वाँन थ्यूनेन का सिद्धान्त

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वाँन थ्यूनेन

जर्मन विद्वान (१७८३-१८५०) ने मैकलेनबर्ग में फार्म मैनेजर के पद पर पर कार्य करते हुए अपने अनुभव के आधार पर 1826 में कृषि भूमि उपयोग के लिए अवस्थिति सिद्धान्त का पतिपादन किया जो तुलनात्मक लाभ के सिद्धान्त पर आधारित हैं। उनका यह सिद्धान्त निश्चयवादी तथा मानकीय है।

  • वॉन थ्युनेन ने यह प्रेक्षण किया कि प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने वाली भूमियों पर भिन्न प्रकार के भूमि उपयोग होते हैं। बाजार से निकटतम वलय में शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का विशेषीकरण मिलता है, जिनका माँग अधिक होता है तथा जिनका परिवहन व्यय महंगा है। इस वलय क बाहर की ओर कम नष्ट होने वाली, कम परिवहन लागत वाली तथा कम बाजार मूल्य वाली वस्तुओं के वलय विकसित होते हैं।

सिद्धान्त का प्रतिपादन[संपादित करें]

Untersuchungen uber den Einfluss, den die Getrieidepreise, der Reichthum des Zodens und die Abgaben auf den Ackerbau ausuben, 1842

सूत्र[संपादित करें]

P = V - (E+T)

  • P = कृषक का लाभ
  • V = वस्तु का विक्रय मूल्य
  • E = उत्पादन लागत
  • T = परिवहन व्यय

कृषि भूमि उपयोग का सिद्धान्त: थ्यूनेन के चक्र[संपादित करें]

थ्यूनेन का सिद्धान्त: काला बिन्दू नगर को चिन्हित करता हैं।; 1 (सफेद) पशुपालन एवं बाजार के लिए सब्जी उत्पादन; 2 (हरा) ईंधन के लिए लकडी; 3 (पीला) grains and field crops; 4 (लाल) ranching; the outer, dark green area represents wilderness where agriculture is not profitable

मुल्यांकन और आलोचना[संपादित करें]

जिस प्रकार के क्षेत्र की कल्पना की उस प्रकार का कोई क्षेत्र विद्यमान नहीं है।

परिवहन व्यय केवल भार व दूरी के अनुपात में ही नहीं बढ़ता, बल्कि अन्य कारक भी कार्यरत होते हैं।

चित्र अनुसार मिट्टी की उत्पादन क्षमता सभी फसलों के लिए सामान नहीं है।