यूसुफ़ अंसारी

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यूसुफ़ अंसारी भारत के जाने माने पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक रहे हैं। 2000-2010 तक उन्होंने भारतीय टीवी पत्रकारिता के एक संजीदा राजनीतिक पत्रकार के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई। वो 21 शताब्दी के पहले दशक में देश के पहले निजी समाचार चैनल ज़ी न्यूज़ पर सबसे ज्यादा दिखने वाले पत्रकार रहे हैं। ज़ी न्यूज़ के लिए उन्होंने 11 साल काम किया और इस बीच उन्होंने देश और विदेशों में जमकर रिपोर्टिंग की। देश की सियासी नब्ज़ पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ है। पत्रकारिता जगत में वो अपनी निष्पक्ष रिपोर्टिंग, सटीक राजनीतिक विश्लेषण और बेबाक टिप्पणियों के लिए एक अलग ही पहचान रखते हैं। यूसुफ़ अंसारी उन गिने चुने पत्रकारों में शामिल हैं जिन्हें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ देश-विदेश में यात्रा करने का सौभाग्य हासिल हुआ है। पत्रकारिता जगत और सिसासी गलियारों में यूसुफ़ अंसारी का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। पत्रकारिता करियर की शुरिआत यूसुफ़ अंसारी ने पत्रकारिता की शुरुआत अपने छात्र जीवन में ही कर दी थी। 1989 में पढ़ाई के दौरान बीएससी के पहले साल में ही बिजनौर के स्थानीय समाचार पत्र बिजनौर टाइम्स के लिए उन्होंने बतौर शौक़ संपादक के नाम पत्र लिखने शुरु किए। उन्होंने शुरुआत से ही सम-सामयिक विषयों पर क़लम चलाई। 1990 में बिजनौर में हुए दंगों के बाद उन्होंने अपने एक पत्र के ज़रिए दंगों के दौरान पुलिस की भूमिका पर बड़ी की बेबाक़ी से सवाल उठाए। उनके इस पत्र से प्रशासन हिल गया था। बेबाक पत्र लेखन का ये सिलसिला आगे बढ़ा तो धीरे धीरे उनके पत्रों ने लेखों का रूप ले लिया। उनका पहला लेख 16 जुलाई 1991 को बिजनौर टाइम्स में “भाजपा की सफलता में मुसलमानों का योगदान” शीर्षक से छपा। इस लेख में यूसुफ़ अंसारी ने बड़ी ही बारीकी से इस बात को रेखांकित किया था कि मुसलमानों की बीजेपी हराओ मानसिकता की वजह से ही बीजेपी 86 सीटों से बढ़ कर 119 पर है। उन्होंने ये अंदेशा भी जताया कि अगर मुसलमान इसी ढर्रे पर आगे चले तो बीजेपी कमज़ोर होने के बजाए और मज़बूत हो गयी। बाद में उनका ये अंदाज़ा सही भी साबित हुआ। पढ़ाई के साथ-साथ यूसुफ़ अंसारी की शौक़िया पत्रकारिता भी परवान चढती रही। इस बीच उन्होंने रिपोर्टिंग भी शुरु कर दी। कुछ ही साल में बिजनौर में बतौर पत्रकार स्थापित हो गए। 1995 में उन्होंने तात्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के नाम एक खुला ख़त लिखकर उनकी नीतियों को बेनक़ाब किया। दिनों दिन चर्चित होते जा रहे यूसुफ़ अंसरी के लेख युवराज और अदिति नाम की दो फीचर एजंसियों के ज़रिए देश के तमाम समाचार पत्रों में छपने लगे। 1995 में ही बीएड करते हुए उन्होंने पूर्णरूप से पत्रकारिता का पेशा अपनाने का फैसला किया। 1996 में उन्होंने देश के सबसे सम्मानित पत्रकारिता संस्थान भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) में दाखिला इस दौरान उन्होंने हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, कुबेर टाइम्स, जीवीजी टाइम्स, पब्लिक एशिया वग़ैरह के लिए खूब लेख लिखे। 1997 में पत्रकारिता में डिप्लोमा कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने राजस्थान के अजमेर, जयपुर और कोटा से प्रकाशित होने वाले दैनिक नवज्योति अख़बार के दिल्ली ब्यूरो में बतौर राजनीतिक संवाददाता अपना कैरियर शुरु किया। दो साल तक उन्होंने संसद की कार्यवाही और केंद्र सरकार की गतिविधियों के साथ ही कांग्रेस, बीजेपी, वामपंथी पार्टियों और सपा बसपा जैसी पार्टियों की रिपोर्टिंग की। 1999 में ज़ी न्यूज़ ज्वाइन किया। 