लखनऊ समझौता

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लखनऊ समझौता (अंग्रेज़ी: Lucknow Pact, उर्दू: لکھنؤ کا معاہدهLakḣna'ū kā Muʿāhidah; उर्दु उच्चारण: [ləkʰnəˌu kaː mʊˈaːɦɪd̪a]) दिसंबर 1916 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा किया गया समझौता है, जो 29 दिसम्बर 1916 को लखनऊ अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा और 31 दिसम्बर 1916 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा पारित किया गया।[1]

इतिहास[संपादित करें]

भारतीय राजनीति में जिन्ना का उदय 1916 में कांग्रेस के एक नेता के रूप में हुआ था, जिन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौता करवाया था। गौरतलब है कि 1910 ई. में वे बम्बई के मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्र से केन्द्रीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए, 1913 ई. में मुस्लिम लीग में शामिल हुए और 1916 ई. में उसके अध्यक्ष हो गए। मोहम्मद अली जिन्नाह अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष की हैसियत से संवैधानिक सुधारों की संयुक्त कांग्रेस लीग योजना पेश की। इस योजना के अंतर्गत कांग्रेस लीग समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई। इसी समझौते को 'लखनऊ समझौता' कहते हैं।[2]

लखनऊ की बैठक में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के उदारवादी और अनुदारवादी गुटों का फिर से मेल हुआ। इस समझौते में भारत सरकार के ढांचे और हिन्दू तथा मुसलमान समुदायों के बीच सम्बन्धों के बारे में प्रावधान था। मोहम्मद अली जिन्नाह और बाल गंगाधर तिलक इस समझौते के प्रमुख निर्माता थे। बाल गंगाधर तिलक को देश लखनऊ समझौता और केसरी अखबार के लिए याद करता है।[3]

स्वरूप[संपादित करें]

पहले के हिसाब से ये प्रस्ताव गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक विधान को आगे बढ़ाने वाले थे। इनमें प्रावधान था कि प्रांतीय और केंद्रीय विधायिकाओं का तीन-चौथाई हिस्सा व्यापक मताधिकार के जारिये चुना जाये और केंद्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्यों सहित कार्यकारी परिषदों के आधे सदस्य परिषदों द्वारा ही चुने गए भारतीय हों। केंद्रीय कार्यकारी के प्रावधान को छोडकर ये प्रस्ताव आमतौर पर 1919 के भारत सरकार अधिनियम में शामिल थे। काँग्रेस प्रांतीय परिषद चुनाव में मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मण्डल तथा पंजाब एवं बंगाल को छोडकर, जहां उन्होने हिन्दू और सिख अल्पसंख्यकों को कुछ रियायतें दी, सभी प्रान्तों में उन्हें रियायत (जनसंख्या के अनुपात से ऊपर) देने पर भी सहमत हो गई। यह सम्झौता कुछ इलाकों और विशेष समूहों को पसंद नहीं था, लेकिन इसने 1920 से महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन एवं खिलाफत आन्दोलन के लिए हिन्दू-मुस्लिम सहयोग का रास्ता साफ किया। महेंद्र

विखण्डन[संपादित करें]

लखनऊ समझौते से मोह भंग होने के बाद मुस्लिम लीग की कार्यकारिणी के बैठक मे जिन्ना (ऊपर, बाएँ), अक्तूबर 1937

जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थक थे, परन्तु गांधीजी के असहयोग आंदोलन का उन्होंने तीव्र विरोध किया और इसी प्रश्न पर कांग्रेस से वह अलग हो गए। इसके बाद से उनके ऊपर हिन्दू राज्य की स्थापना के भय का भूत सवार हो गया। उन्हें यह ग़लत फ़हमी हो गई कि हिन्दू बहुल हिंदुस्तान में मुसलमानों को उचित प्रतिनिधित्व कभी नहीं मिल सकेगा। सो वह एक नए राष्ट्र पाकिस्तान की स्थापना के घोर समर्थक और प्रचारक बन गए। उनका कहना था कि अंग्रेज़ लोग जब भी सत्ता का हस्तांतरण करें, उन्हें उसे हिन्दुओं के हाथ में न सौंपें, हालाँकि वह बहुमत में हैं। ऐसा करने से भारतीय मुसलमानों को हिन्दुओं की अधीनता में रहना पड़ेगा। जिन्ना अब भारतीयों की स्वतंत्रता के अधिकार के बजाए मुसलमानों के अधिकारों पर अधिक ज़ोर देने लगे। उन्हें अंग्रेज़ों का सामान्य कूटनीतिक समर्थन मिलता रहा और इसके फलस्वरूप वे अंत में भारतीय मुसलमानों के नेता के रूप में देश की राजनीति में उभरे। मोहम्मद अली जिन्नाह ने लीग का पुनर्गठन किया और 'क़ाइदे आज़म' (महान नेता) के रूप में विख्यात हुए। 1940 ई. में उन्होंने धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन तथा मुसलिम बहुसंख्यक प्रान्तों को मिलाकर पाकिस्तान बनाने की मांग की। बहुत कुछ उन्हीं वजह से 1947 ई. में भारत का विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना हुई।[4]

अगर हिन्दू-मुस्लिम एकता वाले ऐतिहासिक लखनऊ समझौते को संविधान में मान लिया गया होता तो शायद न देश का बंटवारा होता और न ही जिन्ना की कोई गलत तस्वीर हमारे मन में होती।

प्रणव मुखर्जी, भारत के राष्ट्रपति[5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भारत ज्ञानकोश, खंड-5, प्रकाशक- पापुलर प्रकाशन मुंबई, पृष्ठ संख्या-146, आई एस बी एन 81-7154-993-4
  2. डॉ॰ मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास २००६ प्रवीण प्रकाशन नई दिल्ली ISBN 81-7783-122-4 (Set) भाग ३ पृष्ठ ८३६ से ८३९ तक (पूरा दस्तावेज़)
  3. "नया इंडिया: बाल गंगाधर तिलक". मूल से 10 नवंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2013.
  4. "Interview with Vali Nasr". मूल से 23 जनवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2013.
  5. "नवभारत टाइम्स, 14 अप्रैल 2005, शीर्षक: 'लखनऊ समझौता मानते, तो बंटवारा न होता'". मूल से 7 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2013.

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बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

({{[ लखनऊ में गोमती किनारा और गांवों की तस्वीर]})

बसहरी गांव गोमती के किनारे बसा हुआ है जो मड़वाना ग्रामपंचायत के करीब है मलिहाबाद तहसील की पुरानी विरासत और लखनऊ का गांव है।

  1. "लखनऊ समझौता क्या है और कब हुआ ?". gktoyou. अभिगमन तिथि 22/08/2019. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)