प्रशांत भूषण

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प्रशांत भूषण
जन्म २३ जून १९५६
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा अधिवक्ता
प्रसिद्धि का कारण भ्रष्टाचार विरोधी सक्रियतावाद के लिए
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

प्रशांत भूषण (जन्म : १९५६) भारत के उच्चतम न्यायालय में एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। उन्हे भ्रष्टाचार, विशेष रूप से न्यायपालिका के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जाना जाता हैं। अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ किए गए संघर्ष में वे उनकी टीम के प्रमुख सहयोगी रहे हैं।[1] अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी के साथ उन्होंने सरकार से हुई वार्ताओं में नागरिक समाज का पक्ष रखा था। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला सुप्रीम कोर्ट मे सुब्रह्मण्यम स्वामी और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से वकील प्रशांत भूषण दोनो मिलकर लड़ रहे है। १५ साल की वकालत के दौरान वे ५०० से अधिक जनहित याचिकाओं पर जनता की तरफ से केस लड़ चुके हैं। प्रशांत भूषण कानून व्यवस्था में निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था की पैरवी करते हैं। उनका मानना है कि देश की कानूनी संरचना को भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी होना चाहिए।

जन्म और शिक्षा[संपादित करें]

प्रशांत भूषण प्रसिद्ध अधिवक्ता शांति भूषण के सुपुत्र हैं, जो की १९७७ से लेकर १९७९ के बीच में मोरारजी देसाई की सरकार में कानून मंत्री थे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के छात्र रहे भूषण ने एक सत्र के बाद इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी। उसके बाद उन्होंने प्रिंसटन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और फिर दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की, लेकिन स्नातक पूरा करने से पहले से ही वह भारत लौट गए जहाँ उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की।

विवाद और आलोचना[संपादित करें]

भूषण अक्सर विवादों से घिरे रहे हैं।

न्यायिक जवाबदेही और कोर्ट की अवमानना का केस[संपादित करें]

प्रशांत भूषण ने न्यायिक उन्मुक्ति के खिलाफ लगातार अभियान चलाया। उनके इस अभियान से कुछ हद तक प्रभावित होकर न्यायाधीशों ने सितंबर २००९ में अपनी संपत्ति घोषित करने का निर्णय लिया।[2] कुछ ही समय बाद, भूषण ने तहलका पत्रिका द्वारा प्रकाशित एक साक्षात्कार में दावा किया की "पिछले कुल १६ से १७ मुख्य न्यायाधीशों में से, आधे भ्रष्ट थे"। इसपर एक प्रमुख वकील, हरीश साल्वे ने पत्रिका के संपादक और भूषण के खिलाफ़ अदालत की अवमानना ​​का आरोप दायर किया। अक्टूबर २००९ में प्रशांत भूषण ने एक औपचारिक हलफनामा दायर कर आठ सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया।[3] इसमें उन्होंने न्यायाधीशों को जांच से उन्मुक्ति प्राप्त होने के कारण उनके खिलाफ़ दस्तावेजी सबूत इकठ्ठा करने के कठिनाई का उल्लेख किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर नें कहा की या तो "झूठे आरोप" लगाने के लिए शांति भूषण और प्रशांत भूषण को दंडित किया जाना चाहिए, या फिर उनके आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Activists to march against corruption". Times of India. 28 जनवरी 2011. मूल से 3 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2012.
  2. "संपत्ति को सार्वजनिक करेंगे जज". बीबीसी हिंदी. 27 अगस्त 2009. अभिगमन तिथि 9 अक्टूबर 2013.[मृत कड़ियाँ]
  3. "मुख्य 'अ'न्यायाधीश! एक ऐतिहासिक हलफनामे के अंश". बीबीसी हिंदी. 6 अक्टूबर 2010. अभिगमन तिथि 9 अक्टूबर 2013.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]