गोमूत्र

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

गोमूत्र (गाय का मूत्र) पंचगव्यों में से एक है। जबकि गोमूत्र और गोबर का खाद के रूप में लाभ होता है, शोधकर्ता रोगों को ठीक करने के किसी भी अन्य दावे को खारिज करते हैं और इसे छद्म विज्ञान मानते हैं।[1][2][3] ब्रिटेन के डॉ. काफोड हैमिल्टन के अनुसार - गौमूत्र के उपयोग से हृदय रोग दूर होता है तथा पेशाब खुलकर होता है कुछ दिन तक गौमूत्र सेवन से धमनियों में रक्त का दबाव स्वाभाविक होने लगता हैं , गौमूत्र सेवन से भूख बढती है , यह पुराने चर्म रोग की उत्तम औषधि है। ब्रिटेन के अन्य चिकित्सक डॉक्टर सिमर्स कहते हैं कि गौमूत्र रक्त में बहने वाले दूषित कीटाणुओं का नाश करता है ।[4] आयुर्वेद के अनुसार, गोमूत्र कुष्ठ रोग, बुखार, पेप्टिक अल्सर, यकृत रोग, किडनी विकार, अस्थमा, कुछ एलर्जी, सोरायसिस, एनीमिया और यहां तक ​​कि कैंसर का इलाज कर सकता है।[5][6] आधुनिक शोध के अनुसार भी वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि गोमूत्र मे कैंसर रोधी गुण होते हैं। यह कैंसर के खतरे को रोकने का काम करता है।[7][8][9]

गोमूत्र पान एक ऐसी प्रथा है जिसका पारम्परिक रूप से कुछ संस्कृतियों में, विशेषकर भारत में, सदियों से पालन किया जाता रहा है। बौद्ध संघ मे गोमूत्र का सेवन करना श्रामणेतरों के लिए अनिवार्य नियम था।[10] भगवान बुद्ध द्वारा भिक्षुओं को पाण्डु रोग से ग्रसित होने पर औषधि के रूप में गोमूत्र की हर्रे पिलाने का वर्णन विनय पिटक के महावग्ग में आता है।[11] बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि श्रमण गोमूत्र में शोधित की गई हर्र सदैव अपने पास रखते थे । वायु विकार या पाचन संबंधी किसी भी प्रकार के कष्ट में वे इसे जल के साथ निगल जाते थे । हर्र एक ऐसी औषधि थी जो पूर्व काल से ही प्रचलित थी और रक्त शोधक , पाचक तथा रोगप्रतिरोधक की तरह उपयोग में लायी जाती थी । गोमूत्र की भावना देकर शोधन करने से हर्र में शरीर के सभी मुख्य तंत्रों की प्रणाली को सम करने गुण आ जाते थे ।[12] आयुर्वेद में पांडुरोग चिकित्सा एवं गलशुण्डी या टांसिलाइटिस मे गोमुत्र उपयोगी है।[13][14] गोमूत्र सेवन के समर्थकों का दावा है कि इसके औषधीय और स्वास्थ्य लाभ हैं। यद्यपि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन दावों का समर्थन करने हेतु कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। वास्तव में, गोमूत्र के सेवन से सम्भावित स्वास्थ्य संकट जुड़े हैं।

गोमूत्र में यूरिया, क्रिएटिनिन और पोटैसियम, कैल्सियम और मैग्नीसियम जैसे खनिजों सहित कई यौगिक होते हैं। यद्यपि, इसमें हानिकारक पदार्थ जैसे जीवाणु और विषाक्त पदार्थ भी होते हैं जो मानव स्वास्थ्य हेतु हानिकारक हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, गोमूत्र एक बन्ध्य तरल नहीं है, और इसमें कई प्रकार के दूषित पदार्थ हो सकते हैं, जिनमें ई. कोलाई, साल्मोनेला और अन्य रोगजनकों शामिल हैं। दूषित गोमूत्र पीने से संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। गोमूत्र में भारी धातुओं और कीटनाशकों के उच्च स्तर हो सकते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि गायों को किस वातावरण में पाला जाता है और वे क्या खाते हैं। ये विषाक्त पदार्थ समय के साथ शरीर में जमा हो सकते हैं और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं। अन्ततः स्वास्थ्य उद्देश्यों हेतु गोमूत्र का सेवन करने की अनुशंसा नहीं की जाती है, और किसी भी कथित स्वास्थ्य लाभ हेतु वैकल्पिक तरीकों की खोज की जानी चाहिए।

गोमूत्र का उपयोग[संपादित करें]

गोमूत्र के औषधीय प्रयोग, एक बीमार व्यक्ति को गाय के पिछले भाग पर लिटाया गया है, ताकि गाय का मूत्र, रोगी के मुख में प्रवेश कर सके
जीवामृत : गोमूत्र, गाय के गोबर, गुड़, बेसन, तथा मूल परिवेश (राइजोस्फीयर मिट्टी) से निर्मित जैविक खाद
  • कृषि में गोमूत्र का प्रयोग : वर्तमान मानव जीवन कृषि में रासायनिक खादों के प्रयोग से होने वाले दुष्परिणामों को झेल रहा है। रासायनिक खादों से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ फैल रही हैं। ऐसे में गोमूत्र एवं अन्य अपशिष्ट वैकल्पिक खाद और कीटनाशक के रूप में सामने आ रहे हैं।[उद्धरण चाहिए]
  • गोमूत्र के औषधीय प्रयोग : हजारों वर्ष पहले लिखे गए आयुर्वेद में गोमूत्र को अमृत सदृश माना गया है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में भी गोमूत्र को जैविक औषधीय विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।[उद्धरण चाहिए]
  • गृह सफाई में गोमूत्र के प्रयोग : हिंदुओं की प्राचीन परंपरा के लिहाज से गोमूत्र एक पवित्र एवं उपयोगी द्रव है। गोमूत्र को अब फिनायल की जगह प्रयोग करने पर भी जोर दिया जा रहा है।[15]

