'। कुछ स्वर हैं जहाँ ऐसी प्रथा नहीं है - /v/ और /w/ दोनों को नागरी में 'व' लिखा जाता है। कुछ लोग /v/ का 'व़' लिखते हैं लेकिन मैं नहीं लिखता। लेकिन मैं फ़ारसी, संस्कृत, तिब्बती या किसी भी अन्य भाषा के पाँच अप्रचलित शब्दों को इकठ्ठा लगाकर कभी वाक्य नहीं लिखता - और यही विकी नीति भी वर्जित करती है। और ठीक इसी से यह पूरी बहस शुरू हुई थी। अपने पूरी नीति से एक पंक्ति चुनी, जिसपर आगे लिखा है की 'Some topics are intrinsically hard or require a great deal of prior knowledge gained through years of further education or training. It is unreasonable to expect a comprehensive article on such subjects to be accessible to all readers. However, effort should still be made to make the article as accessible as possible, with particular emphasis on the lead section.' ध्यान रहे कि बायोम में इस शुरुआती अनुच्छेद में अकारण ही जटिल भाषा डाली जा रही थी। अगर सापेक्षता का पूरा गणित समझना चाहेंगे तो उसमे समय लगेगा और, जैसा मैंने कहा था 'only make things complex when someone is trying to do complex things'। किसी भी गहरे विषय के लेख में ज्ञान का श्रेणीकरण होना चाहिए। जो समय लगाकर विषय में गहरा जाना चाहे, जा सकता है (लेकिन यह पाठ की भाषा में नहीं होना चाहिए)। इस पूरी नीति का सार है कि 'हर जगह भाषा को जितना सरल और आम बातचीत की बोली के समीप बना सकते हो, बनाओ'। en:Riemann curvature tensor की भाषा जटिल है और उसका आरंभिक भाग सरल बनाया जाना चाहिए। उसके अन्य भागों में गहराई होगी और अधिकतर आम पाठकों की रूचि नहीं रखेगी लेकिन वह भी किसी पाठ की तरह नहीं होनी चाहिए। आप उसके नीचे लगे मूल्यांकन को देखिये तो स्पष्ट दिखेगा की पाठक इसे भरोसेमंद लेकिन "बुरी शैली से लिखा लेख" बुला रहे हैं। अगर आप इसके देखने के आंकड़े देखें तो यह अधिकाँश हिंदी विकिपीडिया के लेखों से कहीं अधिक देखा जाता है। सापेक्षता और बायोम के लेख तो इस विषय से सौ गुना अधिक सरल होने चाहिए। --Hunnjazal (वार्ता) 10:16, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

बात यहाँ कठिनाई के सन्दर्भ में है। मेरा प्रश्न है कि आप माओं और किसानों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए 'ज़रा' के स्थान पर 'जरा' और 'गुफ़ा' के स्थान पर 'गुफा' क्यों नहीं लिखते? आपको पता है कि इन्हें खोजने में कठिनाई है, लिखने में अधिक कठिन हैं, बोलने में बहुत कठिनाई होती है। अधिकांश लोगों ने इनको लिखना बन्द कर दिया है। बांग्ला, मराठी, गुजराती, और अन्यान्य भारतीय भाषाओं ने इन्हें नहीं अपनाया (फिर भी धड़ल्ले से काम कर रहीं हैं)। आप 'जरा' को 'ज़रा' से हीन क्यों समझ रहे हैं?
अब मुख्य और मूल मुद्दा लेते हैं। अब आप कुछ सीमा तक सही कह रहे हैं। खुशी है कि अब आप मान रहे हैं कि लेखों में 'ज्ञान का श्रेणीकरण होना चाहिए' (पता नहीं जिस अर्थ में आप इसे लिख रहे हैं उसी अर्थ में मैं समझ रहा हूँ या नहीं। जबकि आपकी भाषा तो 'सरल' है।) सब लोग मानेंगे कि भाषा में सरलता होनी चाहिए। यह कोई नया सिद्धान्त नहीं है। यह केवल विकि के लिये लागू होता हो, ऐसी भी बात नहीं है। 'सिम्पल इंग्लिश' का अन्दोलन लगभग १९२० से चल रहा है। लेकिन 'सारे लेख' माँओं और 'किसानों' के लिये हों, यह बात नहीं पचा पा रहा था। -- अनुनाद सिंहवार्ता 11:11, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
तिवारी जी, विकिनितियाँ आपके पूछे प्रशन पर भी बिलकुल स्पष्ट हैं। वि:पाठनहीं - "पाठशाला वाली, आकादमीय या प्रशिक्षण वाली भाषा। लेख आम पाठकों के लिए लिखे जाने चाहिए, विद्यार्थियों के लिए नहीं। जहाँ तक सम्भव हो, लेखों के नाम रोज़मर्रा में प्रयोग होने वाली भाषा पर आधारित कीजिये, विद्यालयों और विश्वविद्यालयों की भाषा पर नहीं।" यह किसी भी भाषा में एक ही है। बंगाली में bn:WP:NOTTEXTBOOK देख लीजिये - "প্রাতিষ্ঠানিক ভাষা। লেখার ধরন অবশ্যই সকল পাঠকের জন্য যথাসম্ভব বোধগম্য করে লিখতে হবে। শুধুমাত্র ঐ বিষয়ে প্রাতিষ্ঠানিক জ্ঞান আছে, এমন ব্যক্তিই বুঝতে পারবেন, এমন নয়। নিবন্ধের নামও প্রাতিষ্ঠানিক পরিভাষার বদলে যথাসম্ভব প্রচলিত ব্যবহারের ওপর ভিত্তি করে হতে হবে।" यानि विकिपीडिया पर "प्रतिष्ठा वाली राजभाषा (প্রাতিষ্ঠানিক ভাষা) अनुचित है। लेख की शैली सभी पाठको के लिए सम्भव और समझ आने वाली होनी चाहिए। संस्थागत की बजाय आम नामों का उपयोग करें।" हिन्दी, रूसी, तमिल, फ़्रांसिसी, जापानी, सभी में यह है। लेखों में भारी पाठ-वाले शब्द ठूंसना मना है। यह ज्ञानकोष के लेख हैं, वैज्ञानिक शब्दावली नहीं। --Hunnjazal (वार्ता) 18:48, 5 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
हुञ्जाल जी, क्या 'প্রাতিষ্ঠানিক ভাষা' का आप द्वारा दिया गया अनुवाद 'प्रतिष्ठा वाली राजभाषा' सोच-समझकर किया गया है? -- अनुनाद सिंहवार्ता 06:46, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

