वाचकन्वी गार्गी

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गार्गी वाचकन्वी ' प्राचीन भारतीय दार्शनिक थी। वेदिक साहित्य में, उन्हें एक महान प्राकृतिक दार्शनिक, वेदों के प्रसिद्ध व्याख्याता, और ब्रह्मा विद्या के ज्ञान के साथ ब्रह्मवादी के नाम से जाना जातीं है। वह त्रेता युग मे राजा जनक की समकालीन थी जो हिन्दू युग कालक्रम में 8 लाख 50 हजार 8,50,000 वर्ष ख्रीस्त ईसा पूर्व BC का समय है। गार्गी का पूरा नाम गार्गी वाचक्नवी बृहदारण्यकोपनिषद 3.6 और 3.8 श्लोक में वही मिलता है जहां वह जनक की राजसभा में याज्ञवल्क्य से अध्यात्म संवाद करती है। याज्ञवल्क्य की द्वितीय पत्नी मैत्रेयी भी ब्रह्मज्ञान युक्त विदुषी थी। युग

बृहदारण्यक उपनिषद के छठी और आठवीं ब्राह्मण में, उसका नाम प्रमुख है क्योंकि वह विद्या के राजा जनक द्वारा आयोजित एक दार्शनिक बहस में ब्राह्मण्य में भाग लेती है और संयम (आत्मा) के मुद्दे पर परेशान प्रश्नों के साथ ऋषि यज्ञवल्क्य को चुनौती देती है। यह भी कहा जाता है कि ऋग्वेद में कई भजन लिखे हैं जिन्हें सभी ब्रह्मचर्य धारण करने वाले और परंपरागत हिंदुओं द्वारा पूजा में आयोजित किया जाता है।

ऋषि गर्ग महाभारत कालीन 3000-3500 ईसा पूर्व के थे उनके पूर्व के वंश में ऋषि वाचक्नु की बेटी गार्गि, का नाम उसके पिता के नाम पर गार्गि वाचक्नवी के रूप में किया गया था एक युवा उम्र से वे वैदिक ग्रंथों में गहरी रूचि प्रकट की और वैदिक अध्यात्म दर्शन के क्षेत्र में बहुत ही कुशल थीं। वह वैदिक काल में वेद और उपनिषद में अत्यधिक जानकार थी और अन्य दार्शनिकों के साथ बौद्धिक बहस आयोजित करते थे। वाचकन्वी, वचक्नु नाम के महर्षि की पुत्री थी। गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण वाचक्नवी गार्गी नाम से प्रसिद्ध हुयी।

याज्ञवल्क्य के साथ शास्त्रार्थ[संपादित करें]

वृहदारण्यक उपनिषद् में इनका याज्ञवल्क्यजी के साथ बडा ही सुन्दर शास्त्रार्थ आता है। एक बार महाराज जनक ने श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की परीक्षा के निमित्त एक सभा की और एक सहस्त्र सवत्सा सुवर्ण की गौएँ बनाकर खडी कर दीं। सबसे कह दिया-जो ब्रह्मज्ञानी हों वे इन्हें सजीव बनाकर ले जायँ। सबकी इच्छा हुई, किन्तु आत्मश्लाघा के भय से कोई उठा नहीं। तब याज्ञवल्क्यजी ने अपने एक शिष्य से कहा- बेटा! इन गौओं को अपने यहाँ हाँक ले चलो।[1]

इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्यजी से शास्त्रार्थ करने लगे। भगवान याज्ञवल्क्यजी ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया। उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी बुलायी गयी थी। सबके पश्चात् याज्ञवल्क्यजी से शास्त्रार्थ करने वे उठी। उन्होंने पूछा-भगवन्! ये समस्त पार्थिव पदार्थ जिस प्रकार जल मे ओतप्रोत हैं, उस प्रकार जल किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- जल वायु में ओतप्रोत है।

गार्गी- वायु किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- वायु आकाश में ओतप्रोत है।

गार्गी- अन्तरिक्ष किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- अन्तरिक्ष गन्धर्वलोक में ओतप्रोत है।

गार्गी- गन्धर्वलोक किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- गन्धर्वलोक आदित्यलोक में ओतप्रोत है।

गार्गी- आदित्यलोक किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- आदित्यलोक चन्द्रलोक में ओतप्रोत है।

गार्गी- चन्द्रलोक किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- नक्षत्रलोक में ओतप्रोत है।

गार्गी- नक्षत्रलोक किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- देवलोक में ओतप्रोत है।

गार्गी- देवलोक किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- प्रजापतिलोक में ओतप्रोत है।

गार्गी- प्रजापतिलोक किसमें ओतप्रोत है?

याज्ञवल्क्य- ब्रह्मलोक में ओतप्रोत है।

गार्गी- ब्रह्मलोक किसमें ओतप्रोत है?

तब याज्ञवल्क्य ने कहा- गार्गी! अब इससे आगे मत पूछो। इसके बाद महर्षि याज्ञवक्ल्यजी ने यथार्थ सुख वेदान्ततत्त्‍‌व समझाया, जिसे सुनकर गार्गी परम सन्तुष्ट हुई और सब ऋषियों से बोली-भगवन्! याज्ञवल्क्य यथार्थ में सच्चे ब्रह्मज्ञानी हैं। गौएँ ले जाने का जो उन्होंने साहस किया वह उचित ही था। गार्गी परम विदुषी थीं, वे आजन्म ब्रह्मचारिणी रहीं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. गार्गी वाचक्नवी: अपने समय की प्रखर अध्यात्मवेत्ता Archived 2013-10-29 at the वेबैक मशीन (भारतीय पक्ष)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]