पृथु

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श्री विष्णु अवतार चैत्रवंश सम्राट आदिराज पृथु
श्री विष्णु अवतार चैत्रवंश सम्राट अदिराज पृथु

पृथु' चित्रवंशी सम्राट राजा वेन के पुत्र थे ध्रुव के वंशज थे और विष्णु अवतार पृथु ना तो इक्ष्वाकु और वृष्णि और पुरु वंश तीन राजाओं ने पृथु की उपाधि धारण करी थी यानी पृथु ने अपने तीन अंशो को इन तीन वंशो मैं बेजा असली पृथु ध्रुव वंश मैं हुए असली पृथु ध्रुव वंश के थे ध्रुव वंश अलग ही राजवंश के क्योंकि ध्रुव के पिता उत्तानपाद के पिता मनु उत्तानपाद भगवान विष्णु और भगवान् शिव और चित्रगुप्त के भक्त थे श्री विष्णु अवतार ध्रुववंशी चैत्रवंश सम्राट पृथु ने परशुराम को युद्ध मैं हराकर उनका दिल भी जीता क्योंकि परशुराम ने सहत्रबाहु को मरने के बाद उनका क्रोध शांत किया था पृथु महाराज इस कारण परशुराम को हराया और उनका दिल भी जीता और श्री अवतार पृथु ही उन्हे हरसकते थे और पृथु महाराज ने शांत करने लिए परशुराम को युद्ध मैं हराया और उनका दिल जीता और। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है।[1] साधुशीलवान् अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से मार डाला था। तब अराजकता के निवारण हेतु निःसन्तान मरे वेन की भुजाओं का मन्थन किया गया जिससे स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम 'पृथु' रखा गया तथा स्त्री का नाम 'अर्चि'। वे दोनों पति-पत्नी हुए। पृथु को भगवान् विष्णु तथा अर्चि को लक्ष्मी का अंशावतार माना गया है।[2] महाराज पृथु ने ही पृथ्वी को समतल किया जिससे वह उपज के योग्य हो पायी। महाराज पृथु से पहले इस पृथ्वी पर पुर-ग्रामादि का विभाजन नहीं था; लोग अपनी सुविधा के अनुसार बेखटके जहाँ-तहाँ बस जाते थे।[3] महाराज पृथु अत्यन्त लोकहितकारी थे। उन्होंने 99 अश्वमेध यज्ञ किये थे। सौवें यज्ञ के समय इन्द्र ने अनेक वेश धारण कर अनेक बार घोड़ा चुराया, परन्तु महाराज पृथु के पुत्र इन्द्र को भगाकर घोड़ा ले आते थे। इन्द्र के बारंबार कुकृत्य से महाराज पृथु अत्यन्त क्रोधित होकर उन्हें मार ही डालना चाहते थे कि यज्ञ के ऋत्विजों ने उनकी यज्ञ-दीक्षा के कारण उन्हें रोका तथा मन्त्र-बल से इन्द्र को अग्नि में हवन कर देने की बात कही, परन्तु ब्रह्मा जी के समझाने से पृथु मान गये और यज्ञ को रोक दिया। सभी देवताओं के साथ स्वयं भगवान् विष्णु प्रसन्न थे चित्रगुप्त भानु श्रीवास्तव देवदुत्तराज और क्योंकि चौदह मनु और शतरूपा थे

            महाराज स्यांभू मनु और माता शतरूपा

प्रियंव्रत उत्तानपाद

उत्तम+महाराज ध्रुव

वत्सर (स्वरविथी)

पुष्पर्ण (6 और पुत्र)

व्यूष्ट ( 6 पुत्र और)

सर्व तेजस

चाक्षुष मनु

उलमुका (और अन्य पुत्र)

महाराज अंग

महाराज वेन

बन, जल, तथा पहाड़ी क्षेत्र के राजा ( चित्रवंश ) श्रावस्ती वंशी क्षेत्र के राजा (पृथु)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भागवत महापुराण-4.13.20 (सटीक, दो खण्डों में, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-2001ई.)
  2. भागवत.,पूर्ववत्-4.15.2,6.
  3. भागवत.,पूर्ववत्-4.18.32.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]