भारत-नेपाल सम्बन्ध

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भारत

नेपाल

भारत और नेपाल के मध्य सम्बन्ध अनादि काल से हैं। दोनों पड़ोसी राष्ट्र हैं, इसके साथ ही दोनों राष्ट्रों की धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी एवं ऐतिहासिक स्थिति में बहुत अधिक समानता है। स्वतन्त्र भारत और नेपाल ने अपने विशेष सम्बन्धों को 1950 के भारत-नेपाल शान्ति एवं मैत्री सन्धि के द्वारा नयी ऊर्जा दी।

विवरण[संपादित करें]

करीबी पड़ोसियों के रूप में भारत और नेपाल मैत्री और सहयोग के अद्वितीय सम्बन्ध रखते हैं, जिसमें खुली सीमाओं और जनता के बीच रिश्ते और नातेदारी व संस्कृति के सम्पर्कों का गहरा सम्बन्ध है।

भारत-नेपाल के मध्य शान्ति एवं मैत्री की सन्धि (1950) से, भारत और नेपाल के बीच विशिष्ट सम्बन्धों की शुरुआत को आधार प्राप्त हुआ। इस सन्धि के प्रावधानों के अन्तर्गत नेपाली नागरिकों ने भारतीय नागरिकों के समान भारत में सुविधाओं और अवसरों का अभूतपूर्व लाभ उठाया है। वर्तमान में लगभग 60 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते और काम करते हैं।

भारत और नेपाल के बीच नियमित रूप से उच्च स्तरीय बातचीत का दौर चलता रहता है तथा यात्राएँ भी नियमित रूप से होती रहती हैं। नेपाली प्रधानमन्त्री श्रीमान सुशील कोइराला 26 मई, 2014 को प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने भारत आये थे। अगस्त 2014 में प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता के लिए नेपाल की यात्रा की तथा नवम्बर में दक्षेस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल की यात्रा की, जिसमें दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये । भारत और नेपाल के पास, भारत-नेपाल संयुक्त आयोग सहित कई द्विपक्षीय संस्थागत संवाद तन्त्र हैं। जिसकी अध्यक्षता भारत के विदेश मन्त्री और नेपाल के विदेश मन्त्री करते हैं। जब 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.4 तीव्रता का भूकम्प आया, तब भारत सरकार ने नेपाल में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया दल और राहत सामग्री सहित विशेष विमान को नेपाल के बचाव के लिये भेजा।[1]

राजनीति[संपादित करें]

नवम्बर 2005 में, दिल्ली में सात दलों के गठबन्धन और माओवादियों के बीच 12-बिन्दु की सहमति से भारत सरकार ने शान्तिपूर्ण समाधान और समावेशी लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नेपाल में राजनीतिक स्थिरता के लिए नवम्बर 2006 के ऐतिहासिक व्यापक शान्ति समझौते द्वारा निर्धारित रूपरेखा का स्वागत किया है। शान्ति प्रक्रिया की सफलता सुनिश्चित करने तथा विधिवत निर्वाचित संविधान सभा द्वारा एक नया संविधान बनाने के माध्यम से तथा बहुदलीय लोकतन्त्र के संस्थाकरण के रूप में भारत ने नेपाल के लोगों और सरकार की आवश्यकताओं के प्रति लगातार समर्थन किया है। भारत ने सदैव यह माना है कि सभी पक्षधारकों पर बोर्ड द्वारा व्यापक सहमति से केवल एक समावेशी संविधान ही नेपाल में स्थायी शान्ति और स्थिरता पैदा करेगा।

नेपाल की दूसरी संविधान सभा ने 20 सितम्बर, 2015 को मधेशियों तथा अन्य दलों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान एक संविधान का प्रख्यापित किया था। भारत सरकार ने चल रहे विरोधियों के बारे में गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है और नेपाल सरकार से अनुरोध किया है कि वह एक विश्वसनीय राजनीतिक वार्ता के माध्यम से सभी मुद्दों को सुलझाने के प्रयास करे।[2]

आर्थिक[संपादित करें]

