मकर संक्रान्ति

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मकर संक्रांति (संक्रान्ति)

प्रयागराज में मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के अवसर पर माघ-मेले का एक दृश्य
आधिकारिक नाम खिचड़ी, पोंगल
अनुयायी हिन्दू,नेपाली भारतीय, प्रवासी भारतीय
प्रकार हिन्दू
तिथि पौष मास में सूर्य के मकर राशि में आने पर

मकर संक्रान्ति (मकर संक्रांति) भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में भिन्न रूपों में मनाया जाता है। पौष मास में जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में जाना जाता हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व 'तिला संक्रांत' नाम से भी प्रसिद्ध है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर (जाता हुआ) होता है। इसी कारण इस पर्व को 'उतरायण' (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है। वैज्ञानिक तौर पर इसका मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत उत्तर से दक्षिण की ओर वलन कर लेना होता है। और यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।

== मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के विविध रूप ==साँचा:Webarchive ==========

मकर संक्रान्ति के अवसर पर तिलगुड़ खाने-खिलाने की परम्परा है।

यह भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रांतों (प्रान्तों) में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।

विभिन्न नाम भारत में[संपादित करें]

उत्तर प्रदेश ,& खिचड़ी

विभिन्न नाम भारत के बाहर[संपादित करें]

नेपाल में मकर-संक्रान्ति[संपादित करें]

माघे-संक्रान्ति के अवसर पर नृत्य करती हुईं मागर स्त्रियां

नेपाल के सभी प्रांतों (प्रान्तों) में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रांति (संक्रान्ति) के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।[2]

नेपाल में मकर संक्रांति (संक्रान्ति) को माघे-संक्रांति (माघे-संक्रान्ति), सूर्योत्तरायण और थारू समुदाय में 'माघी' कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिये जाते हैं। तीर्थस्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।

भारत में मकर संक्रांति (संक्रान्ति)[संपादित करें]

मकर संक्रान्ति के अवसर पर आन्ध्र प्रदेश और तेलंगण राज्यों में विशेष 'भोजनम्' का आस्वादन किया जाता है।
मकर संक्क्रान्ति के अवसर पर मैसुरु में एकगाय को अलंकृत किया गया है।

संपूर्ण (सम्पूर्ण) भारत में मकर संक्रांति (संक्रान्ति) विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रांतों (प्रान्तों) में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं।

जम्मू संभाग[संपादित करें]

जम्मू में यह पर्व उत्तरैन' और 'माघी संगरांद' के नाम से विख्यात है।[3] [4]कुछ लोग इसे उत्रैण, अत्रैण' अथवा 'अत्रणी'[5] के नाम से भी जानते है। इससे एक दिन पूर्व लोहड़ी का पर्व भी मनाया जाता है, जो कि पौष मास के अन्त का प्रतीक है।[6] मकर संक्रान्ति के दिन माघ मास का आरंभ माना जाता है, इसलिए इसको 'माघी संगरांद' भी कहा जाता है।

डोगरा घरानों में इस दिन माँह की दाल की खिचड़ी का मन्सना (दान) किया जाता है। इसके उपरांत माँह की दाल की खिचड़ी को खाया जाता है। इसलिए इसको 'खिचड़ी वाला पर्व' भी कहा जाता है।[7]

जम्मू में इस दिन 'बावा अम्बो' जी का भी जन्मदिवस मनाया जाता है।[8] उधमपुर की देविका नदी के तट पर, हीरानगर के धगवाल में और जम्मू के अन्य पवित्र स्थलों पर जैसे कि पुरमण्डल और उत्तरबैह्नी पर इस दिन मेले लगते है।[9] [10]भद्रवाह के वासुकी मन्दिर की प्रतिमा को आज के दिन घृत से ढका जाता है।[11][12]

उत्तर प्रदेश[संपादित करें]

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। प्रयागराज में गंगा, यमुनासरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही प्रयागराज में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है।[13] एक समय था जब उत्तर भारत में १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे परन्तु अब समय के साथ लोग बाग बदल गये हैं। परन्तु फिर भी ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है।बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।[14]

बिहार[संपादित करें]

बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।[15] महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। इस दिन पूरे बिहारवासी दिन में दही चुरा खाकर और रात के समय उरद दाल और चावल की खिचड़ी बनाकर यह पर्व को मनाते हैं। इस दिन लाई या ढोंढा ( चुरा या मुरमुरे का लड्डू)का भी बहुत महत्व माना जाता है ।

बंगाल[संपादित करें]

बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।"

तमिलनाडु[संपादित करें]

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

असम[संपादित करें]

असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।[16]

राजस्थान[संपादित करें]

राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।

उत्तराखंड में मकर संक्रांति[संपादित करें]

उत्तराखंड जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि मकर संक्रांति देश के कई राज्यों में अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं और पर्व के मनाए जाने का तौर तरीका भी काफी अलग होता है। देवभूमि उत्तराखंड में इस मुख्य पर्व मकर सक्रांति को घुघुतिया त्योहार के नाम से जाना जाता है। आज के दिन उत्तराखंड के सभी लोग अपने दिन की शुरुआत सुबह नहाने से करते हैं। घर की महिलाओं द्वारा रसवाडें को मोल मिट्टी की सहायता से लिपाई पुताई की जाती है। उसके बाद सभी लोगों द्वारा अपने घर के देवता स्वरूप देवी देवताओं की पूजा की जाती है। और दिन के भोजन में घुघुतिया बनाए जाते हैं। यह घुघुतिया आटे की सहायता से बनाए जाते हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार की आकृतियों के माध्यम से घुघुतिया तैयार किए जाते हैं। इन सभी घुघुतिया को परिवार के छोटे बच्चों द्वारा कागा (कौवा) अपने हाथ के माध्यम से खिलाया जाता है। इसी तरह से यह पर्व अपने ऐतिहासिक पहलू को संजोता है।