हर चीज़ को इतना संदेह से क्यों देखते हैं अनुनाद जी? आपसे मेरा मतभेद है इसका अर्थ क्या यह है कि मैं आपसे झूठ बोलूँगा? भाग्य रहा तो अभी हम दोनों में हिन्दी विकी पर बरसों इकट्ठे काम करने है - क्यों मन मैला करते हैं? देखिये 'প্রাতিষ্ঠানিক ভাষা' का सीधा नागरी लिपिकरण है 'प्रातिष्ठानिक भाषा'। बंगाली में इसका अर्थ प्रतिष्ठा वाली भाषा भी निकलता है और राजभाषा भी। आप गूगल अनुवाद में डालकर देखिये - http://translate.google.com/#bn|hi|প্রাতিষ্ঠানিক_ভাষা - दाहिनी तरफ़ अनुवाद के बाद 'राजभाषा' देखेंगे। हाथ कंगन को आरसी क्या? --Hunnjazal (वार्ता) 08:03, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

आपकी दाढ़ी में तिनका नजर आ रहा था, इसलिये शंका हुई थी। अब पता चला कि आप गूगल महराज की शरण में गये थे। गूगल महराज कभी-कभी बड़ा अनर्थ करते हैं जो लोगों में हास्य का विषय बन जाता है। मुझे भी थोड़ी-बहुत बांग्ला लिखनी-पढ़नी आती है और गूगल ट्रांस्लेट का सदुपयोग करना भी। मेरी बांग्ला की समझ कहती है कि 'प्रातिष्ठानिक' शब्द 'प्रतिष्ठान' में 'इक' प्रत्यय जोड़कर बना है और 'प्रातिष्ठानिक भाषा' का अर्थ 'संस्थानिक भाषा' या 'इंस्टिट्यूशनल लैंग्वेज' से है, 'प्रतिष्ठा वाली राजभाषा' नहीं। -- अनुनाद सिंहवार्ता 10:04, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

ग़लत बोल रहें हैं अनुनाद जी। मैं भी ज़रा-बहुत बांगला पढ़-बोल लेता हूँ। गूगल केवल आपको दिखाने के लिए ही था और वैसे भी इसमें बांगला में माहिर भाषावैज्ञानिकों ने अनुवाद प्रदान किया है जो शर्तिया आपसे अधिक बांगला जानते होंगे। 'প্রাতিষ্ঠানিক ভাষা' बिलकुल राजभाषा के रूप में प्रयोग होती है। विकिपीडिया पर बांगला में बहुत से लेख ही देख लीजिये। मुझे आश्चर्य है कि आपको यह ज्ञात नहीं कि 'प्रतिष्ठा' और 'प्रतिष्ठान' एक ही जड़ से हैं। यहाँ इस शब्द का अर्थ 'मान्य' (= 'जिसे प्रतिष्ठा दी गई हो') है। প্রাতিষ্ঠানিক ভাষা का अर्थ है वह भाषा जो मान्य हो, जिसे आधिकारिक दर्जा दिया गया हो, जो राजभाषा हो। हाँ, यदि कोई संस्था भी किसी भाषा को मान्यता दे, तो वह उस संस्था की 'मान्य भाषा', 'आधिकारिक भाषा' या 'प्रतिष्ठित भाषा' कहलाएगी। bn:স্পেনীয় ভাষা में मानचित्र पर यह पढ़िये - 'দেশসমূহের যেখানে স্পেনীয় হয়েছে প্রাতিষ্ঠানিক ভাষা'। मुझे फिर यह तिनके वाली बात समझ नहीं आई लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि जो कहना है सीधा कहिये। भारतीय संस्कृति में गुच्छेदार तंज़ की भाषा पुरुषों को शोभा नहीं देती। क्या आप मुझे चोर बुला रहे हैं? अगर हाँ, तो सीधा कहिये। अगर नहीं, तो कुछ मत कहिये। और मैंने आपकी सापेक्षता वाली बात का प्रमाण के साथ खंडन किया उसपर आपका कोई उत्तर न आया। समझने लगें और ठीक से लिखें तो विश्व का कोई विषय नहीं है जिसपर सरलता से नहीं लिखा जा सकता। --Hunnjazal (वार्ता) 11:07, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

आप द्वारा दिये गये 'अर्थ' से अब भी संतुष्ट नहीं हूँ किन्तु इसको अभी विराम लगाता हूँ क्योंकि विषयान्तर हो रहा है। एक साथ दस विषयों पर चर्चा होगी तो बहुत सारा घालमेल होगा।

चलिए, आपने छोड़ा, तो मैंने भी छोड़ा। भूल गई सो बात गई।

भाग २[संपादित करें]

