प्रथम क्रूसयुद्ध

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प्रथम क्रूसयुद्ध की सफलता : येरूसलम पर कब्जा

प्रथम क्रूसयुद्ध (First Crusade (1096–1099)) पश्चिमी इसाई मतावलम्बियों द्वारा की गयी सैनिक कार्यवाही थी जो मुसलमानों द्वारा जीते गये पवित्र स्थानों को पुनः प्राप्त करने के उद्देश्य से की गयी थी। इसका आरम्भ 27 नवम्बर 1095 हुआ था।

परिचय[संपादित करें]

इस युद्ध में दो प्रकार के क्रूशधरों ने भाग लिया। एक तो फ्रांस, जर्मनी और इटली के जनसाधारण, जो लाखों की संख्या में पोप और संन्यासी पीतर की प्रेरणा से (बहुतेरे) अपने बाल बच्चों के साथ गाड़ियों पर समान लादकर पीतर और अन्य श्रद्धोन्मत्त नेताओं के पीछे पवित्र भूमि की ओर मार्च, 1096 में थलमार्ग से चल दिए। बहुतेरे इनमें उद्दंड थे और विधर्मियों के प्रति तो सभी द्वेषरत थे। उनके पास भोजन सामग्री और परिवहन साधन का अभाव होने के कारण वे मार्ग में लूट खसोट और यहूदियों की हत्या करते गए जिसके फलस्वरूप बहुतेरे मारे भी गए। इनको यह प्रवृत्ति देखकर पूर्वी सम्राट् ने इनके कोंस्तांतीन नगर पहुँचने पर दूसरे दल की प्रतीक्षा किए बिना बास्फोरस के पार उतार दिया। वहाँ से बढ़कर जब वे तुर्को द्वारा शासित क्षेत्र में घुसे तो, मारे गए।

दूसरा दल पश्चिमी यूरोप के कई सुयोग्य सामंतों की सेनाओं का था जो अलग-अलग मार्गो से कोंस्तांतीन पहुँचे। इनके नाम इस प्रकार हैं:-

  1. लरेन का ड्यूक गाडफ्रे और उसका भाई बाल्डविन;
  2. दक्षिण फ्रांस स्थित तूलू का ड्यूक रेमों;
  3. सिसिली के विजेता नार्मनों का नेता बोहेमों (जो पूर्वी सम्राट् का स्थान लेने का इच्छुक भी था)।

पूर्वी सम्राट् ने इन सेनाओं को मार्गपरिवहन इत्यादि की सुविधाएँ और स्वयं सैनिक सहायता देने के बदले इनसे यह प्रतिज्ञा कराई कि साम्राज्य के भूतपूर्व प्रदेश, जो तुर्को ने हथिया लिए थे, फिर जीते जाने पर सम्राट् को दे दिए जाएँगे। यद्यपि इस प्रतिज्ञा का पूरा पालन नहीं हुआ और सम्राट् की सहायता यथेष्ट नहीं प्राप्त हुई, फिर भी क्रूशधर सेनाओं को इस युद्ध में पर्याप्त सफलता मिली।

(कोंस्तांतीन से आगे इन सेनाओं का मार्ग मानचित्र में अंकित है।) सर्वप्रथम उनका सामना होते ही तुर्को ने निकाया नगर और उससे संबंधित प्रदेश सम्राट् को दे दिए। फिर सेना ने दोरीलियम स्थान पर तुर्को को पराजित किया ओर वहाँ से अंतिओक में पहुँचकर आठ महीने के घेरे के बाद उसे जीत लिया। इससे पहले ही बाल्डविन ने अपनी सेना अलग कर के पूर्व की ओर अर्मीनिया के अंतर्गत एदेसा प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया।

अंतिओक से नवबंर, 1098 में चलकर सेनाएँ मार्ग में स्थित त्रिपोलिस, तीर, तथा सिज़रिया के शासकों से दंड लेते हुए जून, 1099 में जेरूसलम पहुँची और पाँच सप्ताह के घेरे के बाद जुलाई, 1099 में उसपर अधिकार कर लिया। उन्होंने नगर के मुसलमान और यहूदी निवासियों की (उनकी स्त्रियों और बच्चों के साथ) निर्मम हत्या कर दी।

इस विजय के बाद क्रूशधरों ने जीते हुए प्रदेशों में अपने चार राज्य स्थापित किए (जो नीचे के मानचित्र में दिखाए गए हैं)। पूर्वी रोमन सम्राट् इससे अप्रसन्न हुआ पर इन राज्यों को वेनिस, जेनोआ इत्यादि समकालीन महान शक्तियों की नौसेना की सहायता प्राप्त थी जिनका वाणिज्य इन राज्यों के सहारे एशिया में फैलता था। इसके अतिरिक्त धर्मसैनिकों के दो दल, जो मठरक्षक (नाइट्स टेंप्लर्स) और स्वास्थ्यरक्षक (नाइट्स हास्पिटलर्स) के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनके सहायक थे। पादरियों और भिक्षुओं के समान ये धर्मसैनिक पोप से दीक्षा पाते थे और आजीवन ब्राहृचर्य रखने तथा धर्म, असहाय स्त्रियों और बच्चों की रक्षा करने की शपथ लेते थे।

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