मकर संक्रान्ति का महत्व[संपादित करें]

पोंगल के लिए पारम्परिक परिधान में एक तमिल बालिका
इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता 
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। हमारे पवित्र वेद, भागवत गीता जी तथा पूर्ण परमात्मा का संविधान यह कहता है कि यदि हम पूर्ण संत से नाम दीक्षा लेकर एक पूर्ण परमात्मा की भक्ति करें तो वह इस धरती को स्वर्ग बना देगा और आप जी की और इच्छा को पूरा करें.[17]

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व[संपादित करें]

मकर संक्रान्ति के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, और विशेषकर गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। । मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।[18]

मकर संक्रान्ति और नये पैमाने[संपादित करें]

अन्य त्योहारों की तरह लोग अब इस त्यौहार पर भी छोटे-छोटे मोबाइल-सन्देश एक दूसरे को भेजते हैं।[19] इसके अलावा सुन्दर व आकर्षक बधाई-कार्ड भेजकर इस परम्परागत पर्व को और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Ḍogarī-Hindī-śabdakośa. Je. eṇḍa Ke. Akaiḍamī ôpha Ārṭa, Kalcara eṇḍa Laiṅgvejiza. 2000.
  2. ": मकर संक्रान्ति निबंध". मूल से 23 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जनवरी 2014.
  3. Ḍogarī-Hindī-śabdakośa. Je. eṇḍa Ke. Akaiḍamī ôpha Ārṭa, Kalcara eṇḍa Laiṅgvejiza. 2000.
  4. Śāstrī, Rāmanātha; Mohana, Madana; Langeh, Baldev Singh (1970). (Rajata jayantī abhinandana grantha). Ḍogarī Saṃsthā.
  5. Ḍuggara dā sāṃskr̥taka itihāsa. Je. eṇḍa Ke. Akaiḍamī ôpha Ārṭa, Kalcara, eṇḍa Laiṅgvejiza. 1985.
  6. Ḍogarī. Bhāratīya Bhāshā Saṃsthāna, Mānava Saṃsādhana Vikāsa Mantrālaya, Mādhyamika aura Uccatara Śikshā Vibhāga, Bhārata Sarakāra evaṃ Ḍogarī Saṃsthā. 2003.
  7. Ḍuggara dā sāṃskr̥taka itihāsa. Je. eṇḍa Ke. Akaiḍamī ôpha Ārṭa, Kalcara, eṇḍa Laiṅgvejiza. 1985.
  8. University Review: Journal of the University of Jammu. The University. 1996.
  9. Śāstrī, Bī Ke (1980). Duggara ca Devika Nadi da samskrtaka mahatava : On the importance and significance of the Devika River, Jammu region, on the sociocultural life of the people. Ajaya Prakasana.
  10. Nirmohī, Śiva (1988). Ḍuggara kī saṃskr̥ti. Narendra Pabliśiṅga Hāusa.
  11. Nirmohī, Śiva (1988). Ḍuggara kī saṃskr̥ti. Narendra Pabliśiṅga Hāusa.
  12. Jasta, Hariram (1982). Bhārata meṃ Nāgapūjā aura paramparā. Sanmārga Prakāśana.
  13. नवभारतटाइम्स.कॉम (2021-01-13). "Page 3 : Makar Sankranti: मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग भागों में कैसे मनाते हैं, जानें खास बातें..." नवभारत टाइम्स. अभिगमन तिथि 2022-01-13.
  14. Bharatvarsh, TV9 (2022-01-12). "Makar Sankranti 2022 : मकर संक्रांति को क्यों कहते हैं 'खिचड़ी पर्व', जानें इस दिन खिचड़ी और तिल के दान का महत्व". TV9 Bharatvarsh. अभिगमन तिथि 2022-01-13.
  15. ": खिचड़ी मकर संक्रांति पर्व". मूल से 23 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 जनवरी 2014.
  16. "Magh Bihu 2021 [Hindi]: माघ बिहू पर जानिए कैसे होगी वास्तविक सुख की प्राप्ति?". S A NEWS (अंग्रेज़ी में). 2021-01-14. अभिगमन तिथि 2021-01-14.
  17. "Makar Sankranti: मकर संक्रांति पर जानिए कैसे आएंगी जीवन में खुशियां?". SA News Channel (अंग्रेज़ी में). 2022-01-13. अभिगमन तिथि 2022-01-13.
  18. Desk, India com Hindi News. "Makar Sankranti 2021: मकर संक्रांति के दिन क्यों खाई जाती है खिचड़ी, यहां जानें इसके पीछे की वजह". India News, Breaking News | India.com. अभिगमन तिथि 2021-01-14.
  19. : मकर संक्रांति मोबाईल सन्देश

इन्हें भी देंखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]