वार्ता:पृथ्वीराज चौहान

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Thakur yogesh singh}

पृथ्वीराज चौहान लेख का तथ्य विकिपीडिया के मुखपृष्ठ पर क्या आप जानते हैं भाग में 8 नवम्बर, 2020 को प्रदर्शित हुआ।
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निर्वाचित लेख[संपादित करें]

कृपया इस लेख को निर्वाचित लेख बनाने के लिए लेख सुधारणा में सहाय किजीयें।--☆★आर्यावर्त (✉✉) 11:38, 14 जनवरी 2017 (UTC)[उत्तर दें]

सदस्य:संजीव कुमार जी, इस सन्दर्भ में आपका मौन था अतः आप से किसी भी प्रकार की चर्चा अनुचित नहीं लग रही थी। सोचा जब ऐसा प्रज्ञ व्यक्ति भी मौन हो जाएँ, तो कुछ होना सम्भव नहीं। परन्तु जब गुणवत्ता "प्रसिद्ध", "सामान्य वाचक", "मैंने नहीं पढा", "मुझे तो पता नहीं है ये" इत्यादि पर निर्धारित होती है, तो आप से चर्चा करना अनिवार्य हो गया। यहाँ मेरा प्रश्न समान ही है, जो पूर्व भी था। भविष्य में कभी "मेरे को" "मैंने ऐसा करा" इत्यादि वाक्यों को शुद्ध हिन्दी की मान्यता मिल जाए और दिल्ली के साथ साथ सम्पूर्ण भारतवर्ष और अन्य हिन्दीभाषी ऐसा ही बोलने लगे, तो क्या "मुझे", "मैंने ऐसा किया" इत्यादि अशुद्ध हो जाएंगे। क्या फिर जहाँ "मुझे" प्रयोग किया गया हो, वहाँ "मेरे को" कर देना अनिवार्य होगा? यदि नहीं, तो बहुत से हिन्दी ग्रन्थों में प्रयुक्त शब्दों को क्यों गुणवत्ता के नाम पर परिवर्तित किया जा रहा है? ॐNehalDaveND 17:53, 26 फ़रवरी 2018 (UTC)[उत्तर दें]
क्योंकि यह संस्कृत विकिपीडिया नहीं है। हिन्दी में मैंने ङ और ञ का प्रयोग नहीं पढ़ा। हालांकि पिछले दिनों किसी सदस्य ने मुझे वाङ्मय जैसे शब्द के बारे में बताया था लेकिन उससे पहले मैं इस शब्द के बारे में कुछ नहीं जानता था और किसी भी हिन्दी की अच्छी पुस्तक में मैंने ऐसा शब्द नहीं पढ़ा। तकनीकी शब्दावली आयोग पर भी यह शब्द मुझे नहीं मिला।☆★संजीव कुमार (✉✉) 03:46, 27 फ़रवरी 2018 (UTC)[उत्तर दें]
सदस्य:संजीव कुमार जी, यहाँ यहाँ यहाँ यहाँ देखें कृपया। ॐNehalDaveND 04:42, 27 फ़रवरी 2018 (UTC)[उत्तर दें]
सदस्य:संजीव कुमार जी, अभी भी आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हूँ। ॐNehalDaveND 08:46, 16 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]
@NehalDaveND: आपके द्वारा दिये गये सन्दर्भों में पहला सन्दर्भ सदस्य:Shrish जी द्वारा लिखा हुआ है और स्रोत के रूप में काम में नहीं लिया जा सकता। हाँ, वर्तमान में स्वीकृत हिन्दी शब्दावली में ङ और ञ का उपयोग नहीं होता। आप इसके लिए राजभाषा विभाग से सम्पर्क कर सकते हैं। आपके द्वारा दिया गया दूसरा स्रोत विश्वसनीय नहीं है। हालांकि सामान्यतः हम पुस्तकों को विश्वसनीय मानते हैं लेकिन ये पुलिस भर्ती परीक्षा की कोई सहायक पुस्तक है, अर्थात सन्दर्भ पुस्तक और सहायक पुस्तक में अन्तर रखें। इसके अतिरिक्त यूट्यूब पर कहीं भी अनुस्वार के लिए मना नहीं किया गया, वहाँ पर केवल अनुस्वार का उच्चारण करने की विधि बतायी गयी है। अतः इनको आप सन्दर्भ नहीं कह सकते।☆★संजीव कुमार (✉✉) 06:07, 17 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]