गोमूत्र के लिए अमेरिकी पेटेंट, इसके दावा किए गए लाभों को मान्य नहीं करते हैं[संपादित करें]

संयुक्त राज्य अमेरिका पेटेंट मार्क मार्क कार्यालय द्वारा दिए गए पेटेंट (कोई 6410059 और नंबर 6896907) नहीं हैं।[16][17] इन पेटेंटों को एक "भारतीय नवाचार" दिया गया है जिसने साबित किया है कि गोमूत्र एंटीबायोटिक्स, एंटी-फंगल एजेंट और कैंसर विरोधी दवाओं को भी अधिक प्रभावी बना सकता है। ये पेटेंट काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के नाम पर, गौ विज्ञान विज्ञान केंद्र के सहयोग से हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अमेरिकी पेटेंट कार्यालय खोजों को मान्यता देता है या मान्य करता है।[18] इसका सीधा सा मतलब है कि वे अपने ऊपर सीएसआईआर के अधिकारों को पहचानते हैं। गोमूत्र के औषधीय गुणों और गायों के मूत्र (और अन्य जानवरों नहीं) के स्पष्ट चिकित्सीय लाभों के ऐसे दावों की वैधता अभी भी एक बहस का मुद्दा है। यह सर्वविदित है कि यह पेटेंट नहीं है, लेकिन जानवरों के अध्ययन और मानव में नैदानिक ​​परीक्षणों से परिणाम है जो प्रभावशीलता को प्रमाणित करते हैं। कोई पशु अध्ययन नहीं है और मानव नैदानिक ​​परीक्षण और पंचगव्य (गाय का गोबर, गोमूत्र और गाय का दूध) कोशिकाओं की रेखाओं (इन विट्रो) पर भी कठोरता से परीक्षण नहीं किया गया है। दावा किए गए चिकित्सा लाभों के लिए कोई सहकर्मी-समीक्षा और समर्थन वाले वैज्ञानिक आधार नहीं हैं और इस प्रकार इन्हें छद्म विज्ञान के रूप में वर्गीकृत किया गया है।[19][20]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "From cure in cow urine to 'superior child', pseudoscience inviting research". मूल से 8 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 सितंबर 2019.
  2. "Of 'cowpathy' & its miracles".
  3. "Mr. Modi, Don't Patent Cow Urine". मूल से 8 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 सितंबर 2019.
  4. Singh Yadav, Advocate Vijay (2021). Gau Seva Katha. Jay Kul Devi Seva Samiti Ratlam. पृ॰ 28.
  5. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  6. Kumar, Ravi (2010). Hindu Pratibha Ke Darshan. Suruci Prakāśana. पपृ॰ 200–201. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788189622565.
  7. Sharma, Rajiv; Randhawa, Gurpreet Kaur. "An official website of the United States government. Chemotherapeutic potential of cow urine: A review". https://www-ncbi-nlm-nih-gov.
  8. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  9. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  10. Sharma, Dr. K. K. Samanya Adhyayan Prachin Bharat Ka Itihaas. Upkar Prakashan. पृ॰ 150. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789350136164.
  11. शर्मा, सत्यप्रकाश; लाभ, वैद्यनाथ; सिंह, विजय कुमार; Billawaria, Anita K. (2008). बौद्ध प्रज्ञा-सिन्धु. 3. न्यू भारतीय बुक कार्पोरेशन. पृ॰ 50.
  12. गुप्त, आनन्द प्रकाश (9 December 2022). Dhamma Sharanam Samyak Dhamma, Vangmaya evam Agrashravak. Booksclinic Publishing. पृ॰ 29. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789355354020. बुद्ध के बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि श्रमण गोमूत्र में शोधित की गई हर्र सदैव अपने पास रखते थे । वायु विकार या पाचन संबंधी किसी भी प्रकार के कष्ट में वे इसे जल के साथ निगल जाते थे । हर्र एक ऐसी औषधि थी जो पूर्व काल से ही प्रचलित थी और रक्त शोधक , पाचक तथा रोगप्रतिरोधक की तरह उपयोग में लायी जाती थी । गोमूत्र की भावना देकर शोधन करने से हर्र में शरीर के सभी मुख्य तंत्रों की प्रणाली को सम करने गुण आ जाते थे ।
  13. Vaidh, Dharmadatt (1966). Aadhunik Chikitsashastra. Motilal Banarsidass Publishers Pvt. Limited. पृ॰ 198. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120820944.
  14. Lal Suthar, Dr Shyam (2023). Easy Ayurved Treatment Science Samany Rogon Ka Parichay Evam Upachar. Shashwat Publication. पृ॰ 104. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789395362139.
  15. [ http://prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=150324-175711-100000 Archived 2015-04-02 at the वेबैक मशीन फिनायल की जगह गौनायल]
  16. "Panchagavya... if cow urine could cure cancer".
  17. "FIT WebQoof: US Patents For Medicines Containing Cow Urine".
  18. Prabhala, Achal; Krishnaswamy, Sudhir (2016-06-16). "Mr. Modi, Don't Patent Cow Urine". The New York Times. मूल से 8 October 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 September 2019.
  19. "Panchagavya... if cow urine could cure cancer".
  20. "Blinded By Its Cow-Urine Craze, the Government Isn't Fostering Good Research Practices".

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]