तंजौर के दर्शनीय स्थल

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बृहदीश्वर मंदिर[संपादित करें]

बृहदेश्वर मंदिर

इस मंदिर का निर्माण महान चोल राजा राजराज चोल ने करवाया था। यह मंदिर भारतीय शिल्प और वास्तु कला का अदभूत उदाहरण है। मंदिर के दो तरफ खाई है और एक ओर अनाईकट नदी बहती है। अन्य मंदिरों से अलग इस मंदिर में गर्भगृह के ऊपर बड़ी मीनार है जो 216 फुट ऊंची है। मीनार के ऊपर कांसे का स्तूप है। मंदिर की दीवारों पर चोल और नायक काल के चित्र बने हैं जो अजंता की गुफाओं की याद दिलाते हैं। मंदिर के अंदर नंदी बैल की विशालकाय प्रतिमा है। यह मूर्ति 12 फीट ऊंची है और इसका वजन 25 टन है। नायक शासकों ने नंदी को धूप और बारिश से बचाने के लिए मंडप का निर्माण कराया था। मंदिर में मुख्य रूप से तीन उत्सव मनाए जाते हैं- मसी माह (फरवरी-मार्च) में शिवरात्रि, पुरत्तसी (सितंबर-अक्टूबर) में नवरात्रि और ऐपस्सी (नवंबर-दिसंबर) में राजराजन उत्सव।

सरस्वती महल पुस्तकालय[संपादित करें]

इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों का महत्वपूर्ण संग्रह है। इसकी स्थापना 1700 ईसवी के आस-पास की गई थी। इस संग्रहालय में भारतीय और यूरोपीयन भाषाओं में लिखी हुई 44000 से ज्यादा ताम्रपत्र और कागज की पांडुलिपियां देखने को मिलती हैं। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक पांडुलिपियां संस्कृत में लिखी हुई हैं। कुछ पांडुलिपियां तो बहुत ही दुर्लभ हैं। इनमें तमिल में लिखी औषधि विज्ञान की पांडुलिपियां भी शामिल हैं।

महल[संपादित करें]

सुंदर और भव्य इमारतों की इस श्रृंखला में से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ई. के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है। इसका प्रयोग आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए किया जाता था। गुडापुरम के आगे महल की छत पर मडामलगाई नामक इमारत बनाई गई थी जो छ: मंजिला है।

स्वार्ट्ज चर्च[संपादित करें]

स्वार्ट्ज चर्च या क्राइस्ट चर्च तंजौर में औपनिवेशिक शासन की याद दिलाता है। यह शिवगंगा कुंड के पूर्व में स्थित है। इसकी स्थापना रवरेंड फ्रैडरिक क्रिश्चियन स्वार्ट्ज ने 1779 में की थी। 1798 में उनकी मृत्यु के पश्चात मराठा सम्राट सफरोजी ने उनकी याद में चर्च के पश्चिमी छोर पर संगमरमर का शिलाखंड लगवाया था।

रॉयल संग्रहालय[संपादित करें]

तंजावुर तमिलनाडु का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है। इस संग्रहालय में पल्लव, चोल, पंड्या और नायक कालीन पाषाण प्रतिमाओं का संग्रह है। एक अन्य दीर्घा में तंजौर की ग्लास पेंटिंग्स प्रदर्शित की गई हैं। लकड़ी पर बनाई गई इन तस्वीरों में रंग-संयोजन देखते ही बनता है। यह संग्रहालय अपने कांस्य शिल्प के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है।

शिवगंगा किला[संपादित करें]

इस किले का निर्माण नायक शासक सेवप्पा नायक ने 16वीं शताब्दी के मध्य में करवाया था। 35 एकड़ में बने इस किले की दीवारें पत्थर की बनी हैं जो संभवत: आक्रमणकारियों से बचने के लिए बनाई गई थीं। किले में स्थित वर्गाकार शिवगंगा कुंड शहर में पीने के पानी की आपूर्ति के लिए बनाया गया था। इस किले में ब्रहदीश्वरर मंदिर, स्वार्ट्ज चर्च और सार्वजनिक मनोरंजन पार्क भी है।

निकटवर्ती दर्शनीय स्थल[संपादित करें]

सिक्कल सिंगरवेलवर मंदिर[संपादित करें]

यह मंदिर तंजावुर से 80 किलोमीटर दूर नागापट्टनम तिरुवरूर मुख्य मार्ग पर स्थित है। माना जाता है कि भगवान मुरुगन ने यहीं पर पार्वती से शक्ति वेल प्राप्त किया था और सूरन का वध किया था। यह मंदिर तमिलनाडु के उन कुछ मंदिरों में से एक है जहां शिव और विष्णु की मूर्ति एक साथ एक ही मंदिर में स्‍थापित हैं। तमिल पचांग के अनुसार लिप्पसी माह में वेल वैंकुंठल उत्सव यहां धूमधाम से मनाया जाता है।

स्वामीमलई[संपादित करें]

तंजावुर से 32 किलोमीटर दूर स्वामीमलई उन छ: मंदिरों में से एक है जो भगवान मुरुगन को समर्पित है। भगवान मुरुगन ने ऊं मंत्र का उच्चारण किया था और इसलिए उनका नाम स्वामीनाथम पड़ गया। मंदिर की 60 सीढ़ियां तमिल पंचांग के 60 वर्षो की परिचायक हैं। प्रत्येक गुरुवार, स्वामीनाथ को विशेष प्रकार से सजाया जाता है।

तिरुवयरु[संपादित करें]

तंजावुर से 13 किलोमीटर दूर इस स्थान पर संत त्यागराज ने अपना जीवन बिताया था और यहीं पर उन्होंने समाधि ली थी। तिरुवैयरु का प्रसिद्ध मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। संत त्यागराज की याद में यहां हर साल जनवरी में आठ दिन का संगीत समारोह आयोजित किया जाता है।

त्यागराजस्वामी मंदिर[संपादित करें]

तंजावुर से 55 किलोमीटर दूर तिरुवरुर स्थित त्यागराजस्वामी मंदिर तमिलनाडु का सबसे बड़ा रथ शैली का मंदिर है। यहां त्यागराज, कमलंबा और वनमिक नथर का निवास है। मंदिर के स्तंभ और कमरें बहुत ही सुंदर हैं। राजराज चोलन त्यागराजस्वामी के परम भक्त थे। तिरुवरुर संत त्यागराज का जन्मस्थान भी है।

वैठीश्वरन कोवली[संपादित करें]

यह प्राचीन मंदिर शिव को समर्पित है। इस मंदिर का गुणगान अनेक संत कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है। इसके स्तंभों और मंडपों की सुंदरता से आकर्षित होकर अनेक श्रद्धालु यहां आते हैं। कहा जाता है कि मंगल, कार्तिकेय और जटायु ने यहां भगवान शिव की स्तुति की थी। इस मंदिर को अगरकस्थानम भी माना जाता है।