नाक्षत्र समय

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नक्षत्र समय ( ) समयमापन की एक विधि है जिसका उपयोग खगोलविज्ञानी () किसी नक्षत्र विशेष को रात्रि में अपने दूरदर्शी की सहायता से देखने के लिये करते हैं। इससे उन्हें पता लगता है कि दूरदर्शी का मुख किस समय किस दिशा में रखने से वह नक्षत्र दिखाई देगा। प्रेक्षण के किसी एक स्थान से आकाश में जिस स्थान पर कोई तारा दिखाई पडता है, अगली रात उसी नक्षत्र-समय पर लगभग उसी दिशा में मिलेगा।

जिस प्रकार सूर्य और चंद्रमा पूर्व में उगते हुए तथा पश्चिम में अस्त होते हुए मालूम पड़ते हैं, उसी तरह अन्य नक्षत्र भी। 'सौर समय' और 'नक्षत्र समय' दोनो ही पृथ्वी की अपनी ध्रुवीय अक्ष पर घूर्णन गति की नियमितता पर आधारित हैं।

परिचय[संपादित करें]

समय का ज्ञान सूर्य की दृश्य स्थितियों से किया जाता है। सामान्यत: सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन तथा सूर्यास्त से पुन: सूर्योदय तक रात्रि होती हैं, किंतु तिथिगणना के लिए दिन रात मिलकर दिन कहलाते हैं। किसी स्थान पर सूर्य द्वारा याम्योत्तर वृत्त के अधोबिंदु की एक परिक्रमा को एक 'दृश्य दिन' कहते हैं, तथा सूर्य की किसी स्थिर नक्षत्र के सापेक्ष एक परिक्रमा को 'नाक्षत्र दिन' कहते हैं। यह नक्षत्र रूढ़ि के अनुसार माप का आदि बिंदु (first point of Aries i. e. g), अर्थात् क्रांतिवृत्त तथा विषुवत् वृत्त का वसंत संपात बिंदु लिया जाता है। यद्यपि नाक्षत्र दिन स्थिर है, तथापि यह हमारे व्यवहार के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि यह दृश्य दिन से 3 मिनट 53 सेकंड कम है। दृश्य दिन का मान सदा एक सा नहीं रहता। अत: किसी घड़ी से दृश्य सूर्य के समय का बताया जाना कठिन है। इसके दो कारण हैं : एक तो सूर्य की स्पष्ट गति सदा एक सी नहीं रहती, दूसरे स्पष्ट सूर्य क्रांतिवृत्त में चलता दिखाई देता है। हमें समयसूचक यंत्र बनाने के लिए ऐसे सूर्य की आवश्यकता होती है, जो मध्यम गति से सदा विषुवत्वृत्त में चले। ऐसे सूर्य को ज्योतिषी लोग ज्योतिष-माध्य-सूर्य (mean Astronomical Sun) अथवा केवल माध्य सूर्य कहते हैं। विषुवत्वृत्त के मध्यम सूर्य तथा क्रांतिवृत्त के मध्यम सूर्य के अंतर को भास्कराचार्य ने उदयांतर तथा क्रांतिवृत्तीय मध्यम सूर्य तथा स्पष्ट सूर्य के अंतर को भुजांतर कहा है। यदि ज्योतिष-माध्य सूर्य में उदयांतर तथा भुजांतर संस्कार कर दें, तो वह दृश्य सूर्य हो जाएगा। आधुनिक शब्दावली में उदयांतर तथा भुजांतर के एक साथ संस्कार को समय समीकरण (Equation of time) कहते हैं। यह हमारी घड़ियों के समय (माध्य-सूर्य-समय) तथा दृश्य सूर्य के समय के अंतर के तुल्य होता है। समय समीकार का प्रति दिन का मात्र गणित द्वारा निकाला जा सकता है। आजकल प्रकाशित होनेवाले नाविक पंचांग (nautical almanac) में, इसका प्रतिदिन का मान दिया रहता है। इस प्रकार हम अपनी घड़ियों से जब चाहें दृश्य सूर्य का समय ज्ञात कर सकते हैं। इसका ज्योतिष में बहुत उपयोग होता है। विलोमत: हम सूर्य के ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु के लंघन का वेध करके, उसमें समय समीकार को जोड़ या घटाकर, वास्तविक माध्य-सूर्य का समय ज्ञात करके अपनी घड़ियों के समय को ठीक कर सकते हैं।

