कृष्णदास (बहुविकल्पी)

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कृष्णदास से निम्नलिखित व्यक्तियों का बोध होता है-

  • (४) माधव आचार्य के सेवक जिन्होंने भागवत पर आधारित 'श्रीकृष्ण मंगल' नामक एक छोटे से ग्रंथ की रचना की है। इनके पिता का नाम यादवानंद और माता का नाम पद्मावती था। इनका परिवार गंगा के पश्चिमी किनारे के किसी प्रदेश में रहता था। इन्होंने अपने ग्रंथ में श्रीमती ईश्वरी का उल्लेख अपने गुरु के रूप में किया है। वे कदाचित् नित्यानंद की पत्नी जाह्न्वी थी।
  • (५) इनका दूसरा नाम श्यामानन्द था। इनका समय १५८३ ई. के आसपास है। ये धारेंद्रा बहादुरपुर के निवासी थे। पदकल्पतरु में प्राप्त तीन पदों से यह ज्ञात होता है कि गौरीदास पंडित इनके गुरु थे। इनकी जीवनी कुछ विस्तार से भक्तिरत्नाकार में पाई जाती है। नरोत्तम दास के एक पद में भी इनकी चर्चा मिलती है। इनकी ख्याति विद्वत्ता एवं प्रचारकार्य के लिये है। इन्होंने वृन्दावन में रहकर जीव गोस्वामी से वैष्णव शास्त्रों का अध्ययन किया था। उसके बाद श्रीनिवास आचार्य एवं नरोत्तमदास के साथ बंगाल आए एवं उड़ीसा में वैष्णव धर्म का प्रचार किया।
  • (६) ये मिर्जापुर निवासी और निंबार्क संप्रदाय के अनुयायी, माधुर्य भक्ति को स्वीकार करनेवाले कवि थे। इनकी एक प्रख्यात रचना मार्धुय लहरी है। इसमें उन्होंने राधाकृष्ण के नित्य विहार के प्रसंगों का अत्यंत सरस एवं सुश्लिष्ट वर्णन किया है। संस्कृतनिष्ठ भाषा और गीतिका छंद में इसकी रचना हुई है। इस ग्रंथ की पुष्पिका के अनुसार इसकी रचना संवत् १८५२-५३ (१७९५-९६ ई.) में हुई थी। वृंदावन में इनका बनवाया हुआ कुंज 'मिरजापुरवाली कुंज' के नाम से आज भी वर्तमान है।
  • (७) कृष्णदास पयहारी : ये रामानंदी संप्रदाय के प्रमुख आचार्य और कवि थे। इनका समय सोलहवीं शती ई. कहा जाता है। ये ब्राह्मण थे और जयपुर के निकट 'गलता' नामक स्थान पर रहते थे और केवल दूध पीते थे। ये रामानंद के शिष्य अनंतानंद के शिष्य थे और आमेर के राजा पृथ्वीराज की रानी बाला बाई के दीक्षागुरू थे। कहा जाता है कि इन्होंने कापालिक संप्रदाय के गुरु चतुरनाथ को शास्त्रार्थ में पराजित किया था इससे इन्हें महंत का पद प्राप्त हुआ था। ये संस्कृत भाषा के पंडित थे और ब्रजभाषा के कवि थे। ब्रह्मगीता, प्रेमसत्वनिरूप इनके मुख्य ग्रंथ हैं। इनके ब्रजभाषा के अनेक पद प्राप्त होते हैं।