मूलभूत भौतिक नियतांक

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भौतिकी में बहुत नियतांक ऐसे हैं, जिनके बारे में वैज्ञानिकों का ऐसा विश्वास है कि समय के साथ साथ उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। इन नियंताकों को भौतिकी के मौलिक नियतांक (Fundamental physical constants) कहते हैं। हमारी चुनी हुई मौलिक इकाइयों के अनुसार इनका मान जो कुछ है, सर्वदा वही रहेगा। ऐसे नियतांकों के कुछ उदाहरण ये हैं: प्रकाश का वेग, अर्थात् वह वेग जिससे प्रकाश की तरंगों का संचरण शून्याकाश (space) में होता है; इलेक्ट्रॉन का आवेश; सर्वव्यापी गुरूत्वाकर्षण का नियतांक, अर्थात् वह बल जिससे एक सेंटीमीटर की दूरी पर रखे एक ग्राम के दो पिंड एक दूसरे को आकर्षित करते हैं; ऊष्मागतिकी पैमाने पर बर्फ विंदु, अर्थात् बर्फ के पिघलने का ताप आदि। कुछ मूलभूत भौतिक नियतांक ऐसे भी हैं जिनका संख्यात्मक मान सभी मात्रक प्रणालियों (system of units) में समान होता है; इन्हें विमारहित भौतिक नियतांक (Dimensionless physical constant) कहते हैं।

परिचय[संपादित करें]

इन नियतांकों के मानों का विस्तृत विवेचन सबसे पहले बर्ज ने सन् 1929 में किया। सन् 1939 में डनिंगटन द्वारा किए गए अध्ययन के बाद से प्रति दूसरे अथवा तीसरे साल ऐसा अध्ययन किया जाता है। इन अध्ययनों में सबसे अच्छी बात यह हुई है कि इन नियतांकों का मान न केवल उत्तरोत्तर शुद्धता से ज्ञात किया जा सका है, अपितु यह भी हुआ है कि इनके नवीन मान पुराने निर्धारित मानों की त्रुटियों के अंतर्गत ही प्राप्त हुए हैं।

इन नियतांकों का ठीक मान ज्ञात करने का प्रयत्न बहुत से वैज्ञानिक काफी दिनों से कर रहे हैं। सन् 1929 के पहले प्रत्येक नियतांक को एक पृथक समस्या के रूप में ज्ञात किया जा रहा था। परंतु इन नियतांकों में आपस में संबंध होते हैं, जिनकी सहायता से इस बात की जाँच की जा सकती है कि इन नियतांकों के मानों में आपस में कोई असंगति दोष तो नहीं हैं। उदाहरणत:, प्रोटॉन का चुंबकीय आघूर्ण p प्रयोगों द्वारा मापा जा सकता है। यह चुम्बकीय आघूर्ण दूसरे नियतांकों द्वारा भी प्रकट किया जा सकता है, जिसका सूत्र है p = e h/p mp C इसमें e, h, mp तथा C, क्रमश: इलेक्ट्रॉन का आवेश, प्लांक नियतांक, प्रोटॉन की संहित एवं प्रकाश का वेग हैं। इन नियतांकों का मान भी प्रयोग द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। चूँकि मापने में थोड़ी बहुत त्रुटि की संभावना है, इसलिये यह हो सकता है कि सूत्र में e, h, mp तथा C का मान रखने पर जो संख्या प्राप्त हो, वह प्रयोग द्वारा ज्ञात किए गए p के मान के बराबर न हो। इसलिये इन सभी नियतांकों का मान इस तरह निश्चित किया जाना चाहिए कि यह अंतर कम से कम हो। यहाँ पर इस आपसी संबंध का केवल एक उदाहरण दिया गया है। इसी तरह इन नियतांकों में और भी संबंध होते हैं।

इन परस्पर संबंधित नियतांकों में सबसे बड़ा समूह परमाणवीय नियतांकों का है। कुछ को छोड़कर लगभग सभी नियतांक इन्हीं नियतांकों द्वारा प्रकट किए जा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण नियतांक, जो इनके द्वारा प्रकट नहीं किया जा सकता, गुरूत्वाकर्षण का नियतांक है। इन नियतांकों में से कुछ ऐसे मुख्य नियतांक चुने जाते हैं, जिनके द्वारा दूसरे नियतांकों को प्रकट किया जा सकता है। मान लीजिए ऐसे मुख्य नियतांकों की संख्या है। अब कुछ ऐसी मात्राएँ चुनी जाती हैं जिनका मान प्रयोग द्वारा बड़ी यथार्थता (accuracy) से मापा जा सकता है और जिन्हें इन चुने हुए मुख्य नियतांकों द्वारा प्रकट किया जा सकता है। ऐसी एक मात्रा का उदाहरण प्रोटॉन का चुंबकीय आघूर्ण हैं, जिसका जिक्र ऊपर किया गया है। इन चुनी हुई मात्राओं की संख्या कम से कम होनी चाहिए। पर यदि ऐसी चुनी हुई मात्राओं की संख्या "य" से अधिक हो, तो हमारे पास इन नियतांकों का मान प्राप्त करने के लिये आवश्यकता से अधिक समीकरण होंगे। ऐसी दशा में यदि हम किन्हीं "य" समीकरणों में इनको रखें, तो हम देखेंगे कि गणना द्वारा प्राप्त किए गए मानों एवं प्रयोग द्वारा प्राप्त किए गए मानों में अंतर है। इसलिये हमें इन नियतांकों का वह मान ज्ञात करना चाहिए कि इन चुनी हुई मात्राओं के "गणित मानों" एवं "प्रायोगिक मानों" में न्यूनतम असंगति हो। इसके लिये इन नियतांकों के मान का निर्धारण न्यूनतम-वर्ग-रीति (least square method) द्वारा किया जाता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

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