छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रंथ अकादमी

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छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रंथ अकादमी का प्रतीक चिन्ह।

भारत सरकार ने सन् 1968 में उच्च शिक्षा के माध्यम परिवर्तन पर बल दिया था। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न विषयों की पुस्तकों के लेखन, प्रकाशन के साथ-साथ उनका विपणन भी किया जाना था। इसी संदर्भ में हिंदी प्रदेशों में ग्रंथ अकादमियों का गठन किया गया।

सन् 1970 में एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी की स्थापना की गई थी। सन् 2000 में मध्यप्रदेश का एक हिस्सा अलग होकर छत्तीसगढ़ के रूप में सामने आया। नए बने राज्य छत्तीसगढ़ में जनवरी 2006 में विधिवत् रूप से छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रंथ अकादमी की स्थापना की गई, जिसका पंजीयन 06 जून 2006 को हुआ। सन् 2000 में तीन नए बने राज्यों छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तरांचल में छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जहां हिंदी ग्रंथ अकादमी की स्थापना की गई।

अकादमी के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का पद पदेन है। अध्यक्ष माननीय उच्च शिक्षा मंत्री एवं उपाध्यक्ष माननीय स्कूली शिक्षा मंत्री होते हैं। अकादमी का संपूर्ण कार्य संचालक के अधीन होता है। विधिवत् रूप से अस्तित्व में आने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रंथ अकादमी का प्रथम संचालक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री रमेश नैयर को बनाया गया।

प्रतिबद्धता[संपादित करें]

  • उच्च शिक्षा में हिंदी में लिखित पाठय एवं संदर्भ पुस्तकों की उपयोगिता को बढ़ाना।
  • हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार।
  • पुस्तकों के माध्यम से हिंदी के मानक स्वरूप का संवर्धन।
  • विद्वानों, शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं पाठकों के बीच एक सेतु की तरह कार्य करना।
  • मानक पुस्तकें एवं संदर्भ ग्रंथ तैयार करवाना।
  • विश्वविद्यालयीन विद्यार्थियों के लिए पाठय पुस्तकें और संदर्भ ग्रंथ उपलब्ध कराना।
  • प्रकाशित पुस्तकों की ऊंची गुणवत्ता बनाए रखने का प्रयास।
  • कम से कम कीमत पर पुस्तकें उपलब्ध कराना।
  • लेखकों को नियमानुसार यथोचित रॉयल्टी उपलब्ध कराना।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]