नटराज

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
[ चोल शासकों के काल की शिव प्रतिमा नटराजरूप में जिसे मेट्रोपॉलिटिन कला संग्रहालय, न्यूयॉर्क सिटी में रखा गया है

नटराज शिवजी का एक नाम है उस रूप में जिस में वह सबसे उत्तम नर्तक हैं। नटराज शिव का स्वरूप न सिर्फ उनके संपूर्ण काल एवं स्थान को ही दर्शाता है; अपितु यह भी बिना किसी संशय स्थापित करता है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहित है। नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात कला) और राज। इस स्वरूप में शिव कलाओं के आधार हैं। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है।

शिव के दो स्वरूप[संपादित करें]

शिव के तांडव के दो स्वरूप हैं। पहला उनके क्रोध का परिचायक, प्रलयकारी रौद्र तांडव तथा दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव। पर ज्यादातर लोग तांडव शब्द को शिव के क्रोध का पर्याय ही मानते हैं। रौद्र तांडव करने वाले शिव रुद्र कहे जाते हैं, आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार शिव के आनन्द तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता है। शिव का नटराज स्वरूप भी उनके अन्य स्वरूपों की ही भांति मनमोहक तथा उसकी अनेक व्याख्याएँ हैं। जो संसार में उपस्थित सभी कलाओं के देवता माने जाते है।

इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

हिन्दू धर्म
श्रेणी

Om
इतिहास · देवता
सम्प्रदाय · पूजा ·
आस्थादर्शन
पुनर्जन्म · मोक्ष
कर्म · माया
दर्शन · धर्म
वेदान्त ·योग
शाकाहार शाकम्भरी  · आयुर्वेद
युग · संस्कार
भक्ति {{हिन्दू दर्शन}}
ग्रन्थशास्त्र
वेदसंहिता · वेदांग
ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक
उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता
रामायण · महाभारत
सूत्र · पुराण
विश्व में हिन्दू धर्म
गुरु · मन्दिर देवस्थान
यज्ञ · मन्त्र
हिन्दू पौराणिक कथाएँ  · हिन्दू पर्व
विग्रह
प्रवेशद्वार: हिन्दू धर्म

हिन्दू मापन प्रणाली

नटराज शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मूर्ति के चार भुजाएँ हैं, उनके चारों ओर अग्नि के घेरें हैं। उनका एक पाँव से उन्होंने एक बौने(अकश्मा) को दबा रखा है, एवं दूसरा पाँव नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है। उन्होंने अपने पहले दाहिने हाथ में (जो कि ऊपर की ओर उठा हुआ है) डमरु पकड़ा हुआ है। डमरू की आवाज सृजन का प्रतीक है। इस प्रकार यहाँ शिव की सृजनात्मक शक्ति का द्योतक है। ऊपर की ओर उठे हुए उनके दूसरे हाथ में अग्नि है। यहाँ अग्नि विनाश का प्रतीक है। इसका अर्थ यह है कि शिव ही एक हाथ से सृजन करतें हैं तथा दूसरे हाथ से विलय। उनका दूसरा दाहिना हाथ अभय (या आशीष) मुद्रा में उठा हुआ है जो कि हमें बुराईयों से रक्षा करता है।

उठा हुआ पांव मोक्ष का द्योतक है। उनका दूसरा बाया हाथ उनके उठे हुए पांव की ओर इंगित करता है। इसका अर्थ यह है कि शिव मोक्ष के मार्ग का सुझाव करते हैं। इसका अर्थ यह भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है। उनके पांव के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है जो कि शिव द्वारा नष्ट किया जाता है। शिव अज्ञान का विनाश करते हैं। चारों ओर उठ रही आग की लपटें इस ब्रह्माण्ड की प्रतीक हैं। उनके शरीर पर से लहराते सर्प कुण्डलिनी शक्ति के द्योतक हैं। उनकी संपूर्ण आकृति ॐ कार स्वरूप जैसी दिखती है। यह इस बात को इंगित करता है कि ॐ शिव में ही निहित है।

वह ताण्डव नृत्य करते हें जिससे विश्व का संहार होता है।