आवर्त नियम

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आवर्त नियम रसायन शास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। 1869 ई. में रूस के प्रसिद्ध रसायनज्ञ मिन्दिलेयिफ़ ने इसका प्रतिपादन किया। इस नियम के अनुसार तत्त्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु द्रव्यमानों के आवर्ती फलन होते हैं। अर्थात् तत्वों को यदि उनके परमाणु द्रव्यमान के क्रम में रखा जाए तो उनके गुणधर्म की पुनरावृत्ति एक नियत क्रम में होती रहती है और समान रासायनिक गुणधर्म वाले तत्त्व एक निश्चित क्रम में मिलते हैं।

अधिक परिशुद्धतापूर्वक विचार करने पर यह ज्ञात हुआ कि परमाणु द्रव्यमानों के क्रम में तत्त्वों को रखने पर भी कुछ विषमताएँ रह जाती हैं। आधुनिक अनुसंधानों से अब यह स्पष्ट हो गया है कि परमाणु का मूलभूत गुण परमाणु क्रमांक है, परमाणु द्रव्यमान नहीं। अत: हेन्री मोज़्ली ने कहा कि तत्त्वों के वर्गीकरण का आधार भी परमाणु द्रव्यमान के स्थान पर परमाणु क्रमांक होनी चाहिए। उसके द्वारा प्रस्तुत आधुनिक आवर्त नियम निम्नलिखित है:

"तत्त्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्म उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं।"

अर्थात् यदि तत्वों को उनकी परमाणु क्रमांकों के अनुसार रखा जाए तो समान गुणधर्म वाले तत्त्व नियमित अन्तराल के बाद पड़ते हैं।"

महत्त्व[संपादित करें]

आवर्त नियम के द्वारा प्राकृतिक रूप से प्राप्त 94 तत्त्वों में उल्लेखनीय समानताएँ मिलीं । ऐक्टिनियम और प्रोटोऐक्टीनियम की भाँति नेप्टूनियम और प्लूटोनियम भी यूरैनियम के अयस्क यूरनाइट में पाए गए। इससे अकार्बनिक रासायनिकी में प्रोत्साहन मिला और कृत्रिम अल्पायु वाले तत्त्वों की खोज हुई।

किसी तत्त्व का परमाणु क्रमांक उस तत्त्व के नाभिकीय आवेश (प्रोटॉनों की संख्या) या तटस्थ परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के समान होता है। इसके पश्चात् प्रमात्रा संख्याओं की सार्थकता और वैद्युतिक विन्यासों की आवर्तिता को समझना सरल हो जाता है। अब यह स्वीकृत है कि आवर्त नियम तत्त्वों तथा उनके यौगिकों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों का फलन है, जो तत्त्वों के वैद्युतिक विन्यास पर आधारित है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]