वार्ता:कुमाऊँ

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लेखन संबंधी नीतियाँ

गोरखा शासन[संपादित करें]

  • कुमाऊँ को गोरखाली सेना ने नेपाल विजय के पश्चात अपने अधीन में लिया था। नेपाल विजय पश्चात गोरखाली राज का नाम बदलकर नेपाली राज हो चुका था। अतः, मेरे विचार में यह गोरखा शासन न होकर नेपाली शासन होना चाहिए।
  • मेरे विचार में उस समय के नेपाली शासन के बारे में साधारण अंग्रेजौं के लेखौं को आधार के रुप में नही लेना चाहिए। उस समय में सम्पूर्ण भारतवर्ष को अपने अधीन में गुलाम करने का सपना लिए हुए ब्रिटिश सामरिक बल को नेपाली गोरखाली सेना, मराठी सेना, पञ्जाबी सिख आदि से बडा खतरा था। भारतवर्ष को "डिभाइड एण्ड रुल" के अपने नीति कार्यान्वयन कर अग्रेजौं ने गोरखाली-कुमाऊँ के बीच में दीवार खडा करने के लिए ऐसा "प्रॉपागाण्डा" प्रयोग किया था। उस समय के गोरखाली सैन्य अभियान को नेपाल के इतिहास में "नेपाल के पुर्नएकिकरण अभियान" कहते है। इस समय में हुए नरसंहार और क्रुरता के बारे में नेपाली इतिहास में वर्णन मिलता है जैसे कि कीर्तिपुर मे हुए क्रुरता। लेकिन नेपाल के इतिहास में कुमाऊँ पर हुआ क्रुरता के बारे में कहीं भी नहीं लिखा हुआ है। अभी भी तात्कालीन कुमाऊँ राज्य के पूर्वी खण्ड नेपाल के सुदूर पश्चिम विकास क्षेत्र के रुप में स्थापित है। नेपाल में अभी भी कुमाउंनी भाषा प्रयोजन में है, कुमाऊँनी संस्कृति नेपाल का एक अभिन्न अंग है। नेपाल के प्रमुख ४ शहीद में एक कुमाऊँनी राजकूल के व्यक्तित्त्व है (दशरथ चन्द) और नेपाल में सब से ज्यादा उच्च पद में आसीन व्यक्ति (प्रथम जन-आन्दोलन पश्चात २ कुमाऊँनी प्रधानमन्त्री हो चुके है और बहुत से उच्च मन्त्री भी कुमाऊँनी है) में अन्य जाति के तुलना में कुमाऊँनी जाति का ज्यादा वर्चश्व है। नेपाल में ऐसे शक्तिशाली स्थान पर होकर भी यह जाति के लोगों ने कभी भी गोरखाली सेना का दमन और अत्याचार का वर्णन नहीं किया है जब की दुसरे जाति (जैसे मधेसी, किरात, नेवार, तामाङ, गुरुङ आदि जाति) ने कोही समय में दमन और अत्याचार का वर्णन किया है जो नेपाल के इतिहास में उल्लेखित भी है। अंग्रेज-नेपाल युद्ध के समय में नेपाल के सभी स्थान पर युद्ध के लिए कर उठाया गया था, ना सिर्फ कुमाऊँ पर। गोरखा हिन्दू योद्धा थे जो लालच से ज्यादा मातृभूमि के रक्षा के नैतिक दायित्व से लडते थे। यह बात सायद जलालावाला बाग के नरसंहारकर्ता और नमक में कर लगाकर लोगों के जीवन अर्पन में वाधा दालनेवाले ब्रिटिश लेखकौं के समझ से बाहर हो सकता है। --युकेश १९:०९, ८ जनवरी २०१० (UTC)