कैथल

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कैथल
—  शहर  —
पेहवा चौक, कैथल
पेहवा चौक, कैथल
पेहवा चौक, कैथल
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य हरियाणा
ज़िला कैथल
विधायक लीला राम
जनसंख्या 945,631 (2011 के अनुसार )
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)

• 220 मीटर (722 फी॰)
आधिकारिक जालस्थल: kaithal.gov.in/

निर्देशांक: 29°48′05″N 76°23′59″E / 29.8015°N 76.3998°E / 29.8015; 76.3998 कैथल हरियाणा प्रान्त का एक महाभारत कालीन ऐतिहासिक शहर है। इसकी सीमा करनाल, कुरुक्षेत्र, जीन्द और पंजाब के पटियाला जिले से मिली हुई है। पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना युधिष्ठिर ने की थी। इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान भी माना जाता है। इसीलिए पहले इसे कपिस्थल के नाम से जाना जाता था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। लेकिन 1973 ई. में यह कुरूक्षेत्र में चला गया। बाद में हरियाणा सरकार ने इसे कुरूक्षेत्र से अलग कर 1 नवम्बर 1989 ई. को स्वतंत्र जिला घोषित कर दिया।[1] यह राष्ट्रीय राजमार्ग 152 पर स्थित है।

इतिहास[संपादित करें]

कैथल से कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। पुराणों के अनुसार, पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना युधिष्ठिर ने की थी तथा इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान माना जाता है।[2] इस कारण से इस नगर का प्राचीन नाम कपिस्थल पड़ा, जो कालांतर में कैथल हो गया। वैदिक सभ्यता के समय में कपिस्थल कुरू साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था जैसा कि मानचित्र में देखा जा सकता है।

प्राचीन भारत में कपिस्थल क्षेत्र का उल्लेख

इतिहास के अनुसार यह भारत की पहली महिला शासक रजिया सुल्तान (इल्तुतमिश की पुत्री) के साम्राज्य का एक भाग था। 13 नवंबर 1240 को रजिया यहीं मृत्यु को प्राप्त हुई। दिल्ली में विद्रोह के बाद रजिया सुल्तान को वहाँ से भागना पड़ा। कैथल में दिल्ली की व्रिदोही सेनाओं ने उसे पकड़ लिया और एक भयंकर युद्ध में रजिया सुल्तान मारी गई थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहाँ के स्थानीय लोगों ने उसे मार डाला था। मृत्यु के बाद उन्हें यहीं दफना दिया गया और आज भी उसकी कब्र यहाँ मौजूद है। [2]

रजिया सुल्तान के अलावा इस पर सिक्ख शासकों का शासन भी रहा है। यहाँ के शासक देसू सिंह को सिख गुरु हर राय जी ने सम्मानित किया था जिसके बाद यहाँ के शासकों को "भाई" की उपाधि से संबोधित किया जाने लगा। सन् 1843 तक कैथल पर भाई उदय सिंह का शासन रहा जो कि यहाँ के आंतिम शासक साबित हुए। १४ मार्च १८४३ को उनकी मृत्यु हुई।

१० अप्रैल १८४३ को अंग्रेजों ने यहाँ पर हमला कर दिया। भाई उदय सिंह की माता साहब कौर तथा उनकी विधवा पत्नी सूरज कौर ने वीर योद्धा टेक सिंह के साथ अंग्रेजों से संघर्ष किया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। किन्तु ५ दिन के पश्चात् पटियाला के महाराजा ने अपना समर्थन वापिस ले लिया औेर १५ अप्रैल १८४३ को कैथल ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया। टेक सिंह को काले पानी की सज़ा सुनाई गई।[2]

कैथल का किला[संपादित करें]

कैथल किले के खंडहर, २००७ में लिया गया चित्र
जीर्णोद्धार के उपरांत २०१६ में कैथल का किला

