भूगोल की रूपरेखा

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ज्ञान के फलक का तात्पर्य एक ऐसे त्रिविमीय विन्यास है जिसे पूर्णरूपेण समझने के लिए हमें तीन दृष्टि बिन्दुओं से निरीक्षण करना चाहिए। इनमें से किसी भी एक बिन्दु वाला निरीक्षण एक पक्षीय ही होगा और वह संपूर्ण को प्रदर्शित नहीं करेगा। एक बिन्दु से हम सदृश वस्तुओं के संबंध देखते हैं। दूसरे से काल के संदर्भ में उसके विकास का और तीसरे से क्षेत्रीय संदर्भ में उनके क्रम और वर्गीकरण का निरीक्षण करते हैं। इस प्रकार प्रथम वर्ग के अंतर्गत वर्गीकृत विज्ञान (classified science), द्वितीय वर्ग में ऐतिहासिक विज्ञान (historial sciences), और तृतीय वर्ग में क्षेत्रीय या स्थान-संबंधी विज्ञान(spatial sciences) आते हैं।

वर्गीकृत विज्ञान पदार्थो या तत्वों की व्याख्या करते हैं अतः इन्हें पदार्थ विज्ञान (material science) भी कहा जाता है। ऐतिहासिक विज्ञान काल (time) के संदर्भ में तत्वों या घटनाओं के विकासक्रम का अध्ययन करते हैं। क्षेत्रीय विज्ञान तत्वों या घटनाओं का विश्लेषण स्थान या क्षेत्र के संदर्भ में करते हैं। पदार्थ विज्ञानों के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ‘क्यों ’ , ‘क्या’ और ‘कैसे’ है। ऐतिहासिक विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कब’ है तथा क्षेत्रीय विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कहां ’ है।

स्थानिक विज्ञानों (Spatial sciences) को दो प्रधान वर्गों में विभक्त किया जाता है-

  • (1) खगोल या अंतरिक्ष विज्ञान (Astronomy) जिसके अंतर्गत आकाशीय पिण्डों का अध्ययन किया जाता है,
  • (2) भूगोल (Geography) जिसमें पृथ्वी के तल पर तथ्यों तथा घटनाओं के वितरण का अध्ययन से है। इस प्रकार हम पाते हैं कि भूगोल एक भूविस्तारीय विज्ञान (Chorological science) है जो ‘कहां ’ की खोज पृथ्वी के तल पर करता है। 'पृथ्वी के तल' का अभिप्राय केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह से ही नहीं है बल्कि इसके अंतर्गत भूतल से संलग्न उस स्थल, जल तथा वायुमण्डल को भी समाहित किया जाता है जहां तक किसी माध्यम से मनुष्य की पहुंच है। इस प्रकार भूतल के अंतर्गत तीन प्रकार के क्षेत्र सम्मिलित है -
  • (1) पृथ्वी की ऊपरी सतह तथा उसके नीचे की पतली भूपर्पटी (Easth's crust) ,
  • (2) भूतल के ऊपर स्थित निचला वायुमण्डल, और
  • (3) पृथ्वी पर स्थित जलीय भाग। इन तीनों क्षेत्रों को क्रमशः स्थल मंडल (Lithosphere) , वायुमण्डल (Atmosphere) और जल मंडल (Hydrosphere) के नाम से जाना जाता है।

भूगोल की प्रकृति[संपादित करें]

यह लगभग सर्वमान्य है कि भूगोल एक विज्ञान है जिसका संबंध प्राकृतिक विज्ञानों और समाजिक विज्ञानों दोनों से हैं।