हम हमने समय नापने के लिए आधुनिक घड़ियाँ बताईं, तब यह पाया गया कि सर्दी तथा गर्मी के कारण घड़ियों के धातुनिर्मित पुर्जों के सिकुड़ने तथा फैलने के कारण ये घड़ियाँ ठीक समय नहीं देतीं। अब हमारे सामने यह समस्या थी कि हम अपनी यांत्रिक घड़ियों की सूक्ष्म अशुद्धियों को कैसे जानें? यद्यपि सूर्य के ऊर्ध्व याम्योत्तर लंघन की विधि से हम अपनी घड़ियों की अशुद्धि जान सकते थे, तथापि सूर्य के ऊर्ध्व याम्योत्तर लंघन का वेध स्वयं कुछ विलष्ट हैं तथा सूर्य के बिंब के विशाल होने के कारण उसमें वेधकर्ता की व्यक्तिगत त्रुटि (personal error) की अधिक संभावना है। दूसरी कठिनाई यह थी कि हमारी माध्य-सूर्य-घड़ी के समय का आकाशीय पिंडों की स्थिति से कोई प्रत्यक्ष संबंध न था। इसी कमी की पूर्ति के लिए नक्षत्र घड़ी (siderial clock) का निर्माण किया गया, जो नक्षत्र समय बताती थी। इसके 24 घंटे पृथ्वी की अपने अक्ष की एक परिक्रमा के, अथवा वसंतपात बिंदु के ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु की एक परिक्रमा के, समय के तुल्य होते हैं। 21 मार्च के लगभग, बसंतपात बिंदु हमारे दृश्य-सूर्य के साथ ऊर्ध्व याम्योत्तर लंघन करता है। उस समय नाक्षत्र घड़ी का समय शून्य घंटा, शून्य मिनिट, शून्य सेकंड होता है। हमारी घड़ियों में उस समय 12 बजते हैं। दूसरे दिन दोपहर को नाक्षत्र घड़ी का समय 4 मिनट होगा। अन्य किसी भी निचित दिन माध्य-सूर्य के समय को हम अनुपात से नाक्षत्र सम में, या नाक्षत्र समय को माध्य सूर्य के समय में, परिवर्तित कर सकते हैं। नाविक पंचांगों में इस प्रकार के समयपरिवर्तन की सारणियाँ दी रहती हैं। इस प्रकार यदि हमें किसी प्रकार शुद्ध समय देनेवाली नाक्षत्र घड़ी मिल जाए, ते हमें अपनी माध्य घड़ी के समय को शुद्ध रख सकते हैं। यद्यपि नाक्षत्र घड़ी भी यांत्रिक होती है तथा उसमें भी यांत्रिक त्रुटि हो जाती है, तथापि इसे प्रतिदिन शुद्ध किया जा सकता है, क्योंकि इसका आकाशीय पिंडों की स्थिति से प्रत्यक्ष संबंध है। वह इस प्रकार है : कोई ग्रह व तारा ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु से पचिम की ओर खगोलीय ध्रुव पर जो कोण बनाता है, उसे कालकोण कहते हैं। इस प्रकार नक्षत्र सम बसंतपात का कालकोण है। किसी तारा वा ग्रह का विषुवांश बसंतपात से उसकी विषुवत्वृत्तीय दूरी (अर्थात् ग्रह या तारे या ध्रुव से जानेवाला बृहद्वृत्त जहाँ विषुवद्वृत्त को काटे, वहाँ से वसंतपात तक की दूरी, होती है। चूँकि कालकोण विषुवद्वृत्त के चाप द्वारा ही जाना जाता है, इसलिए जब ग्रह या तारा ऊर्ध्व याम्योत्तर बिंदु पर होगा, उस समय उसका विषुवांश नाक्षत्र समय के तुल्य होगा।

