इस्लाम से पहले का अरब

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(इस्लाम से पहले के अरब से अनुप्रेषित)
यमन के सबाई संस्कृति के अल्मक़ाह चन्द्र-देवता की एक प्रार्थना
नबाती लोगों के व्यापारिक मार्ग

इस्लाम से पहले का अरब (अरबी: العرب قبل الإسلام‎, अल-अरब क़ब्ल अल-इस्लाम; अंग्रेज़ी: Pre-Islamic Arabia) ६३० ईसवी के दशक में इस्लाम के उभरने से पहले के काल का अरबी प्रायद्वीप था।[1] यदि इराक़ में केन्द्रित मेसोपोटामिया की सभ्यताओं को छोड़ा जाए तो अरबी प्रायद्वीप में सबसे पहली मानवीय संस्कृति २५०० ईसापूर्व के आसपास की उम्म अन-नार संस्कृति थी जो उत्तरी संयुक्त अरब अमीरात और ओमान के इलाक़े में लगभग ५०० सालों तक चली। इसके बाद यहाँ कई राज्य उभरे। उस समय के बहुत सारे अरब अल्लाह के साथ-साथ उसकी तीन बेटियों की भी पूजा करते थे। ये देवियां थीं: अल-लात,[2] मनात और अल-उज्ज़ा।[3] इन तीनों देवियों का मंदिर मक्का के आस-पास ही स्थित था और तीनों की काबा के भीतर भी पूजा होती थी। सारे अरब के लोग इन तीनों देवियों की पूजा करते थे।

दक्षिणी अरब के प्राचीन राज्य[संपादित करें]

दक्षिणी अरब (विशेषकर यमन क्षेत्र) में यह इस प्रकार थे:

  • माईन राज्य (Kingdom of Ma'in, ७००-१०० ईपू)
  • सबाई राज्य (Kingdom of Saba, ९०० ईपू - २७५ ई)
  • हधरामौत राज्य (Kingdom of Hadhramaut, ८०० ईपू - ३०० ई)
  • असवान राज्य (Kingdom of Aswan, ८०० ईपू - ६०० ईपू)
  • क़तबान​ राज्य (Kingdom of Qataban, ४०० ईपू - ३०० ई)
  • हिम्यर राज्य (Kingdom of Himyar, २०० ईपू - ५२५ ई)

यमन पर अकसूमी क़ब्ज़ा (५२५ - ५७० ईसवी)[संपादित करें]

एक हिम्यरी राजा, युसुफ़ धू नूवास (Yusuf Dhu Nuwas), अपना धर्म परिवर्तित करके यहूदी बन गया और अपने राज्य के ईसाई निवासियों पर अत्याचार करने लगा। लाल सागर के पार आधुनिक इथियोपिया के इलाक़े में अकसूम राज्य नाम का एक शक्तिशाली राष्ट्र था जिसका राजा कालेब ईसाई था। कालेब को रोष आया और बीज़ान्टिन सल्तनत के राजा जस्टिन प्रथम के प्रोत्साहन के साथ उसने यमन पर हमला किया और उसे अपने राज्य में शामिल कर लिया। ५७० ईसवी में उसने मक्का क्षेत्र पर भी हमला करने की कोशिश करी। पूर्वी यमन इस काल में क़बीलियाई सम्बंधो के द्वारा लख़मी लोगों से जुड़ा था और उन्होंने ईरान के सासानी साम्राज्य की फ़ौजें यमन में बुलवा लीं जिस से दक्षिणी अरब का अकसूम काल ख़त्म हो गया।[4]

सासानी काल (५७० - ६३० ईसवी)[संपादित करें]

अरब देवी अल-लात, मनात और अल-उज़्ज़ा

ईरान के शहनशाह ख़ुसरौ प्रथम ने वहरिज़ नामक सेनापति के नेतृत्व में अपनी सेनाएँ भेजी जिन्होंने आकर सैफ़ इब्न धी यज़न (Sayf ibn Dhi Yazan) नामक हिम्यर राजा को अकसूमियों को वापस इथियोपिया खदेड़ने में मदद करी। अब यमन सासानी साम्राज्य के अधीन आ गया और लख़मियों के पतन के बाद एक और ईरानी फ़ौज वहाँ भेजी गई और यमन सासानी साम्राज्य की एक सात्रापी (प्रान्त) बन गया। सन् ६२८ में सासानी सम्राट ख़ुसरौ द्वितीय के मरणोपरांत दक्षिणी अरब का ईरानी राज्यपाल बाधान (Badhan) धर्म-परिवर्तन कर के मुस्लिम बन गया और फिर यमन क्षेत्र में इस्लाम फैलने लगा।[5]