हुंजजाल जी, आपकी तर्क करने की शैली सशक्त है लेकिन तरीका नहीं। मन मैला आप भी मत करियेगा क्योंकि मतभेद हमें बहुत कुछ बेहतर करने को प्रेरित भी करते हैं। मैंने पहले भी आपसे पूछा था लेकिन आपने स्पष्ट नहीं किया या मुझे स्पष्ट नहीं हुआ। मसलन, "अर्थात: तकनीकी तथा विशेष शब्दावलियों में शुद्ध संस्कृतिनष्ठ हिन्दी ज़रूर प्रयोग होती है, लेकिन हिन्दी विकिपीडिया पर लेख रोज़मर्रा की सामान्य हिन्दी का प्रयोग करें।" (मेरी वार्ता पर आपका स्पष्टीकरण) में अर्थात के बाद का अर्थात क्या है? ये आपका सुझाव है या निर्देश! अगर निर्देश है तो इसको विकि नियम में संलग्न कर दें। फ़िलहाल इसका मूल विकि पाठ है-"हिन्दी विकिपीडिया पर लेख रोज़मर्रा की सामान्य हिन्दी अर्थात खड़ीबोली (हिन्दुस्तानी अथवा हिन्दी-उर्दू) में लिखे जाने चाहिये। हालाँकि तकनीकी तथा विशेष शब्दावली हेतु शुद्ध संस्कृतिनष्ठ हिन्दी के ही प्रयोग की संस्तुति की जाती है।" हालांकि के बाद जो भी लिखा गया है, वह पूर्ववर्ती का विस्तार है। मैं इसी का पालन कर रहा हूँ, यथास्थान और यथासंभव करता रहूँगा। क्या बायोम तकनीकी विषय नहीं है? माँओं को किसानों को मानसिक तौर पर कमतर क्योंकर माना जाय! उन्हें भी बायोम को समझना या समझाना हो तो क्या कुछ तकनीकी परिभाषा देकर भी विषय स्पष्ट नहीं किया जा सकता? वाक्य विन्यास की भी चर्चा की थी आपके वार्ता पर। आप इसे समझते होंगे इसलिए विस्तार नहीं किया। जैसे- 'मेरा नाम अबस' है को 'ख़ाकसार को अबस कहते हैं' भी कहा जा सकता है, लेकिन वाक्य विन्यास गड्डमड्ड करने से भाषा सरल नहीं भोण्डी लगती है। बस यही पादप और पौधे के साथ भी है। एक और बात, वार्ता में कई बार आप वाक्य पूरा नहीं लिख रहे हैं। "भौतिक पर्यावरण (स्थल, जल, वायु, मृदा आदि) के साथ उसमें पाये जाने वाले समस्त पादप एवं जन्तु समुदाय के सम्यक अध्ययन के क्षेत्र" वाक्य के आरंभ में "समान पर्यावरणीय दशाओं वाले क्षेत्रों में" और अंत में "बायोम कहते हैं।" जोड़कर क्या अर्थ नहीं निकल रहा है? भाषा कठिन है या गलत है? अगर कठिन है तो आसान बनाइये, आप या कोई और ऐसा आराम से कर सकता है। वाक्य में सन्दर्भ भी था, तो आपने पाठ हटा क्यों दिया? क्या यह परिभाषा गलत है? कृपया बतायें। मैं आपसे सीखना चाहता हूँ। मैं विकि पर न तो मज़ाक करने आया हूँ न किसी को कहीं और जाने की सलाह देने। बस खेल भावना के साथ कुछ हो पाये तो इस सागर में कुछ बूंद को योग करना चाहता हूँ। आप प्रबंधक हैं इसलिए आप पर अंपायर और रेफरी का अतिरिक्त दायित्व है। आप इसे निभा रहें हैं लेकिन क्या आप एक वाक्य या संपादन से किसी के भी भाषा का आंकलन कर सकते हैं? मैं कठिन और जटिल भाषा खुद पसंद नहीं करता हूँ लेकिन शुद्ध भाषा को बहुत पसंद करता हूँ। इसका अर्थ यह नहीं है कि जहाँ मैंने संपादन किया है वहाँ कोई अशुद्ध पाठ था। जब मैं कोई वाक्य लिखता हूँ तो बस इतनी कोशिश करता हूँ कि वह अनिवार्य रूप से शुद्ध और यथासंभव सहज हो। अपनी माँ और दोस्तों से भी शुद्ध भाषा में ही कोई 'महत्वपूर्ण' और 'उल्लेखनीय' चर्चा करना चाहता हूँ। सहज और आमफ़हम भाषा की सुंदरता और महत्ता से किसे इनकार हो सकता है भला! लेकिन अगर आप 'शदीद आवश्यकता' (आपने चौपाल पर लिखा है) को आमफ़हमी मानते हैं तो मुझे भी ग़लतफ़हमी हो रही है आपकी इस परिभाषा पर। आलोचना से हतोत्साहित या प्रशंसा से अतिउत्साहित होने के बजाय हर क़दम पर सीखने की तमन्ना रखता हूँ। मैं हिंदी की 'सेवा' भी करने नहीं आया क्योंकि यह भाषा 'बीमार नहीं' है। बस चाहता हूँ कि जब कभी मेरे पास किताबें न हों तो नेट पर ही हिंदी में स्तरीय सामग्री पा सकूँ। यथासंभव विकि पर लेख लिखने की कोशिश करता हूँ और अन्य संबद्ध पृष्ठों की वर्तनी का भी ध्यान रखता हूँ। मैं ऐसा करता रहूँगा और इसके लिए मुझे किसी का सहयोग नहीं भी मिला तो भी यात्रा जारी रहेगा। हमारी आपसी समझ की सीमा भी है लेकिन ये सीमाएं जितनी टूटेंगी विकि का और खुद अपना भी उतना ही लाभ होगा। धन्यवाद। --``` अजीत कुमार तिवारी वार्ता 09:56, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

फिर आप सीधे और स्पष्ट सवालों से भाग रहे हैं। आपका शोध जिन उदाहरणों पर टिका था उनमें से मैं केवल एक उदाहरण लेकर उस शोध को 'असत्य' या 'मिथ्या' सिद्ध कर रहा हूँ। 'शोधों' की सिद्धि और असिद्धि के बारे में सर्वमान्य सिद्धान्त है कि कोई सिद्धान्त हजारों मामलों में काम करता हो किन्तु उससे वह सिद्ध (proove) नहीं हो जाता; किन्तु एक भी मामले में काम नहीं करता तो 'असिद्ध' घोषित हो जाता है। आपके नवीनतम संदेश से साफ हो गया है कि अब आप अप्रासंगिक डेटा का अम्बार लगाकर उसके पीछे छिपने की कोशिश कर रहे हैं। -- अनुनाद सिंहवार्ता 11:29, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

