मन्नारशाला

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मन्नारसला मंदिर[संपादित करें]

मन्नारसला श्री नागराज मंदिर नाग देवताओं (नागराज) के श्रद्धालुओं के लिए तीर्थ यात्रा का एक बहुत प्राचीन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्ञात केंद्र है। यह केरल में नाग की पूजा करनेवाले सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इस अतिप्राचीन मंदिर का उपवन भारी पेड ऑर घूमा टेढा लताओं से भरा है जो इसे रहस्यमय ऑर जादु परिवेश देता है।

मंदिर की रास्ता भर ३०००० से अधिक सापों की चित्र दर्शया गया है। उर्वरता कि मांग में दिन भर बहुत सी महिलाऑँ यहाँ पूजा करने केलिए आते है ऑर उपलब्दी के बाद यहाँ फिर से आकर पूजा करते हैं। एक विशेष हल्दी से बनाया हुआ साँपों का शिल्प लाते है ऑर इसे प्रसाद के रूप में लाकर देता है, कहता है की इससे बच्चे के रोगनाशक शक्ति बढती है।

मन्नारसला मंदिर नागा की पूजा केलिए बहुत प्रसिद्ध है। यह ३२ कि.मी दक्षिण में अलापुज़हा, केरल हरिपाड के पास स्थित है। इस मंदिर में १६ एकड. ज़मीन घना जंगल है। यहँ की मुख्य मूर्तीयों नागराज ऑर उनकी पत्नी सर्पयक्षी है।। नाग देवताऑं की पूजा का सबसे मसत्वपूर्ण स्थानों में से एक है मन्नारसला मंदिर जिसकी उत्पत्ती भगवान परशुराम के साथ जुडा हुआ है। मंदिर कि उद्गम केरल का उद्धार से जुडा हुआ है। भगवान परशुराम क्षत्रिऑँ की हत्या के पाप से खुद को रिहा करने के आदेश में पवित्र ऋषि का दरवाज़ा खटखटाया उन्होंने कहा की वह ब्राहमण के लिए अपनी भूमि दान में दे इसके दॉरान भूमि प्राप्त करने के लिए शिवजी के आदेश पर उनका दिया हुआ कुल्हाडि फेक दिया। उसके दॉरान जो भूमि समुद्र से पुनर्निर्मित हुआ उसे ब्राहमणों को उपहार के रूप दे दिया। इस भूमि केरल के रूप में जाना जाता है। परिणामस्वरूप लोगों ने इस जगह को छोडना शुरू किया क्योंकि मिट्टि की लवणता रहने योग्य नहीं था। भारगवर्मा को इस बात पर दुख हुआ। भगवान शिवजी के सालाह के अनुसार नागराज कि पूजा करने के लिए वह नागों का ज्वलंत जहर मिट्टि में फैला दिया। परशुराम नागराज को खुश करने के लिए सुनसान जंगल की खोज में अपने साथियाँ के साथ निकल पडे। उनहोंने कहा की केरल के दक्षिणी भाग में समुंदर के किनारा के पास एक उपयुक्त स्थान है अपने पोषित सपनोम साकार कारने के लिए एक उचित स्थान मिलने पर महान ऋषि तपस्या के प्रदर्शन केलिए एक तीर्थस्थल का निरमान किया। खुश हुए नागराज उसकी इच्छा के अनुसार परशुराम के समक्ष पेश हुआ। परशुराम नागराज के कमल चरणों में प्रणम किया ऑर अपने उदेश्य का एहसास कि नागराज बहुत खुश हुई ऑर क्रुर नागों ज्वलंत कालकुडं जहर प्रसार के साथ केरल की भूमी रहने केलिए योग्य हो गया परशुराम ने फिर उनसे प्रार्थना के अनुसार नागराज इस भूमी को हमेशा केलिए अनंत उपस्थित के साथ रहने का आशीर्वाद दिया।

परशुराम वैदिक संस्कार के अनुसार स्थापित मंदारपेड अब मन्नारसला के रूप में जाना जाता है। यहँ स्थापित देवता अनंत, भगवान विष्णु को ऑर वासुकि भगवान शिवजी को प्रतिनिधित्व करता है। सर्पयक्षि, नागयक्षि नाग देवताऑ के साथ उचित स्थानों में अवरोचित किया गया है। पुराने समय में हर हिन्दु परिवार में एक नागिन उपवन हुआ करता था ऑर परिवार के हर सदस्य यहँ पूजा करता था। इस उपवनों के होने के कारण पर्यावरण प्रदूषण भी कम पाया जाता था।

इतिहास[संपादित करें]

