मैग्ना कार्टा

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मैग्ना कार्टा
मैग्ना कार्टा

मैग्ना कार्टा (Magna Carta) या मैग्ना कार्टा लिबरटैटम् (Great Charter of Freedoms या आजादी का महान चार्टर) इंग्लैण्ड का एक कानूनी परिपत्र है जो सबसे पहले सन् १२१५ ई में जारी हुआ था। यह लैटिन भाषा में लिखा गया था।

मैग्ना कार्टा में इंग्लैण्ड के राजा जॉन ने सामन्तों (nobles and barons) को कुछ अधिकार दिये; कुछ कानूनी प्रक्रियाओं के पालन का वचन दिया; और स्वीकार किया कि उनकी इच्छा कानून के सीमा में बंधी रहेगी। मैग्ना कार्टा ने राजा की प्रजा के कुछ अधिकारों की रक्षा की स्पष्ट रूप से पुष्टि की, जिनमें से बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका (habeas corpus) उल्लेखनीय है।

चार्टर की महत्ता इस तथ्य में निहित है कि प्रत्येक पीढ़ी ने इसकी वैधानिक व्याख्या कर इस सिद्धांत पर जोर दिया कि राजा को कानून का सम्मान अनिवार्य करना चाहिए। यह सामंतों तथा साधारण जनता दोनों के लिये वैधानिकता का प्रतीक बना तथा ब्रिटिश वैधानिक अधिनियमन का श्रीगणेश भी यहीं से हुआ माना जाता है।

परिचय[संपादित करें]

मैग्ना कार्टा (1215 ई0) मैगना कार्टा अथवा महान्-परिपत्र 15 जून 1215 ई0 को, थेम्स नदी के किनारे स्थित रनीमीड स्थान पर राजा जॉन ने इंग्लैंड के सामंतों को प्रदान किया था। हैलम के शब्दों में, यह कालांतर में इंग्लिश स्वातंत्र्य का प्रधान आधार बना, यद्यपि इसके रचयिता, जनस्वातंत्र्य उद्देश्य से अनुप्रेरित नहीं थे। वे अपने अधिकारों के प्रतिपादन में लगे थे। सामंत (बैरन), जो इसकी रचना में संलग्न थे, स्वभावत: अपनी स्थिति को सुरक्षित कर रहे थे। उन्हें दूसरे वर्गो के स्वार्थों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। अत: चार्टर, राजा तथा बैरन के बीच एक प्रसंविदा था, ज़ो सामंतवादी प्रथा पर आधारित था। चार्टर की दो तिहाई धाराएँ सामंतों के कष्टों की सूची थीं। किंतु रचयिताओं ने परिपत्र के द्वारा अपनी माँगों के अतिरिक्त, सभी वर्गो को संतुष्ट करने के लिये प्रशासकीय सुधारों के भी सन्निहित किया था। चार्टर की उपयोगिता समाप्त हो जाने के उपरांत भी, इसकी धाराएँ सम्मान की दृष्टि से अधिक समय तक देखी गई।

ऐतिहासिक कारण[संपादित करें]

चार्टर, राजा जॉन द्वारा बैंरनों पर अधिक वषों से लादे गए अन्यायपूर्ण करों तथा अत्यचाचारों का परिणाम था। पोप से संघर्ष ले लेने के उपरांत, जॉन ने पादरियों के साथ भी अत्याचारपूर्ण व्यवहार उसी मात्रा मे जारी रखा। वस्तुत: राजा ने समस्त जनता के प्रति एक नृशंसता की नीति अपनाई। फलत: राष्ट्रीय विद्रोह की भावना जाग्रत होने लगी। बैरन विद्रोह के प्रथम लक्षण 1212 ई0 में परिलक्षित हुए किंतु वास्तविक अशांति उस समय फैली जब आर्कबिशप स्टेफन के नेतृत्व में बैरनों ने लंदन में सेंट पाल की गोष्ठी में अपने कष्टों पर विचार किया तथा हेनरी प्रथम द्वारा स्वीकृत चार्टर के आधार पर, उपनी माँगे रखी। 1214 ई0 में फ्रांस ने जॉन को परास्त कर शांति के लिये बाध्य किया। इंग्लैंड वापस आने पर, बैरनों के एक संघ ने अपनी माँगो की एक सूची उसके सामने रखी। जॉन ने प्रस्ताव को स्थापित करने के लिये झूठा बादा किया और इस बीच में युद्ध का तैयारी प्रारंभ की। विदेशों से किराए के सैनिक मँगाए तथा चर्च को अपनी ओर मिलाने की कोशिश की। किंतु बैरन शक्तिशाली हो चले थे। बैरनों के विद्रोह को साधारण जनता से अधिक सहायता मिली, क्योंकि जॉन के विदेशी युद्ध तथा आंतरिक दमननीति ने आंतरिक स्थिति को असह्य बना दिया था। शक्ति से सामना करने में असमर्थ पाकर जॉन चार्टर पर हस्ताक्षर करने को बाध्य हो गया।

