प्रयोजनमूलक हिन्दी

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प्रयोजनमूलक हिन्दी (Functional Hindi) से तात्पर्य हिन्दी के उस स्वरुप से है जो विज्ञान, तकनीकी, विधि, संचार एवं अन्य गतिविधियों में प्रयुक्त होती है। इसे 'कामकाजी हिन्दी' भी कहा जाता है।

व्यक्ति द्वारा विभिन्न रूपों में बरती जाने वाली भाषा को भाषा-विज्ञानियों ने स्थूल रूप से सामान्य भाषा और प्रयोजनमूलक भाषा इन दो भागों में विभक्त किया है। कुछ लोग भाषा को 'बोलचाल की भाषा', 'साहित्यिक भाषा' और 'प्रयोजनमूलक भाषा' - इन तीन भागों में विभाजित करते हैं। जिस भाषा का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाए, उसे 'प्रयोजनमूलक भाषा' कहा जाता है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि प्रयोजन के अनुसार शब्द-चयन, वाक्य-गठन और भाषा-प्रयोग बदलता रहता है।

अन्य नाम
व्यावहारिक हिन्दी, कामकाजी हिन्दी, प्रयोजनी हिन्दी, प्रयोजनपरक हिन्दी, प्रायोगिक हिन्दी, प्रयोगपरक हिन्दी ।

इतिहास[संपादित करें]

भारत की राजभाषा के पद पर आसीन होने से पूर्व हिन्दी सरकारी कामकाज तथा प्रशासन की भाषा नहीं थी। मुग़ल शासकों के समय फारसी या उर्दू और अंग्रेजों के समय अंग्रेजी राजकाज की भाषा थी। स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी भारत की राजभाषा बनी। इसके फलस्वरुप हिन्दी को साहित्य लेखन के साथ-साथ अब तक अनछुए क्षेत्रों से होकर गुजरना पड़ा, जैसे- आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सरकारी कामकाज तथा प्रशासन, विधि, दूरसंचार, व्यवसाय, वाणिज्य, खेलकूद, पत्रकारिता आदि। इस प्रकार 'प्रयोजनमूलक हिन्दी' की अवधारणा सामने आयी।

आन्ध्र प्रदेश के भाषा-विद् श्री मोटूरि सत्यनारायण के प्रयासों ने सन 1972 ई. में प्रयोजनमूलक हिन्दी को स्थापना दी। उन्हें चिन्ता थी कि हिन्दी कहीं केवल साहित्य की भाषा बनकर न रह जाए। उसे जीवन के विविध प्रकार्यों (functions) की अभिव्यक्ति में समर्थ होना चाहिए। बनारस में सन् 1974 ई. में आयोजित एक संगोष्ठी के बाद प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्षेत्र में क्रांतिकारी विकास हुआ। प्रयोजनमूलक हिन्दी की संकल्पना आने के पहले भारत के विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों के अन्तर्गत स्नातकोत्तर स्तर पर मुख्य रूप से हिन्दी साहित्य एवं आठ प्रश्नपत्रों में से केवल एक प्रश्नपत्र में भाषाविज्ञान के सामान्य सिद्धान्तों एवं हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन अध्यापन हो रहा था। लेकिन मोटूरि सत्यनारायण ने यह विचार सामने रखा कि । साहित्य एवं प्रशासन के क्षेत्रों के अलावा अन्य विभिन्न क्षेत्रों के प्रयोजनों की पूर्ति के लिए जिन भाषा रूपों का प्रयोग एवं व्यवहार होता है, उनके अध्ययन और अध्यापन की भी आवश्यकता है।

हिन्दी भारत की राजभाषा ही नहीं, सम्पर्क भाषा और जनभाषा भी है। हिन्दी केवल साहित्य की भाषा न रहे बल्कि जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रभावी रूप से प्रयुक्त हो, तभी इसका विकास सुनिश्चित होगा। सुखद सूचना यह है कि विविध विश्वविद्यालयों के हिन्दी के पाठ्यक्रमों में 'प्रयोजनमूलक हिन्दी' को स्थान दिया जा रहा है।