सदस्य:संजीव कुमार जी, इस अवसर पर मैं आपका तर्क ही देना चाहूँगा, जो आपने भारतीय काल वलय के प्रयोग के समय दिया था। आप क्यों हिन्दी भाषा को केवल भारत के अन्तर्गत सीमित कर देना चाहते हैं? नेपाल, बाङ्ग्लादेश, पाकिस्थान, श्रीलङ्का, भूटान इत्यादि में भी तो हिन्दी बोली जाती है। तो क्या उनके द्वारा लिखी हिन्दी भारत के संविधान के आधार पर चलेगी? हिन्दी व्याकरण से चलती है। सरकार ने प्रयोग को स्वीकृत किया है, अन्य प्रयोग को प्रतिबन्धित नहीं किया है। जिस राजभाषा के सम्पर्क का परामर्श आप मुझे दे रहे हैं, वहाँ आपको कदाचित् पुनः सम्पर्क करना चाहिये। क्योंकि उन्होंने वहाँ "ङ और ञ" क्यों कहाँ लिखना नहीं चाहिये, इसका स्पष्ट उल्लेख किया है। वो सूचन केवल मुद्रण के लिये है, न कि भाषा के प्रयोग में है। यदि राजभाषा ने ङ और ञ को प्रतिबन्धित किया है, तो वो क्यों यहाँ प्रश्न पुछ रही है? अर्थात् वो समझा रही है कि दोनों प्रयोग है और आपको यदि पञ्चमाक्षर का प्रयोग मिले, तो अनुस्वार अमुक होगा। ये वास्तविकता है कि, दोनों प्रयोग शुद्ध है, परन्तु आप तो मात्र प्रचलित प्रयोग पर ही अनिवार्यता घोषित कर अप्रचिलत पर प्रतिबन्ध लगा रहे हैं। पुस्तकों में यहाँ और वर्तमानपत्र में यहाँ भी उसी बात को कहा है कि, ये व्यवस्था मात्र और मात्र मुद्रण के लिये है। (जनसत्ता आपके सन्दर्भ देने योग्य वर्तमान पत्र से नीकल नहीं जाएगा ये आशा करता हूँ।) वो भी सुविधा के लिये, न कि अध्यादेश है। यदि किसी को पञ्चमाक्षर में असुविधा है, तो वो अनुस्वार करे। यदि पञ्चमाक्षर का प्रयोग किसी के लिये सुविधा है, तो वो भी उसका प्रयोग कर सकता है, उसे अशुद्ध नहीं कहा जा सकता। यहाँ आधुनिक और पारम्परिक की चर्चा भी उसी अंश को विस्तृत कर रही है। इस में तो पूर्णिमाजी जैसे लोगो ने सम्पादन किया है। अर्थात् सब ने मिलकर बनाया हुआ लेख है। अब इसमें शिरिशजी ने जो भाग लिखा वो अनुचित है, ये कहना उचित नहीं। आप से पहले जो लोग प्रबन्धक पद पर रहे होंगे वे निश्चित रूप से जानते और स्वीकारते थे कि दोनों उचित है और आज कल मुद्रण के युग में अनुस्वार का प्रयोग अधिक मिलता है। आपने नहीं पढा तो इसका अर्थ ये है कि आपने मात्र मुद्रण व्यवस्था के पश्चात् के ग्रन्थों का अध्ययन किया है। इससे प्राचीन काल से आने वाले हिन्दी के लेखन और व्याकरण में परिवर्तन तो नहीं कर सकते है न? आपका एक तर्क तो मुझे और भी आश्चर्य करने वाला लगा कि, सन्दर्भ और सहायक ग्रन्थ में अन्तर होता है। सन्दर्भ में किसी लेख में लिखता हूँ, तो किसी अंश, वक्तव्य या तथ्य के लिये देता हूँ। यहाँ प्रयोग की बात हो रही है जो आपने कहा मैंने नहीं पढ़े। तो मैं आपको प्रयोग बता रहा था। अब पुलीस की भर्ती में पढ़ने वाला सीधे सीधे तो हिन्दी पढने नहीं चला गया होगा। उसको कहीं न कहीं हिन्दी पढने में आती होगी और उस पुरातन ज्ञान के आधार पर ही तो सरकार ने अभ्यासक्रम बनाया होगा। फिर भी वो पढ तो हिन्दी रहा है न ? आपके तर्क से तो ये सिद्ध होता है कि पुलीस की भर्ती के समय किसी ने हिन्दी पढी है, तो हिन्दी विकिपीडिया पर नहीं आ कर "पुलीस हिन्दी" नाम से नया विकिपीडिया बनवाये। वहाँ विडियो दिये उसका भी आपने मर्म न समझ कर या जान कर भी विपरीत तर्क दीया। वो विडियो CBSE कक्षा ९ में पढ़ रहे विद्यार्थीओं के लिये मार्गदर्शिका है। अर्थात् उस कक्षा में भी ये विषय पढाया जाता है। यहाँ देखें कृपया अभ्यासक्रम। अतः मैं फिर से ये कहूँगा कि, कृपया प्रचलित और अप्रचलित, मेरे पढे या न पढे इत्यादि के तर्क से हिन्दी को न देख कर व्याकरण और शुद्धता की दृष्टि से देखें। दोनों उचित है। जिसे जो उपयोग करना है करे। पञ्चमाक्षर वाला अनुस्वार को न बदले और अनुस्वार वाला पंचमाक्षर को। अस्तु। ॐNehalDaveND 14:18, 18 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]