  • (1) भूगोल भूतल का अध्ययन है : भूगोल ज्ञान की एक विशिष्ट विधा है जो पृथ्वी के तल की विशेषताओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है। स्थान या क्षेत्र (place or space) भूगोल की आत्मा है जिसके संदर्भ में ही कोई भौगोलिक अध्ययन किया जाता है। भूतल या पृथ्वी के तल के वैज्ञानिक अध्ययन पर भूगोल का एकाधिकार है।
  • (2) भूगोल अंतर्सम्बन्धों का अध्ययन है : भूगोल संपूर्ण पृथ्वी तल या उसके विभिन्न भागों में विद्यमान विभिन्न प्राकृतिक तथा मानवीय तत्वों के मध्य पाये जाने पारस्परिक संबंधों की व्याख्या करता है। आधुनिक भूगोल केवल भूविस्तारीय विज्ञान ही नहीं बल्कि अंतर्संबंधों का विज्ञान बन गया है। संसार के सभी भौगोलिक तत्व चाहे वे भौतिक हों या मानवीय, जड़ हों या चेतन एक-दूसरे से किसी न किसी रूप में संबंधित हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। मनुष्य प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों प्रकार के पर्यावरणीय तत्वों से घनिष्ट रूप से संबंधित होता हैं। मनुष्य एक प्रमुख भौगोलिक कारक है जो पर्यावरणीय तत्वों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता किन्तु वह अपने कौशल और विवेक से अपनी आवश्यकता एवं अभिरूचि के अनुसार उनमें परिवर्तन भी करता है जिससे सांस्कृतिक भूदृश्य (Cultural Landscape) का निर्माण होता है। इस प्रकार मनुष्य और प्रकृति की पारस्परिक अंतर्क्रिया के परिणामस्वरूप नये-नये सांस्कृतिक तत्व उत्पन्न होते हैं जिनकी व्याख्या करना भूगोल का परम उद्देश्य है।
  • (3) भूगोल एक अंतर्विषयी (interdisciplinary) विज्ञान है : भौगोलिक अध्ययन में क्रमबद्ध विधि और प्रादेशिक विधि अपनायी जाती है जबकि दोनों विधियों एक-दूसरे से सन्नहित हैं। स्थानिक वितरण का विश्लेषण करते हुए भूगोल अनेक प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों से सहायता प्राप्त करना है और अन्य विज्ञान भी क्षेत्र संबंधी आवश्यक सामग्री तथा संकल्पनाओं को भूगोल से प्राप्त करते हैं। इस प्रकार भूगोल विभिन्न्न विज्ञानों को परस्पर सम्बद्ध करने में एक संयोजक का कार्य करता है।
  • (4) भूगोल एक अनुप्रयुक्त विज्ञान (applied science) है : भूगोल के अन्तर्गत किसी देश, प्रदेश क्षेत्र के प्राकृतिक, आर्थिक तथा मानवीय संसाधनों का सर्वेक्षण, पर्यवेक्षण तथा मूल्यांकन किया जाता है। किसी प्रदेश की भूमि के क्षेत्रफल, कृषि योग्य भूमि, भूगर्भिक जल, मिट्टी, जलवायु, जलशक्ति, खनिज भंडार, वन संपदा, पशु सम्पदा, औद्योगिक उत्पादन, कृषि उत्पादन, व्यापार, यातायात, जनसंख्या आदि संसाधनों का सर्वेक्षण और मूल्यांकन भूगोल में किया जाता है। इस प्रकार संसाधनों से सम्पन्न तथा विपन्न क्षेत्रों का पता लगाया जाता है। इसी प्रकार विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों तथा नगरीय केन्द्रों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओ का भी पता लगाया जाता है और विद्यमान संसाधन, तकनीक, आवश्यकता आदि को ध्यान में रखते हुए विकास की योजनाएं बनायी जाती हैं। इस प्रकार प्रादेशिक नियोजन में भूगोलवेत्ता महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। वर्तमान समय में भूगोलवेत्ता सैद्धान्तिक पक्षों की अपेक्षा ज्वलंत समस्याओं के निराकरण हेतु व्यावहारिक पक्षों पर अधिक ध्यान देता है। इस प्रकार भूगोल की उपयोगिता एक अनुप्रयुक्त या व्यावहारिक भूगोल के रूप में बढ़ रही है और भूगोल की मुख्य विषय-वस्तु व्यावहारिक समस्याओं के आकलन, समाकलन (integration) और निराकरण (solution) से संबन्धित हो गयी है।

भूगोल की शाखाएँ[संपादित करें]

भौतिक भूगोल[संपादित करें]

भौतिक भूगोल, भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें पृथ्वी के भौतिक तथ्यों का भौगोलिक अध्ययन किया जाता है। भौतिक भूगोल में स्थलमंडल (Lithosphere) , वायुमण्डल (Atmosphere) और जलमंडल (Hydrosphere) के भौतिक तथ्यों का अध्ययन सम्मिलित होता है-

  • (1) भूआकृति विज्ञान (Gemophology) : यह भौतिक भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें स्थलमंडल के भौतिक तत्वों का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत भूआकृतियों (स्थल रूपो) की उत्पत्ति एवं विकास (अनाच्छादन, अपक्षय, अपरदन तथा निक्षेपण के प्रक्रमों द्वारा निर्मित स्थल रूपों) का विश्लेषण किया जाता है।
  • (2) जलवायु विज्ञान (Climatology) : इसके अन्तर्गत जलवायविक तत्वों, उनकी उत्पत्ति एवं संघटन तथा प्राकृतिक पर्यावरण पर उनके प्रभावों और उससे सम्बन्धों का अध्ययन सम्मिलित होता है। इसकी दो उपशाखाएं हैं-
  • (क) भौतिक जलवायु विज्ञान (Physical Climatology) जिसमें मौसम और जलवायु के तथ्वों तथा प्रक्रमों से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है, और
  • (ख) प्रादेशिक जलवायु विज्ञान (Regional Climatology) के अन्तर्गत विश्व के विशिष्ट प्रदेशों की जलवायु का अध्ययन सम्मिलित होता है।
  • (3) मृदा भूगोल (Pedogeography Or Soil Geography) : भौतिक भूगोल की इस शाखा में मिट्टी के स्थानिक वितरण तथा उसके लक्षण, उपयोग आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • (4) चिकित्सा भूगोल (Medical Geography) : इसमें मानवीय बीमारियों, रोगों, दुर्भिक्ष आदि के स्थानिक वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों का अध्ययन भी सम्मिलित होता है। यह पर्यावरण भूगोल के अधिक समीप है जिसके कारण कुछ लोग इसे पर्यावरण भूगोल की ही एक शाखा मानते हैं।