कई पीढियों के बाद वसुदेव ऑर श्रीदेवी की परिवार बेऑलाद के दुःख में गिर पडा। उन्होंने अपनी दुःख दूरी केलिए नागराज की पूजा करने लगा। इसी समय जंगल में अचानक आग बढ गई। बहुत सी नाग उस आग में उत्पीडित हुआ ऑर नागों बडी मुशकिल से अपने आप को आग से बचाने केलिए गड्ढों में छिपने लगा। वसुदेव ऑर श्रीदेवी उस नागों की देख-भाल की उनके घाव पर शहद ऑर तेल की साथ चंद्न का मरहम लगाया। उसके बाद बरगाद के पेड के पैर में डाल दिया। वैदिक मंत्रों का जब निविदा नारियल के साथ सर्प देवताओं की पेशकश की ऑर पूरि स्वास्थ्य केलिए नागों की पूजा किया। सर्वव्यापी नागराज उनसे बहुत प्रसन्न हुए ऑर उनके सामने प्रकट होकर आशिर्वाद दिया।

उसके बाद यह परिवार मंदिर की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी ली। उनकी प्रार्थना के तॉर पर उनको दो बेटों की प्राप्ती हुई। उन्में से एक साँप था। इस साँप का जन्म कुंभ मांह की अश्लेष नक्षत्र को हुआ था। इसने नागराज से कहा की यहँ रहनेवाले सब खुशी के साथ रहते हैं। हालांकि वे मंदिर के ऑपचारिक पूजा प्रदर्शन करने केलिए परिवार के ही ज्येष्ठ महिला सदस्य को नियुक्त किया हालाकी उनकी माँ इस परिवार की ज्येष्ठ महिला थी। उन्हें सब तरह की रस्में सिखाया गया। इसी तरह उन्होंने नाग पूजा की, यहाँ से हर बार परिवार की ज्येष्ठ महिला ही पूजा करती आ रही है। एक बार साँप बेटे ने अंधेरे कमरे में जाकर बस गया ऑर कहा की "एक दिन वो भी सिर्फ अम्मा इस कमरे में प्रवेश करके पूजा पाड कर सकता है। उनके अलावा कोई भी इस कमरे में प्रवेश नहीं कर सकता"। अम्मा सामान्य रूप में दूध का प्याला रख देता ऑर दरवाज़ा बंद कर देता, अकले दिन प्याला खाली पाया जाता है। लोग इस नाग को दादाजी नाम से पुकारता था ऑर सब लोग बडे इज्जत से इन्हें देखता था। साँप के साथ पैदा हुए दूसरे लड्के ने मन्नारसला में नागयक्षी ऑर नागराजा केलिए दो मंदिरों की स्थापना की। चरित्रकारों का कहना है की मंदिर की साँप ने एक लड्की की विवाह कराने केलिए दहेज देखर एक ब्राह्म्ण परिवार में शादी करवा दिया। उस साँप ने वहाँ के एक कमरे में जाकर बैठ गया ऑर वहाँ पर मन्नारसला जैसा मंदिर बना दिया।

मन्नारसला मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण भेट नूरुम पालुम है। यह चावल का आटा, हल्दी ऑर दूध का मिऋण है। यह रात में मंदिर के बाहर रखा जाता है ऑर सुबह इस्को कीचड में डालता है। इस् नूरुम पालुम का एक हिस्सा दादाजी को भी दिया जाता है, सुबह होने पर इस सामग्री गायब हो जाता है। इस मंदिर की नाग किसी को नहीं काटता है, ऑर काटता है तो भी उस व्यक्ति को कुछ नहीं होता। इस मंदिर से आज तक कुछ भी चोरी नहीं हुआ है। यह मानना है की इस नाग ही यहाँ के संपत्ती की रक्षा करते हैं। यहाँ के त्योहार के समय परिवार की सबसे पुरानी महिला सदस्य नागराज की मूर्ति का वहन करती है। जिसे बडी धूमधाम ऑर उल्लास के साथ आयोजित किया जाता है। इस में प्रसाद के रूप में सोना, चांदी ऑर तांबे के बने सिक्के ऑर साँप के पुतले भी शामिल है। इस्के साथ ही साथ सभी प्रकार के अनाज, काली मिर्च। निविदा नारियल, केले खरबूज ऑर चदंन भी प्रसदा के तॉर पर देता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

https://web.archive.org/web/20140223030705/http://wikimapia.org/657864/Mannarasala-Sri-Nagaraja-Temple https://web.archive.org/web/20150320162918/http://en.wikipedia.org/wiki/Mannarasala_Temple