अनुनाद जी, इस कथन में अब आप तीन तरह से ग़लत हैं - पहला, भाषावैज्ञानिक सिद्धांतों में ऐसा नहीं होता। Language and Linguistics: The Key Concepts - 'Rules can be stated at every level of linguistic description, from phonology to pragmatics. A rule need not be exceptionless.' और Linguistic Structure and Change - 'We cannot predict the occurrence of a certain development with a great deal of confidence. What we may be able to do, however, is to predict that one development is more likely to take place than another. Further, the existence of dysfunctional changes cannot automatically be taken as an argument against functional explanations. What dysfunctional changes simply show is that there are other principles which may contravene the ideal form/function'। अगर कोई नियम ५२% बार अंग्रेज़ीकरण करवाता है और ४८% बार संस्कृतकरण तो दशकों के पैमाने पर वह भाषा में भारी अंग्रेज़ीकरण करवा डालेगा, हालांकि हर उदाहरण में अंग्रेज़ीकरण नहीं होगा। अगर श्वा विलोपन नियम देखें उसमें भी ऐसा एक नियम है। दूसरा, आपने कुछ मिथ्या साबित नहीं करा। सच बोला जाए तो आपको स्पष्ट रूप से भाषावैज्ञानिक तर्क समझने में कठिनाई होती दिख रही थी, मसलन कि विस्तृत भाषाओं में एक चीज़ के लिए अनेक शब्द हो सकते हैं। तीसरा, आप इस चर्चा का सन्दर्भ बारबार खोते रहते हैं। आपका किसी चीज़ को 'शोध' कहने का अगर यही स्तर है तो आपको मैं दुबारा कहूँगा कि कोई अन्य विकी परियोजना अधिक उचित है। विकिपीडिया पर जब तक स्वतन्त्र और प्रमाणित स्रोत न हों, कोई वाक्य तथ्य नहीं कहलाता। वह महज़ राय ही है। यहाँ पर 'मूल शोध' और 'राय' में अधिक अंतर नहीं और 'मूल शोध' को विकिपीडिया स्तर का 'शोध' कहलाने की अनुमति नहीं। मैं स्पष्ट कह रहा हूँ कि यह राय है और आप ढीलेपन से उसे शोध कह रहे हैं - यह नीतिसंगत नहीं। सभी पर (हाँ, आप पर भी) इस नीति का पालन करना अनिवार्य है। आपको यह शोध या सिद्धांत का टकराव बेशक़ लगे लेकिन आपने सिर्फ़ मेरी राय के विरुद्ध अपनी राय प्रकट की है। कृपया प्रमाणिकता पर थोड़ा और ग़ौर कीजिये। आप बुद्धिमान हैं इसलिए मुझे यक़ीन हो चला है कि आप वास्तव में ऐसी अन्य बहस में भी पड़े हुए हैं और उन दोनों को मिश्रित करने से अनजाने में कूछ विचित्र बातें बोल रहें हैं। धन्यवाद! --Hunnjazal (वार्ता) 12:25, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

तिवारी जी, मैंने समझाया था लेकिन फिर सही -

  • 'हालाँकि तकनीकी तथा विशेष शब्दावली हेतु शुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के ही प्रयोग की संस्तुति की जाती है' - क्या बायोम का लेख एक शब्दावली है? नहीं है। विकिनितियों में बार-बार दोहराया जाता है कि लेख शब्दकोष नहीं है और सूची नहीं है। अगर आप कभी तकनीकी शब्दावली (ग्लॉसरी) देखें तो उसमें अक्सर तकनीकी और विशेष शब्दों में अर्थ समझाया जाता है या संस्कृतनिष्ठ शब्दों में अंग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद दिखाए जाते हैं। उदाहरण के लिए विक्शनरी पर रासायनिक शब्दावली (जिसका नाम हिन्दी में होना चाहिए) देखिये। लेख यह नहीं हैं।
'लेख शब्दकोष नहीं है' को आप बारबार गलत अर्थ देने की कोशिश कर रहें हैं अथवा गलत उद्धृत कर रहे हैं। 'लेख शब्दकोष नहीं है' का मतलब यह नहीं है कि किसी लेख में पारिभाषिक शब्द का प्रयोग वर्जित है। आपकी अनुशंशा ऐसी ही लग रही है। इस लेख में 'शब्दकोश' की गन्ध आपको कैसे आ रही है, कृपया बताइये। उस लेख में यहाँ तक माना गया है कि कभी-कभी विकिपिडिया लेख और 'विक्शनरी प्रविष्टि' में अन्तर करना बहुत कठिन होता है। कई अन्तरों सहित मुख्य अन्तर यह बताया गया है कि लेख में परिभाषा के अलावा भी 'बहुत कुछ' लिखा होना चाहिये। -- अनुनाद सिंहवार्ता 13:30, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
  • शुद्धता को लेकर हिन्दी विकिपीडिया में बहुत सी विभिन्न राय हैं और सहमती नहीं है। आपने विषय छेड़ा है इसलिए बताए देता हूँ कि मेरी राय है कि हर शब्द के लिए कई शब्द होना आवश्यक है और ऐसा न होने से भाषा का अंग्रेज़ीकरण निश्चित है। अगर आप देखें तो बहुत से ऐसे शब्द हैं, जैसे कि 'वक़्त', जिन्हें हटाने से एक 'रिक्ति' बन गई है। भाषा के शब्द कोई समिति नहीं चुन सकती - यह लोग सैंकड़ों सालों में प्रयोग के द्वारा चुनते हैं। 'वक़्त' शब्द ८०० वर्षों से उत्तर भारत में प्रयोग होता आया है। जब उसे हटाया गया तो उसका स्थान लोकबोली में 'समय' के साथ-साथ 'टाइम' (या 'टैम') ने ले लिया। मेरी व्यक्तिगत राय में इस तरह के अंग्रेज़ीकरण से भाषा कि लचक खोती है और भाषा मरती है। अंग्रेज़ी सशक्त इसलिए भी है क्योंकि वह दो स्रोतों (जर्मैनी और लातिनी) से शक्ति लेती है। हर चीज़ के लिए २-३ शब्द हैं जो सैंकड़ों साल से आम भाषा में हैं। अगर आप हिन्दी से 'आम' निकाल दें, तो देखिएगा कि 'साधारण' के साथ-साथ 'कोमन' भी आ जाएगा। अंग्रेज़ी में साथ-साथ लगे दो वाक्यों में कोई शब्द दोहराना बुरा माना जाता है। 'It is necessary that we pack our shoes. It is also essential that we bring socks along. It is also compulsory to bring laces.' यहाँ, एक शब्द के तीन शब्द हैं और हिन्दी में भी ऐसा करना चाहिए - 'यह आवश्यक है कि हम अपने जूते सामान में बांधे। यह भी ज़रूरी है कि हम मोज़े साथ लायें। यह भी अनिवार्य है कि फ़ीते लाए जाएँ।' आवश्यक, ज़रूरी, अनिवार्य। तीनों की जगह है। शुद्धता के विषय में हमें भिन्न मतों का आदर करने की ज़रुरत है। न भाषा की शुद्धता कम करने के लिए विशेष संपादन होने चाहिए और न ही ज़बरदस्ती उसे बढ़ाने के लिए। अगर भाषा प्रचलित शब्दों में साधारण व्यक्ति द्वारा समझी जा सके, बहुत है। आपको 'शदीद'/'शिद्दत' शब्द से क्या आपत्ति है? इसे गूगल खोज में १.४ लाख परिणाम मिले। पादप से दुगना प्रचलित लगता है :-)
आपके इस 'शोध' पर पहले भी चर्चा हुई थी। अभी बस संक्षेप में यह कहना चाहूँगा कि यदि 'वक्त' शब्द ८०० वर्ष पुराना है तो 'समय' ८००० वर्ष पुराना। 'समय' कभी हटा नहीं। सदा प्रचलन में रहा है।