प्रयोजनमूलक हिन्दी आज भारत के बहुत बड़े फलक और धरातल पर प्रयुक्त हो रही है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवादों का पुल बनाने में आज इसकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आज इसने कम्प्यूटर, टेलेक्स, तार, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीप्रिंटर, दूरदर्शन, रेडियो, अखबार, डाक, फिल्म और विज्ञापन आदि जनसंचार के माध्यमों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। शेयर बाजार, रेल, हवाई जहाज, बीमा उद्योग, बैंक आदि औद्योगिक उपक्रम, रक्षा, सेना, इन्जीनियरिंग आदि प्रौद्योगिकी संस्थान, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र, आयुर्विज्ञान, कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, विश्वविद्यालय, सरकारी और अर्द्धसरकारी कार्यालय आदि कोई भी क्षेत्र हिन्दी से अछूता नहीं रह गया है। चिट्ठी-पत्री, लेटर पैड, स्टॉक-रजिस्टर, लिफाफे, मुहरें, नामपट्ट, स्टेशनरी के साथ-साथ कार्यालय-ज्ञापन, परिपत्र, आदेश, राजपत्र, अधिसूचना, अनुस्मारक, प्रेस–विज्ञाप्ति, निविदा, नीलाम, अपील, केबलग्राम, मंजूरी पत्र तथा पावती आदि में प्रयुक्त होकर अपने महत्त्व को स्वतः सिद्ध कर दिया है। कुल मिलाकर यह कि पर्यटन बाजार, तीर्थस्थल, कल-कारखने, कचहरी आदि अब प्रयोजनमूलक हिन्दी की जद में आ गए हैं। हिन्दी के लिए यह बहुत ही शुभ है ।

प्रयोग के क्षेत्र[संपादित करें]

प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूपों का आधार उनका प्रयोग-क्षेत्र होता है। प्रयोजनमूलक हिन्दी के भेदों की गणना सम्भव नहीं है। अध्ययन के लिए किसी विवेच्य के भेद प्रभेद करने होते हैं। प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रयोग के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

साहित्यिक प्रयुक्ति[संपादित करें]

साहित्य किसी भी भाषा की अनिवार्य आवश्यकता है। साहित्यिक भाषा काफी विशिष्टताएँ लिये होती हैं, इसलिए वह लेखकों तथा विशिष्ट पाठकों तक सीमित रहती है। साहित्यिक भाषा में जनसामान्य के जीवन के साथ-साथ दर्शन, राजनीति, समाजशास्त्र तथा संस्कृति का आलेख पाया जाता है। हिन्दी भाषा की साहित्यिक प्रयुक्ति की परम्परा बहुत पुरानी है।

वाणिज्यिक प्रयुक्ति[संपादित करें]

वाणिज्य या व्यापार, हिन्दी भाषा के प्रयोग का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसके अन्तर्गत व्यापार, वाणिज्य, व्यवसाय, परिवहन, बीमा, बैंकिग तथा आयात-निर्यात आदि क्षेत्रों का समावेश होता है। इन क्षेत्रों में प्रयुक्त भाषा अन्य क्षेत्रों में प्रयुक्त भाषा से काफी भिन्न होती है जैसे, सोने में उछाल, चाँदी मन्दा, तेल की धार ऊँची आदि। हिन्दी भाषा की वाणिज्यिक प्रयुक्ति का क्षेत्र काफी विस्तृत और अत्यन्त लोकप्रिय है।

कार्यालयी प्रयुक्ति[संपादित करें]

हिन्दी भाषा की अत्यन्त आधुनिक एवं सर्वोपयोगी प्रयुक्ति में 'कार्यालयी' (Official) प्रयुक्ति आता है। कार्यालयी हिन्दी का प्रयोग सरकारी, अर्ध-सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में काम-काज में होता है जहाँ हिन्दी में मसोदा लेखन, टिप्पणी लेखन, पत्राचार, संक्षेपण, प्रतिवेदन, अनुवाद आदि करना पड़ता है। प्रशासनिक भाषा और बोलचाल की भाषा में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। कार्यालयी भाषा की अपनी विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली, पद-रचना तथा आदि होते हैं।

जनसंचार एवं विज्ञापन प्रयुक्ति[संपादित करें]

विज्ञापन और जन-संचार के क्षेत्र में हिन्दी का भरपूर उपयोग हो रहा है। आज हिन्दी के समाचार पत्र विश्व के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले पत्र बन गए हैं। आकर्षक वाक्य-विन्यास, शब्दों का उचित चयन तथा वैशिष्टयपूर्ण प्रवाहमय भाषिक संरचना आदि विज्ञापन की भाषा के मुख्य तत्त्व हैं। वर्तमान युग में हिन्दी के विज्ञापन भाषा का रूप जन संचार के माध्यमों ( समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियों, दूरदर्शन, सिनेमा ) आदि आते हैं।

विधि एवं कानूनी भाषा प्रयुक्ति[संपादित करें]

