ऋतुपर्ण

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ऋतुपर्ण अयोध्या के एक पुराकालीन राजा थे। इनके पिता का नाम सर्वकाम था। यह अक्षविद्या में अत्यंत निपुण थे। जुए में राज्य हार जाने के उपंरात अपने अज्ञातवासकाल में नल 'बाहुक' नाम से इन्ही के पास सारथि के रूप में रहा था। इन्होंने नल को अपनी अक्षविद्या दी तथा नल ने भी अपनी अश्वविद्या इन्हें दी।

नलवियुक्ती दमयंती को जब अपने चर पर्णाद द्वारा पता चला कि नल ऋतुपर्ण के सारथि के रूप में रह रहा है तो उसने ऋतुपर्ण का संदेशा भेजा, नल का कुछ भी पता न लगने के कारण मैं अपना दूसरा स्वयंवर कल सूर्योदय के समय कर रही हूँ, अत: आप समय रहते कुंडनिपुर पधारें। नल ने अपनी अश्वविद्या के बल से ऋतुपर्ण को ठीक समय पर कुंडनिपुर पहुँचा दिया तथा वहाँ नल और दमयंती का मिलन हुआ।

बौधायन श्रौत्रसूत्र (२०,१२) के अनुसार ऋतुपर्ण भंगाश्विन का पुत्र तथा शफाल के राजा थे। वायु, ब्रह्म तथा हरिवंश इत्यादि पुराणों में ऋतुपर्ण को अयुतायुपुत्र बताया गया है।