गोड़वाड़

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मेवाड़ जगह का नक्शा

गोड़वाड़ भारत के राजस्थान राज्य पाली जिले का मेवाड का सीमावर्ती एक क्षेत्रीय इलाका है। हर साल यहाँ गोडवाड़ महोत्सव मनाया जाता है। यह क्षेत्र अरावली और मेवाड़ की तराई में है।

विस्तार[संपादित करें]

इसका विस्तार अरावली पर्वत से दक्षिण पूर्व में मेवाड़ तथा दक्षिण पश्चिम में जालौर और सिरोही तक है। सांडेराव को गोडवाड़ का द्वार भी कहा जाता है। इसमें सम्मिलित स्थान हैं:

,देसूरी,फालना,रानी,सुमेरपुर,खिंवाड़ा,घाणेराव अादि शहर/कस्बे है।

पर्यटन[संपादित करें]

गोडवाड़ का क्षेत्र अपने कला ,परम्परिक जीवन शैली और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है।

यहाँ के हर छोटे बड़े गावो में हवेली गढ़ मौजूद है जिनमे मुख्य है घाणेराव,बेडा,वरकाणा,फालना,चाणौद,आउवा,नारलाई आदि के रावले गढ़ व् देसूरी किला अन्य में नाडोल,बोया,सिन्दरली,कोटड़ी,बीजापुर,आदि के गढ़ और पुरानी हवेलिया। भाटुन्द गाँव ब्राहमणो की सदियों पुरानी नगरी है। भाटुन्द गांव के संथापक श्री आदोरजी महाराज ने अपने 18 परिवार वालों सहित 13 शताब्दी में जौहर किया था। यहाँ पर हर साल माँ शीतला माता का विशाल मेला लगता है। यहाँ पर देव मन्दिर अधिक होने के कारण इसे देव नगरी भी कहते हैं। ब्राहमणो की नगरी होने के कारण इसे ब्रह्म नगरी भी कहते हैं। १०वी व ११ वी सदी का सूर्य मन्दिर है। यह महाराजा भोज ने बनाया था। यहाँ का तालाब बाली तहसील में सबसे बड़ा है, यह भी महाराजा भोज ने खुुदवाया था।

पर्यटको को आकर्षित करते आशापुरा जी नाडोल,रणकपुर मंदिर,जवाई बांध,कुम्भलगढ़ राष्ट्रीय अभयारण्य,मुछाला महावीर,ठंडी बेरी,परशुराम जी गुफा मंदिर,पैंथर साइट आदि।

इतिहास[संपादित करें]

गौड़वार प्राचीन समय से ही इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज करता रहा है मेवाड़ आने का एक मार्ग देसूरी दर्रा भी था मेवाड़ के महाराणा ने इस क्षेत्र की और मार्ग की रक्षा का भार सोलंकी और मेड़तिया राजपूतो में दे रखा यहाँ था।

राजपूतों के आगमन से पहले यह क्षेत्र गोंड गोत्रिय मीणाओं के अधीन था। इसी कारण यह क्षेत्र गोडवाड कहलाता है। कालांतर में मीणाओ को हटाने के बाद राजपूतों ने अपना आधिपत्य स्थापित किया और मूलनिवासी मीणाओ को हांसिए पर धकेल दिया गया। यहां निवास करने वाले मीणा जाति के सरदार हमेशा मेवाड़ को आतंकित किया करते थे।

दिल्ली के बादशाह औरंगज़ेब ने जब इस दर्रे से मेवाड़ पड़ आक्रमण किया तब देसूरी के बिक्रम सोलंकी और घाणेराव के हिम्मत मेड़तिया ने मुगलो को हराया इस सन्दर्भ में एक कहावत प्रसिद्ध है। बादशाह री पाग हिम्मत बिके उतारी

यह क्षेत्र पहले मेवाड़ के आदिपत्य में था बाद में मारवाड़ के राजा विजय सिंह ने मेवाड़ के गृह युद्ध के समय इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया ; यहाँ के अधिकतर ठिकाने जोधपुर मारवाड़ के प्रति उदासीन रहे, देसूरी के खालसा हो जाने के बाद घाणेराव ठिकाने के ठाकुर को गोडवाड़ का राजा कहा जाता था और सरकार कह कर संबोदित किया जाता था। यहाँ मुख्य ठिकानो में घाणेराव, बेडा,नाणा,वरकाणा, फालना, चाणोद,नारलाई, बोया, देवली पाबूजी,बीजापुर, साण्डेराव,मालारी,बीसलपुर, गलथनी,कोलीवाड़ा,पावा,कंवला आदि हैं।

राजस्थान में शायद यही एक ऐसा क्षेत्र है राजपूतो की ज्यादातर छाप एक ही क्षेत्र में उपस्थित है:

राठौड़ (मेड़तिया,जैतमालोत,चांपावत,जोधा, कूंपावत,सिंधल,बाला,रुपावत,रिड़मलोत,वैरावत उदावत)

चौहान - ( सांचौरा,सोनीगरा,खींची,बालेचा, माद्रेचा)

कछवाहा - (राजावत ,शेखावत)

सिसोदिया - (राणावत,शक्तावत,कीतावत, मांगलिया,भाखरोत,)

सोलंकी - (राणकरा) आदि।

सन्दर्भ[संपादित करें]