मैंने स्पष्ट कहा है कि मेरी राय है, तो इसे शोध क्यों कहते हैं? और आपने शायद पढ़ा नहीं। सवाल 'समय' के पुराने होने का नहीं है, चाहे वह १० लाख वर्ष पुराना ही क्यों न हो। समृद्ध भाषाओँ में एक चीज़ के लिए बहुत से सैंकड़ों वर्षों से प्रयोग में चले आ रहे प्रचलित शब्द होते हैं। वक़्त हटा दिया, अब 'टैम' अनौपचारिक हिन्दी का भाग बन गया है। यह कुल्हाड़ी अपने पाऊँ पर स्वयं मारी गई है। जहाँ तक मैंने देखा है अति-शुद्ध हिन्दी वालों के प्रयास वास्तव में अंग्रेज़ीकरण के प्रयास बन जाते हैं। और हिन्दी इसमें इकलौती नहीं है। उदाहरणतः ऐसा फ़ारसी में भी हुआ है। वे अरबी शब्द निकालने के चक्कर में बहुत से फ़्रांसिसी और अंग्रेज़ी के शब्द ले चुके हैं। अब वहाँ 'धन्यवाद' को 'मेरसी' (फ़्रांसिसी, merci) कहते हैं। आपने देखा होगा कि शुक्रिया जा रहा है और थैंक्स आ रहा है। 'समय' और 'वक़्त' की लड़ाई कभी थी ही नहीं। लड़ाई 'वक़्त' और 'टाइम' की थी। मेहरबानी गया, प्लीज़ आया। शब्द को मारा जा सकता है लेकिन उसकी जगह क्या आएगा इसपर आपका कोई नियंत्रण नहीं है। --Hunnjazal (वार्ता) 14:09, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

हञ्जाल जी, आपने कैसे इतनी बड़ी बात कह दी कि 'वक्त' को हटाकर 'समय' किया गया। मैं इसी बात का प्रतिवाद कर रहा हूँ। । यह आपकी राय अवश्य है लेकिन आप इसे किसी 'शोधप्रबन्ध' जैसे ही प्रस्तुत करते रहे हैं।-- अनुनाद सिंहवार्ता 05:09, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

अनुनाद जी, आपने संभवतः मेरा लिखा ठीक से नहीं पड़ा। मैंने केवल कहा कि 'वक़्त' की अवहेलना करने से 'टाइम' को प्रवेश-द्वार मिल गया। मैंने तो साफ़ बोला था कि 'समय' और 'वक़्त' की कभी लड़ाई थी ही नहीं। आप चूके से कहीं किसी अन्य बहस के सन्दर्भ में तो बात नहीं कर रहे? शोध तब होता है जब कोई छानबीन करके प्रस्ताव रखा जा रहा हो। मेरी राय उस स्तर पर नहीं पहुँची है। मैं इस व्यक्तिगत राय पर आधारित बात किसी लेख में कभी नहीं लिखता। वैसे भी विकिपीडिया के लेखों का दृष्टिकोण निष्पक्ष होना अनिवार्य है। हिन्दी का अंग्रेज़ीकरण होना या न होना लेखों के लिए न अच्छी बात है न बुरी। लेकिन आप दो उलटी चीज़ों के इच्छुक लगते हैं, इसलिए मैंने यह बात कही थी। आप सैंकड़ों साल पुराने हिन्दी के बोलचाल के शब्दों को रखना चाहते हैं (जैसे मेहरबानी और गरीब) या अंग्रेज़ीकरण चाहते हैं? वास्तविकता में आपको इनमें से एक चुनना होगा। --Hunnjazal (वार्ता) 06:38, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

आपका मूल वक्तव्य फिर लिख रहा हूँ : " 'वक़्त' शब्द ८०० वर्षों से उत्तर भारत में प्रयोग होता आया है। जब उसे हटाया गया तो उसका स्थान लोकबोली में 'समय' के साथ-साथ 'टाइम' (या 'टैम') ने ले लिया। "
आपने साफ-साफ लिखा है कि 'वक्त' को हटाया गया। अब धीरे-धीरे नीचे उतरकर 'अवहेलना' का प्रयोग करने लगे। आपने साथ में यह भी लिखा है कि उसका स्थान 'समय' ने ले लिया। कैसे? जब 'समय' का अस्तित्व अनादि काल (पता नहीं कब से) से है तो यह 'वक्त' के बाद कैसे आया? -- अनुनाद सिंहवार्ता 08:32, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

