जल प्रदूषण

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कनाडा के एक शहर में जल प्रदूषण


जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुये प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धारायों में विसर्जित कर दिया जाता है। जल में विभिन्न प्रकार के हानिकारक पदार्थों के मिलने से जल प्रदूषण होता है।

परिचय[संपादित करें]

औद्योगिक कचरा अमेरिका की न्यू रिवर, कैलिफोर्निया में बहता हुआ

जल प्रदूषण एक प्रमुख वैश्विक समस्या है। इसके लिए सभी स्तरों पर चल रहे मूल्यांकन की और जल संसाधन नीति में संशोधन की आवश्यकता है क्योंकि जल प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में कई प्रकार की बीमारियाँ और लोगों की मौत भी हो रही है।[1] इसके कारण लगभग प्रतिदिन 14,000 लोगों की मौत हो रही है। जिसमें 580 लोग भारत के हैं। चीन में शहरों का 90 प्रतिशत जल प्रदूषित होता है। वर्ष 2007 में एक जानकारी के अनुसार चीन में 50 लाख से अधिक लोग सुरक्षित पेय जल की पहुँच से दूर हैं। यह परेशानी सबसे अधिक विकसित देशों में होती है। उदाहरण के लिए अमेरिका में 45 प्रतिशत धारा में बहते जल, 47 प्रतिशत झील, 32 प्रतिशत खाड़ी के जल के प्रति वर्ग मील को प्रदूषित जल के श्रेणी में लिया गया है। चीन में राष्ट्रीय विकास विभाग के 2007 में दिये बयान के अनुसार चीन की सात नदी में जहरीला पानी है, जिससे त्वचा को हानि होती है।

कारण[संपादित करें]

प्राकृतिक कारण[संपादित करें]

प्राकृतिक रूप से जल का प्रदूषण जल में भूक्षरण खनिज पदार्थ, पौधों की पत्तियों एवं ह्यूमस पदार्थ तथा प्राणियों के मल-मूत्र आदि के मिलने के कारण होता है। जल, जिस भूमि पर एकत्रित रहता है, यदि वहाँ की भूमि में खनिजों की मात्रा अधिक होती है तो वे खनिज जल में मिल जाते हैं। इनमें आर्सेनिक, सीसा, कैडमियम एवं पारा आदि (जिन्हें विषैले पदार्थ कहा जाता है) आते हैं। यदि इनकी मात्रा अनुकूलतम सान्द्रता से अधिक हो जाती है तो ये हानिकारक हो जाते हैं।

रोगजनक[संपादित करें]

यह कई रोगों के जनक होते हैं। इस कारण इन्हें रोगजनक कहते हैं। इसमें विषाणु, जीवाणु, कवक, परजीवी आदि आते हैं। यह मुख्यतः एक जगह जल के एकत्रित रहने पर होते हैं। इसके अलावा यह सड़े गले खाद्य पदार्थों में भी पैदा हो जाते हैं।

दूषित पदार्थ[संपादित करें]

इसमें कार्बनिक, अकार्बनिक सभी प्रकार के पदार्थ जो नदियों में नहीं होने चाहिए, इस श्रेणी में आते हैं। कपड़े या बर्तन की धुलाई या जीवों या मनुष्यों के साबून से नहाने पर यह साबुन युक्त जल शुद्ध जल में विलय हो जाता है। खाने या किसी भी अन्य तरह का पदार्थ भी जल में घुल कर उसे प्रदूषित कर देता है।

पेट्रोल आदि पदार्थों का रिसाव समुद्री जल प्रदूषण का बड़ा कारण है। पेट्रोल का आयात-निर्यात समुद्री मार्गों से किया जाता है। इन जहाजों में से कई बार रिसाव हो जाता है या किसी कारण से जहाज दुर्घटना का शिकार हो जाता है। उसके डूबने आदि से या तेल के समुद्र में फैलने से जल प्रदूषण होता है।

ऊष्मीय प्रदूषण[संपादित करें]

ब्रेटोन में कारखाने से गर्म तत्वों को सीधे नदी में डालते हुए।

कई बड़े कारखाने वस्तु आदि को गलाने हेतु बहुत गर्म करते हैं। इसी के साथ उसमें कई ऐसे पदार्थ भी होते हैं, जिन्हें कारखाने में उपयोग नहीं किया जा सकता है। उसे कहीं ओर डालने के स्थान पर यह उसे नदी में डाल देते हैं। जिसके कारण नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है। इसके ऊष्मा के कारण कई जलीय जीवों जैसे मछली आदि की भी मौत हो जाती है, जो नदियों में कचरा खाकर उसे साफ रखने का भी कार्य करती हैं। ऊष्मीय जल में ऑक्सीजन घुल नहीं पाता है और इसके कारण भी कई जलीय जीवों का नाश हो जाता है।