@NehalDaveND: आपको पुनः याद दिलाना चाहूँगा कि मैंने कहीं पंचामक्षरों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया लेकिन किसी भी भाषा में सरलतम का प्रयोग करना ही उसके पाठकों की चाहत होती है और मुझे नहीं लगता कि हिन्दी विकिपीडिया के सदस्य यह चाहते हैं कि कोई भी भाषा का कम ज्ञान रखने वाला व्यक्ति हिन्दी विकिपीडिया न पढ़े। इसके अतिरिक्त आपने शायद मेरे कथनों को समझे बिना ही सबकुछ लिखा है। कृपया वाक्यों का साधारण अर्थ निकालें, अपने अनुसार भावार्थ नहीं। अन्यथा मेरे लिखने का भी कोई लाभ नहीं है। हाँ, आपके द्वारा दिये गये सभी प्रश्नों में आप अपना ही विरोध कर रहे हो। यदि आप हिन्दी को वैश्विक रूप में देखोगे तो आपको यह भी देखना चाहिये कि इंग्लैण्ड में हिन्दी को किस रूप में पढ़ाया जाता है? आप जिस तरह के सन्दर्भ दे रहे हो उनमें से किसी ने भी यह नहीं कहा कि हम हिन्दी में ङ और ञ का प्रयोग करें। आपने विकिपीडिया:वर्तनी परियोजना का सन्दर्भ भी दिया है लेकिन उसमें भी आपके दिये विचारों को Shrish जी ने ही लिखा है (कृपया पृष्ठ का इतिहास देखें) जिसमें उन्होंने यह लिखा है कि पंचमाक्षर पुरानी हिन्दी में लिखे जाते थे। क्या यह प्राचीन-हिन्दी विकिपीडिया है? शायद नहीं। इसके अतिरिक्त आप पुलीस भर्ती परीक्षा की तैयारी वाली पुस्तक को यदि सन्दर्भ के रूप में देने लग गये तो आप एक बार जयपुर आ जाना। आपको इन सबसे परिचय करवा दूँगा। हालांकि गुजरात के हालात मैंने समाचार पत्रों में पढ़े हैं जो शायद और भी बुरे हैं लेकिन मैं उन समाचारों की विश्वसनीयता पर शक करता हूँ। आपको कुछ और उदाहरण देना चाहता हूँ, एक राजस्थान का लोकप्रिय समाचार पत्र है: राजस्थान पत्रिका। यह समाचार पत्र कई राज्यों में चलता है, शायद गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, चैन्नई, कोलकाता इत्यादि। इसमें कहीं भी नुक्ताक्षरों को काम में नहीं लिया जाता अतः इसका अर्थ यह नहीं कि इसे सन्दर्भ मानकर हम नुक्ताक्षरों को काम में लेना बन्द कर दें। बीबीसी हिन्दी पर पूर्णविराम के स्थान पर डॉट (.) का प्रयोग होता है और दैनिक जागरण जैसे समाचार पत्र उन समाचारों को कॉपी पेस्ट करते समय कई बार उन डॉट को हटाकर पूर्णविराम तक नहीं बनाते। इसका अर्थ यह नहीं कि हम भी हिन्दी विकिपीडिया पर पूर्णविराम के स्थान पर डॉट का प्रयोग करने लग जायें। सन्दर्भ के रूप में हम समाचार पत्रों को शामिल जरूर करते हैं लेकिन उनकी गलतियों को भी ज्यों का त्यों स्वीकार करना मुर्खता होगी।☆★संजीव कुमार (✉✉) 18:25, 18 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]
सदस्य:संजीव कुमार जी, आपने कहा कि, "क्या यह प्राचीन-हिन्दी विकिपीडिया है?" तो ये सरल हिन्दी (Simple English के जैसे) भी तो नहीं है। ये हिन्दी विकिपीडिया है और इस में हिन्दी लिखी जाएगी। वहाँ आप ये नहीं कह सकते है कि ये ऐसा है वो वैसा है। हिन्दी है इतना ही पर्याप्त है। आपने कहा कि, "भाषा में सरलतम का प्रयोग करना ही उसके पाठकों की चाहत होती है" इस अंश को अशुद्धता फैलाने या किसी पद्धति को प्रतिबन्धित करने के लिये उपयोग करना मूर्खता माना जाना चाहिये। इसे ज्यों का त्यों स्वीकार करने से पहले इस बात को समझ लेना चाहिये कि, सरलता क्या है? भविष्यत्काले में कभी (.) का बाहुल्य हो गया और (।) इसका