कोहरे में कैद रंग

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कोहरे में कैद रंग  

कोहरे में कैद रंग
लेखक गोविन्द मिश्र
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय साहित्य
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन तिथि १ जनवरी २००४
पृष्ठ १९२
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8126310936

कोहरे में कैद रंग हिन्दी के विख्यात साहित्यकार गोविन्द मिश्र द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1]

समकालीन साहित्य में अपनी अलग पहचान बनाने वाले विख्यात कथाकार गोविन्द मिश्र का उपन्यास है 'कोहरे में कैद रंग'। 'कोहरे में कैद रंग' - जीवन के विविध रंग! रंग ही रंग हर व्यक्ति का अपना अलग रंग... जिसे लिये हुए वह संसार में आता है। अक्सर वह रंग दिखता नहीं, क्योंकि वह असमय ही कोहरे से घिर जाता है। कुछ होते हैं जो उस रंग को अपने जीवन-शैली में गुम्फित कर लेते हैं। काश उन रंगों पर कोहरे की चादर न होती तो जाने कैसा हुआ होता वह रंग! तरह-तरह के रंगों से सजी जीवन की चादर हमारे सामने फैलाता है यह उपन्यास। विषम परिस्थितियों में भी गरिमा से जीते लोग, अपना-अपना जीवन-धर्म निबाहते हुए और इस तरह अपनी तथा आज के पाठक की जीवन के प्रति आस्था को और दृढ़ करते हुए... अपने पूर्व उपन्यास' फूल.... इमारतें और बन्दर' में जहाँ गोविन्द मिश्र की दृष्टि समय विशेष के यथार्थ पर अधिक थी, 'कोहरे में कैद रंग' तक आकर वह यथार्थ-आदर्श, बाह्य-आन्तरिक जैसे कितने ही द्वन्द्वों से बचती हुई एक संतुलित जीवन-बोध देती है। जीवन, सिर्फ जीवन-जिसका रंग पानी जैसा है, काल-सीमाओं से पार एक-सा बहता हुआ।[2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.
  2. "कोहरे में कैद रंग". भारतीय साहित्य संग्रह. मूल (पीएचपी) से 12 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २४ दिसंबर २००८. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)