तापीय या ऊष्मीय प्रदूषण नदियों आदि में बहुत ही ठंडे जल प्रवाहित करने पर भी होता है। इससे सबसे बड़ा खतरा गर्म रहने वाले नदियों पर होता है।रोगजनक कहते हैं। इसमें विषाणु, जीवाणु, कवक, परजीवी आदि आते हैं। यह मुख्यतः एक जगह जल के एकत्रित रहने पर होते हैं। इसके अलावा यह सड़े गले खाद्य पदार्थों में भी पैदा हो जाते हैं।

दूषित पदार्थ[संपादित करें]

इसमें कार्बनिक, अकार्बनिक सभी प्रकार के पदार्थ जो नदियों में नहीं होने चाहिए, इस श्रेणी में आते हैं। कपड़े या बर्तन की धुलाई या जीवों या मनुष्यों के साबून से नहाने पर यह साबुन युक्त जल शुद्ध जल में विलय हो जाता है। खाने या किसी भी अन्य तरह का पदार्थ भी जल में घुल कर उसे प्रदूषित कर देता है।

पेट्रोल आदि पदार्थों का रिसाव समुद्री जल प्रदूषण का बड़ा कारण है। पेट्रोल का आयात-निर्यात समुद्री मार्गों से किया जाता है। इन जहाजों में से कई बार रिसाव हो जाता है या किसी कारण से जहाज दुर्घटना का शिकार हो जाता है। उसके डूबने आदि से या तेल के समुद्र में फैलने से जल प्रदूषण होता है।

ऊष्मीय प्रदूषण[संपादित करें]

ब्रेटोन में कारखाने से गर्म तत्वों को सीधे नदी में डालते हुए।

कई बड़े कारखाने वस्तु आदि को गलाने हेतु बहुत गर्म करते हैं। इसी के साथ उसमें कई ऐसे पदार्थ भी होते हैं, जिन्हें कारखाने में उपयोग नहीं किया जा सकता है। उसे कहीं ओर डालने के स्थान पर यह उसे नदी में डाल देते हैं। जिसके कारण नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है। इसके ऊष्मा के कारण कई जलीय जीवों जैसे मछली आदि की भी मौत हो जाती है, जो नदियों में कचरा खाकर उसे साफ रखने का भी कार्य करती हैं। ऊष्मीय जल में ऑक्सीजन घुल नहीं पाता है और इसके कारण भी कई जलीय जीवों का नाश हो जाता है।

तापीय या ऊष्मीय प्रदूषण नदियों आदि में बहुत ही ठंडे जल प्रवाहित करने पर भी होता है। इससे सबसे बड़ा खतरा गर्म रहने वाले नदियों पर होता है।

जल प्रदूषण के अन्य कारण निम्न हैं:-

1. मनुष्यों के कार्यकलाप (Activities of human beings) - मनुष्यों के बहुत से क्रियाकलाप जल को प्रदूषित करते हैं आपने देखा होगा पर आया लोग अपने घरों का कचरा सड़ी गली वस्तुएं आदि नाली में फेंक देते हैं नालियों का यह जल तालाब नदियों में मिलकर उसे प्रदूषित करता है इसी प्रकार नदी तालाबों में नहा कर कपड़े धोकर जानवरों तथा गाड़ियों को साफ कर जल को गंदा करते हैं कुछ स्थानों पर शवों को भी जन्म दे दिया जाता है। देवी देवताओं की मूर्तियों के जल में विसर्जन से उनके निर्माण में उपयोग किए गए रंगों के कारण जल प्रदूषित हो जाता है। अस्पतालों से फेंका गया अपशिष्ट जंतुओं का मल मूत्र भी जल को प्रदूषित करता है इससे जल में अनेक रोगों के जीवाणु मिल जाते हैं।

2.खेती से (Through Agriculture) - फसलों को नष्ट होने से बचाने के लिए तथा पैदावार बढ़ाने के लिए कितना से खरपतवार नाशक दवाइयों तथा अनेक प्रकार की खादों का उपयोग किया जाता है इन में प्रयुक्त घातक पदार्थ जल में घुलकर नदी, तालाबों में पहुंच जाते हैं तथा जल को प्रदूषित करते हैं।

