कामाख्या मन्दिर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(कामाख्या शक्तिपीठ से अनुप्रेषित)
कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताकामाख्या
त्यौहारअम्बुबाची मेला
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिनीलाचल पहाड़ी, गुवाहाटी
राज्यअसम
देशभारत
कामाख्या मन्दिर is located in असम
कामाख्या मन्दिर
असम में अवस्थिति
भौगोलिक निर्देशांक26°09′59″N 91°42′20″E / 26.166426°N 91.705509°E / 26.166426; 91.705509निर्देशांक: 26°09′59″N 91°42′20″E / 26.166426°N 91.705509°E / 26.166426; 91.705509
वास्तु विवरण
प्रकारनीलाचल शैली, कूच शैली
निर्माताम्लेच्छ वंश के राजा[1] पुनर्निर्माण: राजा नर नारायण और बाद में, अहोम राजाओं द्वारा।
निर्माण पूर्ण8वीं-17वीं सदी[2]
आयाम विवरण
मंदिर संख्या6
स्मारक संख्या8
वेबसाइट
www.maakamakhyadevalaya.org

कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या में है। और गणेश केसा है ? से भी १० किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है [3] व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। ये अष्टादश महाशक्तिपीठ स्तोत्र के अन्तर्गत है जो आदि शंकराचार्यने लिखा था।देश भर मे अनेकों सिद्ध स्थान है जहाँ माता सुक्ष्म स्वरूप मे निवास करती है प्रमुख महाशक्तिपीठों मे माता कामाख्या का यह मंदिर सुशोभित है हिंगलाज की भवानी, कांगड़ा की ज्वालामुखी, सहारनपुर की शाकम्भरी देवी, विन्ध्याचल की विन्ध्यावासिनी देवी,श्रीबाग(अलिबाग) की श्री पद्माक्षी रेणुका देवी आदि महान शक्तिपीठ श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र एवं तंत्र- मंत्र, योग-साधना के सिद्ध स्थान है। यहाँ मान्यता है, कि जो भी बाहर से आये भक्तगण जीवन में तीन बार दर्शन कर लेते हैं उनके सांसारिक भव बंधन से मुक्ति मिल जाती है । " या देवी सर्व भूतेषू मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।

    विश्व विख्यात और विश्व का एकमात्र मां कामाख्या महासिद्ध पीठ की एक मान्यता ये भी देवी ग्रंथ कुलावर्ण तंत्र और  महाभगवती पुराण में बताई गई है कि जो भी कलयुग में इस स्वयंभू सिद्ध पीठ में गंगा मईया का गंगा जल लाकर चढ़ाएगा और उस में से ही महा नदी ब्रह्मपुत्र में डाल देगा उसको वाजपई यज्ञ का फल मिलेगा क्योंकि ये सभी पृथ्वी के साथ सभी लोकों की दिव्य शक्तियों का भी शक्ति केंद्र हमेशा रहा ही है

नीलांचल पर्वत

    विश्व विख्यात देवज्ञ पंडित राजीव शर्मा "शूर" राज ज्योतिषी,धर्मगुरु भी हैं और जो कंडाघाट,जिला सोलन ,हिमाचल प्रदेश के निवासी भी हैं ने स्वय यहां सिद्ध पीठ में रह कर साधना में जप तप हवन यज्ञ करके और लगभग हर त्यौहार मेले अंबु वाची आदि में भी शामिल हो के अनेक बार मां कामाख्या का साक्षात् सिद्धि की अनुभूति प्राप्त की और वेद पुराण शास्त्रों में दी गई
सभी बताती गई महिमा को आज भी उस से अधिक
शत प्रतिशत वैसे अनुभूत पाया

अम्बुवाची पर्व[संपादित करें]

विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्व भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह (आषाढ़) में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। यह एक प्रचलित धारणा है कि देवी कामाख्या मासिक धर्म चक्र के माध्यम से तीन दिनों के लिए गुजरती है, इन तीन दिनों के दौरान, कामाख्या मंदिर के द्वार श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते हैं।[4] इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया।

पौराणिक सन्दर्भ[संपादित करें]

पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है। कामाख्या तंत्र के अनुसार -

योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा॥
शरणागतदिनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्याति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ।।

इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य' एवं `दस महाविद्याओं' नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ॰ दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।

कामाख्या मन्दिर परिसर

कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ॰ दिवाकर शर्मा कहते हैं कि कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा।

नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं और कामदेव द्वारा प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर ध्वंसप्राय हो गया था।

पं. दिवाकर शर्मा ने बतलाया कि आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र 'नद' के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है। यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था। भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुन जीवनदान मिला था। इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है।

सर्वोच्च कौमारी तीर्थ[संपादित करें]

कामाख्या मंदिर का प्लान (खाका)

सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यन्त महत्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल व वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं।

इस क्षेत्र में सभी वर्ण व जातियों की कौमारियां वंदनीय हैं, पूजनीय हैं। वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसा करने पर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंछित होना पड़ा था।

जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं।और यही वक्त होता है जब विश्व के सबसे प्राचीनतम तंत्र मठ(चीनाचारी)आगम मठ के विशिष्ट तांत्रिक अपनी साधना करने तिब्बत से यहाँ आते है इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं।

कामाख्या मंदिर मे योनि(गर्भ) की पूजा[संपादित करें]

पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी सती अपने योगशक्ति से अपना देह त्याग दी तो भगवान शिव उनको लेकर घूमने लगे उसके बाद भगवान विष्णु अपने चक्र से उनका देह काटते गए तो नीलाचल पहाड़ी में भगवती सती की योनि (गर्भ) गिर गई, और उस योनि (गर्भ) ने एक देवी का रूप धारण किया, जिसे देवी कामाख्या कहा जाता है। योनी (गर्भ) वह जगह है जहां बच्चे को 9 महीने तक पाला जाता है और यहीं से बच्चा इस दुनिया में प्रवेश करता है। और इसी को सृष्टि की उत्पत्ति का कारण माना जाता है। भक्त यहां देवी सती की गिरी हुई योनि (गर्भ) की पूजा करने के लिए आते हैं जो देवी कामाख्या के रूप में हैं और दुनिया के निर्माण और पालन-पोषण के कारण देवी सती के गर्भ की पूजा करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपने माँ की योनि (गर्भ) से जन्म लेता है, लोगो की मान्यता है उसी प्रकार जगत की माँ देवी सती की योनि से संसार की उत्पत्ति हुई है जो कामाख्या देवी के रूप में है।[5]

कामाख्या मंदिर में योनि पूजा के लिए अनेक विधियाँ और प्रथाएँ हैं जो स्थानीय पांडितों या पुजारियों द्वारा निर्धारित की जाती हैं। यह पूजा मंदिर में अनुष्ठान किया जा सकता है या विशेष अवसरों पर भक्तों द्वारा भी की जा सकती है। यह पूजा अलग अलग रूप से की जाती है, इसमे आरती दर्शन, विशेष आरती, अष्टोत्तर अर्चना, रुद्राभिषेक, पूर्णाहुति, नवग्रह पूजा, प्रसाद वितरण और भंडारा सेवा अलग अलग समय पर की जाती है।[6]

कामाख्या मंदिर का समय[संपादित करें]

कामाख्या मंदिर के दर्शन का समय भक्तों के लिए सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और फिर दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक शुरू होता है। सामान्य प्रवेश नि: शुल्क है, लेकिन भक्त सुबह 5 बजे से कतार बनाना शुरू कर देते हैं, इसलिए यदि किसी के पास समय है तो इस विकल्प पर जा सकते हैं। आम तौर पर इसमें 3-4 घंटे लगते हैं। वीआईपी प्रवेश की एक टिकट लागत है, जिसे मंदिर में प्रवेश करने के लिए भुगतान करना पड़ता है, जो कि प्रति व्यक्ति रुपए 501 की लागत पर उपलब्ध है। इस टिकट से कोई भी सीधे मुख्य गर्भगृह में प्रवेश कर सकता है और 10 मिनट के भीतर पवित्र दर्शन कर सकता है।[1]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

{🌺🌺🙏श्री चमत्कारी मां कामाख्या धाम 🙏🌺🌺

      ✡️Astrologer DR. KARTICK CHAKRABORTY Ji ✡️
  1. 𝐅𝐎𝐑_𝐀𝐋𝐋_𝐏𝐑𝐎𝐁𝐋𝐄𝐌_𝐒𝐎𝐋𝐔𝐓𝐈𝐎𝐍 #आपके_अपने__घर_बैठे_फोन_पर_समाधान_हम_कहते_नहीं_करके_दिखाते_हैं 💯%Solution✅ ++91-957-731-9932 🌴
  2. किसी_भी_समस्या_से_परेशान_तुरंत_कुछ_घंटों_में_समाधान_घर_बैठेपाऐ =🌴 #call++91-957-731-9932 Love problem specialist 💯
  3. स्पेशलिस्ट:- वशीकरण, #प्रेम_विवाह माता-पिता को मनाना, सौतन-दुशमन छुटकारा ,घर मै कलह-कलेश रहना, पति-पत्नी मै अनबन ,,काम-काज मै घाटा, कर्ज हो जाना,बच्चा ना होना या होकर नष्ट हो जाना होना,

📲 +91-957-731-9932

  1. only_one_call_change_your_life
  2. get_immediately_solution_for_your_all_problem_contact_no+ +91-957-731-9932
  3. Vashikaran_love_marriage,love #problem,family problem, husband wife problem, get your love back, intercast love marriage ,child problem.
  4. Best Kamakhya Tantrik

solution_with_100% guarantee...👌👌

 ✡️Astrologer DR. KARTICK CHAKRABORTY Ji✡️}}

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

कामाख्या मंदिर- कामरूप का कुंभ

  1. "Along with the inscriptional and literary evidence, the archaeological remains of the Kamakhya temple, which stands on top of the Nilacala, testify that the Mlecchas gave a significant impetus to construct or reconstruct the Kamakhya temple." (Shin 2010:8)
  2. "it is certain that in the pit at the back of the main shrine of the temple of Kamakhya we can see the remains of at least three different periods of construction, ranging in dates from the eighth to the seventeenth century A.D." (Banerji 1925, p. 101)
  3. "कामाख्या मन्दिर". मूल से 20 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अगस्त 2016.
  4. "Ambubachi Mela". Kamakha Temple - kamakya-temple.com. मूल से 12 अप्रैल 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-04-13.
  5. https:/ /www.boldsky.com/yoga-spirituality/faith-mysticism/2014/ambubasi-when-mother-earth-menstruates-041120.html
  6. Jignesh, Patel (2024-03-06). "Assam Kamakhya Devi Mandir". hanumanchalisahindilyrics. अभिगमन तिथि 2024-03-03.