प्रयोग अल्प हो गया। सब को (।) ये कठिन लगने लगे, क्योंकि किसीके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उसका उपयोग करने से प्रतिबन्धित किया जाए, तो क्या (.) शुद्ध हो जाएगा? आपने अपने जीवनकाल में सदा (।) का उपयोग किया होगा और शुद्धता के सन्दर्भ में भी आपको पता होगा, तो आप (।) का ही प्रयोग करेंगे, तब आप उस तर्क के विरोध में रहेंगे कि (.) प्रचलित है और सरल है। सरल का अर्थ अशुद्धता फैलाना नहीं होता या पुराने उपयोग पर प्रतिबन्धन लगाना नहीं होता। आपने कहा था कि, "इसके अतिरिक्त यूट्यूब पर कहीं भी अनुस्वार के लिए मना नहीं किया गया, वहाँ पर केवल अनुस्वार का उच्चारण करने की विधि बतायी गयी है।" मैं भी वहीं कहा रहा हूँ। कहीं भी पञ्चमाक्षर पर प्रतिबन्ध नहीं लगा है। अपि तु जिसे वो कठिन लगता है उसे अनुस्वार का प्रयोग करने को कहा है। परन्तु आप तो कह रहे हैं कि सरलता के लिये जिसे आता है, जो समझता है वो भी अनुस्वार का ही प्रयोग करे। ये उचित नहीं है। क्या आपके लिये ये सन्दर्भ पर्याप्त नहीं कि ९ वीं कक्षा में हिन्दी विषय के अन्तर्गत पञ्चमाक्षर पढाया जाता है? क्या राजभाषा के अभ्यासक्रम का सन्दर्भ पर्याप्त नहीं कि, वो पञ्चमाक्षर को अब भी पढाते हैं? अब आपके लिये सभी अभ्यासक्रम के विषयों के साथ लिखना पड़ेगा क्या, "* इस विषय का जीवन में उपयोग करें", ? अभ्यासक्रम में है अर्थात् वो हिन्दी का भाग है और मैं या कोई अन्य इसका प्रयोग कर सकता है। यदि कोई अपने लेख में इसका प्रयोग नहीं करता, तो मुझे वहाँ जाकर पञ्चमाक्षर घूसेडने की आवश्यकता नहीं है। वैसे करने पर वो मेरा अपराध होगा। परन्तु समान रूप से कोई पञ्चमाक्षर को अनुस्वार में परिवर्तित करता है, तो भी वो अपराध ही होना चाहिये। उसको सरलता के आधार पर क्षमादान देना उचित नहीं। अतः मेरा निवेदन है कि कृपया सन्दर्भ में पुनः जाएं और अभ्यासक्रम में अन्तर्भूत प्रमाणों में पञ्चमाक्षर के समावेश को देखें और अपने बॉट द्वारा किये सम्पादन को पूर्ववत् करें। अस्तु। ॐNehalDaveND 06:18, 23 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]
नेहल जी, यदि आपको लगता है कि आप पंचमाक्षरों से हिन्दी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं तो मैं आपसे सहमत नहीं हूँ। आपको यह भी ज्ञात होगा कि संस्कृत भाषा का प्रयोग पहले आरम्भ हुआ था और देवनागरी लिपि बाद में आयी (मेरे पास कोई सन्दर्भ नहीं है, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में घुमने से अर्जित ज्ञान के आधार पर कह रहा हूँ।) अब आप सम्पूर्ण संस्कृत को केवल देवनागरी अंकों से नहीं लिख सकते। मेरा कहने का अर्थ यह है कि कोई भी लिपि हर तरह के उच्चारण को लिखने में पूर्णतः समर्थ नहीं है। शायद इसी का नमूना है कि अ॰ध्व॰व॰ की आवश्यकता महसूस हुई। आप पंचमाक्षरों से क्या भिन्न करना चाहते हो, मेरी समझ से बाहर है। आप अनुस्वार और पंचमाक्षरों की तुलना डॉट (.) और पूर्णविराम (।) से नहीं कर सकते। हो सकता है ५० वर्ष पश्चात् डॉट (.) को हिन्दी भाषा में आधिकारिक रूप से पूर्णविराम का स्थान मिल जाये, तो मैं भी इसे स्वीकार करूँगा लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं है। आप चाहो तो मानक-हिन्दी अथवा पुरातन हिन्दी के लिए नवीन विकिपीडिया के लिए आवेदन कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि यहाँ पर हमें ङ और ञ की आवश्यकता है।☆★संजीव कुमार (✉✉) 08:41, 23 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]
