ग्वाल कवि(रीतिग्रंथकार कवि)

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ग्वाल कवि (सन् १८०२-१८६७) रीतिकाल के रीतिग्रंथकार कवि हैं। रीतिकाल के वे अन्तिम आचार्य हैं। इनके लिखे चौदह ग्रंथ मिलते हैं। इनमें प्रसिद्ध कृतियाँ हैं रसिकानन्द, साहित्यानन्द, रसरंग, अलंकार भ्रमभंजन, दूषणदर्पण (कवि दर्पण) तथा प्रस्तार प्रकाश। ग्वाल कवि का महत्त्व रीतिकार आचार्य की दृष्टि से बहुत है। उन्होंने 'दूषण दर्पण' में हिन्दी कवियों की कविताओं के उदाहरण संकलित करके उनका विस्तार से दोष विवेचन किया है। ग्वाल कवि से पहले दोष विवेचना को इतना अधिक महत्त्व किसी कवि ने नहीं दिया था।[1] ग्वाल कवि का सम्बंध मथुरा से रहा है। घुमक्कड़ होने के कारण इन्हें सोलह भाषाओं का अभ्यास था।[2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास, डा० मोहन अवस्थी, सरस्वती प्रेस इलाहाबाद, संस्करण १९७३, पृष्ठ- १५२-१५३
  2. हिन्दी साहित्य कोश, भाग २, सम्पादक डा० धीरेन्द्र वर्मा, ज्ञान मण्डल लिमिटेड वाराणसी, द्वितीय संस्करण १९८६, पृष्ठ- १६५-१६६

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