पौंड्रक

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पौंड्रक रूषदेश (मीरजापुर) का राजा था। भगवान् कृष्ण से उसके भीषण युद्ध के विषय में भागवत के दशमस्कंध उत्तरार्ध में वर्णित है।[1]भागवत पुराण में पौंड्रक वासुदेव एक राजा हैं। इसके अनुसार, वह पुंड्रा साम्राज्य के राजा थे। कुछ सूत्रों का कहना है कि वह मगध के राजा जरासंध और गांधार साम्राज्य के राजा शकुनि दोनों का सहयोगी था। वह कृष्ण का एक बड़ा दुश्मन था। उन्होंने खुद को वासुदेव या भगवान मानते हुए कृष्ण की नकल की। बाद में वह युद्ध में कृष्ण द्वारा मारा गया। कुछ शास्त्रों के अनुसार पौंड्रक कृष्ण के हमशक्ल थे। कुछ स्रोतों के अनुसार उन्हें राक्षसी राजा वेन का अवतार माना जाता है।

कथा पाैंड्रीक[संपादित करें]

रूषदेश के राजा पौंड्रक किसी अन्य के द्वारा भ्रमित हो स्वयं को कृष्ण समझने लगे। उन्होंने एक दूत को द्वारिका भेजा। दूत ने सभा में कहा, - "कृष्ण! तुम जो वासुदेव होने का ढोंग कर रहे हो उसे त्याग दो तथा हमारे प्रभु असली वासुदेव पौंड्रक के शरण में जाओ अथवा युद्ध करो।" इस बात को सुनकर सभा में उपस्थित सारे लोग हँस पड़े। भगवान् ने कहा कि दूत पौंड्रक को बता दे कि वह युद्ध हेतु अपना सुदर्शन तैयार रखे। दूत की यह बात सुनकर पौंड्रक ने गरुण रूपी विमान बनवाया, काठ के २ हाथ बनवाकर पीताम्बर धारण कर दो अक्षौहिणी सेना लेकर युद्ध हेतु निकाला। कृष्ण अकेले आए तथा अपने चक्र से उसकी सेना समाप्त कर, पौंड्रक को निरथ कर उसका वध कर दिया।[2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भागवत महापुराण
  2. भागवत दशमस्कंध