उत्तरी अरब के प्राचीन राज्य[संपादित करें]

क़ेदार राज्य (आरम्भ ८०० ईपू)[संपादित करें]

क़ेदार सभी अरबी क़बीलों में सब से अधिक संगठित थे और ६०० ईपू काल में उनका राज्य फ़ारस की खाड़ी से सीनाई प्रायद्वीप के बीच एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था। इनके कुछ राजाओं का नाम असीरियाई शिलालेखों में भी मिलता है और कुछ क़ेदारी राजा असीरियाई साम्राज्य के अधीन भी रहे, हालांकि ७०० ईपू के बाद वे विद्रोह करते रहते थे। माना जाता है कि २०० ईपू के बाद वे नबाती राज्य में समा गए।

उत्तरी अरब में ईरानी हख़ामनी राज[संपादित करें]

ईरान के हख़ामनी साम्राज्य ने मेसोपोटामिया से मिस्र तक के उत्तरी अरब क्षेत्र को अपनी अरबी सात्रापी में संगठित कर दिया था। रोमन इतिहासकार हिरोडोटस का बयान है कि हख़ामानी सम्राट कम्बूजिया द्वितीय ने जब ५२५ ईपू में मिस्र पर हमला किया उस समय उसने अरबों पर क़ाबू नहीं पाया था। कम्बूजिया द्वितीय के बाद आने वाले सम्राट दारयूश महान ने अपने प्रसिद्ध बहीस्तून शिलालेख में तो अरबों का ज़िक्र नहीं किया हालांकि उसकी बाद की लिखाईयों में उनके बारे में लिखा हुआ है, जिस से यह लगता है कि उसने उत्तरी अरब पर क़ब्ज़ा कर लिया था।

नबाती राज्य[संपादित करें]

नबाती उत्तर अरब में एक बड़ा राज्य बनाने में सक्षम हो गए और उनकी राजधानी पेत्रा की चट्टानों में तराशी गई इमारतें आज भी जॉर्डन में खड़ी हैं। नबाती अपने व्यापार से बहुत अमीर हो गए और ३०० ईपू से इस क्षेत्र की एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरे। उनपर रोमन साम्राज्य ने हमला किया और वे रोमन सम्राट त्राजान के काल में उसके अधीन हो गए हालांकि उनकी समृद्धि फिर भी कुछ काल तक चलती रही।

पाल्माइरा और रोमन अरब[संपादित करें]

उत्तरी अरब के कुछ क्षेत्रों में रोमन राज आगस्टस कैसर (२७ ईपू - १४ ई) के राजकाल में आरम्भ हुआ और टैबीरियस (१४ - ३७ ई) तक इसका पाल्माइरा शहर बहुत धनवान हो चुका था। आधुनिक सीरिया में स्थित यह शहर यूरोप और चीनभारत के बीच का एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यापारिक पड़ाव था। यहाँ के रहने वाले अरब नागरिक रोम, पार्थिया और अन्य इलाक़ों की वेशभूषा चुन-मिला कर पहनते थे। जब १२९ ईसवी में रोमन सम्राट हेड्रियन यहाँ आया तो उसे यह शहर बहुत लुभावना लगा और उसने इसका नाम अपने ऊपर 'पाल्माइरा हेड्रियाना' रख दिया। दूसरी सदी ईसवी में त्राजान ने नबाती राज्य पर क़ब्ज़ा किया और पेत्रा पर केन्द्रित 'अरबिया पेत्राईया' (Arabia Petraea) नामक प्रान्त गठित किया। हाल ही में कुछ सुराग़ मिले हैं कि हिजाज़ पहाड़ियों के कुछ क्षेत्रों में भी रोमन सैनिक मौजूद थे इसलिए संभव है कि यह प्रान्त पूर्व-अनुमान से भी अधिक विस्तृत रहा हो। रोम ने इस प्रान्त की दक्षिण और पूर्व के रेगिस्तान से लगी सीमा का नाम 'लाइमीज़ अरबिकस' (Limes Arabicus) रखा और इस सीमा पर स्थान-स्थान पर संतरी बुर्ज बनवाए जो यहाँ पर बसने वाले ख़ानाबदोश 'सारासेनी' (Saraceni) नामक क़बीलों पर नज़र रखते थे। लाइमीज़ अरबिकस सरहद के इस पार रोम का 'अरबिया पेत्राईया' प्रान्त था और उस पार 'अरबिया मैग्ना' (Arabia Magna, अर्थ: बड़ा अरब) अनियंत्रित इलाक़ा था।[6]

