केदार राग

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यह राग कल्याण थाट से निकलता है। इसमें शुद्ध व तीव्र दोनों म लगाये जाते है। इसके आरोह में रे और ग को नहीं लगाते और अवरोह में ग नहीं लगाते इसलिये इसकी जाति औडव-षाड़व मानी जाती है। वादी स्वर म और संवादी स्वर सा माना जाता है।

गाने बजाने का समय रात का पहला प्रहर है।

आरोह -सा म म प ध प नी ध सां। अवरोह--सां नी ध प म'प ध प म सा रे सा।पकड़--सा म म प ध प म सा रे सा।

संदर्भ राग केदार[संपादित करें]

मध्‍यम द्वै तीवर सबर्हिु,आरोह रिग हान।

स—म सम्‍वादी वादि तें, केदारा पहिचान।।

रागचन्‍द्रिका सार

राग केदार भगवान कृष्‍ण का प्रिय राग था। यह राग कल्‍याण ठाठ से उत्पन्‍न होता है। इसमें दोनों मध्‍यम लगते है। परंतु तीव्र मा का प्रयोग अवरोह पंचम के साथ किया जाता है। इसके आरोह में ऋषभ ओर गंधार वर्जित है। परंतु अवरोह में ऋषभ का प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गायन बादन का समय रात्रि का प्रथम पहर है। यह गम्‍भीर प्रकृति का राग है।

महान गायक भीमसेन जोषी ओर बांसुरी सम्राटहरि प्रसादभगवान के बृंदावन में।

न्‍याय स्‍वर—सा, म ओर पा। यह राग कल्याण थाट से निकलता है। इसमें शुद्ध व तीव्र दोनों म लगाये जाते है। इसके आरोह में रे और ग को नहीं लगाते और अवरोह में ग नहीं लगाते इसलिये इसकी जाति औडव-षाडव मानी जाती है। वादी स्वर ः?म"' और सम्वादी स्वर ः?स"' माना जाता है।

गाने बजाने का समय रात का पहला प्रहर है।

आरोह - सा रे सा मा ,मा पा धा नी सा ।।

अवरोह- सा नी धा पा मा पा धा नी धा मा

           पा मा रे सा

पकड़--स म म प ध प म रे स।

स्‍वामी आनंद प्रसाद  

संगीत श्री- एन। सी। इ। आर। टी।