बीकानेर की संस्कृति

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पोशाक[संपादित करें]

शहरों में पुरुषों की पोशाक बहुधा लंबा अंगरखा या कोट, धोती और पगड़ी है। मुसलमान लोग बहुधा पाजामा, कुरता और पगड़ी, साफा या टोपी पहनते हैं। संपन्न व्यक्ति अपनी पगड़ी का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं, परंतु धीरे-धीरे अब पगड़ी के स्थान पर साफे या टोपी का प्रचार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण लोग अधिकतर मोटे कपड़े की धोती, बगलबंदी और फेटा काम में लाते हैं। स्त्रियो की पोशाक लहंगा, चोली और दुपट्टा है। मुसलमान औरतों की पोशाक चुस्त पाजामा, लम्बा कुरता और दुपट्टा है उनमें से कई तिलक भी पहनती है।

भाषा[संपादित करें]

यहां के अधिकांश लोगों की भाषा मारवाड़ी है, जो राजपूताने में बोली जानेवाली भाषाओं में मुख्य है। यहां उसके भेद थली, बागड़ी तथा शेखावटी की भाषाएं हैं। उत्तरी भाग के लोग मिश्रित पंजाबी अथवा जाटों की भाषा बोलते हैं। यहां की लिपि देवनागरी है, जो बहुधा घसीट रूप में लिखी जाती है। राजकीय दफ्तरों तथा कर्यालयों में अंग्रेजी एवं हिन्दी का प्रचार है।

दस्तकारी[संपादित करें]

भेड़ो की अधिकता के कारण यहां ऊन बहुत होता है, जिसके कंबल, लाईयां आदि ऊनी समान बहुत अच्छे बनते है। यहां के गलीचे एवं दरियां भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हाथी दांत की चूड़ियाँ, लाख की चूड़ियाँ तथा लाख से रंगी हुई लकड़ी के खिलौने तथा पलंग के पाये, सोने-चाँदी के ज़ेवर, ऊँट के चमड़े के बने हुए सुनहरी काम के तरह-तरह के सुन्दर कुप्पे, ऊँटो की काठियां, लाल मिट्टी के बर्त्तन आदि यहां बहुत अच्छे बनाए जाते हैं। बीकानेर शहर में बाहर से आने वाली शक्कर से बहुत सुन्दर और स्वच्छ मिश्री तैयार की जाती है जो दूर-दूर तक भेजी जाती है।

साहित्य[संपादित करें]

साहित्य की दृष्टि से बीकानेर का प्राचीन राजस्थानी साहित्य ज्यादातर चारण, संत और जैनों द्वारा लिखा गया था। चारण राजा के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा मे अपनी बात कहते थे। बीकानेर के संत लोक शैली मे लिखतें थे।
बीकानेर का लोक साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है। राजस्थानी साहित्य के विकास मे बीकनेर के राजाओं का भी योगदान रहा है उनके द्वारा साहित्यकारों को आश्रय़ मिलता रहा था। राजपरिवार के कई सदस्यों ने खुद भी साहित्य मे जौहर दिखलाये। राव बीकाजी ने माधू लाल चारण को खारी गाँव दान मे दिया था।

बारहठ चौहथ बीकाजी के समकलीन प्रसिद्ध चारण कवि थे। इसी प्रकार बीकाने के चारण कवियों ने बिठू सूजो का नाम बडे आदर से लिया जाता है। उनका काव्य 'राव जैतसी के छंद' डिंगल साहित्य मे उँचा स्थान रखती है।

बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी मे टीका लिखी थी। रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड राजस्थानी के सिरमौर कवि थे वे अकबर के दरबार मे भी रहे थे। उन्होने 'क्रिसन रुक्मणी री' नामक रचना लिखी जो राजस्थानी की सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचना मानी जाती है।

बीकानेर के जैन कवि उदयचंद ने बीकानेर गजल (नगर वर्णन को गजल कहा गया है) रचकर नाम कमाया था। वे महाराजा सुजान सिंह की तारीफ करते थे

सन्दर्भ[संपादित करें]

हाळी अमावस्या, आखातीज लोक उत्सव Archived 2020-09-19 at the वेबैक मशीन