डेटाबेस

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ऍसक्यूऍल परिणाम

संगणक विज्ञान में, दत्तनिधि या दत्तसंग्रह, वैद्युतिक रूप से संगृहीत अनुक्रमित सूचना का एक व्यवस्थित रूप से संगठित या संरक्षित भण्डार है जो दत्त की पुनर्प्राप्ति, अद्यतन, विश्लेषण और उत्पादन की अनुमति देता है। छोटे दत्तनिधियों को संचिका तन्त्र पर रखा जा सकता है, जबकि बड़े दत्तनिधियों को संगणक समुह या क्लाउड संरक्षणागार पर भण्डारित किया जाता है। दत्तनिधि का रचना औपचारिक तकनीकों और व्यावहारिक विचारों तक विस्तृत है जिसमें दत्त प्रतिरूपण, कुशल दत्त प्रतिनिधित्व और भण्डारण, पृच्छा भाषाएँ, सुरक्षा और गोपनीयता, और संगामी पहुंच और दोष सहिष्णुता का समर्थन करने सहित वितरित अभिकलन मुद्दे शामिल हैं।

जटिल सूचना प्रणालियों (सामान्यतः कई समवर्ती अंत-उपयोक्ताओं के साथ, और विविध दत्त की एक बड़ी मात्रा के साथ) की रचना, निर्माण और संरक्षण में बढ़ती समस्याओं को घटाने हेतु 1960 के दशक से दत्तनिधि अवधारणा विकसित हुई है।

एक दत्तनिधि प्रबन्धन तन्त्र (DBMS), अभिकलित्र कार्यक्रम के साथ एक सॉफ्टवेयर पैकेज है जो दत्तनिधि के निर्माण, संरक्षण और प्रयोग को नियन्त्रित करता है। यह संगठनों को विभिन्न अनुप्रयोगों हेतु आसानी से दत्तनिधि विकसित करने की अनुमति देता है। एक दत्तनिधि दत्त रिकॉर्ड, संचिकाओं और अन्य वस्तुओं का एक एकीकृत संग्रह है। एक DBMS विभिन्न उपयोक्ता अनुप्रयोग प्रोग्रामों को एक ही दत्तनिधि तक समवर्ती रूप से अभिगम करने की अनुमति देता है। प्रसिद्ध DBMS में ओरैकल, माइक्रोसॉफ़्ट ऍस्क्यूऍल सर्वर, माइक्रोसॉफ़्ट ऐक्सेस, माइ एस्क्यूएल शामिल हैं।

डेटाबेस का इतिहास[संपादित करें]

डेटाबेस का इतिहास आज के डिजिटल युग से पहले तक जाता है। इसे कहा जा सकता है कि कंप्यूटर की शुरुआत से पहले डेटाबेस का उपयोग शारीरिक रूप से किया जाता था, और अब इसे डिजिटल रूप से संग्रहीत किया जाता है। कंप्यूटर की शुरुआत से पहले, डेटा को पत्रिकाओं, पुस्तकालयों और फाइलिंग कैबिनेट में मैन्युअल रूप से संग्रहीत किया जाता था। 20वीं सदी के मध्य में मैग्नेटिक डिस्क जैसे डायरेक्ट एक्सेस स्टोरेज मीडिया ने डेटाबेस के कांसेप्ट को सुविधाजनक बनाया।[1]

1960 में, चार्ल्स डब्ल्यू. बैचमैन ने एकीकृत डेटाबेस सिस्टम बनाते हुए पहला डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम (DBMS) डिज़ाइन किया। इसके बाद, पदानुक्रमित (हायरार्किकल) डेटाबेस मॉडल डिज़ाइन किया गया। 1970 में एडगर कॉड ने रिलेशनल डेटाबेस मॉडल का विकास किया, जिसने डेटाबेस के क्षेत्र में क्रांति ला दी। ओरेकल ने 1979 में पहला कमर्शियल रिलेशनल डेटाबेस लॉन्च किया। 1980 और 90 के दशक में DB2, SAP Sysbase ASE और Informix जैसे कमर्शियल रिलेशन डेटाबेस का उदय हुआ।

दत्तनिधि की सुविधाएँ[संपादित करें]