इसके अन्तर्गत विधान (कानून), कानूनी प्रक्रिया (जैसे न्यायालय में बहस), निर्णय आदि की भाषा आती है। आज हिन्दी का उपयोग कई उच्च न्यायालयों में होने लगा है। सर्वोच्च न्यायालय में भी सभी निर्णयों का हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्रदान किया जा रहा है। विधि में प्रयुक्त अंग्रेजी शब्दावली के स्थान पर हिन्दी शब्दावली तैयार की गयी है और उसका उपयोग भी हो रहा है।

वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा प्रयुक्ति[संपादित करें]

वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिन्दी से तात्पर्य हिन्दी के उस स्वरूप से है जिसका प्रयोग विज्ञान और तकनीकी विषयों को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। 1961 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन वैज्ञानिक और तकनिकी शब्दावली आयोग की स्थापना की गई। विज्ञान एंव टेक्नोलाजी की भाषा सामान्य व्यवहार की भाषा से सर्वथा भिन्न होती है, अतः इसके लिए हिन्दी, संस्कृत, के साथ अन्तर्राष्टीय शब्दावली का प्रयोग करते हुए शब्दावली का निर्माण किया गया।

प्रयोजनमूलक हिन्दी की विशेषताएँ[संपादित करें]

प्रयोजनमूलक भाषा की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

वैज्ञानिकता[संपादित करें]

प्रयोजनमूलक शब्द पारिभाषिक होते हैं। किसी वस्तु के कार्य-कारण सम्बन्ध के आधार पर उनका नामकरण होता है, जो शब्द से ही प्रतिध्वनित होता है। ये शब्द वैज्ञानिक तत्वों की भाँति सार्वभौमिक होते हैं। हिन्दी की पारिभाषिक शब्दावली इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

अनुप्रयुक्तता[संपादित करें]

उपसर्गो, प्रत्ययों और सामासिक शब्दों की बहुलता के कारण हिन्दी की प्रयोजनमूलक शब्दावली स्वत: अर्थ स्पष्ट करने में समर्थ है। इसलिए हिन्दी की शब्दावली का अनुप्रयोग सहज है।

वाच्यार्थ प्रधानता[संपादित करें]

हिन्दी के पर्याय शब्दों की संख्या अधिक है। अत: ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में उसके अर्थ को स्पष्ट करने वाले भिन्न पर्याय चुनकर नए शब्दों का निर्माण सम्भव है। इससे वाचिक शब्द ठीक वही अर्थ प्रस्तुत कर देता है। अत: हिन्दी का वाच्यार्थ भ्राँति नहीं उत्पन्न करता।

सरलता और स्पष्टता[संपादित करें]

हिन्दी की प्रयोजनमूलक शब्दावली सरल औैर एकार्थक है, जो प्रयोजनमूलक भाषा का मुख्य गुण है। प्रयोजनमूलक भाषा में अनेकार्थकता दोष है। हिन्दी शब्दावली इस दोष से मुक्त है।

इस तरह प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में हिन्दी एक समर्थ भाषा है। स्वतंत्रता के पश्चात प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में स्वीकृत होने के बाद हिन्दी में न केवल तकनीकी शब्दावली का विकास हुआ है, वरन विभिन्न भाषाओं के शब्दों को अपनी प्रकृति के अनुरुप ढाल लिया है। आज प्रयोजनमूलक क्षेत्र में नवीनतम उपलब्धि इण्टरनेट तक की शब्दावली हिन्दी में उलब्ध है, और निरन्तर नए प्रयोग हो रहे हैं।

प्रयोजनमूलक हिन्दी एवं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान[संपादित करें]

केन्द्रीय हिन्दी संस्थान प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रशिक्षण का प्रमुख केन्द्र रहा है। जब जिस राज्य अथवा केन्द्र से जिस कार्य क्षेत्र के व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने की माँग आई, संस्थान ने उस माँग के अनुरूप पाठ्य सामग्री का निर्माण करके अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया।

प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्षेत्र में संस्थान की विशेषज्ञता को ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सन् 1998-99 में, संस्थान को स्नातक स्तर के प्रयोजनमूलक हिन्दी पाठ्यक्रम के पुनर्गठन एवं संशोधन का कार्य सौंपा जिसे संस्थान ने पूरा किया तथा पाठ्यक्रम को अद्यतन रूप प्रदान किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने प्रयोजनमूलक हिन्दी के शिक्षण को उच्च शिक्षा में आवश्यक विकल्प के रूप में स्वीकार कर लिया है और अब भारत के कई विश्वविद्यालयों में व्यवसायोन्मुख तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी के पाठ्यक्रम चल रहे हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]