रुहोल्ला खोमैनी

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अयातोल्ला अल-उज़्मा सायद रुहोल्ला मोसावि खोमैनी

अयातोल्ला अल-उज़्मा सायद रुहोल्ला मोसावि खोमैनी (फ़ारसीروح الله موسوی خمینی), (24 सप्तम्बर, 1902 – 3 जून 1989) शिया मुसल्मान इमाम (अथवा मर्जा) थे। वे ईरान में जन्मे थे। ईरानी क्रान्ति के बाद, उन्होने ईरान में ग्यारह वर्ष शासन किया। वे 1979 से 1989 तक वे ईरान के रहबरे इंकिलाब रहे। उनको सन् १९७९ में टाइम पत्रिका ने साल के सबसे प्रभावशाली नेता के रूप में चुना था।

भारतीय मूल के ब्रितानी लेखक सलमान रुश्दी के ख़िलाफ़ फतवा जारी करने और कई राजनैतिक क़ैदियों को मरवाने के आदेश भी उन्होंने ही दिए।

मूल और आरंभिक जीवन[संपादित करें]

युवा रुहोल्ला

रुहोल्ला खोमैनि का जन्म खोमैन शहर में हुआ था। तेहरान के दक्षिण से खोमैन ३०० किमी था। उनके पिता का नाम अयतोल्ला सय्यद मुस्ताफ़ा मुसावि था और उनकी माँ का नाम हज्जे आघा खानुम था। रुहोल्ला सैय्यद थे और उनका परिवार मुहम्मद का वंशज था वे अन्तिम इमाम (इमाम मूसा कानम) से थे। उनके दादा सैय्यद आख्मद मूसावि हिंदि, उत्तर प्रदेश के किन्तूर गांव में जन्मे थे। हिंदी 1834 में ईरान आए और 1939 में खोमैन में घर लिया। उनकी तीसरी पत्नी, सकिने ने, मुस्ताफ़ा को १८५६ में जन्म दिया। खोमैनि के नाना मिर्ज़ा आख्मद मोज्तहेद-ए-खोंसारी जी थे। मिर्ज़ा खोंसरी मध्य ईरान में बहुत अच्छे इमाम थे।

मार्च 1903 में, पंच मास रुहोल्ला के जन्म के बाद, लोगों ने उसके पिता की हत्या कर दी[1]। रुहोल्ला की माँ व नानी ने उनको पाला। छठे साल से उनकी कुरान व फ़ारसी भाषा की शिक्षा शुरु हुई। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुल्ला अब्दुल कसीम व शैख जफ़्फ़र के साथ हुई। रुहोल्ला की माँ व नानी का तब देहान्त हो गया जब वे 15 वर्ष के थे। इसके बाद वे अयतोल्ला के साथ रहने लगे। जब वे 18 के हुए तो ईस्लामी शिक्षा प्राप्त करने के लिये अरक मादिसे में गये। उनके गुरु अयतोल्ला अब्दुल-करिम हैरि-यज़्दि थे।

1921 में, अरक उंच्च मद्रसा, में उन्होने इस्लामी पढाई शुरु की। 1922 में उन्होने और उनके गुरु ने माद्रसा अरक छोड़ कर कोम में एक नया माद्रसा बनाया। खोमैनि ने दार-अल-शाफ़ा विद्यालय में पढाई की। इसके बाद नाजफ़, ईराक़ को चल दिये। पढाई के बाद वे फ़िख, फ़िलासफ़, सूफ़ी, व शरीअ को पढाया।

खोमैनि ने शिक्षा में राजनीति व धर्म के साथ का समर्थन किया। उनका आदर्श शासन धर्मतंत्र था।

राजनीति में[संपादित करें]

1961 में, अयतोल्ला सायद मुहाम्मद बुरुजेर्दी की मृत्यु हुई। एक साल के बाद अयतोल्ला अबोल-हशेम कशानी की मृत्य भी हो गयी। इस वक़्त, अयतोल्ला 60 वर्ष के हो गये थे। फिर उन्होने नेत्रित्व का मार्ग चुना, दो इमाम की मृत्य के बाद ईरान के शाह इमाम को यह रास नहीं था। इमामों को नाराज होता देख रेज़ा पहलवी का _____ को। पह्लवी के पुत्र मोहाम्मद रेज़ शा जी थे, उन्होने इंक़िलाब-ए-सफेद इमाम को परेशानियाँ दीं। अयातुल्ला खोमैनी को इटली की पत्रकार ओरियाना फ़ल्लाची ने खुलेआम तानाशाह कहा था क्योंकि 1979 में तेहरान में इन्टरव्यू की इजाज़त देने से पहले खोमैनी के सिपहसालारों ने उनसे अपना सिर चादर से ढंकने को कहा था। उन्होंने खोमैनी से कहा, "मैं इस बेवकूफ़ीभरे मध्ययुगीन चीथड़े को अभी उतार फेंकती हूं।"[2]

इस्लामी क्रांति[संपादित करें]

The Imam arrives in Iran on February 1
The Imam arrives in Iran on February 1

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. (अंग्रेज़ी में) अयतोल्ल रुहोल्ला मुसावी खोमैनी Archived 2017-07-17 at the वेबैक मशीन - ईरान इतिहास परिषद
  2. मेरा रंग (2020-09-25). "जर्नलिस्ट ओरियाना फ़ल्लाची, जिन्होंने अयातुल्ला खोमैनी को तानाशाह कहा था". MeraRanng- स्त्री विमर्श, फेमिनिज़्म हिंदी में, महिला सशक्तिकरण. अभिगमन तिथि 2021-06-14.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]