सदस्य:संजीव कुमार जी, (मेरे पास कोई सन्दर्भ नहीं है, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में घुमने से अर्जित ज्ञान के आधार पर कह रहा हूँ।) अभ्यासक्रम में होने से अधिक आपका ज्ञान हो जाता है? प्राचीन हिन्दी और नवीन हिन्दी में अन्तर करके नवीन विवाद को जन्म क्यों दे रहे हैं आप? आपने कहा कि, मैने कभी ञ और ङ का प्रयोग नहीं देखा, अतः मैने उसको हिन्दी भाषा के भाग स्वरूप सिद्ध किया। अब आप भिन्न विषय उठा कर अपना पक्ष किसी भी मूल्य पर सिद्ध करते दिख रहे हैं। आप प्रबन्धक हैं, अतः किसी भी विषय पर मत दे सकते हैं और उसे ही उचित घोषित कर सकते हैं। परन्तु आप हिन्दी भाषा की दृष्टि से तो ये अनुचित ही कर रहे हैं। सन्दर्भ देने के पश्चात् भी आपका पञ्चमाक्षर के लिये प्रतिबन्ध अयोग्य ही है। तथापि मैं आपको फिर से सन्दर्भ दूँगा, जो हिन्दी विकिपीडिया में ही है, जिसको आपने भी यहाँ सर्व स्वीकार्य माना है। (सन्दर्भ) इस में भी ञ् का प्रयोग है। बाकी आपके बॉट ने अनेको सदस्यों द्वारा प्रयुक्त ञ् और ङ को अनुस्वार में परिवर्तित कर दिया है। अतः आपको अपनी मान्यता, मत और विचारों को हिन्दी विकिपीडिया पर थोपने के आरोप में स्वयं प्रबन्धक पद से त्यागपत्र दे देना चाहिये। आपके प्रबन्धक बनने से पूर्व और पश्चात् अनेक लोगों ने ञ और ङ के प्रयोग किये होंगे परन्तु प्रबन्धक के सामने तर्क नहीं दे पाए होंगे या असक्रिय रहे होंगे। ञ ङ को हिन्दी के भाग स्वरूप सिद्ध करने के पश्चात् भी आप सरलता प्राचीन इत्यादि बातें करके अपना मत थोप रहे हैं। भाषा और लिपि का जो ज्ञान आप मुझे देना चाहते हैं वो सहज बात है और आप ही इसे समझ नहीं रहे। लिपि बाद में आती है भाषा पहले। अतः आप लिपि को विवधा पूर्ण रहने देवें, भाषा शुद्ध है या नहीं यही हमारा लक्ष्य होना चाहिये। फिर भी आप बारं बार नवीन विकिपीडिया के लिये आवेदन करके ये सिद्ध करना चाहते हैं कि मैं कोई हिन्दी से बाहर की बात कर रहा हूँ और आप हिन्दी की। आप बोल देवें कि मैंने जो सन्दर्भ दिये हैं, वो सिद्ध नहीं करते हैं कि ञ और ङ का प्रयोग हिन्दी में होता है। ध्वन्यात्मक वर्णमाला की आवश्यकता है और वही तो स्वीकार्यता की बात है। हिन्दी ने सब स्वीकार्य किया है परन्तु आप है कि हिन्दी द्वारा स्वीकृत को अल्प प्रयोग या प्रचीन प्रयोग कह कर हिन्दी से हटा रहे हैं। साथ में ये भी बोल रहे हैं कि मैंने ङ और ञ पर प्रतिबन्ध नहीं रक्खा। यदि प्रतिबन्ध नहीं तो प्रयोग से रोका क्यों जा रहा है? मैं पञ्चमाक्षर के प्रयोग से कुछ सिद्ध करना नहीं चाहता। क्योंकि मेरे लिये अनुस्वार और पञ्चाक्षर दोनों हिन्दी है। मैं किसी के विरोध में नहीं हूँ। आप कहें आप पञ्चाक्षर को क्या सिद्ध करना चाहिते हैं? प्रतिबन्दित या मेरे द्वारा प्रसारित किया जाने वाला कुचक्र? ॐNehalDaveND 10:56, 23 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]
ये रहा आपके अनुचित सम्पादनों का प्रमाण। कृपया ऐसे सभी सम्पादनों को हिन्दी विकिपीडिया में वापस लाएँ जो आपने अपने मत के प्रस्थापन में बदले हैं। मैं एक हूँ जो पञ्चमाक्षर का प्रयोग करता हूँ और अन्य कोई नहीं है, ये जो आप सिद्ध करना चाहते थे उसकी पोल खुल चुकी है। अनेकों ने पञ्चमाक्षर का प्रयोग किया परन्तु आपने अपने बॉट अधिकार का दुरुपयोग किया है। ॐNehalDaveND 13:47, 23 मार्च 2018 (UTC)[उत्तर दें]