चार्टर की धाराएँ[संपादित करें]

चार्टर 63 धाराओं का था। अधिकांश धाराएँ राजा के विशेषाधिकारों के विरूद्ध सामंतो के अधिकारों का समर्थन करती थीं। चार्टर की मुख्य धाराएँ निम्नांकित है:-

  • (1) चर्च व्यवस्था तथा स्वतंत्र चुनाव
  • (2) तथा सामंतों के संबंध
  • (3) साधारण वैधानिक व्यवस्था
  • (4) आसामी के अधिकार
  • (5) नगर, वाणिज्य तथा व्यापारियों के अधिकार
  • (6) स्वायत्तशासन के दोषों का निराकरण
  • (7) न्याय तथा विधि व्यवस्था में सुधार
  • (8) कानून व्यवस्था
  • (9) चार्टर का प्रतिपादन तथा व्यवहार्य बनाना, आदि।

इस व्यापक परिपत्र की चार धाराएँ सदैव के लिये वैधानिक महतव की सिद्ध हुई। 12वीं धरा ने घोषित किया कि किसी भी प्रकार की सेवा अथवा सहायता बिना राज्य की साधारण परिषद् की स्वीकृति के नहीं ली जायगी। 14वीं धारा ने साधारण परिषद् की रचना बताई। इस विधान सभा में आर्क बिशप, बिशप, अर्ल तथा बड़े बड़े बैरन पृथक् पृथक् आज्ञापत्रों से आमंत्रित होंगे तथा प्रमुख कृषक जिलाधीश के द्वारा सूचित किए जायँगे। 39वीं धारा ने दैहिक स्वातँत्र्य की चर्चा करते हुए कहा कि किसी भी स्वतंत्र नागरिक को राज्य के नियमों अथवा वैधानिक निर्णय के प्रतिकूल किसी भी दिशा में बंदी, संपतिरहित, गैरकानूनी या निष्कासित नहीं घोषित किया जायगा। 40वीं धारा ने यह घोषणा की कि प्रत्येक व्यक्ति के नैयायिक अधिकारों पर किसी भी प्रकार का आधात नहीं होगा। कालांतर में जनस्वातंत्र्य, जूरी के द्वारा न्यायप्रशासन, कानून की द्यष्टि में सबके समानाधिकार तथा कानून की राज्य में सर्वश्रेष्ठता इत्यादि इसी चार्टर की प्रशाखाएँ सिद्ध हुई। चार्टर में किसी नवीनता का समावेश नहीं किया गया था। इसने केवल जॉन द्वारा अतिक्रमित रीतियों एवं प्रथाओं की पुनरावृति की।

प्रभाव एवं परिणाम[संपादित करें]

हस्ताक्षर के उपरांत चार्टर की प्रतियाँ प्रत्येक सामंत एवं पादरी के प्रदेश में वर्ष में दो बार उच्च स्वर में सार्वजनिक घोषणा के लिये भेजी गई। जॉन ने यद्यपि हस्ताक्षर किए, तथापि कार्यान्वित करने में आपति प्रकट की। उसने पोप से प्रार्थना की तथा एक विशेष पोपादेश के द्वारा चार्टर को अवैध विद्ध कराया। किराए के सैनिक एकत्रित कर बैरनों के विरूद्ध युद्ध घोषित किया। एक वर्ष तक गृहयुद्ध चला और 1216 ई0 में जॉन की मृत्यु हो जाने से यह युद्ध बंद हुआ। उसकी मृत्यु पर, चार्टर की अंर्तकालीन धाराओं को निकाल कर, चार्टर को पुनर्घोषित किया गया। 1225 ई0 में कुछ परिवर्तन के उपरांत चार्टर की फिर घोषणा हुई। एडवर्ड षष्टम् तक प्रत्येक माध्यमिक युग के शासक ने चार्टर की वैध बताया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]