महिषासुर मर्दिनी

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दुर्गा मां की प्रतिमा

महिषासुर मर्दिनी हिन्दू देवी दुर्गा को कहा गया है। इन्होंने महिषासुर नामक राक्षस को मार कर देवताओं को इससे मुक्ति दिलाई थी। महामाया माँ जगदंबिका ने देवताओं को वरदान दिया था कि वो भीषण अनिष्टप्रद समय मे प्रकट होकर दैत्यों का नाश करेगी। माता नित्य होती हुई भी बार-बार प्रकट होती है। महिषासुर के वध के लिए माँ ने अपनी लीला का विस्तार करने के कारण सभी देवी देवताओं के तेज से प्रकट होकर दुष्ट महिषासुर का अंत किया था। महिषासुर के बाद कई और दानव पृथ्वी पर पैदा हुए जैसे चंड मुंड, धूम्रलोचन, शुंभ निशुंभ , इन सभी का वध करने के लिए माँ ने कौशिकी देवी का रूप धारण किया और हिमालय पर्वत पर दुष्टों का संहार किया इसलिए इनको निशुम्भशुम्भहननी भी कहा जाता है। माता ने अपनी भृकुटी से काली देवी को उत्पन्न किया। जिसने चंड मुंड का वध किया जिसके कारण चामुंडा के नाम से उन्हें जाना जाने लगा । इन सबके बाद हिरण्याक्ष वंश में रुरू का एक पुत्र हुआ जिसका नाम था दुर्गमासुर जिस के पापों से पृथ्वी पर 100 वर्षों का अकाल पड़ गया। तब सभी देवता मिलकर हिमालय पर्वत की शिवालिक पहाड़ियों में आए और मां जगदंबा की घोर तपस्या की। माता ने प्रसन्न होकर एक अद्भुत रूप धारण किया और सौं नेत्रों से जगत को देखा जिससे माता का शताक्षी नाम प्रसिद्ध हुआ। इन्हीं शताक्षी देवी ने अपने शरीर से शाक और सब्जियों को उत्पन्न किया और सभी प्राणियों का पालन- पोषण किया। तभी से इनका नाम शाकम्भरी देवी प्रसिद्ध हुआ। तब देवी ने देवताओं से पूछा अब मैं तुम्हारे ऊपर क्या उपकार करूं। तब सभी देवताओं ने विनती की कि दुर्गम द्वारा चुराए गए चारों वेद हमें मिल जाए। तब देवी ने घोर संग्राम किया और दुर्गम दैत्य का वध कर दिया जिनके कारण शाकम्भरी देवी दुर्गा देवी के नाम से भी प्रसिद्ध हो गई। इसके बाद हिमालय पर्वत पर तपस्वियों की रक्षा करने के लिए माँ ने एक भयानक रूप धारण किया और भीमा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। जब अरूणासुर ने तीनों लोगों को आतंकित किया तब माता ने असंख्य भ्रमरो का रूप धारण कर उस दैत्य का वध किया। तब इस रूप में देवी को भ्रामरी देवी कहा जाने लगा।

महिष मर्दन करते हुए देवी[संपादित करें]