महाराजगंज

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महाराजगंज
Mahrajganj
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महाराजगंज is located in उत्तर प्रदेश
महाराजगंज
महाराजगंज
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 27°08′53″N 83°33′47″E / 27.148°N 83.563°E / 27.148; 83.563निर्देशांक: 27°08′53″N 83°33′47″E / 27.148°N 83.563°E / 27.148; 83.563
देश भारत
प्रान्तउत्तर प्रदेश
ज़िलामहराजगंज ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल33,930
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

महाराजगंज (Mahrajganj) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महराजगंज जिले में स्थित एक नगर पंचायत है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2]

विवरण[संपादित करें]

महाराजगंज अनेक साधु-संतों व ऋषि-मुनियों की कर्मस्थली है। खूबसूरत वन, वनस्पतियाँ और धान के लहराते हुए खेत इस जगह की सुंदरता को और अधिक बढ़ाते हैं। अदरौना देवी का मंदिर, तपस्थली, प्राचीन शिवलिंग, शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, बनर सिंहागढ़ और सोनाड़ी देवी महाराजगंज के प्रमुख स्थलों में से है। यह भारत-नेपाल सीमा के समीप स्थित है। जनपद में प्रवाहित होने वाली नदियाँ नारायणी / बड़ी गण्डक,छोटी गण्डक,रोहिन,राप्ती,चन्दन,प्यास,घोंघी एवं डंडा नदी है| इसके अतिरिक्त खनुआ नाला, बघेला नाला, सोनिया नाला तथा महवा नाला प्रमुख है| पहले इस जगह को कारापथ के नाम से जाना जाता था। इसके उत्तर में नेपाल राष्ट्र, दक्षिण में जनपद गोरखपुर, पूर्व में कुशीनगर एवं पूर्व उत्तर में स्थित सोहगीबरवां से बिहार प्रदेश,पश्चिम में सिद्धार्थ नगर जिले की सीमा लगती है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण स्थल है।

प्रमुख आकर्षण[संपादित करें]

अदरौना देवी का मंदिर[संपादित करें]

अरदौना में स्थित लेहड़ा देवी का मंदिर महाराजगंज के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से है। यह जगह फरेन्दा (आनन्दनगर) तहसील मुख्यालय से पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित बृजमनगंज मार्ग पर स्थित है। पुराने समय में यह स्थान आर्द्रवन नाम के सघन जंगल से घिरा हुआ था। पवह नदी के तट पर स्थित माँ वनदेवी दुर्गा का पवित्र मंदिर स्थित है। माना जाता है कि अरदौना देवी के मन्दिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास काल में स्वयं अर्जुन ने की थी। पहले समय में इस मंदिर को अरदौना देवी थान के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इस मंदिर का नाम लेहड़ा देवी मंदिर रखा दिया गया। वर्तमान समय में यह मंदिर लेहड़ा देवी मंदिर के नाम से ही जाना जाता है। अज्ञातवास काल के दौरान अर्जुन ने इस जगह पर वनदेवी की पूजा की थी। अर्जुन की पूजा से प्रसन्न होकर वनदेवी माँ भगवती दुर्गा ने उसे अमोध शक्तियाँ प्रदान की थीं।

माँ भगवती के आदेशानुसार अर्जुन ने इस जगह पर शक्ति पीठ की स्थापना की थी। बाद में यहीं अदरौना देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोगों का मानना है एक बार कोई युवती नाव से वह नदी पार कर रही थी। तब नाविकों ने उस युवती को बुरी नीयत से स्पर्श करना चाहा था। उस वक्त वनदेवी माँ ने स्वयं प्रकट होकर उस युवती की रक्षा की थी और नाविकों को नाव के साथ ही उसी समय जल समाधि दे दी थी।

तपस्थली[संपादित करें]

अरदौना मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन तपस्थली है। इस जगह पर कई साधु-संतों की समाधियाँ हैं। इन्हीं साधु योगियों में एक प्रसिद्ध बाबा वंशीधर थे। बाबा वंशीधर एक सिद्ध योगी के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। अपने योग बल के द्वारा उन्होंने कई चमत्कार और लोक-कल्याण के कार्य किये थे। बाबा की शक्ति और भक्ति से कई वन्य जीव जन्तु उनकी आज्ञा को मानने के लिए तैयार हो जाते थे। माना जाता है कि एक बार बाबा वंशीधर ने अपनी शक्तियों द्वारा एक शेर और मगरमच्छ को शाकाहारी जीव बना दिया था।