नुक्ता का उपयोग[संपादित करें]

इस लेख में नुक्ते का उपयोग केवल उर्दू और फारसी शब्दों के साथ किया गया है। वैसे नुक्ते के उपयोग के सन्दर्भ में विवाद बना हुआ है। अतः किसी एक पक्ष में निर्णय करना अनुचित होगा। सन्दर्भ किशोरीदास वाजपेयी के मता का अनुसरण करते हुए इस लेख में अनावश्यक माने जाने वाले नुक्ते का उपयोग नहीं किया गया। उर्दू या फारसी से हिन्दी में स्वीकृत ऐसे शब्द, जिन में नुक्ता न लगाने से अर्थ परिवर्तित (राज़, राज) हो जाए, वैसे शब्दों को उपयोग भी नहीं किया गया है। जिससे नुक्ता का उपयोग अनिवार्य नहीं दिखता। तथापि लेख में ऐसा कोई नुक्ता सम्बन्धित परिवर्तन करने से पूर्व कृपया चर्चा करें। अस्तु। ॐNehalDaveND 15:44, 30 मई 2018 (UTC)[उत्तर दें]

Han ji Naveenthakur96 (वार्ता) 19:57, 19 अक्टूबर 2019 (UTC)[उत्तर दें]

पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां लेकर आया शेर सिंह राणा[संपादित करें]

ये वहीं शेर सिंह राणा है जोअफगानिस्तान से पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां लाए थे।शेर सिंह राणा अख़बार की सुर्खियों में है। कौन है शेर सिंह राणा ...

