पूर्वी चालुक्य

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पूर्वी चालुक्या

पूर्वी चालुक्य सोलंकी या 'वेंगी के चालुक्य' दक्षिणी भारत का एक राजवंश था, जिनकी राजधानी वर्तमान आंध्र प्रदेश में वेंगी (वर्तमान एलुरु के पास) थी। पूर्वी चालुक्यों ने ७वीं शताब्दी से आरम्भ करके ११३० ई तक लगभग ५०० वर्षों तक शासन किया। इसके बाद वेंगी राज्य चोल साम्राज्य में विलीन हो गया और ११८९ ई तक चोल साम्राज्य के संरक्षन में इस पर चालुक्य राजाओं ने शासन किया। इसके बाद वेंगी राज्य पर होयसला और यादव राजाओं के अधीन हो गया।

पूर्वी चालुक्यों की राजधानी पहले वेंगी थी जो बाद में राजमहेन्द्रवरम (राजमुन्द्री) हो गयी। वेंगी, पश्चिमी गोदावरी जिले के एलुरु के निकट स्थित था।

पूर्वी चालुक्यों का बादामी के चालुक्यों से निकट सम्बन्ध था। पूरे इतिहास में वेंगी राज्य को लेकर चोल साम्राज्य और पश्चिमी चालुक्यों में कई युद्ध हुए। पूर्वी चालुक्यों के काल में तेलुगु संस्कृति, कला, साहित्य, काव्य का खूब विकास हुआ। इसे आंध्र प्रदेश का 'स्वर्ण युग' कहा जा सकता है।

परिचय[संपादित करें]

राजनीतिक अव्यवस्था के कारण संपूर्ण पूर्वी चालुक्य राज्य के शासन व्यवस्थित नहीं हो पाया। साम्राज्य कई छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था जो केवल पूर्वी चालुक्य नरेशों के अत्यधिक शाक्तिशाली रहने पर ही उनकी अधीनता मानते थे। अभिलेखों में सप्तांगों के अतिरिक्त मंत्री, पुरोहित, सेनापति, युवराज, दौवारिक, प्रधान और अध्यक्ष आदि 18 तीर्थों के उल्लेख हैं। राजभवन के कर्मचारी 72 नियोगों में संगठित थे। इनके अतिरिक्त मन्नेय, राष्ट्रकूट और ग्रामणी के भी उल्लेख मिलते हैं। राज्य विषय और कोट्टम् में विभक्त था।

युवानच्वां के अनुसार भूमि अत्यधिक उपजाऊ थी और लोगें का स्वभाव प्रचंड था। लोग कृष्णवर्ण के और कलाप्रिय थे। देश के कुछ भागों की आबादी बिखरी थी और कुछ वन प्रदेश थे जिनमें दस्युओं के दल निरापद विचरण करते थे। अभिलेखों में बोय और शबर लोगों के भी उल्लेख मिलते हैं। कोमटि अथवा व्यापारी वर्ग समृद्ध था। श्रेणियों (नकर) का संगठन शक्तिशाली था।

बौद्ध धर्म अवनत दशा में था और उसका स्थान ब्राह्मण धर्म ले रहा था। शैव संप्रदाय का वैष्णव संप्रदाय की तुलना में अधिक प्रसार था। किंतु जैन धर्म की स्थिति अच्छी थी और उसे कुछ पूर्व चालुक्य नरेशों का भी संरक्षण उसे प्राप्त था। शिक्षा के प्रसार में मठों का महत्वपूर्ण योगदान था।

किरातार्जुनीयम् के रचयिता भारवि को चालुक्यों की इसी शाखा के संस्थापक विष्णवर्धन् के साथ संबंधित किया जाता है। साहित्यिक रचना की दृष्टि से संस्कृत के बाद कन्नड का स्थान था। कन्नड के तीन प्रसिद्ध कवि थे- पोन्न, पंप और नागवर्म। किंतु चालुक्यनरेश तेलुगु भाषा के साहित्यिक उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिये प्रसिद्ध हैं। विजयादित्य तृतीय के अभिलेखों में सर्वप्रथम तेलुगु पद्य मिलते हैं। नन्नय भट्ट का महाभारत तेलुगु की सर्वोत्कृष्ट कृतियों में से है।