प्रमात्रा यान्त्रिकी

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प्रमात्रा यान्त्रिकी भौतिकी में एक मौलिक सिद्धान्त है जो परमाण्वों और उपापरमाण्विक कणों के स्तर पर प्रकृति के भौतिक गुणों का विवरण प्रदान करता है।[1] यह प्रमात्रा रसायनिकी, प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धान्त, प्रमात्रा प्रौद्योगिकी और प्रमात्रा सूचना विज्ञान सहित सभी प्रमात्रा भौतिकी का आधार है।

न्यूटन के गति नियम के आधार पर विकसित चिरसम्मत यान्त्रिकी द्वारा स्थूल पदार्थों (जैसे- गिरते हुए पत्थर, चक्कर लगाते हुए ग्रह आदि), जिनका व्यवहार जैसा होता है, की गति का साफल्यपूर्वक किया जा सकता है, किन्तु जब इसे अति सूक्ष्म कणों (जैसे इलेक्ट्रॉनों अण्वों और परमाण्वों) पर लागू किया जाता है तो यह विफल हो जाता है। ऐसा होने का कारण यह है कि यात्रीक कणों के दोहरे व्यवहार की संकल्पना तथा अनिश्चय सिद्धान्त की उपेक्षा करती है। द्रव्य के दोहरे व्यवहार को ध्यान में रखकर प्रमात्रा यान्त्रिकी को विकसित किया गया।

प्रमात्रा यान्त्रिकी एक सैद्धान्तिक विज्ञान है, जिसमें उन अति सूक्ष्म वस्तुओं की गतियों का अध्ययन किया जाता है, जो तरंग और कण दोनों के गुण दर्शाती हैं। यह ऐसी वस्तुओं को गति के नियमों को निश्चित करती है। जब प्रमात्रा यान्त्रिकी को स्थूल वस्त्वों (जिनके हेतु तरंगीय गुण अतिन्यून होते हैं) पर लागू किया जाता है तब चिरसम्मत यान्त्रिकी के परिणामों जैसे ही परिणाम प्राप्त होते हैं।

सन् 1926 में हाइज़न्बर्ग और श्रोडिङर द्वारा विभिन्न प्रमात्रा यान्त्रिकी विकास किया गया। प्रमात्रा यान्त्रिकी का मूल श्रोडिङर समीकरण द्वारा प्रतिपादित किया गया। इसके हेतु उन्हें सन् 1933 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

प्रमात्रा यान्त्रिकीय मॉडल के प्रमुख लक्षण[संपादित करें]

परमाणु का प्रमात्रा यान्त्रिकीय परमाणु संरचना का वह चित्र है जो परमाण्वों पर समीकरण लागू करने से प्राप्त होता है, परमाणु के प्रमात्रा यान्त्रिकीय मॉडल के महत्वपूर्ण लक्षण निम्नोल्लेखित हैं:

  • परमाण्वों में इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा प्रमात्रित होती है इसके कुछ विशेष मान ही हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, जब परमाण्वों में इलेक्ट्रॉन नाभिक से बन्धे होते हैं।
  • किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन को सही स्थिति तथा वेग को एक साथ ज्ञात नहीं किया जा सकता। (अनैश्चित्य सिद्धान्त) किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन के पथ को सुनिश्चित ज्ञात नहीं किया जा सकता है। इसलिए परमाणु के विभिन्न बिन्द्वों पर इलेक्ट्रॉन के होने की प्रायिकता की संकल्पना के बारे में बात करते हैं।
  • किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन के तरंग-फलन Ψ को 'परमाणु कक्षक' कहते हैं। जब एक तरंग-फलन द्वारा किसी इलेक्ट्रॉन की व्याख्या की जाती है तो यह कहा जाता है कि इलेक्ट्रॉन उस कक्षक में उपस्थित है। किसी इलेक्ट्रॉन हेतु बहुत से तरंग-फलन हो सकते हैं, अतः परमाणु में कई कक्षक होते हैं। परमाण्वों की वैद्युतिक संरचना इन 'एक इलेक्ट्रॉन कक्षक तरंग- फलनों' पर ही आधारित है। प्रत्येक कक्षक में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा निश्चित होती है। किसी भी कक्षक में द्व्यधिक इलक्ट्रॉन नहीं रह सकते हैं। किसी बह्विलेक्ट्रॉन परमाणु में ऊर्जा के बढ़ते हुए क्रम में विभिन्न कक्षकों में इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं। अतः बह्विलेक्ट्रॉन परमाणु में प्रत्येक इलेक्ट्रॉन हेतु एक कक्षक तरंग-फलन होता है, जो उस कक्षक का अभिलाक्षणिक होता है, जिसमें इलेक्ट्रॉन उपस्थित होता है। परमाणु में इलेक्ट्रॉन के बारे में सारी तथ्य, उस कक्षक तरंग-फलन Ψ में उपस्थित होती है तथा प्रमात्रा यान्त्रिकी के द्वारा Ψ से तथ्य प्राप्त करना सम्भव होता है।
  • किसी परमाणु में किसी बिन्दु पर इलेक्ट्रॉन के उपस्थिति की प्रायिकता उस बिन्दु पर कक्षक तरंग-फलन के वर्ग के समानुपाती होती है, अर्थात् उस बिन्दु पर |Ψ²| को प्रायिकता घनत्व कहा जाता है। यह सदा धनात्मक होता है। किसी परमाणु के विभिन्न बिन्दुओं पर |Ψ²| के मान से नाभिक के परितः उस क्षेत्र का पता लगाना सम्भव है, जहाँ पर इलेक्ट्रॉन के प्राप्ति की सम्भावना अधिक होगी।

इतिहास[संपादित करें]

रॉबर्ट हुक, क्रिस्टियान ह्युजेंस और लिओनहार्ड यूलर जैसे वैज्ञानिकों प्रयोगात्मक टिप्पणियों के आधार पर प्रकाश की एक लहर सिद्धांत का प्रस्ताव किया गया , जब प्रकाश की तरंगी स्वभाव पर वैज्ञानिक जांच जो 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में शुरू हुआ। 1803 में, थॉमस यंग, एक अंग्रेजी बहुश्रुत , उनकी "प्रकाश और रंग की स्वभाव पर" शीर्षक से एक पेपर में वर्णित है प्रसिद्ध दो छेद प्रयोग का प्रदर्शन। इस प्रयोग ने प्रकाश के तरंग सिद्धांत के सामान्य स्वीकृति में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।

दर्शनीय उलझाव[संपादित करें]

अपनी स्थापना के बाद से, कई असहज पहलुओं और क्वांटम यांत्रिकी के परिणामों दार्शनिक वाद-विवाद और व्याख्यावौं को उकसाया है। ऐसे पहलू जैसे कि संभावना और प्रायिकता वितरण के विषय में मैक्स बौर्न की बुनियादी नियम के रूप में आया। यहां तक कि बुनियादी मुद्दों, समाज और कई प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा सराहना की जा करने के लिए कई दशक लग गऐ। रिचर्ड फेनमैन ने एक बार कहा "मुझे लगता है मैं सुरक्षित रूप से कह सकता हुं कि कोई भी क्वांटम यांत्रिकी समझता नही है।" स्टीवन वेनबर्ग के अनुसार, "मेरी राय में क्वांटम यांत्रिकी की कोई व्याख्या पूरी तरह से संतोषजनक व्याख्या नहीं है।"

कोपेनहेगन व्याख्या - बडे पैमाने पर डेनमार्क के सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी नील्स बोह्र कि है - आज सबसे व्यापक रूप से भौतिक विज्ञानियों के बीच स्वीकार किया , क्वांटम यांत्रिक कि रीति बनी हुई है, जो इसके निरूपण के कुछ 75 साल बाद हुवा था। इस व्याख्या के अनुसार, क्वांटम यांत्रिकी के संभाव्य प्रकृति समय के साथ एक नियतात्मक सिद्धांत किजगह मे बदल दिया जाएगा ,जो एक अस्थायी सुविधा है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "The Feynman Lectures on Physics Vol. III Ch. 1: Quantum Behavior". www.feynmanlectures.caltech.edu. अभिगमन तिथि 2023-04-07.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

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