नक्षत्र घड़ी को ठीक करने की विधि[संपादित करें]

नक्षत्र घड़ी की अशुद्धि को जानने के लिए याम्योत्तर यंत्र (transit instrument) द्वारा सूर्य अथवा तारों का वेध करके, क्रोनोमीटर नामक यंत्र की सहायता से, उनके याम्योत्तर लंघन का नक्षत्र समय जान लिया जाता है।

नाक्षत्र घड़ी से मिलाकर, याम्योत्तर यंत्र के दूरदर्शी में ग्रह या तारे के बेध के नक्षत्र समय को क्रोनोमीटर का स्विच दबाकर जान लिया जाता है। इस समय से यांत्रिक अशुद्धियों को निकाल देने पर जो समय प्राप्त होता है, वही ग्रह या तारे के याम्योत्तर के ऊर्ध्व बिंदु के लंघन का समय होता है। यदि नाक्षत्र पड़ी ठीक है, तो यह ग्रह या तारे के विषुवांश के तुल्य होगा और अंतर घड़ी की अशुद्धि है। इस प्रकार नक्षत्र घड़ी को शुद्ध रखकर उससे माध्य सूर्य घड़ियों को शुद्ध किया जाता है। याम्योत्तर यंत्र द्वारा वेध करने में व्यक्तिगत अशुद्धि की अधिक संभावना है। इसलिए तारों के याम्योत्तर लंघन के नक्षत्र समय को कैमरा लगे खमध्य दूरदर्शकों (zenith tubes) से भी जाना जाता है।

इस प्रकार यद्यपि माध्य समय की घड़ियों को ठीक रखा जाता है, तथापि उनमें दैनिक संशोधन करना एक समस्या थी। इसलिए आजकल घड़ियों के सेकंड सूचक उपकरण क्वार्ट्ज के क्रिस्टलों (quartz crystals) से बनाए जाते हैं। क्वार्ट्ज के क्रिस्टलों पर उष्णता का प्रभाव बहुत कम पड़ता है। अतएव ये घड़ियाँ बहुत शुद्ध समय देती हैं। इनमें सेकंड के हजारवें भाग तक की अशुद्धि जानी जा सकती है। साथ इस घड़ी को उस तरह की दूसरे स्टेशनों पर रखी घड़ियों के समय संकेतक, पिप्, को सुनकर, मिलाया जा सकता है तथा इससे समय संकेतक (time signals) पिप् भेजे भी जा सकते हैं। इस प्रकार की एक घड़ी काशी की प्रस्तावित, राजकीय संस्कृत कालज वेधशाला के लिए सन् 1953 में मँगवाई गई थी, जो अब राजकीय वेधशाला नैनीताल में है। इस प्रकार की घड़ियों से देश की मुख्य घड़ियों को ठीक करके, रेडियो के समय सकेंतक "पिप्" से सब माध्य सूर्यं घड़ियाँ ठीक रखी जाती हैं।

आजकल प्रत्येक देश में मध्यरात्रि के समय को शून्य मानकर, वहीं से दिन का प्रारंभ मानते हैं। दिन रात के 24 घंटों को दो 12 घंटों में, (1) रात के बारह बजे से 12 घंटों तक पूर्वाह्नकाल तक तथा (2) दिन के 12 बजे से रात्रि के 12 बजे तक अपराह्नकाल में, बाँट दिया जाता है। हमारी घड़ियाँ यहीं समय बतलाती हैं। इन 24 घंटों को नागरिक दिन कहते हैं। दिन में 24 घंटे, 1 घंटे में 60 मिनिट तथा एक मिनट में 60 सेकंड होते हैं। विज्ञान की अंग्रेजी मापन प्रणाली फुट सेकंड में तथा अंतरराष्ट्रीय प्रणाली सेंटीमीटर ग्राम सेकंड में सेकंड ही समय की इकाई है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]