2000 में उन्होंने टीवी चैनलों के इतिहास में खोजी पत्रकारिता का पहला कार्यक्रम द इनसाइड स्टोरी शुरु किया। अपने समय का ये सबसे टीवी चर्चित कार्यक्रम रहा है। 2001 से उन्होंने टीवी के लिए राजनीतिक रिपोर्टिंग शुरु की। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। विधानसभा और लोकसभा चुनावों का कवरेज के लिए उन्होंने देश भर का दौरा किया। 2002 में उन्होंने कठिन परिस्थियों में दो लगातार महीने जम्मू-कश्मीर में रहकर वहां के चप्पे-चपपे से चुनावी कवरेज की। 24 सितंबर 2002 को उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल कर भारतीय टीवी पत्रकारिता के इतिहास में पहली बार आतंकवादियों के खिलाफ़ सुरक्षा बलों की मुठभेड़ का लगातार साढे तीन घंटे तक सीधा प्रसारण दिखाया। 2010 तक ज़ी न्यूज़ मे रहते हुए यूसुफ़ अंसारी ने समसामयिक विषयों विभिन्न समाचार पत्रों के लिए लेख भी लिखे। इस तरह कड़ी मेहनत और सामाजिक सकरोकारों के प्रति लगन और जुनून के चलते यूसुफ़ अंसरी ने राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर पत्रकार, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई। पत्रकारिता जीवन में उन्होंने एक दशक से भी ज़्यादा समय तक संसद और केंद्र सरकार के विभिन मंत्रालयों के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति की बेबाक और गंभीर रिपोर्टिंग की है। लिहाज़ा विभिन्न पार्टियों के तमाम नातओं के साथ उनके गहरे ताल्लुक़ात और सत्ता के गलियारों में उनकी ज़बरदस्त पकड़ रही है। अपने इन संबधों का निजि हितों के लिए फ़ायदा उठाने के बजाए उन्होंने अपने दबे-कुचल समाज को देश के संसाधनो में उसका जायज़ हक़ दिलाने के लिए सत्ताधारियों के साथ साठगांठ के बजाए सत्ता के लिए संघर्ष का रास्ता चुना। पत्रकारितापर जीवन मे उन्होंने अनेक उपल्बधियां हासिल की। देश विदेश की कई संस्थाओं ने उन्हें अलह-अलग मौक़ों को पर पत्रकारिता मे उनके योगदान, समाज जागरूक करने के के उनके प्रयासों और दलित, पिछड़े, मुसलमानों एवं अन्य अल्प संख्यक वर्गों के हक़ की आवाज़ उठाने के लिए उन्हें सम्मानति किया। उपलब्धियां 2003 में उन्होंने टर्की बॉर्डर से महीने भर तक इराक़ पर अमेरिका हमले की कवरेज की। 2005 में प्रधानमंत्री के साथ तमिलनाडु और अंडमान निकोबार में सुनामी प्रभावित इलाकों का दौरा किया। 2005 प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अमेरिका की यात्रा। इसी यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच परमाणु क़रार पर बातचीत शुरु हुई थी। 2008 प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ श्रीलंका में हुए सार्क सम्मेलन की कवरेज 2009 राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल के साथ स्पेन और पोलैंड का दौरा।

सम्मान पत्रकारिता में यूसुफ़ अंसारी के योगदान को देखते हुए उन्हें 2010 में रेलवे बोर्ड की हिंदी सलाहकार समिति का सदस्य बनाया गया। 2005-2007 तक वो लोकसभा की प्रेस सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके हैं। अवार्ड्स 2011 मीडिया में रहकर समाज के कमज़ोर तबक़े की आवाज़ उठाने के लिए मुबंई में अंबेडकर सम्मान से सम्मानित किया गया। इसी कार्यक्रम में मशहूर फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र और शबाना आज़मी को भी सम्मानवित किया गया था। 2007 में दुबई में सर्वश्रेष्ठ भारतीय राजनीतिक पत्रकार के सम्मान से नवाज़ा गया। इसी समारोह में इंडिया टीवी के संपादक को सर्वश्रेष्ठ संपादक और मशहूर फिल्म निर्माता महेश भट्ट को सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार का अवार्ड मिला था। 2005 में इंडियन नेश्नल सोसाइटी नें उन्हें राष्ट्रीय एकता पुरुस्कार से नवाज़ा। इनके अलावा यूसुफ़ अंसारी को उनके पत्रकारिता कैरियर के दौरान देश विदेश की विभिन्न संस्थाओं ने अलग-अलग मौक़ों पर और भी कई सम्मानों और अवार्ड्स से नवाज़ा है।