- शेर सिंह राणा जन्म 17 मई 1976, उत्तराखंड के रुड़की में हुअा। राणा ने अंतिम हिंदू सम्राट कहे जाने वाले पृथ्वीराज चौहान की अफगानिस्तान के गजनी इलाके में रखी अस्थियों को भारत ले कर आये है। - शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की हत्या की इस हत्या की वजह से राणा को पुलिस तिहाड़ जेल में बंद कर दिया था। - जेल बाहर आने के बाद एक इंटरव्यू में शेर सिंह ने बताया कि जब वें फूलन देवी हत्या के आरोप में सजा काट रहे थे तभी वे भारत के सबसे नामी तिहाड़ जेल से 17 फरवरी 2004 को जब फरार हो गए। - नेपाल, बांग्लादेश, और दुबई के रास्ते होते हुए अफगानिस्तान पहुंचे। जहां पर उन्होंने अपनी जान को जोखिम में डाल कर अफगानिस्तान के गजनी से हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की रखी हुई अस्थियां 2005 में भारत ले आए। -इस पूरी घटना का बाकायदा राणा ने वीडियो भी बनाया। इसके बाद राणा ने अपनी मां की मदद से गाजियाबाद के पिलखुआ में पृथ्वीराज चौहान का मंदिर बनवाया, जहां पर उनकी अस्थियां आज भी रखी हुई है Naveenthakur96 (वार्ता) 19:55, 19 अक्टूबर 2019 (UTC)[उत्तर दें]

सही है Naveenthakur96 (वार्ता) 20:01, 19 अक्टूबर 2019 (UTC)[उत्तर दें]

पृथ्वीराज राज चौहान (गुर्जर )[संपादित करें]

पृथ्वीराज चौहान राजपूत शासक थे, जो राजस्थान के अजमेर से ताल्लुक रखते थे ! जिन्हे उनके नाना ने दिल्ली की गद्दी के लिए दत्तक लिया था !! Gajsahukum (वार्ता) 02:12, 18 मई 2020 (UTC)[उत्तर दें]

श्रीमान, इस पृष्ठ मे राजपूत लिखा तो हुआ है। Rakshit Rathod (वार्ता) 03:45, 18 मई 2020 (UTC)[उत्तर दें]

कर्नल जेम्स टॉड द्वरा लिखी गयी पुस्तक के विवरण अनुसार Bhupendra Singh Sisodiya Bhupi Rana (वार्ता) 20:10, 19 मई 2020 (UTC)[उत्तर दें]

@Gajsahukum दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2022 को पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर समाज का बताया है तो आप न्यायले के खिलाफ जाकर उनको राजपुत राजा क्यों लिखा हुआ है Sumitbhatiyakubpuriya (वार्ता) 14:53, 11 जून 2022 (UTC)[उत्तर दें]
किसी भी ऐतिहासिक ग्रंथ में पृथ्वीराज चौहान को गूजर नहीं बताया गया है। Stop this futile activity Krishanna80 (वार्ता) 12:25, 11 अगस्त 2023 (UTC)[उत्तर दें]

पृथ्वीराज चौहान (चौहान) वंश के हिन्दू वीर गुर्जर सम्राट।[संपादित करें]

पृथ्वीराज चौहान गुर्जर चौहान वंश के सम्राट थे उनका राज्य अजमेर था वे दिल्ली पर भी राज्य करते थे

दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2022 को दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज रामनाथ श्रीवास्तव ने सभी सबूतों और दस्तावेजों और इतिहासकारों के द्वारा लिखा गया इतिहास को देखते हुए और जो एक कमहेटी गठित की गई थी उसकी पेस की गई रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वीराज चौहान गुर्जर जाति से थे राजपुत जाति से इनका कोई ताल्लुक नहीं था आपके पास कोई सबुत है?? Rakshit Rathod (वार्ता) 08:30, 20 मई 2020 (UTC)[उत्तर दें]

फालतू का झूठ फैलाना बन्द करो तुम गुज्जर लोगो बो क्षत्रिय गुर्जर राजा थे उनके हर रिस्तेदार राजपूत थे उनके ही वंश से 24 राजपूत वंश दूसरे निकले है तुम झूठ फैलाना भी चाहो तो भी नही फैला सकते और चौहान तुमारा गोत्र होगा वंश नही गोत्र वंश में बहुत अंतर है गोत्र कभी नाम के पीछे लगाया नही जाता

तुम लोगो में एक दो गांव में जो गुज्जर चौहान लागते he Bo Chauhan rajput ke yhaa kaam krte the isliye unhone Chauhan ko gotra BNA liya 900 sal ki history ko tum ghatiya log badlne ki koshish kr rhe ho मनोहर पुजारी (वार्ता) 14:37, 20 मई 2021 (UTC)[उत्तर दें]

तुम लोग सुधर जाओ नही तो हम सुधार देंगे अपने बाप को बाप मनो दूसरे को नही मनोहर पुजारी (वार्ता) 14:39, 20 मई 2021 (UTC)[उत्तर दें]

