महास्नानघर (मोहन जोदड़ो)

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मोहन जोदड़ो का महास्नानघर

महास्नानघर सिन्धु घाटी सभ्यता के प्राचीन खंडहर शहर मोहन जोदड़ो में स्थित एक प्रसिद्ध हौज़ है। वर्तमान समय में यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में आता है। यह मोहन जोदड़ो के उत्तरी भाग में स्थित है और एक कृत्रिम टीले के ऊपर बनाया गया था। यह हौज़ 11.88 m लम्बा और ७ मीटर चौड़ा है और इसका सब से अधिक भाग २.४३ मीटर की गहराई रखता है। इसमें उतरने के लिए एक सीढ़ी उत्तर में और एक दक्षिण की तरफ़ बनाई गई है। इसका निर्माण भट्टी से निकाली गई पक्की ईंटों से किया गया है और, पानी को चूने से रोकने के लिए, चिनाई के मसाले और ईंटों के ऊपर डामर (बिटुमन) की परत भी चढ़ाई गई थी।

इतिहासकारों को पक्का पता नहीं है कि महास्नानघर का क्या महत्त्व था, लेकिन इसको बनाने में लगी शक्ति और ख़र्चे को देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह मोहन जोदड़ो के निवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल था। [1]

अन्य भाषाओँ में[संपादित करें]

अंग्रेज़ी में मोहन जोदड़ो के महास्नानघर को "द ग्रेट बाथ़" (The Great Bath) कहते हैं। Isme tin air sidiya hai aur yeh dharmik aastha ka kendra hua krta thaa

अन्य विवरण[संपादित करें]

महास्नानघर में उतरने वाली दोनों सीढ़ियों के अंत में १ मीटर चौड़ा और ४० सेंटीमीटर ऊंचा चबूतरा है। अगर हौज़ पूरी भरी होती तो पानी की गहराई लगभग २ मीटर होती। इस सभ्यता के निवासियों के अस्ति-अवशेष देखकर अंदाज़ा लगाया गया है कि उनका औसत क़द लगभग १५० से॰मी॰ था, यानि इन चबूतरों पर खड़े हुए भी वे भरी हौज़ में पूरी तरह ग़ोता लगा सकते थे और संभव है तैर भी सकते हों। हौज़ की एक ओर नीचे ईंट में छेद के ज़रिये पानी बहार निकलने की जगह भी है जो शायद हौज़ को साफ़ करने के काम आती हो। जिस नाली में पानी निकलकर टीले से नीचे ले जाया जाता था उसका ढांचा टूटकर ग़ायब हो चुका है इसलिए ये पता नहीं कि पानी ऐसे ही छोड़ दिया जाता था या फिर उसे आगे कहीं ले जाया जाता था। संभव है कि यहाँ के निवासी जल का धार्मिक प्रयोग अपनी पूजा के लिए करते हों और महास्नानघर एक धार्मिक स्थल हो, लेकिन इसका सही अनुमान नहीं लगाया जा सका है। pr yeh saaf hai ki yha sirf anusthanik snan he hua krte the..[2]

महास्नानघर की खोज[संपादित करें]

समय के साथ मोहन जोदड़ो के शहरियों ने महास्नानघर को प्रयोग करना बंद कर दिया। वह रेत और मिटटी से भर गया और पूरी तरह दफ़न होकर नज़रों से ओझल हो गया। सिर्फ़ उसका टीला एक साधारण टीले की तरह दिखता था। सन् १९२६ और १९२६ में इतिहासकारों को अपनी मोहन जोदड़ो की खुदाई में यह मिला।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Aedeen Cremin. "Archaeologica". Frances Lincoln Ltd, 2007. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780711228221. ... The Great Bath did not play a functional role in hygiene, but the vast investment in its construction assures us its purpose was of utmost importance to the inhabitants of Mohenjo-Daro ...[मृत कड़ियाँ]
  2. Gregory L. Possehl. "The Indus civilization: a contemporary perspective". Rowman Altamira, 2002. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780759101722. मूल से 12 दिसंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2011.