क़हतानी[संपादित करें]

अरबी इतिहास में यमन तथा उसके आसपास के दक्षिणी अरबी क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाले क़बीलों को 'क़हतानी' (Qahtanite) कहा जाता है।[7] सासानी काल में रोम का अरबिया पेत्राईया प्रान्त रोमन साम्राज्य और ईरानी साम्राज्य की सरहद पर स्थित था। ३०० ईसवी के आसपास दक्षिण से क़हतानी क़बीले उत्तर को आने लगे। इनमें ग़स्सानी, लख़मी और किन्दी प्रमुख थे। ग़स्सानी आधुनिक सीरिया, लेबनान, इस्राइल, फ़िलिस्तीन और जॉर्डन क्षेत्र में जा बसे। लख़मी दजला नदी के मध्य भाग में बस गए और उन्होंने वहाँ अपनी मशहूर अल-हीरा राजधानी बनाई। किन्दी बहरीन तक पहुँचे जहाँ से उनको अब्दुल क़ैस रबीआ क़बीले ने वापस धकेल दिया। वहाँ वे हिम्यर राज्य के मित्रपक्ष में आ गए और उनके अधीन उन्हें मध्य अरब में एक राज्य दिया गया जिसे उन्होंने ५२५ ईसवी में हिम्यरियों के पतन तक चलाया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "अल्लाह को इकलौता नहीं, सबसे बड़ा देवता माना जाता था". मूल से 15 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जून 2020.
  2. "इस्लाम में तस्वीर और मूर्ति की मनाही अगर है तो क्यों है?". मूल से 3 मार्च 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2020.
  3. "अरब की तीन देवियों की कहानी, जिन्हें अल्लाह की बेटियां माना जाता था".
  4. Cities of The Middle East and North Africa: A Historical Encyclopedia Archived 2013-06-16 at the वेबैक मशीन, Michael Dumper, Bruce E. Stanley, pp. 18, ABC-CLIO, 2007, ISBN 978-1-57607-919-5, ... Later, around 525, Byzantium contributed an armada of ships to help the king of Aksum invade the South Arabian kingdom of Himyar. The story goes that Himyar was at that point ruled by a Jewish king,Dhu-Nuwas,who persecuted Christians ...
  5. Debating Muslims: Cultural Dialogues in Postmodernity and TraditionNew Directions in Anthropological Writing, Michael M. J. Fischer, Mehdi Abedi, pp. 194, Univ of Wisconsin Press, 1990, ISBN 978-0-299-12434-2, ... Muhammad further said that if Badhan accepted Islam he would keep his throne. When confirmation of the assassination arrived, Badhan converted to Islam. Badhan's son Shahr became one of the first Muslim martyrs in the battle against Aswad Anasi, an apostate from Islam ...
  6. The Rome That Did Not Fall: The Survival of the East in the Fifth Century, Gerard Friell, pp. 107, Psychology Press, 1998, ISBN 978-0-415-15403-1, ... Recent archaeological work has suggested that the strongest period of fortification and garrison on the Limes Arabicus was in the fourth and fifth centuries. We have numerous references to raiding of settled areas by Arab tribes from the desert ...
  7. The Middle of the Earth, Allen Austin, pp. 118, Xulon Press, 2011, ISBN 978-1-61215-912-6, ... Arab genealogies usually ascribe the origins of the Qahtanites to the South Arabians who built up one of the oldest centres of civilisation in the Near East beginning around 800 BC ...