प्रत्याहार (योग)

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संस्कृत व्याकरण के सन्दर्भ में प्रत्याहार का अलग अर्थ है। यहाँ पातंजल योग से सम्बन्धित प्रत्याहार की चर्चा की गयी है।

प्रत्याहार में ख्याल नहीं रहता है , मन भागता रहता है । कभी - कभी दूर - दूर तक , देर - देर तक ख्याल नहीं रहता है । बहुत देर के बाद ख्याल आता है कि ध्यान करने के लिए बैठा था , मन कहाँ - कहाँ चला गया , यह लँगड़ा प्रत्याहार है जिसको प्रत्याहार नहीं होगा , उसको धारणा कहाँ से होगी । धारणा ही नहीं होगी , तो ध्यान कहाँ से होगा ? इसीलिए मुस्तैदी से भजन करो । (सद्गुरु महर्षि मेंहीं प्रवचन 99)


प्रत्याहार, पातंजल द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग का पाँचवाँ चरण है।

Hello, Here is my perception of "Pratyahar ".

We receive the data from outside with the help of our sense organs all the time, continuously. This intake is "Aahar = food ".

"Pratyahar " is not to receive the stimuli from outside but to observe the thought process without getting involved in it. This is the way to keep away from outside distractions and to focus on inner journey.

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