मानव भूगोल[संपादित करें]

मानव भूगोल में मनुष्य तथा उसके पर्यावरण के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों तथा उससे उतपन्न भूदृश्यों एवं तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत समस्त मानवीय क्रियाओं एवं गुणों का भौगोलिक अध्ययन सम्मिलित होता है। मानव भूगोल की शाखाओं में आर्थिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल, अधिवास भूगोल, राजनीतिक भूगोल, सामाजिक भूगोल, सांस्कृतिक भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल आदि प्रमुख हैं-

  • (1) आर्थिक भूगोल (Economic Geography) : आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाओं के वितरण प्रतिरूपों तथा उन कारकों और प्रक्रमों का अध्ययन किया जाता है जो भूतल पर इन प्रतिरूपों के क्षेत्रीय विभेदशीलता (Areal differentiation) को प्रभावित करते हैं। आर्थिक भूगोल में मृदा, जल, जैव तत्व, खनिज, ऊर्जा आदि प्राकृतिक संसाधनों, आखेट, मत्स्याखेट, पशुपालन, वनोद्योग, कृषि, निर्माण उद्योग, परिवहन, संचार, व्यापार एवं वाणिज्य आदि आर्थिक क्रियाओं तथा अन्य आर्थिक पक्षों एवं संगठनों के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है।
  • (2) जनसंख्या भूगोल (Population geography) : इसमें जनसंख्या के वितरण, घनत्व, संघटन (आयु, वर्ग, लिंगानुपात, व्यावसायिक संरचना, साक्षरता, ग्रामीण नगरीय अनुपात आदि), जनसंख्या स्थानांतरण (प्रवास), जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या-संसाधन सम्बन्ध, जनसंख्या समस्या आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है।
  • (3) अधिवास भूगोल (Settlement geography) : अधिवास भूगोल की दो उप-शाखाएं हैं - ग्रामीण भूगोल और नगरीय भूगोल। ग्रामीण भूगाल (या ग्रमीण अधिवास भूगोल) में ग्रामीण अधिवासों (ग्रामों) का और नगरीय भूगोल में नगरीय अधिवासों (नगरों) का भौगोलिक अध्ययन किया जाता है।
  • (4) राजनीतिक भूगोल (Political geography) : राजनीतिक भूगोल में रानीतिक रूप से संगठित क्षेत्रों (राष्ट्र् देशों) की सीमा, विस्तार, उनके विभिन्न घटकों, उप-विभागों, शासित भू-भागों, संसाधनों तथा आंतरिक एवं बाह्य राजनीतिक सम्बन्धों आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है।
  • (5) सामाजिक भूगोल (Social geography) : इसके अन्तर्गत सामाजिक वर्गों, सामाजिक प्रक्रियाओं (अंतःक्रिया), सामाजिक विशेषताओं, सामाजिक संगठनों, सामाजिक समस्याओं आदि का भौगोलिक अध्ययन सम्मिलित होता है।
  • (6) सांस्कृतिक भूगोल (Cultural geography) : सांस्कृतिक भूगोल मानव भूगोल की एक शाखा है जो सांस्कृतिक तथ्यों के अध्ययन से सम्बन्धित है किन्तु कभी-कभी इसे मानव भूगोल का समानार्थी भी माना जाता है विशेष रूप से जब मानवीय के स्थान पर सांस्कृतिक शब्दाबली का प्रयोग किया जाता है। इसमें मानव विकास से सम्बन्धित सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के भौगोलिक विश्लेषण पर विशेष बल दिया जाता है।
  • (7) ऐतिहासिक भूगोल (Historical geography) : विश्व में घटित होने वाली सभी घटनाएं कहीं न कहीं पृथ्वी के तल से संबंधित होती हैं और प्रत्येक तत्व चाहे वह प्राकृतिक (भौतिक) हो या मानवीय, उसकी स्थिति भी धरातल पर ही पायी जाती है।

ध्यातव्य है कि भूतल के अध्ययन पर भूगोल का एकाधिकार है क्योंकि भूतल पर तत्वों के वितरण का विश्लेषण केवल भूगोल ही करता है। इस प्रकार भूगोल का संबंध सभी विज्ञानों से है चाहे वह शुद्ध प्राकृतिक विज्ञान हो अथवा मानवीय या सामाजिक विज्ञान