मनोहर पुजारी सही बात है जिनका कुछ इतिहास नहीं होता वह दूसरों का चुराते हैं। Ratnahastin (वार्ता) 04:04, 23 मई 2021 (UTC)[उत्तर दें]

सभी को मालूम है मित्रो की इतिहास चोर कौन है , और कौन किसका रिश्तेदार था। गुर्जर सम्राट पृथ्वी राज चौहान अमर रहे। भोला गुर्जर चौधरी (वार्ता) 06:05, 13 अगस्त 2022 (UTC)[उत्तर दें]

Stop your editi warring and discuss the issue here[संपादित करें]

user:YtiVya Pseudo Nihilist (वार्ता) 06:35, 16 जनवरी 2021 (UTC)[उत्तर दें]

पृथ्वीराज की उपाधियों में से दिल्ली का राजा हटा देना चाहिये क्योंकि इनकी राजधानी तो अजमेर में थी। दिल्ली सल्तनत की शुरुआत से पहले हिन्दुस्तान की 'पोलिटिकल कैपिटल' कन्नौज था। और सल्तनते-हिन्द की स्थापना के आठ साल बाद दिल्ली उसकी राजधानी बनी। जो लोग इन्हें दिल्ली का राजा कहते हैं वे इतिहास का सरलीकरण कर रहे होते हैं।

चौहान वंश[संपादित करें]

चौहान वंश अथवा चाहमान वंश एक भारतीय राजपूत राजवंश था जिसके शासकों ने वर्तमान राजस्थान, गुजरात एवं इसके समीपवर्ती क्षेत्रों पर ७वीं शताब्दी से लेकर १२वीं शताब्दी तक शासन किया। उनके द्वारा शासित क्षेत्र सपादलक्ष कहलाता था। वे चरणमान (चौहान) कबीले के सबसे प्रमुख शासक परिवार थे, और बाद के मध्ययुगीन किंवदंतियों में अग्निवंशी राजपूतों के बीच वर्गीकृत किए गए थे।[1][2]


अजमेर के चौहान राजा विग्रह राज चतुर्थ के काल (११५०-६४ ई) के सिक्के


चौहानों ने मूल रूप से शाकंभरी (वर्तमान में सांभर लेक टाउन) में अपनी राजधानी बनाई थी। 10वीं शताब्दी तक, उन्होंने प्रतिहार जागीरदारों के रूप में शासन किया। जब त्रिपिट्री संघर्ष के बाद प्रतिहार शक्ति में गिरावट आई, तो चमन शासक सिमरजा ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। 12वीं शताब्दी की शुरुआत में, अजयराजा II ने राज्य की राजधानी को अजयमेरु (आधुनिक अजमेर) में स्थानांतरित कर दिया। इसी कारण से, चम्मन शासकों को अजमेर के चौहानों के रूप में भी जाना जाता है।

गुजरात के चौलुक्यों, दिल्ली के तोमरस, मालवा के परमारों और बुंदेलखंड के चंदेलों सहित, कई लोगों ने अपने पड़ोसियों के साथ कई युद्ध लड़े। 11 वीं शताब्दी के बाद से, उन्होंने मुस्लिम आक्रमणों का सामना करना शुरू कर दिया, पहले गजनवीड्स द्वारा, और फिर गूरिड्स द्वारा। १२ वीं शताब्दी के मध्य में विग्रहराजा चतुर्थ के तहत चम्मन राज्य अपने आंचल में पहुँच गया। वंश की शक्ति प्रभावी रूप से 1192 CE में समाप्त हो गई, जब घुरिड्स ने अपने भतीजे पृथ्वीराज तृतीय को हराया।


चौहानों की कुलदेवी माँ शाकम्भरी सहारनपुर Dr.Raju Rajasthani (वार्ता) 17:15, 23 जनवरी 2022 (UTC)[उत्तर दें]

Aapne Someshwar ji ka name complete kyu nhi likha uska complete name Someshwar Gurjar h yadi aap sahi likhte h to theek h otherwise report to admin wikipedia okay please amendment kare[संपादित करें]

Sir please amendment Someshwar Ji ki jagah Someshwar Gurjar aana Chahiye Gurjar Jija (वार्ता) 11:13, 15 जनवरी 2023 (UTC)[उत्तर दें]

पृथ्वी राज चौहान Gurjar Sumit (वार्ता) 06:49, 19 फ़रवरी 2024 (UTC)[उत्तर दें]