1996 से भारत को नेपाल का निर्यात 11 गुना से अधिक और द्विपक्षीय व्यापार में सात गुना से अधिक वृद्धि हुई है। वर्ष 1995-96 में नेपाल के कुल बाहरी व्यापार के 29.8% का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2013-14 में 66% पहुँच गया। नेपाल से भारत का निर्यात वर्ष 1995-96 में 230 करोड़ अमरीकी डालर से बढ़कर 2013-14 में 37.135 अरब रुपये हो गया और वर्ष 1995-96 के दौरान भारत का निर्यात 15.25 अरब रुपये से बढ़कर 2013-14 में ₹2.95456 खरब (4.81 अरब अमेरिकी डॉलर) हो गया। भारत से नेपाल को निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं:- पेट्रोलियम उत्पाद, मोटर वाहन और स्पेयर पार्ट्स, मशीनरी और कलपुर्जे, गर्म रोंटियाँ, तार, कोयला, सीमेंट, धागे और रसायन।

नेपाल से भारत को निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं:- पॉलिएस्टर का धागा, जूट का सामान, धागा, जड़ाई शीट, पैकेज्ड जूस, इलायची, पाइप, जूते और सैण्डल, पत्थर और रेत।

नेपाल की कुल स्वीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 38.3% हिस्सा भारतीय उपक्रमों का है। 15 जुलाई, 2013 तक नेपाल सरकार ने 72.694 अरब रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सहित कुल 3004 विदेशी निवेश परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। नेपाल में लगभग 150 भारतीय उपक्रम हैं जो निर्माण, सेवा (बैंकिंग, बीमा, शुष्क पत्तन, शिक्षा और दूरसंचार), विद्युत क्षेत्र और पर्यटन उद्योग में रत हैं। कुछ बड़े भारतीय निवेशकों में आई टी सी, डाबर इण्डिया, हिन्दुस्तान यूनिलीवर, सी. टी. सी. एल. एल, एमटीएनएल, स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया, पंजाब नेशनल बैंक, एशियन पेंट्स, जिनर इण्डिया, बीआईटी ग्रुप होल्डिंग, बीआईटी ग्रुप होल्डिंग, नुपुर इन्टरनेशनल, ट्रांसवर्ल्ड ग्रुप, पटेल इंजीनियरिंग, भीलई एन्टरनेशनल, ट्रांसवर्ल्ड ग्रुप, पेटेल इंजिनियरिंग, भीलई, भुषड़ पेन्ट्स, जेसएक्स इंफ़्रा प्रोजेक्ट लि. और टाटा पावर आदि शामिल हैं।[3]

वर्तमान सम्बन्ध[संपादित करें]

नेपाल के वर्तमान प्रधानमन्त्री के पी ओली नें प्रधानमन्त्री पद संभालकर सबसे पहले भारत का दौरा किया।[4] उनके इस दौरे से दोनों देशों के बीच सम्बन्ध और भी मजबूत हुए हैं। जब 2015 में नेपाल में भूकम्प आया था। तब भारत ने तुरन्त प्रतिक्रिया देते हुए भारत से राहत सामग्री एवं NDRF के जवान सहायता के लिये भेजे थे। इसी तरह भारत हर समय नेपाल की सहायता करता रहा है।

भारत और नेपाल के बीच में सबसे बड़ा तनाव 2015 में मधेशियो का विरोध से बढ़ा है।  मधेशी, वहाँ के तराई क्षेत्र में रहने वाले रहने वाले लोग हैं। जब 2015 में नया संविधान बना तो वहाँ पर संविधान में इस तरह की व्यवस्था की गयी कि थारू, मधेशी और जनजाति लोगों को नेपाली संसद में जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व कम मिला और नेपाली (पहाड़ी) लोगों को अधिक मिला जिसके चलते मधेशियो ने 2015 में भारत नेपाल सीमा पर सड़क जाम किया, जिससे भारत से नेपाल जाने वाले समान की आवागमन बन्द हो गया और नेपाल ने भारत पर आरोप लगाया कि आन्दोलन भारत समर्थित है।

अभी हाल में नेपाल द्वारा अपनी मानचित्र में लीपुलेख का क्षेत्र अपनी मानचित्र में शामिल किया है जो भारत और नेपाल के बीच वर्तमान विवाद का मुख्य कारण है।  

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2020.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2020.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2020.
  4. https://hindi.theindianwire.com/नेपाली-प्रधानमंत्री-भारत-दौरा-31694/ Archived 2018-04-09 at the वेबैक मशीन द इण्डियन वायर