पुराना शहर एक किले के रूप में है। किले के चारों ओर सात तालाब तथा आठ दरवाजे हैं।[2] दरवाजों का नाम है - सीवन गेट, माता गेट, प्रताप गेट, डोगरा गेट, चंदाना गेट, रेलवे गेट, कोठी गेट, क्योड़क गेट। कैथल से 3 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव प्यौदा स्थित है जिसने भाई साहब को कर देने से मना कर दिया था और बुजुर्गों की एक कहावत भी है इसमें भाई साहब की मां कहती थे की बेटा पैर पेशार ले फिर भाई साहब कहते थे की मां पैर कैसे पेशारू आगे प्यौदा अडा है? गांव प्यौदा ने भाई साहब को कर नहीं दिया था

जनसांख्यिकी[संपादित करें]

2001 की जनगणना के अनुसार इस शहर की जनसंख्या 1,17,226 और इस ज़िले की कुल जनसंख्या 9,45,631 है।

प्रशासन[संपादित करें]

कैथल जिले में चार तहसील हैं [3] - कैथल, गुहला, पुंडरीकलायतराजौंद, ढांडसीवन उप-तहसील हैं। कैथल जिले में कुल २७७ गाँव तथा २५३ पंचायत हैं।

अर्थव्यवस्था[संपादित करें]

यहाँ कृषि में गेहूँ और चावल की प्रधानता है। अन्य फ़सलों में तिलहन, गन्ना और कपास शामिल हैं। कैथल के उद्योगों में हथकरघा बुनाई, चीनी और कृषि उपकरणों का निर्माण शामिल है।

शिक्षा[संपादित करें]

कैथल में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय हैं। जिनमें हरियाणा कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट और आर.के.एस. डी. कॉलेज शामिल हैं। 2018 में कैथल जिले में स्थित मुंदड़ी गाँव में महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।

आवागमन[संपादित करें]

कैथल रेलवे स्टेशन
वायु मार्ग

कैथल के सबसे नजदीक चण्डीगढ़ तथा दिल्ली हवाई अड्डा है। चण्डीगढ़, दिल्ली से पर्यटक कार, बस और टैक्सी द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 65राष्ट्रीय राजमार्ग 1 द्वारा आसानी से कैथल तक पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग

रेलमार्ग से कैथल पहुंचने के लिए पर्यटकों को पहले कुरूक्षेत्र (दिल्ली - अंबाला मार्ग) या नरवाना (दिल्ली - जाखल मार्ग) आना पड़ता है। कुरूक्षेत्र से नरवाना रेलमार्ग से कैथल रेलवे स्टेशन तक पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग

दिल्ली से पर्यटक कार, बस और टैक्सी द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 1 द्वारा करनाल तक, तदुपरांत कैथल तक पहुंच सकते हैं। चण्डीगढ़ से राष्ट्रीय राजमार्ग 65 से सीधा कैथल तक पहुंच सकते हैं। पंजाब से संगरुरपटियाला से भी सड़क मार्ग द्वारा कैथल तक आ सकते हैं।

अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैथल-राजगढ़ हाईवे के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया जो कि 166 किलोमीटर लंबा होगा तथा इसकी लागत 1394 करोड़ रुपए आएगी तथा इसे ३० महीनों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। कलायत, नरवाना, बरवाला, हिसार और सिवानी से गुज़रने वाले इस हाईवे में 23 अंडरपास और लगभग 21 किलोमीटर लंबी सर्विस रोड होगी।[4][5]

पर्यटन[संपादित करें]

अंजनी का टीला[संपादित करें]

कैथल को हनुमान का जन्मस्थल माना जाता है। हनुमान की माता अंजनी को समर्पित अंजनी का टीला यहाँ के दर्शनीय स्थानों में से एक है।

बिदक्यार (वृद्ध केदार) झील[संपादित करें]

वामन पुराण में वर्णित वृद्ध केदार तीर्थ को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। कालांतर में इसका नाम बिगड़कर बिदक्यार हो गया है। कई वर्षों तक उपेक्षित पड़ी रही इस झील को आजकल एक सुंदर रूप प्रदान करके एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। झील की सैर करना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है क्योंकि वह यहां पर शानदार पिकनिक मना सकते हैं।

नवग्रह कुंड[संपादित करें]