3. उद्योगों से (Through Industries) - विभिन्न उद्योग धंधों में मुख्य पदार्थ के निर्माण के साथ-साथ कुछ अनुपयोगी पदार्थ अपशिष्ट पदार्थ भी बनते यह पृष्ठ पदार्थ प्रायः हानिकारक होते हैं जब कारखानों में इन अपशिष्ट पदार्थों के निकासी की व्यवस्था उचित नहीं होती तब भी उसे नदी तालाबों में छोड़ देते हैं जिससे जल प्रदूषित हो जाता है जब यह जल पेड़ पौधों तथा जीव जंतुओं द्वारा उपयोग किया जाता है तब उन्हें हानि पहुंचाता है अपशिष्ट पदार्थों में यदि लेड, मरकरी, क्रोमियम ,कैडमियम आदि उपस्थित हो तो वह घातक रोग उत्पन्न करते हैं।

मापन[संपादित करें]

जल प्रदूषण को मापा भी जा सकता है। इसके मापन हेतु कई विधियाँ उपलब्ध है।

रासायनिक परीक्षण[संपादित करें]

जल के कुछ नमूने लेकर रासायनिक प्रक्रिया द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि उसमें कितनी अशुद्धता है। कई प्रकाशित विधियाँ कार्बनिक और अकार्बनिक दोनों तरह के यौगिकों के लिए उपलब्ध है। इसमें मुख्यतः pH, और जीवों द्वारा ऑक्सीजन की आवश्यकता आदि है।[2]

जैविक परीक्षण[संपादित करें]

जैविक परीक्षण में पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि का उपयोग किया जाता है। इसमें इनके स्वास्थ्य और बढ़ने की गति आदि को देख कर उनके रहने के स्थान और पर्यावरण की जानकारी मिलती है।

प्रदूषण पर नियंत्रण[संपादित करें]

जल शोधन[संपादित करें]

जल प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु नालों की नियमित रूप से साफ सफाई करना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में जल निकास हेतु पक्की नालियों की व्यवस्था नहीं होती है। इस कारण इसका जल कहीं भी अस्त-व्यस्त तरीके से चले जाता है और किसी नदी नहर आदि जैसे स्रोत तक पहुँच जाता है। इस कारण नालियों को ठीक से बनाना और उसे जल के किसी भी स्रोत से दूर रखने आदि का कार्य भी करना चाहिए। विद्यालयो में जल प्रदूषण का एक पाठ लगाना चाहिए।

औद्योगिक अपशिष्ट रोकना[संपादित करें]

कई उद्योग वस्तु के निर्माण के बाद शेष बची सामग्री जो किसी भी कार्य में नहीं आती है, उसे नदी आदि स्थानों में डाल देते हैं। कई बार आस पास के इलाकों में भी डालने पर वर्षा के जल के साथ यह नदी या अन्य जल के स्रोतों तक पहुँच जाता है। इस प्रदूषण को रोकने हेतु उद्योगों द्वारा सभी प्रकार के शेष बची सामग्री को सही ढंग से नष्ट किया जाना चाहिए। कुछ उद्योग सफलतापूर्वक इस नियम का पालन करते हैं और सभी शेष बचे पदार्थों का या तो पुनः उपयोग करते हैं या उसे सुरक्षित रूप से नष्ट कर देते हैं। इसके अलावा इस तरह के पदार्थों को कम करने हेतु अपने निर्माण विधि में भी परिवर्तन किए हैं। जिससे इस तरह के पदार्थ बहुत कम ही बचते हैं।[3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Pink, Daniel H. (April 19, 2006). "Investing in Tomorrow's Liquid Gold". Yahoo. मूल से 23 अप्रैल 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 फ़रवरी 2009.
  2. For example, see Clescerl, Leonore S.(Editor), Greenberg, Arnold E.(Editor), Eaton, Andrew D. (Editor). Standard Methods for the Examination of Water and Wastewater (20th ed.) American Public Health Association, Washington, DC. ISBN 0-87553-235-7. This publication is also available on CD-ROM and online Archived 2016-02-11 at the वेबैक मशीन by subscription.
  3. EPA (1997) Profile of the Fossil Fuel Electric Power Generation Industry. (Report). Retrieved 17 दिसंबर 2015. "संग्रहीत प्रति". मूल से पुरालेखित 5 अप्रैल 2011. अभिगमन तिथि 17 दिसंबर 2015.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link) Document No. EPA/310-R-97-007. p. 24

ब namaste[संपादित करें]

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