आवासीय बल

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भारतीय फलित ज्योतिष में ग्रह की किसी भाव में स्थिति के कारण ग्रह को आवासीय बल प्राप्त होता है। इस सम्पूर्ण सांख्यिकी को ज्ञात करने के लिये पांच प्रकार के बल निकाले जाते हैं।

  • उच्च बल

उच्च बल स्थानीय बल का एक भाग है। इस बल में ग्रह को उसके उच्च व नीच बिन्दु के मध्य स्थिति के अनुसार बल प्रदान किया जाता है। एक ग्रह जो अपने उच्च बिन्दु कि तरफ जा रहा होता है उसे आरोही ग्रह कहते हैं। और यदि ग्रह अपने नीच बिन्दु कि तरफ जा रहा हो तो उसे अवरोही ग्रह कहते हैं। पूर्ण बली ग्रह को एक रुपा अंक दिये जाते हैं। तथा इसके विपरीत ग्रह अपने नीच बिन्दु पर शून्य बल प्राप्त करता है।

  • सप्तवर्गीय बल

आवासीय बल या स्थानीय बल निकालने के लिये उच्च बल के बाद जिस बल को निकाला जाता है। वह सप्तवर्गीय बल है। इस बल में सात वर्ग चार्टो में ग्रह बल निकाला जाता है। सप्तवर्गीय बल में प्रयोग होने वाले सात वर्ग निम्न है।

जन्म कुण्डली, होरा, द्रेष्कोण, सप्तांश, नवांश, द्वादशाशं, त्रिशांश वर्ग कुण्डली.

इसके अतिरिक्त इन सभी वर्ग कुण्डलियों में ग्रहों को मूलत्रिकोण, स्वराशि, मित्रराशि, सम राशि व शत्रु राशि के आधार पर बल मिलता है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि मूल त्रिकोण को केवल जन्म कुण्डली में ही ध्यान में रखा जाता है।

  • ओज युग्म बल

जन्म कुण्डली और नवांश कुण्डली में सम या विषम राशि में ग्रह की स्थिति से यह बल प्राप्त होता है।

चन्द्र, शुक्र स्त्री ग्रह माने गये हैं तथा शेष सभी ग्रह पुरुष ग्रह है। स्त्री ग्रहों को सम राशि और नवांश में बल प्राप्त होत है। तथा पुरुष ग्रहों को विषम राशि और नवांश में बल प्राप्त होता है। परन्तु पुरुष ग्रह सम राशि और नवांश में तथा स्त्री ग्रह विषम राशि और नवांश में कोई बल प्राप्त नहीं करते हैं।

  • केन्द्रादि बल

यह बल भी आवासीय बल ज्ञात करने के लिये निकाला जाता है। इस बल में ग्रह केन्द्र भाव अर्थात् 1, 4, 7, 10 वें भाव में सबसे अधिक अंक प्राप्त करता है। ग्रह पनफर भाव में उपर्युक्त अंकों के आधे अंक प्राप्त करता है। तथा अगर ग्रह अपोक्लिम भाव में हों तो पनफर के आधे अंक प्राप्त करता है।

  • द्रेष्कोण बल

स्थानीय बल या आवासीय बल निकालने के लिये उपर्युक्त चार बल निकालने के बाद द्रेष्कोण बल निकाला जाता है। इस बल में ग्रह को स्त्री ग्रह, नपुंसक ग्रह और पुरुष ग्रह के रूप में वर्गीकृ्त किया जाता है। इसके पश्चात पुरुष ग्रह पहले द्रेष्कोण, स्त्री ग्रह तीसरे द्रेष्कोण व नपुंसक ग्रह दुसरे द्रेष्कोण में अंक प्राप्त करता है।