प्राचीन शिवलिंग: जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी की कटहरा गाँव स्थित है। इस गाँव के समीप ही दो टीले स्थित हैं। इन टीलों पर दो प्राचीन शिवलिंग स्थित है। पहला शिवलिंग मंदिर के भीतर स्थित है वहीं दूसरा शिवलिंग खुले आसमान के नीचे स्थित है। माना जाता है कि इस जगह का सम्बन्ध शिव और बौद्ध मतावलम्बियों से रहा है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। काफी संख्या में लोग इस मेले में सम्मिलित होते हैं।

बनर सिंहागढ़[संपादित करें]

फरन्दा सोनौली राजमार्ग से होकर, राजपुर-मुड़ली होते हुए बनर सिंहागढ़ आसानी से पहुँचा जा सकता है। लगभग 35 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैले, इस जगह पर कई टीलें, स्तूप और तालाब आदि स्थित है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक प्राचीन शिवलिंग और एक चतुरभुर्जी मूर्ति भी स्थित है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ लोग इसे वीरगाथा काव्य के नायक आल्हा-उदल के परमहितैषी, सैयदबरनस के किले के रूप में भी मानते हैं। कई पुरातत्वविद् इसे देवदह भी मानते हैं।

सोनाड़ी देवी[संपादित करें]

सोनाड़ी देवी चौक वन क्षेत्र पर स्थित है। इस जगह पर एक स्तूपाकार ऊँचा टीला है, जिसकी ऊँचाई 30-35 फीट है। इस जगह के आस-पास कई छोटे-बड़े सरोवर भी स्थित है। माना जाता है इस जगह पर एक विशाल वट वृक्ष स्थित है। यह वृक्ष हजारों वर्ष पुराना है। इस पेड़ की शाखाएं इतनी अधिक लम्बी है कि अब वह वृक्ष बन चुकी हैं। यह वृक्ष एक अद्भुत दृश्य दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त इस जगह पर गोरखपंथियों का एक मठ भी स्थित है।

शिव मंदिर[संपादित करें]

महाराजगंज के इटहिया स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर स्थानीय लोगों के सहयोग से मेले का आयोजन किया जाता है। यह निचलौल कस्बे से लगभग दस कि॰मी॰ उत्तर दिशा मे स्थित है।

विष्णु मंदिर[संपादित करें]

महदेइया स्थित विष्णु मंदिर यहाँ के पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में स्थित भगवान की मूर्ति काफी प्राचीन है। विष्णु मंदिर के परिसर में एक तालाब स्थित है। माना जाता है कि इस तालाब से अन्य अनेक महत्वपूर्ण मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं।

सांई मंदिर[संपादित करें]

घुघली में निर्मित सांई मन्दिर जनपद का एकमात्र सांई मन्दिर है तथा श्रद्धालुओं के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति, रामनवमी तथा दीपावली को यहाँ धूमधाम से मनाया जाता है।

सोहगीबरवा वन्य जीव अभयारण्य[संपादित करें]

आनन्दनगर तहसील तथा अन्य उपमंडलों में फैला सोहगीवरवा जंगल अपने वन्य जीव अभयारण्य के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ चीतल, अजगर तथा कुछ प्रवासी पक्षियों की बहुतायत है तथा तेंदुओं के लिये भी यह अभयारण्य जाना जाता है। सोहगीबरवा के अतिरिक्त बिहार सीमा पर स्थित वाल्मीकिनगर के जंगल हाथियों तथा बाघों की भी शरणस्थली हैं।

आवागमन[संपादित करें]

वायु मार्ग

सबसे निकटतम हवाई अड्डा गोरखपुर विमानक्षेत्र है। साथ ही गोरखपुर में स्थित सैनिक हवाई अड्डे से भी सप्ताह में दो उड़ानें जाती हैं, इसके अतिरिक्त निकटवर्ती कुशीनगर (पडरौना) में एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा निर्माणाधीन है।

रेल मार्ग

रेल मार्ग द्वारा महाराजगंज आसानी से पहुंचा जा सकता है, हालाँकि जिला मुख्यालय तक रेल सेवा उपलब्ध नहीं है, परन्तु गोरखपुर जंक्शन से ब्रॉड गेज आनन्दनगर, नौतनवा आदि के लिये उपलब्ध है।

सड़क मार्ग

महाराजगंज सड़कमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। साथ ही सोनौली राजमार्ग के द्वारा यह भारत और नेपाल को जोड़ता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

नरायनपुर माँ काली जी का स्थान बहुत प्रसिद्ध है यहां पर वार्षिक मेला लगता हैं लोग दूर दूर से मेला देखने आते हैं और नरायनपुर गांव के नहर के बगल में शिव मंदिर हैं जो आकर्षक का केंद्र बना हैं

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975