बाबा बालकनाथ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(बाबा बालक नाथ जी से अनुप्रेषित)
सिद्ध बाबा बालक नाथ
मंदिर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी व् दुर्गा माता, प्रेम नगर, घुमार मंडी, लुधियाना में सुशोभित सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की प्रतिमा।
देवनागरी सिद्ध बाबा बालक नाथ
संबंध ब्राह्मण, (नाथ), देवता , शिव के अवतार
मंत्र ॐ नमः सिद्धाय
प्रतीक झोली, चिमटा, वैरागन, पउए
माता-पिता
  • (पिता)
  • रतनो (माता)
सवारी मोर
त्यौहार चेत महिना, चैत्र


बाबा बालकनाथ जी हिन्दू आराध्य हैं, जिनको उत्तर-भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश , पंजाब , दिल्ली में बहुत श्रद्धा से पूजा जाता है, इनके पूजनीय स्थल को “दयोटसिद्ध” के नाम से जाना जाता है, यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के चकमोह गाँव की पहाड़ी के उच्च शिखर में स्थित है। मंदिर में पहाडी के बीच एक प्राकॄतिक गुफा है, ऐसी मान्यता है, कि यही स्थान बाबाजी का आवास स्थान था। मंदिर में बाबाजी की एक मूर्ति स्थित है, भक्तगण बाबाजी की वेदी में “ रोट” चढाते हैं, “ रोट ” को आटे और चीनी/गुड को घी में मिलाकर बनाया जाता है। यहाँ पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है, यहाँ पर बकरे की बलि नहीं चढ़ाई जाती बल्कि उनका पालन पोषण करा जाता है। बाबाजी की गुफा में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया है, जहाँ से महिलाएँ उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं। मंदिर से करीब छहः कि॰मी॰ आगे एक स्थान “शाहतलाई” स्थित है, ऐसी मान्यता है, कि इसी जगह बाबाजी “ध्यानयोग” किया करते थे।

कहानी[संपादित करें]

बाबा बालकनाथ जी की कहानी बाबा बालकनाथ अमर कथा में पढ़ी जा सकती है, ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म सभी युगों में हुआ जैसे कि सत्य युग,त्रेता युग,द्वापर युग और वर्तमान में कल युग और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया जैसे “सत युग” में “ स्कन्द ”, “ त्रेता युग” में “ कौल” और “ द्वापर युग” में “महाकौल” के नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बड़े भक्त कहलाए। द्वापर युग में, ”महाकौल” जिस समय “कैलाश पर्वत” जा रहे थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, वृद्ध स्त्री को जब बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती, (जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं) से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने बिलकुल वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। बालयोगी महाकौल को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया और चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया।

कलयुग में बाबा बालकनाथ जी ने गुजरात, काठियाबाद में “देव” के नाम से जन्म लिया। उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था, बचपन से ही बाबाजी ‘आध्यात्म’ में लीन रहते थे। यह देखकर उनके माता पिता ने उनका विवाह करने का निश्चय किया, परन्तु बाबाजी उनके प्रस्ताव को अस्विकार करके और घर परिवार को छोड़ कर ‘ परम सिद्धी ’ की राह पर निकल पड़े। और एक दिन जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में उनका सामना “स्वामी दत्तात्रेय” से हुआ और यहीं पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय से “ सिद्ध” की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और “सिद्ध” बने। तभी से उन्हें “ बाबा बालकनाथ जी” कहा जाने लगा।

बाबाजी के दो पृथ्क साक्ष्य अभी भी उप्लब्ध हैं जो कि उनकी उपस्थिति के अभी भी प्रमाण हैं जिन में से एक है “ गरुन का पेड़” यह पेड़ अभी भी शाहतलाई में मौजूद है, इसी पेड़ के नीचे बाबाजी तपस्या किया करते थे। दूसरा प्रमाण एक पुराना पोलिस स्टेशन है, जो कि “बड़सर” में स्थित है जहाँ पर उन गायों को रखा गया था जिन्होंने सभी खेतों की फसल खराब कर दी थी, जिसकी कहानी इस तरह से है कि, एक महिला जिसका नाम ’ रत्नो ’ था, ने बाबाजी को अपनी गायों की रखवाली के लिए रखा था जिसके बदले में रत्नो बाबाजी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी, ऐसी मान्यता है कि बाबाजी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गयी रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था। एक बार जब रत्नो बाबाजी की आलोचना कर रही थी कि वह गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते जबकि रत्नो बाबाजी के खाने पीने का खूब ध्यान रखतीं हैं। रत्नो का इतना ही कहना था कि बाबाजी ने पेड़ के तने से रोटी और ज़मीन से लस्सी को उत्त्पन्न कर दिया। बाबाजी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्त ‘गर्भगुफा’ में प्रवेश नहीं करती जो कि प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहां पर तपस्या की थी उसके बाद बाबा बालकनाथजी से राजस्थान के नागौर जिले के गोटन के पास हरसोलाव गांव में तपस्या करते हुए अंतर्ध्यान हो गए थे उसके बाद उनकी वहा पर जीवित समाधि बनाई थी आज इस कलयुग में इस गांव में इनके दर्शन करने के लिए दूर दूर शहर से श्रद्धालु आते है और इस मंदिर के पुजारी कालुनाथ जी में हर सप्ताह के सोमवार को बालकनाथ जी का भाव आता है और इस कलयुग में हर दुखी श्रद्धालु का दुःख दूर करते है और बालकनाथ जी महाराज का बहुत बड़ा चमत्कार है और आपसे मेरा कहना है की जीवन में किसी प्रकार की समस्या, कष्ट हो तो एक बार आकर बालकनाथजी का दर्शन जरूर करे

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

उल्लेख[संपादित करें]

  • Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North West Frontier Provinces:By Horace Arthur Rose Pg. 262
  • World Religious Reader:By Dr. Gwilym Beckerlegge Pg.211
  • Temples and Legends of Himachal Pradesh:By Pranab Cahnder Raj Choudhary Pg.140
  • Janam Sakhi Baba Balak Nath Ji:By Avtar Bhalla Hargobindpuri