मोहिनीअट्टम

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मोहिनीयाट्टम इस ए क्लासिकल इंडियन डांस फ्रॉम केरल.

मोहिनीअट्टम (मलयालम: മോഹിനിയാട്ടം) भारत के केरल राज्य के दो शास्त्रीय नृत्यों में से एक है, जो अभी भी काफी लोकप्रिय है [1] केरल की एक अन्य शास्त्रीय नृत्य कथकली भी है। मोहिनीअट्टम नृत्य शब्द मोहिनी के नाम से बना है, मोहिनी रूप हिन्दुओ के देव भगवान विष्णु ने धारण इसलिए किया था ताकि बुरी ताकतों के ऊपर अच्छी ताकत की जीत हो सके [1]

मोहिनीअट्टम की जड़ों, सभी शास्त्रीय भारतीय नृत्यों की तरह, नाट्य शास्त्र में हैं – यह एक प्राचीन हिंदू संस्कृत ग्रन्थ है जो शास्त्रीय कलाओ पर लिखी गयी हैं [2] [7]। यह परंपरागत रूप से व्यापक प्रशिक्षण के बाद महिलाओं द्वारा किया एक एकल नृत्य है।

व्युत्पत्ति[संपादित करें]

पौराणिक मोहिनी मोहिनीअट्टम, जिसको मोहिनी अट्टम भी बोला जाता हैं यह "मोहिनी" शब्द से लिया गया है जो भारतीय पौराणिक कथाओं में भगवान् विष्णु का एक प्रसिद्ध नारी अवतार हैं [1]

मोहिनी का अर्थ एक "दिव्य जादूगरनी या मन को मोहने वाला" होता है। जिसका अवतरण देव और असुरों के बीच युद्ध के दौरान हुआ था जब असुरों ने अमृत के ऊपर अपना नियंत्रण कर लिया था। मोहिनी ने वो अमृत असुरों को मोह में लेकर देवताओं को दे दिया था

इतिहास[संपादित करें]

मोहिनीअट्टम एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य है, जिसकी जड़े कला की भारतीय कला की जननी समझी जाने वाली पुष्तक नाट्य शास्त्र में हैं। जिसके रचयिता प्राचीन विद्वान भरत मुनि हैं [3]

इसकी पहली पूर्ण संकलन 200 ईसा पूर्व और 200 ईसा के बाद की मानी जाती हैं मोहिनीअट्टम संरचना इस प्रकार है और नाट्य शास्त्र में लास्य नृत्य के लिए करना है।

रेजिनाल्ड मैसी के अनुसार, मोहिनीअट्टम के इतिहास के बारे में स्पष्ट नहीं है। केरल जहां इस नृत्य शैली विकसित हुई है और लोकप्रिय है, लास्य शैली नृत्य जिसका मूल बातें और संरचना जड़ में हो सकता है कि एक लंबी परंपरा है।

ब्रिटिश शासन का युग[संपादित करें]

19 वीं सदी में ब्रिटिश शासन के प्रसार के साथ भारत के सभी शास्त्रीय नृत्यों का उपहास और खिल्ली उड़ाई गयी जिससे इनके प्रसार में गंभीर रूप से गिरावट हुई। [4]

आधुनिक युग[संपादित करें]

ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान उपहास और अधिनियमित प्रतिबंध ने राष्ट्रवादी भावनाओं के लिए योगदान दिया है, और मोहिनीअट्टम सहित सभी हिंदू प्रदर्शन कला पर इनका असर पड़ा। 1930 के दशक में इसको भी पुनर्जीवित किया गया था।

प्रदर्शनों की सूची[संपादित करें]

एक कलाकार की अभिव्यक्ति मोहिनीअट्टम नृत्य की शैली लास्य की हैं एवं इससे कसिका वृति में प्रस्तुत किया जाता हैं। जिसका वर्णन भारतीय कला की प्राचीन ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में किया गया हैं। यहाँ सबसे महत्वपूर्ण है इसकी एकल अभिनय शैली जिसमे संगीत एवं गायन का भी योगदान रहता हैं।

अनुक्रम[संपादित करें]

मोहिनीअट्टम के प्रदर्शनों की सूची अनुक्रम भरतनाट्यम के समान है।

संगीत और वाद्य[संपादित करें]

मोहिनीअट्टम के मुख्य संगीत में विभिन्न प्रकार के लय शामिल है।

मोहिनीअट्टम में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले संगीत उपकरण में मृदंगम या मधालम (बैरल ड्रम), इदक्का (ऑवर गिलास ड्रम), बांसुरी, वीणा एवं किज्हितलम शामिल हैं। रागों (राग) को सोपाना शैली में गाया जाता है, जो धीमी गति से मधुर शैली में गाया जाता है। [5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. James G. Lochtefeld (2002). The Illustrated Encyclopedia of Hinduism: A-M. The Rosen Publishing Group. पृ॰ 359. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8239-3179-8. मूल से 28 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 नवंबर 2016.
  2. James G. Lochtefeld (2002). The Illustrated Encyclopedia of Hinduism: N-Z. The Rosen Publishing Group. पृ॰ 467. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8239-3180-4. मूल से 6 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 नवंबर 2016., Quote: "the Natyashastra remains the ultimate authority for any dance form that claims to be 'classical' dance, rather than 'folk' dance".
  3. Mohan Khokar (1984). Traditions of Indian classical dance. Clarion Books. पपृ॰ 57–58.
  4. Leslie C. Orr (2000). Donors, Devotees, and Daughters of God: Temple Women in Medieval Tamilnadu. Oxford University Press. पपृ॰ 11–13. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-535672-4. मूल से 23 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 नवंबर 2016.
  5. Siyuan Liu (2016). Routledge Handbook of Asian Theatre. Routledge. पपृ॰ 131–132. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-317-27886-3. मूल से 6 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 नवंबर 2016.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  1. Bishnupriya Dutt; Urmimala Sarkar Munsi (9 September 2010). Engendering Performance: Indian Women Performers in Search of an Identity. SAGE Publications. पपृ॰ 216–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-321-0612-8.