वृद्ध केदार झील किसी विशेष आकार में नहीं है। यह कई ओर से पुराने शहर (किले) को घेरे हुए है और कई स्थानों पर किले से दूर स्वतंत्रतापूर्वक फैली हुई है। इसके विभिन्न तटों, किनारों व कोनों पर कई मंदिर एवं घाट हैं जिनमें नवग्रह कुंड विशिष्ट स्थान रखते हैं। जो सूर्य कुंड, चंद्र कुंड, मंगल कुंड, बुध कुंड, बृहस्पति कुंड, शुक्र कुंड, शनि कुंड, राहु कुंड, और केतु कुंड है।

ग्यारह रुद्री मंदिर[संपादित करें]

ग्यारह रुद्री मंदिर भी यहाँ का एक प्रमुख आकर्षण है जिसकी गणना प्रसिद्ध तीर्थ कुरुक्षेत्र की ४८ कोस भूमि की परिक्रमा के अंतर्गत होती है।

रजिया सुल्तान की कब्र[संपादित करें]

रजिया सुल्तान की कब्र यहाँ मौजूद है। [2] उनकी कब्र बहुत खूबसूरत है और इसके पास एक मस्जिद भी बनी हुई है। बाद में सम्राट अकबर ने उनकी कब्र को दोबारा बनवाया और इसके पास एक किले का निर्माण भी कराया था। पर्यटकों में यह स्थान बहुत लोकप्रिय है। इसे देखने के लिए पर्यटक दूर-दराज से यहां आते हैं।


फ़्ल्गू ॠषि तीर्थ[संपादित करें]

कैथल में स्थित फल्गू ऋषि तालाब बहुत खूबसूरत है। यह तालाब ऋषि फलगू को समर्पित है। यह फरल गाँव मे स्थित है। इसके पास पुन्डरी तालाब भी है। यह तालाब महाभारत कालीन है। तालाबों के पास कई खूबसूरत मन्दिर भी हैं जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इनमें सरस्वती मन्दिर, कपिल मुनि मन्दिर, बाबा नारायण दास मन्दिर प्रमुख हैं। इनके अलावा पर्यटक यहां पर शाह विलायत, शेख शहिबुद्दीन और शाह कमाल की कब्रें भी देख सकते हैं।

ईंटों से बने मन्दिर[संपादित करें]

खजुराहो के मंदिरों की शैली में बने ईंटों के मन्दिर कैथल के निकट कलायत में स्थित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार 7वीं शताब्दी में यहां पर राजा शालिवाहन का राज था। उसे श्राप मिला था कि वह रात में मर जाएगा, लेकिन किसी कारणवश वह नहीं मरा और श्राप से भी मुक्त हो गया। तब राजा ने खुश होकर यहां पर पांच मन्दिरों का निर्माण कराया था। अब इन पांच मन्दिरों में से केवल दो मन्दिर बचे हुए हैं जो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अनुरक्षित हैं। यह मन्दिर बहुत खूबसूरत हैं। इन मन्दिरों को देखने के लिए दूर-दराज से पर्यटक आते हैं।

गुरुद्वारा नीम साहिब[संपादित करें]

कैथल में कई गुरुद्वारे हैं जिनमें गुरूद्वारा नीम साहिब, गुरूद्वारा टोपियों वाला और सिटी गुरूद्वारा प्रमुख हैं। यह सभी गुरूद्वारे बहुत खूबसूरत हैं और

गुरूद्वारा टोपियों वाला[संपादित करें]

शहर के बीच स्थित, सामाजिक सद्भाव के जीवंत उदाहरण, इस गुरूद्वारे में रामायण तथा गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ एक साथ होता है।

प्रसिद्ध व्यक्तित्व[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Official Website of Kaithal". Haryana Government. मूल से 11 दिसंबर 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अप्रैल 2015.
  2. "History- Official Website of Kaithal". Haryana Government. मूल से 16 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अप्रैल 2015.
  3. "Basic Statitics- Official Website of Kaithal Administration". Haryana Government. मूल से 16 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अप्रैल 2015.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2014.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2014.