भट्टोजि दीक्षित

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

भट्टोजि दीक्षित १७वीं शताब्दी में उत्पन्न संस्कृत वैयाकरण थे जिन्होने सिद्धान्तकौमुदी की रचना की। इनके परिवार में महान विद्वानौ ने जन्म लिया । इनके भाई रंगोजि भट्ट महान वैयाकरण हुए। रंगोजि भट्ट के पुत्र कौंड भट्टने वैयाकरणभूषणसार की रचना की

इनका निवासस्थान काशी था। पाणिनीय व्याकरण के अध्ययन की प्राचीन परिपाटी में पाणिनीय सूत्रपाठ के क्रम को आधार माना जाता था। यह क्रम प्रयोगसिद्धि की दृष्टि से कठिन था क्योंकि एक ही प्रयोग का साधन करने के लिए विभिन्न अध्यायों के सूत्र लगाने पड़ते थे। इस कठिनाई को देखकर ऐसी पद्धति के आविष्कार की आवश्यकता पड़ी जिसमें प्रयोगविशेष की सिद्धि के लिए आवश्यक सभी सूत्र एक जगह उपलब्ध हों। भट्टोजि दीक्षित ने प्रक्रिया कौमुदी के आधार पर सिद्धान्तकौमुदी की रचना की। इस ग्रंथ पर उन्होंने स्वयं प्रौढमनोरमा टीका लिखी।उनके पौत्र हरि दीक्षित ने प्रौढ़मनोरमा पर शब्दरत्न नाम की टीका लिखी।पाणिनीय सूत्रों पर अष्टाध्यायी क्रम से एक अपूर्ण व्याख्या, शब्दकौतुभ तथा वैयाकरणभूषण कारिका भी इनके ग्रंथ हैं। इनकी सिद्धान्त कौमुदी लोकप्रिय है।

तत्वबोधिनी (ज्ञानेन्द्र सरस्वती विरचित), बालमनोरमा (वासुदेव दीक्षित विरचित) इत्यादि सिद्धान्तकौमुदी की टीकाएँ सुप्रसिद्ध हैं।

उनके शिष्य वरदराज भी व्याकरण के महान पण्डित हुए।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]