जी, इसका क्या मतलब हुआ??? स्पष्ट तो लिखा है - "'वक़्त' शब्द ८०० वर्षों से उत्तर भारत में प्रयोग होता आया है। जब उसे हटाया गया तो उसका स्थान लोकबोली में 'समय' के साथ-साथ 'टाइम' (या 'टैम') ने ले लिया।" यानि रिक्ति बनी और वह केवल 'समय' से नहीं भरी बल्कि उसमें 'टाइम' भी प्रवेश कर गया। क्या आप कह रहें हैं कि 'टाइम भी अनादि काल (पता नहीं कब से) से है'? अगर मुझे कहना होता कि 'समय' नया है, तो मैं सीधा कहता नहीं? इसे कहने से मुझे कौन रोक सकता है? क्या अपने मन की बात सीधे कहने में कोई अंकुश है जिसके बारे में मुझे नहीं बताया गया? मैं जो चाहूँ कहने तो स्वतन्त्र हूँ। चाहूँ तो कह सकता हूँ - "हिंदी ही विश्व भाषा होगी, अन्य सभी भाषाओँ को मार डालना चाहिए"। चाहूँ तो कह सकता हूँ - "हिंदी का पूर्ण अरबी-करण हो जाना चाहिए"। चाहूँ तो कह सकता हूँ - "हिंदी के सब शब्दों को अंग्रेज़ी बना दो"। अगर मैं ऐसा कुछ भी ऊट-पटांग वास्तव में मानता तो खुलकर कह सकता था और उसके बावजूद मुझे विकिपीडिया पर लेख लिखने से कोई नहीं रोक सकता था (बशर्ते मैं किसी नीति का उल्लंघन नहीं करता)। मैं यह सब नहीं कहता क्योंकि यह मेरे मत नहीं हैं (बल्कि उसे से कोसों दूर हैं)। तो जब बिना किसी निजी दुष्परिणाम मैं जो जी चाहे कह सकता हूँ आपको यह विचित्र तरोड़-मरोड़ करने की आवश्यकता क्यों बन पड़ी है? "आप कह यह रहें हैं लेकिन आप सोच यह रहें हैं, और परसों जब चौबारे पर चाँद चढ़ा था तब बीड़ी पीते हुए आपने यह कहा था, इत्यादि"। बहस में आपके कुछ दांव-पेंच मुझे समझ ही नहीं आते। ऐसे लगता है कि आप मुझसे नहीं किसी और से बात कर रहें हैं। क्या आप हमारी वार्ता के साथ-साथ किसी और बहस में तो नहीं लगे हुए? अब मुझे कुछ-कुछ समझ आ रहा है कि आप इतना थक क्यों रहें हैं। मेरे भाई जी, मैं बहुत सीधा आदमी हूँ, अपने मस्तिष्क पर इतना ज़ोर न डालिए। जब मेरी आपसे मतभेद होगी मैं सीधा आपसे कहूँगा कि मैं फ़लाँ-फ़लाँ कारण से आपसे असहमत हूँ"। क्या आपको मेरी बहस करने की शैली में कतई शर्मीलापन नज़र आ रहा है? हम इस लेख के विषय से भटक गए हैं, लेकिन यह बातें आवश्यक हैं, इसलिए आप चाहेंगे तो फिर भी जारी रहूँगा। --Hunnjazal (वार्ता) 09:31, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

हुंजाल जी, आप तो 'सरल भाषा' में लिखने में माहिर हैं। पता नहीं इतनी सरल भाषा का गलत अर्थ कैसे समझ ले रहाँ हूँ। (किसान भाइयों का क्या होगा?) एक तरफ आप मान रहें हैं कि 'समय' बहुत पुराना है। यह भी मान रहे हैं कि कुछ लोगों द्वारा 'वक्त' का प्रयोग आरम्भ करने के बाद भी 'समय' का प्रयोग कभी समाप्त नहीं हुआ। तो ये 'रिक्ति' कहाँ से आई? और 'वक्त' को 'समय' द्वारा हटाने की बात कैसे पैदा हो रही है?
परेशान मत हों। 'थेसिस' को 'डिफेण्ड' करना पड़ता है तभी पीएचडी मिलती है।-- अनुनाद सिंहवार्ता 10:40, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

अनुनाद जी, आपने शायद मेरा लिखा चुन-चुनकर पढ़ रहें हैं, यानि उसमे भी रिक्तियाँ छोड़ रहें हैं :-) थीसिस: समृद्ध भाषाओँ में एक ही चीज़ के लिए कई शब्द होते हैं। 'समय' और 'वक़्त' दोनों थे। अगर आप 'एक वस्तु के लिए एक ही शब्द' की विचारधारा से चलेंगे तो मेरी बात आपको समझ नहीं आएगी। जब आप भाषा से कोई शब्द निकाल देते हैं तो एक रिक्ति बन जाती है। उस रिक्ति को आप अपने चुने शब्द के साथ नहीं भर सकते। अगर अंग्रेज़ी बोलचाल समीप हो तो उसका कोई जीवित शब्द आ घुसेगा। इसी तरह धन्यवाद-शुक्रिया-थैंक्स, कृपया-मेहरबानी-प्लीज़, तंग-परेशान-डिस्टर्ब, स्थिति-हालात-कंडीशन, कारण-वजह-रीज़न, अवश्य-ज़रूर-डेफ़िनेट्ली, इत्यादि। आप देखिये कि जो लोग 'परेशान' कम बोलते हैं वे 'डिस्टर्ब' अधिक बोलते हैं, हालांकि उनकी 'तंग' बोलने की मात्रा नहीं बदलती। यह अंग्रेज़ीकरण का इकलौता कारण नहीं लेकिन एक बड़ा कारण ज़रूर है। एक प्रकार से भारत सरकार जो पैसा संस्कृतकरण पर ख़र्च करती है उसका बड़ा हिस्सा वास्तव में अंग्रेज़ीकरण को जाता है। एक बराबरी की मिसाल देता हूँ। २००० के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जॉर्ज वॉकर बुश और ऐल गोर उम्मीदवार थे। एक तीसरा उम्मेदवार रैल्फ़ ​ नेडर था जो गोर का ही अधिक कट्टर रूप था। नेडर की कट्टरता के कारण उसका जीतना असंभव था - वास्तव में केवल बुश या गोर ही जीत सकते थे। बुश-समर्थक तो नेडर को कभी वोट नहीं देने वाले थे इसलिए कहा जाता है कि हर वह व्यक्ति जिसने नेडर को वोट दिया गोर के लिए एक कम वोट साबित हुआ, यानि आंकड़ों में नेडर के लिए हर वोट बुश के लिए एक वोट बन गया - हालांकि नेडर गोर से भी अधिक बुश का विरोधी था। कई समीक्षकों के हिसाब से यह गोर के हारने की एक प्रमुख वजह थी। उसी तरह ज़बरदस्ती का संस्कृतकरण आम बोली में अंग्रेज़ीकरण को तीव्र करने में मदद कर रहा है। इस विषय पर बस करें (या फिर विकिपीडिया से बाहर कहीं जारी रखें)? पहले तो यह मेरा मत है, कोई प्रमाणित तथ्य नहीं और दूसरे इसका 'बायोम' के विषय से सम्बन्ध कम है। आगे जैसे आपकी इच्छा। --Hunnjazal (वार्ता) 11:12, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