  • दत्तातिरेक्य की ह्रास: दत्तनिधि प्रबन्धन तन्त्र में कई संचिकाएँ होती हैं जिन्हें तन्त्र में या यहाँ तक कि कई उपकरणों में कई विभिन्न स्थानों में संग्रहीत किया जाना है। इसलिए, कभी-कभी एक ही संचिका की कई प्रतियाँ होती थीं, जिसके कारण दत्तातिरेक्य (दत्त की अतिरेकता) होता था। दत्तनिधि में इसे रोका जाता है क्योंकि एक ही दत्तनिधि होता है और इसमें कोई भी परिवर्तन तुरन्त दिखाई देता है। इसलिए, नकल दत्त का सामना करने की कोई संभावना नहीं है।
  • दत्त साझाकरण: एक दत्तनिधि में, दत्तनिधि के उपयोक्ता परस्पर में दत्त साझा कर सकते हैं। दत्त तक पहुँचने हेतु प्राधिकरण के विभिन्न स्तर हैं, और परिणामस्वरूप दत्त केवल अधिकृत उपयोक्ताओं के आधार पर ही साझा किया जा सकता है। कई दूरस्थ उपयोक्ता एक साथ दत्तनिधि तक पहुँच सकते हैं और दत्त को आपस में साझा कर सकते हैं।
  • दत्ताखण्ड्य: दत्ताखण्ड्य का अर्थ है कि दत्त दत्तनिधि में सटीक और सुसंगत है। दत्ताखण्ड्य बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि DBMS में कई दत्तनिधि होते हैं। इन सभी दत्तनिधियों में दत्त होता है जो कई उपयोक्ताओं को दृश्य होता है। इसलिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि दत्त सभी दत्तनिधियों में और सभी उपयोक्ताओं हेतु सही और सुसंगत है।
  • दत्त सुरक्षा: दत्त सुरक्षा एक दत्तनिधि में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। केवल अधिकृत उपयोक्ताओं को दत्तनिधि तक पहुँचने की अनुमति दी जानी चाहिए और उपयोक्ता नाम और पारण शब्द का प्रयोग करके उनकी परिचय को प्रमाणित किया जाना चाहिए। अनधिकृत उपयोक्ताओं को किसी भी परिस्थिति में दत्तनिधि तक पहुँचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह आखण्ड्य बाधाओं का उल्लंघन करता है।
  • गोपनीयता: एक दत्तनिधि में गोपनीयता नियम बताता है कि केवल अधिकृत उपयोक्ता ही किसी दत्तनिधि को उसकी गोपनीयता बाधाओं के अनुसार अभिगम कर सकते हैं। दत्त स्तर को सुरक्षित करने के लिए दत्तनिधि में तय किया जाता है और उपयोक्ता केवल उस दत्त को देख सकता है जिसे देखने की अनुमति है। उदाहरणतः: सामाजिक नेटवर्किंग सेवाएं में, विभिन्न खातों के लिए उपलब्धि की संयम भिन्न होती है, जिसे उपयोक्ता उपलब्ध करना चाहता है।
  • बैकअप और पुनर्प्राप्ति: दत्तनिधि प्रबन्धन तन्त्र स्वचालित रूप से बैकअप और पुनर्प्राप्ति का ध्यान रखती है। उपयोक्ताओं को समय-समय पर दत्त का बैकअप लेने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि DBMS द्वारा इसका ध्यान रखा जाता है। इसके अतिरिक्त, यह क्रैश या तन्त्र में वैफल्य के बाद भी दत्तनिधि को पुनर्स्थापित करता है।
  • दत्त सामंजस्य: दत्तनिधि में दत्त की सामंजस्य सुनिश्चित की जाती है क्योंकि कोई दत्त अतिरेक नहीं है। दत्त सामंजस्य का है कि एक ही दत्त की कई बेमेल प्रतियाँ होनी चाहिए। सभी दत्त दत्तनिधि में लगातार दृश्य होता है और दत्तनिधि देखने वाले सभी उपयोक्ताओं हेतु समान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, दत्तनिधि में किए गए कोई भी परिवर्तन सभी उपयोक्ताओं को तुरन्त दिखाई देते हैं और कोई दत्त असामंजस्य नहीं होती है।[2]

दत्तनिधि प्रबन्धन तन्त्र[संपादित करें]

दत्तनिधि प्रबन्धन तन्त्र (DBMS) एक सॉफ्टवेयर है जो दत्त के प्रबन्धन एवं उसके दक्षतापूर्वक प्रयोग के लिए निर्मित किया जाता है। इसका मुख्या प्रयोग दत्त विश्लेषण, रचना, क्वेरी, अद्यतन, दत्तनिधि प्रशासन की अनुमति और दत्त प्राप्त करने के लिए किया जाता है। एक दत्तनिधि विभिन्न DBMS भर में सामान्यतः वहनीय नहीं होता है, किन्तु विभिन्न दत्तनिधि प्रबन्धन तन्त्र में एक से अधिक दत्तनिधियों के साथ कार्य करने के लिए ऍसक्यूऍल और ODBC या JDBC जैसे मानकों का प्रयोग कर सकते हैं।

दत्तनिधि प्रबन्धन तन्त्रों की सूची[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

डेटाबेस का विस्तृत परिचय - यहाँ पर डेटाबेस के बारे में हिन्दी में सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "डेटाबेस का इतिहास".
  2. "INFORMATION TECHNOLOGY-402 CLASS-X SESSION-2020-21 (DRAFT STUDY MATERIAL)" (PDF). केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड. 2020–21.सीएस1 रखरखाव: तिथि प्रारूप (link)