  • लेकिन यहाँ तो शुद्धता की बात ही नहीं है। आप शायद 'पौधे' को 'पादप' से हीन कह रहें हैं। ऐसा क्यों? पौधा एक अच्छा-भला प्रचलित हिन्दी शब्द है। इसे करोड़ों लोग बोलते हैं। 'पौधे' पर गूगल खोज १६.९ लाख परिणाम लौटती है जबकि 'पादप' पर केवल ६४.७ हज़ार - यानि कम-से-कम इन्टरनेट के हिन्दी पृष्ठों पर 'पौधा' बीस गुना से भी अधिक प्रचलित है। तो फिर 'पौधे' से यह सौतेला व्यवहार क्यों?
भारत सरकार ने एक मानक शब्दावली भी बनायी है। विश्व के अन्य देशों में भी शब्दावलियाँ बनती हैं। यूरोपीय देशों की सम्मिलित शब्दावलियों का संग्रह नेट पर है जिसमें ३० लाख शब्द हैं। विद्वानों ने मिलकर जो शब्द बनाये हैं उसका प्रयोग करना कई दृष्टियों से बेहतर है क्योंकि आप शब्दों का केवल एक पक्ष देख रहें हैं, विद्वानों ने बहुत से पक्ष देखकर इन्हें संस्तुत किया है।

इसमें कौनसी बड़ी बात है अनुनाद जी? शब्दावलियाँ तो थोक के भाव बनती हैं। विकिपीडिया के लेख आम भाषा पर आधारित हैं, भारतीय सरकारी अफ़सरशाही पर नहीं। वह तो यह भी कहते हैं कि रामसेतु तोड़कर समुद्री मार्ग बना दो। आप इसके भी समर्थक हैं? नीतियाँ साफ़ कहती हैं कि विकिपीडिया कुंजी, पाठ्यपुस्तक और शब्दकोष नहीं है। --Hunnjazal (वार्ता) 14:29, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

जब नीतियाँ कहतीं हैं कि 'विकि शब्दकोश नहीं है' तो उनका आशय यह नहीं होता कि पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग ही नहीं करना है। उसका अर्थ होता है कि कोई लेख ऐसा न बने जिसमें शब्द (लेख का नाम) और उसकी दो-चार पंक्ति की परिभाषा लिखकर ही 'इति' न कर दी जाय। उसको और विस्तार दिया जाय (जो शब्दकोशों में अपेक्षित नहीं होता)। इसके अलावा आपने जो रामसेतु का उदाहरण दिया है वह भी फिट नहीं बैठता। विश्व के सभी भाषाओं में तकनीकी शब्दकोश बने हैं और उन्हें विधिवत बनाने के लिये संस्थाएँ बनायी गयी हैं।-- अनुनाद सिंहवार्ता 05:20, 8 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]
  • आपने कहा कि 'ख़ाकसार को अबस कहते हैं' भी कहा जा सकता है। मैं इस से असहमत हूँ। नहीं कहा जा सकता। यह idiom वाली नीति का उल्लंघन है। भाषा सीधी और सरल होनी चाहिए। आप भी सरलता चाहतें हैं, आपका यह बयान पढ़कर अच्छा लगा।
  • आपने जो स्रोत वाक्य में डाला था, मैंने उसे सुरक्षित रखा इसलिए उस बात पर निश्चिन्त रहिये।
  • हिन्दी विकिपीडिया पर लेखों की संख्या बहुत कम है और बहुत से ऐसे लेख हैं जहाँ एक ही पंक्ति है या पूरा लेख ही मशीन अनुवादित और पाठन-अयोग्य हिन्दी में है। इतना काम करने को है कि सैंकड़ों और सदस्यों कि आवश्यकता है। ऐसे में एक-दुसरे से उलझते रहे तो लानत है हम सब पर।

शेष फिर --Hunnjazal (वार्ता) 11:56, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

हुंजज़ाल जी, आपके पास वाकई अच्छे तर्क हैं। मेरी समझ पर आपकी जो समझ बन रही है या बन गयी है उस पर मुझे अब संदेह हो रहा है। पौधा पादप से हीन नहीं है। सन्दर्भ, परिप्रेक्ष्य और वाक्य विन्यास में दोनों का महत्व अलग-अलग हो जाता है। मैंने जो भी सवाल पूछा आपने एक नियम द्वारा समझाया। हमें ऐसे ही मार्गदर्शन की आवश्यकता है। मुहावरे वाली बात भी बड़ी खूब रही। हाँ, शदीद मैंने नहीं सुना था और शिद्दत से तो बचपन से परिचित हूँ। जिससे आप परिचित हैं वह तो है आम और जो हमारे ज़ेहन में है वह है किताबी। बार-बार गूगल मत करवाइये साहब। गूगल की संख्या से तय नहीं हो सकता कि किस सन्दर्भ में क्या बेहतर है। एक कहावत है कि 'आँकड़े और नियम सहजबुद्धि का स्थान कभी नहीं ले सकते' (statistics can't be the replacement of commonsense)। मुहावरे का पाठ मैं स्मृति के आधार पर लिख रहा हूँ लेकिन भाव सही है। ठीक है, आपके सुझावों पर अमल करूँगा और इस वार्ता पर अब कुछ और नहीं लिखूँगा। वाकई कई लेख बेहतर हो सकते हैं इतने समय में। आपके सभी तर्क अपोहवादी हैं जिसमें 'नेति-नेति' (ऐसा नहीं, ऐसा नहीं) से चीजों को समझाया जाता है। बावजूद इसके अभी आपसे बहुत कुछ सीखना है। आशा है मुलाक़ात होती रहेगी। -- अजीत कुमार तिवारी वार्ता 18:39, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]

आपकी बात से मुझे यह नहीं समझ आया कि आप मुझसे सहमत हुए या नहीं। इसलिए सिर खुजला रहा हूँ। अगर वार्ता ख़त्म हो रही है तो समाप्ति में यह कहता हूँ -

  • सहजबुद्धि वाली बात ठीक है लेकिन अगर दो लोगों का मतभेद हो तो निर्णय मत के आधार पर नहीं लिया जा सकता। इन्टरनेट पर अब बहुत हिन्दी सामग्री है जिससे आंकड़े निकाले जा सकते हैं। ऐसा हर भाषा में आम होता है तो इसमें आपको आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
  • मतभेद की स्थिति में मैं बहस करके सहमती पर चलने की यथासंभव कोशिश करता हूँ। देवनागरी और अंतर्राष्ट्रीय अंकों की बहस हुई। मुझे दोनों पक्षों की दलीलें समझ आई और मैंने अंतर्राष्ट्रीय अंकों के प्रस्ताव का समर्थन किया। रोहित जी, अनिरुद्ध जी और अन्य माननीय सदस्यों ने देवनागरी अंकों का ज़ोरदार समर्थन दिया। आगे बढ़ने के लिए मैंने पूरी तरह देवनागरी अंकों को स्वीकारा और केवल उन्ही का प्रयोग करता हूँ। बिंदु और विराम में भी मैंने यही किया। बिंदु डालना सरल है और मैं वही डालता था। कुछ सदस्यों के कहने पर मैंने विराम का प्रयोग शुरू कर दिया और अब वही करता हूँ।
  • हम सब को बदलने की आवश्यकता है। लेकिन निष्पक्षता, उल्लेखनीयता और साधारण भाषा ऐसी मूल चीज़ें हैं जिनके बिना ज्ञानकोष का लाभ कम होता है। निष्पक्षता के बिना कोष में तथ्य की जगह मत होंगे। उल्लेखनीयता के बिना सब अपने चाचे-तायों और अपने शयनकक्ष की रूपरेखा से कोष भर डालेंगे। आम भाषा के बिना यह एक पाठ्यपुस्तकों का संग्रह बन जाएगा जिसे कोई नहीं पढ़ेगा (विद्यार्थी भी अपनी मर्ज़ी से नहीं)।
  • वार्ता:श्वासनली में जो मैंने लिखा उसी से मिलता-जुलता मेरा सब लेखों पर दृष्टिकोण है। अंग्रेज़ी पढ़ने वालों के लिए हज़ारों-लाखों स्रोत हैं जो सरल भाषा में सब कुछ समझाते हैं - [1] सापेक्षता का एक बहुत सरल बखान करता है। आप देखिये कि [2] को पढ़कर किसी किसान में सापेक्षता के बारे में जिज्ञासा होना प्राकृतिक है। वह कहाँ जाए? भौतिकी की पाठ्यपुस्तक उठाए? या फिर विकिपीडिया पर जाकर वही पाए जो उस भौतिकी की पुस्तक में है? यह सोच 'राजकीय हिन्दी' को देवता बनाकर हिन्दीभाषियों को उसकी बलि चढ़ाती है।
  • जैसा मैंने कहा था इसमें संभ्रांतवर्गवाद दिखता है क्योंकि इसमें यह कहा जा रहा है कि "पहले हमारी यह विशेष संभ्रांत भाषा सीखो और हमारे संभ्रांत वर्ग का भाग बनो, फिर तुम्हे ज्ञान दिया जाएगा। जिस प्राकृतिक बोली का तुम रोज़ बोलचाल में प्रयोग करते हो, वह हीन है और उसमें ज्ञान देना वर्जित है। अगर तुम एक साधारण किसान या माँ हो तो सापेक्षता तुम्हारी पहुँच से बाहर है।" जबकि यह बिलकुल असत्य है। सापेक्षता औसत बुद्धि का कोई भी व्यक्ति जल्दी से समझ सकता है। तुलसी ने जब रामचरितमानस अवधी में लिखा था तो संस्कृत के विद्वानों ने उसका भी कुछ इसी तरह विरोध किया था - "इन चीज़ों को समझना है तो पहले संस्कृत सीखो"।
  • सरल और साधारण भाषा में एक विस्तृत हिन्दी ज्ञानकोष एक बहुत ही सकारात्मक और महान कार्य है। इसे नेति-नेति कहना आपका हक़ है, लेकिन आपका यह कथन ग़लत है। विकी संस्थान ने पक्षपात, निबंध, शब्दावलियाँ/शब्दकोष, पाठ बनाने के लिए अन्य वेबसाइटें खोल रखी हैं, लेकिन विकिपीडिया इनकी जगह नहीं। मैंने यह नहीं कहा कि 'पादप' का प्रयोग न करें। आपके वाक्य में ऐसे कई असाधारण शब्द एक साथ थे।
  • आप और मुझ में आपसी सहमती नहीं बनी है, इसलिए हमारा भविष्य में टकराव सुनिश्चित है। मेरी एक ही विनती है - हम एक-दुसरे से आदरपूर्वक बात करें, हम अपनी बात सीधी और बेजिझक रखें, और अगर विवाद करें तो ऐसे कि १० साल बाद कोई पढ़े तो उसकी दृष्टि में हम दोनों के लिए इज़्ज़त बढ़े।

प्रणाम! --Hunnjazal (वार्ता) 22:31, 7 जुलाई 2012 (UTC)[उत्तर दें]